WHO की वैश्विक क्षय रोग (TB) रिपोर्ट 2025 | 17 Nov 2025
प्रिलिम्स के लिये: विश्व स्वास्थ्य संगठन, क्षय रोग (TB), ह्यूमन इम्यूनोडिफिसिएंसी वायरस, प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान, नि-क्षय मित्र
मेन्स के लिये: राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) के तहत भारत की प्रगति और चुनौतियाँ, दवा प्रतिरोधी टीबी
चर्चा में क्यों?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की वैश्विक क्षय रोग (TB) रिपोर्ट 2025 से पता चलता है कि भारत में टीबी के मामलों में 21% की तीव्र गिरावट आएगी, जो वर्ष 2015 में 237 प्रति लाख से घटकर वर्ष 2024 में 187 प्रति लाख हो जाएगी, जो वैश्विक गिरावट की गति से लगभग दोगुनी है और इस रोग के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक प्रमुख मील का पत्थर है।
WHO ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2025 के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- वैश्विक: वर्ष 2024 में 10.7 मिलियन लोग टीबी से बीमार पड़ेंगे और 1.23 मिलियन लोगों की मृत्यु होगी। घटना दर प्रति 100,000 पर 131 थी और मृत्यु दर 11.5% थी।
- टीबी विश्व स्तर पर मृत्यु के शीर्ष 10 कारणों में से एक है तथा एकल संक्रामक कारक से होने वाली मौतों में सबसे प्रमुख है।
- उच्च-भार वाले देश: कुल 30 उच्च-भार वाले देश वैश्विक टीबी के 87% मामलों के लिये ज़िम्मेदार हैं। प्रमुख योगदान देने वाले देश भारत (25%), इंडोनेशिया (10%), फ़िलिपींस (6.8%), चीन (6.5%), पाकिस्तान (6.3%), नाइजीरिया (4.8%), डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कॉन्गो (3.9%) और बांग्लादेश (3.6%) हैं।
- टीबी की घटनाओं के प्रमुख कारण: कुपोषण, कम आय, ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस (HIV), मधुमेह, धूम्रपान और शराब सेवन संबंधी विकार।
- भारत की उपलब्धियों में तीव्र गिरावट: वैश्विक टीबी मामलों में भारत का योगदान 25% है, लेकिन उच्च बोझ वाले देशों में भारत ने सबसे तेज़ी से गिरावट दर्ज की है। उपचार कवरेज 53% (2015) से बढ़कर 92% (2024) हो गया है।
- भारत की टीबी मृत्यु दर वर्ष 2015 में 28 प्रति लाख से घटकर वर्ष 2024 में 21 प्रति लाख हो गई। हालाँकि इस प्रगति के बावजूद वर्ष 2024 में विश्व भर में टीबी से होने वाली कुल मौतों में से लगभग 28% भारत में ही होंगी।
- प्रधानमंत्री टीबी मुक्त भारत अभियान के अंतर्गत उपचार की सफलता दर 90% (2024) है, जो वैश्विक औसत 88% से अधिक है।
- भारत में एक लाख मामले "लापता" रह गए हैं, यानी ऐसे मामले जिनका निदान नहीं हो पाया है और जो संक्रमण फैला रहे हैं। भारत अभी भी वैश्विक पहचान अंतराल में 8.8% का योगदान देता है, जो इंडोनेशिया (10%) के बाद दूसरे स्थान पर है।
भारत में टीबी के मामलों में कमी लाने वाले कारक क्या हैं?
