शहरी रोज़गार गारंटी | 10 Sep 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारत के बेरोज़गारी के आँकड़े , शहरी रोज़गार गारंटी योजनाएँ, मनरेगा। मेन्स के लिये:भारत में बेरोज़गारी का मुद्दा, शहरी रोज़गार गारंटी योजनाओं का महत्त्व।  | 
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राजस्थान सरकार ने शहरी रोज़गार को बढ़ावा देने हेतु प्रमुख योजना इंदिरा गांधी शहरी रोज़गार योजना शुरू की है।
योजना का परिचय:
- उद्देश्य:
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (मनरेगा) की तर्ज पर शहरी क्षेत्रों में परिवारों को 100 दिनों का रोज़गार प्रदान करना।
 - सरकार ने योजना के क्रियान्वयन के लिये 800 करोड़ रुपए आवंटित किये हैं।
 
 - लक्षित जनसंख्या: 18 से 60 आयु वर्ग के लोग योजना के लिये पात्र हैं।
 - रोज़गार के अवसर:
- जल संरक्षण: खानियों की बावड़ी में नवीनीकरण कार्य योजना के जल संरक्षण कार्यों के अंतर्गत आता है।
 - अभिसरण: लोगों को अन्य केंद्र या राज्य स्तर की योजनाओं में नियोजित किया जा सकता है, जिनके पास पहले से ही एक भौतिक घटक है और जिसके लिये श्रम कार्य की आवश्यकता होती है।
 - अन्य कार्यों में शामिल हैं:
- पर्यावरण संरक्षण जैसे- सार्वजनिक स्थानों पर वृक्षारोपण और पार्कों का रखरखाव।
 - स्वच्छता और सफाई संबंधी कार्य जैसे ठोस कचरा प्रबंधन।
 - विरासत संरक्षण और सुरक्षा/बाड़ लगाना/चारदीवारी/नगरीय निकायों और सार्वजनिक भूमि की सुरक्षा आदि से संबंधित कार्य।
 
 
 - अन्य राज्यों की शहरी रोज़गार गारंटी योजनाएँ:
- केरल:
- वर्ष 2010 में शुरू की गई अय्यंकाली शहरी रोज़गार गारंटी योजना (AUEGS) का उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में लोगों की आजीविका सुरक्षा को एक वित्तीय वर्ष में 100 के वेतन रोज़गार की गारंटी देकर बढ़ाना है, जिसके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक कार्य करने के लिये स्वेच्छा से काम करते हैं।
 
 - हिमाचल प्रदेश:
- मुख्यमंत्री शहरी आजीविका गारंटी योजना 2020 में शहरी क्षेत्रों में आजीविका सुरक्षा बढ़ाने के लिये एक वित्तीय वर्ष में प्रत्येक परिवार को 120 दिनों की गारंटी मज़दूरी रोज़गार प्रदान करने के लिये शुरू की गई थी।
 
 - झारखंड:
- मुख्यमंत्री श्रमिक योजना 2020 में झारखंड राज्य में आजीविका सुरक्षा बढ़ाने के लिये एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के वेतन रोज़गार की गारंटी प्रदान करके शुरू की गई थी।
 
 
 - केरल:
 
भारत में शहरी रोज़गार गारंटी योजनाएँ:
- "गारंटी" योजनाओं का अभाव:
- वर्ष 1997 में शुरू की गई स्वर्ण जयंती शहरी रोज़गार योजना (SJSRY) ने बेरोज़गार और अल्परोज़गार शहरी गरीबों को स्वरोज़गार तथा मज़दूरी रोज़गार के माध्यम से रोज़गार प्रदान किया
 - वर्ष 2013 में, SJSRY राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन (एनयूएलएम) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।
 - भारत में शहरी रोज़गार योजनाओं का इतिहास रहा है, लेकिन उनमें से कोई भी रोज़गार "गारंटी" योजना नहीं थी।
 
 - शहरी बेरोज़गारी दर:
- अधिकांश बेरोज़गारी डेटा, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) या आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण से पता चलता है कि बेरोज़गारी दर आमतौर पर शहरी क्षेत्रों में अधिक है।
 - अगस्त 2022 के आंँकड़ो (CMIE) के अनुसार, शहरी भारत में बेरोज़गारी दर 9.57% (ग्रामीण 7.68%) है।
 
