विकसित भारत- रोज़गार और आजीविका के लिये गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 | 18 Dec 2025

प्रिलिम्स के लिये: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005, पीएम गति शक्ति, गरीबी

मेन्स के लिये: भारत में ग्रामीण रोज़गार नीति, अधिकार-आधारित बनाम आपूर्ति-संचालित कल्याण मॉडल, गरीबी कम करने में सार्वजनिक कार्य कार्यक्रमों की भूमिका

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

ग्रामीण विकास मंत्रालय ने विकसित भारत–रोज़गार और आजीविका के लिये गारंटी मिशन (ग्रामीण) [VB-G RAM G] विधेयक, 2025 को लोकसभा में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 (MGNREGA) के उन्नत रूप के रूप में प्रस्तुत किया।

  • प्रस्तावित कानून अधिकार-आधारित, मांग-प्रेरित ग्रामीण रोज़गार योजना से हटकर बजट-सीमित, आपूर्ति-प्रेरित ढाँचे की ओर एक मौलिक परिवर्तन को दर्शाता है, जो विकसित भारत @2047 की परिकल्पना के अनुरूप है।
  • ग्रामीण गरीबी में वर्ष 2011–12 के 25.7% से घटकर वर्ष 2023–24 में लगभग 5% तक तीव्र गिरावट आई है, जिससे संकट-निवारण कार्यक्रम के रूप में MGNREGA की आवश्यकता कम हुई है और उत्पादकता-आधारित रोज़गार की दिशा में बदलाव की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।

सारांश

  • VB–G RAM G विधेयक, 2025 सार्वभौमिक, मांग-आधारित कार्य के अधिकार से हटकर बजट-सीमित, आपूर्ति-प्रेरित मॉडल की ओर परिवर्तन करता है, जिसमें योजनाबद्ध परिसंपत्ति सृजन पर ज़ोर दिया गया है।
  • यद्यपि इसका उद्देश्य राजकोषीय पूर्वानुमेयता और आजीविका एकीकरण है, फिर भी यह कवरेज, राज्य वित्त तथा संवेदनशील ग्रामीण परिवारों की आय सुरक्षा को लेकर चिंताएँ उत्पन्न करता है।

विकसित भारत- रोज़गार और आजीविका के लिये गारंटी मिशन (ग्रामीण) विधेयक, 2025 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • वैधानिक मज़दूरी रोज़गार गारंटी: प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्यों को, जो अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक हों, प्रति वित्तीय वर्ष 125 दिनों के मज़दूरी रोज़गार की कानूनी गारंटी प्रदान करता है।
  • सशर्त एवं गैर-सार्वभौमिक कवरेज: MGNREGA की सार्वभौमिक कवरेज के विपरीत, इस विधेयक के तहत रोज़गार केवल केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित ग्रामीण क्षेत्रों में ही उपलब्ध होगा, जिससे यह गारंटी राष्ट्रव्यापी न होकर सशर्त बन जाती है।
  • VGPP के माध्यम से बॉटम-अप योजना: स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं (VGPPs) के निर्माण को अनिवार्य करता है, जिन्हें ब्लॉक, ज़िला और राज्य स्तर पर समेकित किया जाएगा तथा समन्वित अवसंरचना योजना के लिये पीएम गति शक्ति के साथ एकीकृत किया जाएगा।
  • केंद्रीय प्रायोजित योजना (CSS) संरचना: लागत-साझेदारी पैटर्न को संशोधित कर अधिकांश राज्यों के लिये 60:40 (MGNREGA के तहत पहले 10% राज्य हिस्सेदारी के स्थान पर) कर दिया गया है, जिससे राज्यों पर वित्तीय भार में उल्लेखनीय वृद्धि होगी। उत्तर-पूर्वी और हिमालयी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 90:10 का पैटर्न यथावत रहेगा।
    • राज्य-वार आवंटन केंद्र सरकार द्वारा वस्तुनिष्ठ मानकों के आधार पर प्रतिवर्ष निर्धारित किये  जाएंगे, जिससे संकट की स्थिति या बढ़ती मांग के प्रति प्रतिक्रिया स्वरूप व्यय बढ़ाने में अनुकूलन सीमित हो जाएगा।