- बड़े पैमाने पर शीघ्र पहचान: आणविक परीक्षण सुविधाओं के तेज़ी से विस्तार के साथ शीघ्र निदान में तीव्र सुधार हुआ है।
- भारत में अब विश्व का सबसे बड़ा टीबी प्रयोगशाला नेटवर्क है और 92% मरीज़ों का रिफैम्पिसिन दवा-प्रतिरोध परीक्षण पहले ही हो जाता है। इस स्तर की शीघ्र पहचान से स्रोत पर ही संक्रमण को रोकने में मदद मिलती है।
- भारत में वर्ष 2024 में टीबी के अब तक सर्वाधिक 26.18 लाख मामलों का निदान किया जाएगा, जिससे अनुमानित और पता लगाए गए मामलों के बीच का अंतर काफी हद तक कम हो जाएगा।
- नई प्रौद्योगिकियों का उपयोग: कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)-सक्षम हैंडहेल्ड एक्स-रे उपकरण, पोर्टेबल डायग्नोस्टिक उपकरण और विस्तारित NAAT (न्यूक्लिक एसिड एम्प्लीफिकेशन टेस्टिंग) कवरेज ने दूरदराज और उच्च-भार वाले क्षेत्रों में भी टीबी का शीघ्र पता लगाना आसान बना दिया है।
- ये प्रौद्योगिकियाँ तेजी से जाँच करने और उपचार शुरू करने में देरी को कम करने में सहायक हैं।
- नई और छोटी उपचार व्यवस्था: BPaLM (बेडाक्विलाइन, प्रीटोमैनिड, लाइनज़ोलिड, मोक्सीफ्लोक्सासिन) व्यवस्था के लागू होने से DR-TB उपचार की अवधि 18-24 महीने से घटकर मात्र 6 महीने रह गई।
- पूर्णतः मौखिक MDR-TB उपचारों से सुरक्षा में सुधार हुआ, ड्रॉपआउट में कमी आई तथा सफल उपचार परिणामों में वृद्धि हुई।
- बड़े पैमाने पर सामुदायिक जाँच: टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत सामुदायिक जाँच अभूतपूर्व स्तर पर पहुँच गई है।
- 19 करोड़ से अधिक संवेदनशील लोगों की जाॅंच की गई, जिससे 24.5 लाख रोगियों का पता चला, जिनमें 8.61 लाख लक्षणहीन मामले शामिल थे। मूक वाहकों की पहचान करना संचरण में कमी का एक प्रमुख कारण है।
- 1.78 लाख आयुष्मान आरोग्य मंदिरों और नि-क्षय मित्रों के माध्यम से देखभाल समुदायों के करीब पहुँच गई है।
- इस विकेंद्रीकरण से लोगों को शीघ्रता से परीक्षण और उपचार प्राप्त करने में मदद मिलती है, जिससे टीबी के फैलने में होने वाली लंबी देरी को रोका जा सकता है।
- बेहतर पोषण और सामाजिक सहायता: नि-क्षय पोषण योजना (NPY) के अंतर्गत टीबी रोगियों के पोषण के लिये वित्तीय सहायता 500 रुपये से बढ़ाकर 1,000 रुपये प्रति माह कर दी गई है, जिससे पूरे उपचार के दौरान प्रति रोगी 3,000 रुपये से 6,000 रुपये तक की सहायता प्रदान की जा रही है।
भारत का टीबी उन्मूलन लक्ष्य क्या है?
- वर्ष 2020 में भारत ने संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (RNTCP) का नाम बदलकर राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) कर दिया, ताकि वर्ष 2030 के वैश्विक लक्ष्य से पाँच वर्ष पहले, वर्ष 2025 तक टीबी को खत्म करने के अपने लक्ष्य के साथ तालमेल बिठाया जा सके।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में TB उन्मूलन को प्रति दस लाख जनसंख्या और प्रति वर्ष एक से कम अधिसूचित टीबी मामले (सभी प्रकार) के रूप में परिभाषित किया गया है।
- NTEP राष्ट्रीय रणनीतिक योजना (2017-2025) का अनुसरण करता है, जो भारत में टीबी को नियंत्रित करने और समाप्त करने के लिये चार प्रमुख कार्यों पर ध्यान केंद्रित करता है: पहचान (Detect) – उपचार (Treat) – रोकथाम (Prevent) – निर्माण/मज़बूती (Build) (DTPB)।
- जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की TB उन्मूलन रणनीति का लक्ष्य वर्ष 2015 के स्तर की तुलना में वर्ष 2030 तक टीबी की घटनाओं में 80% की कमी और मृत्यु दर में 90% की कमी हासिल करना है।
- भारत में वर्ष 2015 से वर्ष 2024 के बीच नये मामलों में केवल 21% की गिरावट तथा मृत्यु में 28% की गिरावट आई है।
भारत वर्ष 2025 तक टीबी उन्मूलन लक्ष्य को पूरा करने में क्यों संघर्ष कर रहा है?