 - कमजोर अनौपचारिक क्षेत्र:
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में 535 मिलियन श्रम बल में से लगभग 398.6 मिलियन के पास खराब गुणवत्ता वाले रोज़गार हैं। इसके अलावा, लॉकडाउन ने शहरी निम्न-स्तरीय अनौपचारिक नौकरियों में कमजोर रोज़गार की स्थिति को उजागर किया।
- कमजोर रोज़गार की विशेषता अपर्याप्त आय, कम उत्पादकता और काम की कठिन परिस्थितियांँ हैं जो श्रमिकों के मूल अधिकारों को कमजोर करती हैं।
 
 
 - अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, वर्ष 2019 में भारत में 535 मिलियन श्रम बल में से लगभग 398.6 मिलियन के पास खराब गुणवत्ता वाले रोज़गार हैं। इसके अलावा, लॉकडाउन ने शहरी निम्न-स्तरीय अनौपचारिक नौकरियों में कमजोर रोज़गार की स्थिति को उजागर किया।
 - ग्रामीण केंद्रित योजनाएँ:
- राहत प्रदान करने वाली अधिकांश सरकारी योजनाएँ, चाहे वह केंद्र सरकार हो या राज्य, ग्रामीण बेरोज़गारी और मनरेगा जैसी गरीबी को प्राथमिकता देती हैं।
 - कोविड के प्रकोप के मद्देनजर गांँवों में लौटने वाले प्रवासी श्रमिकों के लिये रोज़गार और आजीविका के अवसरों को बढ़ावा देने के लिये, 50,000 करोड़ रुपए के आवंटन के साथ, 2020 में प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोज़गार अभियान शुरू किया गया था।
 
 
क्या UEG मनरेगा के विस्तार के रूप में कार्य कर सकता है?
- मौजूदा योजना की रूपरेखा:
- वर्तमान में भारत में, अधिकांश UEG शहरी क्षेत्रों में मनरेगा का एक मात्र विस्तार प्रतीत होते हैं।
- हिमाचल प्रदेश, ओडिशा या केरल में UEG होने के नाते, उनमें से एक सामान्य विशेषता शहरी परिवारों को वर्ष के दौरान विशिष्ट दिनों के लिए रोज़गार प्रदान करना है।
 
 
 - वर्तमान में भारत में, अधिकांश UEG शहरी क्षेत्रों में मनरेगा का एक मात्र विस्तार प्रतीत होते हैं।
 - हालांँकि, UEG निम्नलिखित कारणों से केवल मनरेगा का विस्तार नहीं हो सकता है:
- ग्रामीण बेरोज़गारी ज़्यादातर मौसमी होती है।
- खेती के चरम मौसम के दौरान, बहुत कम ग्रामीण लोग बेरोज़गार हो सकते हैं।
 - लेकिन शहरी बेरोज़गारी में ऐसा कोई मौसम नहीं है।
 
 - ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पंचायती राज संस्थाओं की क्षमता।
- शहरी स्थानीय निकाय खराब वित्त पोषित हैं और उनके पास सहायता प्रदान करने की क्षमता बहुत कम है।
 
 - सार्वजनिक कार्य में शामिल श्रम का ग्रामीण और शहरी अर्थव्यवस्थाओं में परिदृश्य भिन्न-भिन्न है।
 
 - ग्रामीण बेरोज़गारी ज़्यादातर मौसमी होती है।
 
आगे की राह:
- राज्यों द्वारा UEG योजना का हस्तक्षेप एक स्वागत योग्य कदम है जो शहरी निवासियों को काम करने का अधिकार देता है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत जीवन के अधिकार को सुनिश्चित करता है।
 - स्मार्ट सिटी मिशन और कायाकल्प और शहरी परिवर्तन के लिये अटल मिशन (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation-AMRUT) जैसे कार्यक्रमों ने महानगरों और शहरों के विकास पर अधिक ध्यान केंद्रित किया है।
- भारत के शहरी क्षेत्रों में आजीविका और पारिस्थितिकी में सुधार हेतु अपना ध्यान फिर से केंद्रित करना महत्त्वपूर्ण है।
 
 - शहरी रोज़गार गारंटी कार्यक्रम न केवल श्रमिकों की आय में सुधार करता है बल्कि अर्थव्यवस्था पर कई गुना प्रभाव डालता है।
- यह छोटे शहरों में स्थानीय मांग को बढ़ावा देगा, सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे और सेवाओं में सुधार करेगा, उद्यमशीलता को बढ़ावा देगा, श्रमिकों के कौशल का निर्माण करेगा तथा सार्वजनिक वस्तुओं की साझा भावना पैदा करेगा।
 
 
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):प्रश्न. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का सामान्यतः अर्थ होता है कि: (2013) (a) लोग बड़ी संख्या में बेरोज़गार रहते हैं उत्तर: (c) व्याख्या: 
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