  • कृषि ऋतुओं के दौरान सुविधा: यह विधेयक राज्यों को बुवाई और कटाई के चरम मौसम के दौरान, एक वित्तीय वर्ष में अधिकतम 60 दिनों तक कार्यक्रम को स्थगित करने का अधिकार प्रदान करता है, जिससे कृषि गतिविधियों के लिये खेतिहर श्रम की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके।
  • बेरोज़गारी भत्ता प्रावधान: यदि कार्य की मांग किये जाने के 15 दिनों के भीतर रोज़गार उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो राज्य सरकारों द्वारा बेरोज़गारी भत्ता के भुगतान को अनिवार्य करता है।

VB–G RAM G विधेयक, 2025 की सीमाएँ:

  • रोज़गार के अधिकार का क्षरण: आलोचकों का तर्क है कि यह विधेयक MGNREGA के अधिकार-आधारित ढाँचे को कमज़ोर करता है, क्योंकि यह मांग-आधारित, कानूनी रूप से लागू होने वाले अधिकार को आपूर्ति-आधारित, बजट-सीमित कार्यक्रम में परिवर्तित कर देता है। 
  • सार्वभौमिक कवरेज की हानि: अब रोज़गार सभी ग्रामीण क्षेत्रों में सुनिश्चित नहीं है और केवल उन क्षेत्रों तक सीमित है जिन्हें केंद्र द्वारा अधिसूचित किया गया है, जिससे ज़रूरतमंद परिवारों के बहिष्कार की चिंता उत्पन्न होती है।
  • राज्यों पर बढ़ता वित्तीय बोझ: संशोधित लागत-साझाकरण पैटर्न (अधिकांश राज्यों के लिये 60:40) राज्यों की वित्तीय ज़िम्मेदारी को काफी बढ़ा देता है, जो विशेषकर गरीब राज्यों में प्रभावी क्रियान्वयन को सीमित कर सकता है।
  • सीमित आवंटन प्रतिक्रियाशीलता को बाधित करता है: राज्य-वार निर्धारित मानक आवंटन संकट के समय रोज़गार बढ़ाने की क्षमता को सीमित करता है।
    • कृषि ऋतुओं के दौरान 60 दिनों तक कार्य को निलंबित करने की अनुमति देने वाला प्रावधान, उस अवधि में आय समर्थन को कम करने के लिये आलोचना का विषय है जब ग्रामीण परिवारों को अभी भी रोज़गार की आवश्यकता हो सकती है।

ग्रामीण विकास और रोज़गार को बढ़ावा देने हेतु प्रमुख सरकारी पहलें

भारत में प्रभावी ग्रामीण विकास और रोज़गार को बाधित करने वाले प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

  • निम्न-गुणवत्ता रोज़गार का प्रभुत्व: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS 2022–23) के अनुसार, लगभग 45% ग्रामीण श्रमिक कम उत्पादकता वाली कृषि में स्व-नियोजित बने हुए हैं और प्रच्छन्न बेरोज़गारी बनी हुई है।
  • मनरेगा पर वित्तीय एवं परिचालन दबाव: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने मनरेगा के खुली-समापन, मांग-आधारित प्रकृति के कारण मज़दूरी भुगतान में देरी, लगातार कोष की कमी और बढ़ती लंबित देनदारियों की समस्याओं को रेखांकित किया है।
  • कौशल असंगति: राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) की रिपोर्टें इंगित करती हैं कि ग्रामीण कौशल विकास कार्यक्रम अक्सर स्थानीय बाज़ार की मांग के अनुरूप नहीं होते, जिससे नियोजन और प्रतिधारण दरें कम होती हैं।
  • जलवायु संवेदनशीलता: IPCC AR6 के अनुसार, कृषि-आश्रित ग्रामीण आजीविकाएँ जलवायु आघातों के प्रति अत्यधिक असुरक्षित हैं, जो रोज़गार अस्थिरता और आय अनिश्चितता को बढ़ाती हैं।