- टीबी का उच्च बोझ और तीव्र संचरण: भारत विश्व में सबसे अधिक टीबी प्रभावित देश है, जिससे उन्मूलन मुश्किल हो जाता है।
- अधिक आबादी वाली झुग्गी-झोंपड़ियों, खराब वेंटिलेशन और संकेंद्रित रहने की परिस्थितियाँ संक्रमण को तेज़ी से फैलने देती हैं, जिससे पहचान में सुधार के बावजूद संचरण स्तर उच्च बने रहते हैं।
- दवा प्रतिरोधी टीबी (MDR/XDR): कई मरीज़ इलाज का पूरा कोर्स पूरा नहीं करते हैं और प्राय: एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग किया जाता है। इससे बहु-दवा प्रतिरोधी (MDR) और व्यापक रूप से दवा प्रतिरोधी (XDR) टीबी हो जाती है, जिसका इलाज बहुत कठिन तथा महॅंगा होता है।
- विलंबित या अनुपलब्ध जाँच: आबादी का एक बड़ा हिस्सा, विशेषकर ग्रामीण, जनजातीय और दुर्गम क्षेत्रों में त्वरित टीबी परीक्षण सुविधाओं से वंचित है।
- देरी से निदान का अर्थ है कि रोग समुदाय में चुपचाप फैलता रहेगा।
- सहवर्ती रोग और जोखिम कारक: मधुमेह, HIV, कुपोषण और धूम्रपान का उच्च प्रसार प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करता है तथा संक्रमण के जोखिम को बढ़ाता है।
- बढ़ता वायु प्रदूषण फेफड़ों के स्वास्थ्य को और नुकसान पहुँचाता है। अकेले वर्ष 2024 में लगभग 3.2 लाख टीबी के मामले मधुमेह से जुड़े थे।
- निजी क्षेत्र में चुनौतियाँ: लगभग आधे टीबी मरीज़ पहले निजी डॉक्टरों के पास जाते हैं। हालाँकि, कई निजी क्लीनिक पुरानी जाँचें, असंगत दवाइयाँ अपनाते हैं और सरकार को मामलों की सूचना नहीं देते। इससे मामले छूट जाते हैं और इलाज की गुणवत्ता खराब हो जाती है।
- कुपोषण और खराब जीवनयापन की स्थितियाँ: भारत में टीबी के सबसे बड़े जोखिम कारकों में से एक कुपोषण बना हुआ है।
- खराब गुणवत्ता वाला आहार और खाद्य असुरक्षा प्रतिरक्षा को कमज़ोर करती है, जिससे लोग संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं और उनकी रिकवरी धीमी हो जाती है।
- स्वास्थ्य प्रणाली में कमियाँ: कुछ क्षेत्रों में प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं की कमी, अनियमित दवा आपूर्ति और कमज़ोर अनुवर्ती तंत्र का सामना करना पड़ रहा है।
- ये अंतराल उपचार के पालन को कम करते हैं और दवा प्रतिरोध का जोखिम बढ़ाते हैं।
- बच्चों में टीबी के लक्षण प्राय: सूक्ष्म दिखाई देते हैं और इसके लिये विशेष परीक्षणों की आवश्यकता होती है। परिणामस्वरूप, कई मामलों का पता नहीं चल पाता या उनका निदान देर से होता है।
भारत में टीबी उन्मूलन प्रयासों को सुदृढ़ करने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- प्रारंभिक और सटीक निदान का विस्तार करना: ज़िले एवं उप-ज़िले स्तर पर CBNAAT और TrueNat जैसे त्वरित आणविक परीक्षणों का विस्तार किया जाए ताकि सभी को समान पहुँच मिल सके।
- प्रारंभिक पहचान संक्रमण शृंखला को तोड़ती है, दवा-प्रतिरोध को जल्दी पहचानने में सहायता करती है और ‘गुम/अप्रतिबंधित’ मामलों की संख्या कम करती है।
- दवा-प्रतिरोधी टीबी से निपटने के लिये मज़बूत हस्तक्षेप: BPaL जैसे छोटे और रोगी-अनुकूल उपचार कार्यक्रमों को व्यापक रूप से लागू किया जाए, जो MDR टीबी के उपचार की अवधि को 18–24 महीनों से घटाकर 6 महीने कर देते हैं।
- तीव्र और अधिक सहनीय उपचार बेहतर परिणाम देते हैं तथा कठिन-से-ठीक होने वाले टीबी स्ट्रेनों के प्रसार को नियंत्रित करते हैं।
- मुख्य जोखिम कारकों और सह-रुग्णताओं का समाधान करना: मधुमेह, HIV, कुपोषण, मद्य-त्याग और तंबाकू-नियंत्रण कार्यक्रमों के साथ टीबी स्क्रीनिंग को एकीकृत करना। विशेष रूप से उच्च-भार वाले शहरों में वायु-गुणवत्ता प्रबंधन में सुधार करना चाहिये।
- निवारक चिकित्सा (TPT) को सुदृढ़ बनाना: बच्चों, HIVपॉजिटिव व्यक्तियों और उच्च जोखिम वाले समूहों को लक्षित करके निवारक उपचार के बारे में जागरूकता बढ़ाना।
- निवारक उपचार सुप्त संक्रमणों को सक्रिय टीबी में बदलने से रोकता है, जो दीर्घकालिक रूप से टीबी की घटनाओं में कमी के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- कोविड-पश्चात स्वास्थ्य अवसंरचना को पुनर्स्थापित और सुदृढ़ करना: कोविड-19 के कारण जनशक्ति, प्रयोगशालाएँ और संसाधन अन्यत्र स्थानांतरित हो गए, जिससे कई राज्यों में प्रगति धीमी हो गई। टीबी प्रयोगशाला प्रणालियों का पुनर्निर्माण करना और महामारी के दौरान अन्यत्र स्थानांतरित जनशक्ति को पुनः स्थापित करना।
- मज़बूत सार्वजनिक-निजी सहयोग: सार्वजनिक-निजी सहयोग को प्रोत्साहित करने से नए टीकों, देखभाल केंद्रों पर निदान और छोटी अवधि की दवा व्यवस्था के लिये अनुसंधान एवं विकास को मज़बूत किया जा सकता है।
- इससे निजी प्रदाताओं द्वारा मानकीकृत उपचार दिशानिर्देशों को अपनाया जा सकेगा और गलत निदान तथा अपूर्ण उपचार को कम करने में सहायता मिलेगी।
निष्कर्ष
भारत ने टीबी के मामलों को कम करने और उपचार परिणामों में सुधार लाने में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन वर्ष 2025 तक इसका उन्मूलन अभी भी असंभव है। टीबी उन्मूलन की दिशा में भारत की प्रगति में तेज़ी लाने के लिये निरंतर नवाचार, मज़बूत स्वास्थ्य प्रणालियाँ और लक्षित सामुदायिक समर्थन आवश्यक हैं।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. चर्चा कीजिये कि विकेंद्रीकृत टीबी सेवाओं और नई नैदानिक तकनीकों ने भारत की टीबी प्रतिक्रिया को कैसे बदल दिया है। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
1. भारत ने WHO ग्लोबल टीबी रिपोर्ट 2025 के अनुसार टीबी संक्रमण में कितनी कमी हासिल की है?
भारत ने वर्ष 2015 से वर्ष 2024 के बीच टीबी संक्रमण में 21% की कमी दर्ज की है, जो 237 प्रति लाख की दर से घटकर 187 प्रति लाख हो गई है।
2. वर्ष 2024 में NTEP के तहत भारत की उपचार कवरेज कितनी है?
वर्ष 2024 में उपचार कवरेज 92% तक पहुँच गई, जो वर्ष 2015 में 53% थी।
3. वैश्विक टीबी मामलों में भारत का हिस्सा कितना है?
भारत वैश्विक टीबी मामलों का 25% हिस्सा रखता है, जो सभी देशों में सबसे अधिक है।
4. BPaLM रेगीमेन (बेड़ाक्विलीन, प्रीटोमैनिड, लाइनज़ोलिड, मोक्सीफ्लॉक्सासिन) क्या है?
BPaLM रेगीमेन दवा-प्रतिरोधी टीबी (DR-TB) के लिये एक नई, छोटी और पूरी तरह मौखिक उपचार पद्धति है। यह उपचार अवधि को 18–24 महीनों से घटाकर केवल 6 महीने कर देता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
मेन्स
प्रश्न. "एक कल्याणकारी राज्य की नैतिक अनिवार्यता के अलावा, प्राथमिक स्वास्थ्य संरचना धारणीय विकास की एक आवश्यक पूर्व शर्त है।" विश्लेषण कीजिये। (2021)