भारत में ग्रामीण विकास और रोज़गार को और सुदृढ़ करने हेतु कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • योजनाओं में समन्वय को सुदृढ़ बनाना: DAY–NRLM, DDU-GKY और PM विश्वकर्मा के प्रभावी एकीकरण से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि अल्पकालिक वेतन आधारित रोज़गार कौशल विकास, ऋण पहुँच और बाज़ार से जुड़ाव के माध्यम से सतत् आजीविका में परिवर्तित हो।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में गैर-कृषि रोज़गार को बढ़ावा देना: कृषि क्षेत्र में अतिरिक्त श्रम की खपत को कम करने के लिये ग्रामीण लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME), कृषि-प्रसंस्करण इकाइयों, हस्तशिल्प और सेवा उद्यमों का विस्तार आवश्यक है। 
    • क्लस्टर आधारित विकास, साझा सुविधा केंद्र एवं बेहतर लॉजिस्टिक्स ग्रामीण विनिर्माण एवं सेवाओं को बढ़ावा दे सकते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलनशील ग्रामीण आजीविका का निर्माण: जलवायु-अनुकूल कृषि, जलसंभर प्रबंधन, सूखा-रोधी उपायों और नवीकरणीय ऊर्जा-आधारित आजीविका में निवेश से जलवायु संबंधी आघातों के प्रति संवेदनशीलता को कम करने के साथ-साथ ही ग्रामीण रोज़गार को स्थिर किया जा सकता है।
  • पंचायती राज संस्थाओं (PRI) को सशक्त बनाना: निधियों, कार्यों एवं पदाधिकारियों के अधिक हस्तांतरण के साथ-साथ PRI की क्षमता निर्माण से ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की स्थानीय योजना, कार्यान्वयन एवं जवाबदेही में सुधार होगा।
  • डिजिटल एवं वित्तीय समावेशन का लाभ उठाना: प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण योजना, डिजिटल भुगतान, ग्रामीण ब्रॉडबैंड तथा स्वयं सहायता समूहों और परिवारिक संगठनों के माध्यम से ऋण तक पहुँच का विस्तार पारदर्शिता में वृद्धि कर सकता है, भ्रष्टाचार को कम कर सकता है और ग्रामीण उद्यमिता को समर्थन दे सकता है।

निष्कर्ष

यह सुधार ग्रामीण परिस्थितियों में हो रहे बदलावों को दर्शाता है, लेकिन इससे सबसे गरीब लोगों की आय संबंधी सुरक्षा के कमज़ोर होने का खतरा है। सतत विकास लक्ष्य 1 (गरीबी उन्मूलन) तथा सतत विकास लक्ष्य 8 (सम्मानजनक कार्य) को प्राप्त करने के लिये एक संतुलित मॉडल अत्यंत महत्त्वपूर्ण है जो उत्पादक और जलवायु-प्रतिरोधी संपत्तियों का निर्माण करते हुए कार्य करने के अधिकार की रक्षा करे ।

दृष्टि मेन्स का प्रश्न:

प्रश्न: जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्षम परिसंपत्तियों के निर्माण में ग्रामीण रोज़गार कार्यक्रमों की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. VB–G RAM G विधेयक, 2025 का उद्देश्य क्या है? इसका उद्देश्य एक अनिश्चितकालीन, मांग-आधारित रोज़गार गारंटी को बजट-सीमित, आपूर्ति-आधारित कार्यक्रम से बदलना है जो दीर्घकालिक ग्रामीण विकास लक्ष्यों के अनुरूप हो।

2. VB–G RAM G विधेयक, 2025 के तहत प्रत्येक ग्रामीण परिवार को कितने दिनों के वेतनभोगी रोज़गार की गारंटी दी गई है? यह ढाँचा प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति वित्तीय वर्ष 125 दिनों के अकुशल वेतनभोगी रोज़गार की वैधानिक गारंटी प्रदान करता है ।

3. विकसित ग्राम पंचायत योजनाएँ (VGPP) क्या हैं? VGPP स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके तैयार की गई जमीनी स्तर की योजनाएँ हैं, जिन्हें उच्च स्तरों पर एकत्रित किया जाता है और समन्वित अवसंरचना नियोजन के लिये पीएम गति शक्ति के साथ एकीकृत किया जाता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभान्वित होने के पात्र हैं? (2011)

(a) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों के वयस्क सदस्य

(b) गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के परिवारों के वयस्क सदस्य

(c) सभी पिछड़े समुदायों के परिवारों के वयस्क सदस्य

(d) किसी भी परिवार के वयस्क सदस्य

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न.“गरीबी उन्मूलन की एक अनिवार्य शर्त गरीबों को अभाव की प्रक्रिया से मुक्त करना है।” उपयुक्त उदाहरणों के साथ इस कथन को सिद्ध कीजिये। (2016)

प्रश्न.“भारत में गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम तब तक मात्र दिखावटी ही बने रहते हैं जब तक उन्हें राजनीतिक इच्छाशक्ति का समर्थन प्राप्त न हो।” भारत में प्रमुख गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के प्रदर्शन के संदर्भ में इस पर चर्चा कीजिये। (2015)