भारत के विकास के उत्प्रेरक के रूप में शहरी केंद्र | 10 Jul 2025
प्रिलिम्स के लिये:सकल घरेलू उत्पाद, एशियाई विकास बैंक, बायोमास, सतत् विकास लक्ष्य मेन्स के लिये:भारत में शहरीकरण और उससे जुड़ी चुनौतियाँ, भारत के आर्थिक विकास में शहरों की भूमिका |
स्रोत: बीएल
चर्चा में क्यों?
भारत तेज़ी से शहरीकरण के दौर से गुज़र रहा है, जहाँ वर्ष 2035 तक शहरी जनसंख्या 67.5 करोड़ तक पहुँचने की उम्मीद है तथा वर्ष 2045 तक इसमें 7 करोड़ लोग और जुड़ सकते हैं। यह तेज़ी से होती शहरीकरण की प्रक्रिया आने वाले दशकों तक भारत की आर्थिक और सामाजिक दिशा को आकार प्रदान करेगी।
- हालाँकि भारतीय शहरों में मौजूद शहरी चुनौतियाँ इस परिवर्तन की पूरी संभावनाओं को प्राप्त करने में अब भी बाधा बनी हुई हैं।
भारत के आर्थिक भविष्य के लिये शहर केंद्र पर क्यों हैं?
- आर्थिक इंजन: शहर भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 60% योगदान देते हैं, जबकि वे केवल 3% भू-भाग पर स्थित हैं। यह उन्हें उत्पादकता और नवाचार के केंद्र के रूप में दर्शाता है।
- मुंबई, दिल्ली, बंगलूरू, चेन्नई और हैदराबाद सहित केवल 15 शहर भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 30% का योगदान करते हैं। इन शहरों से वर्ष 2047 तक GDP वृद्धि में अतिरिक्त 1.5% योगदान की उम्मीद है।
- समूहन के लाभ: शहरी क्षेत्रों में अधिक जनसंख्या घनत्व से अधिक आर्थिक उत्पादन, बेहतर रोज़गार सृजन और उद्योगों एवं सेवाओं के समूहों के माध्यम से नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
- भारत की बढ़ती शहरी आबादी से हर साल अतिरिक्त 1.5% आर्थिक उत्पादकता वृद्धि की उम्मीद है, जो राष्ट्रीय उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि को संभव बनाएगी।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: सुव्यवस्थित शहर व्यापार सुगमता में सुधार करते हैं, विदेशी निवेश को आकर्षित करते हैं तथा भारत को वर्ष 2026 तक 5 ट्रिलियन डॉलर तथा वर्ष 2047 तक 40 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की दिशा में सहयोग करते हैं।
- आवश्यक ढाँचागत कुशलता: शहरी क्षेत्रों में परिवहन, आवास, ऊर्जा और लॉजिस्टिक्स की प्रभावी व्यवस्थाएँ ऑपरेशनल लागत को कम करती हैं तथा औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करती हैं।
- नवप्रवर्तन केंद्र: शहर स्टार्टअप्स, अनुसंधान एवं विकास (R&D) और प्रौद्योगिकी को अपनाने को बढ़ावा देते हैं, जिससे वे डिजिटल तथा सेवा क्षेत्रीय परिवर्तन के प्रमुख केंद्र बनते हैं।
- सामाजिक अवसर: शहरीकरण गरीबी उन्मूलन, शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच के लिये मार्ग प्रदान करता है तथा आर्थिक विकास को बेहतर मानव विकास परिणामों से जोड़ता है।
शहरी भारत के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- भीड़भाड़ और यातायात प्रबंधन: शहरी निवासियों को प्रतिदिन औसतन 1.5 से 2 घंटे ट्रैफिक जाम में फँसे रहना पड़ता है। यह भीड़भाड़ न केवल प्रदूषण बढ़ाती है, बल्कि समय की बर्बादी और उत्पादकता में कमी का कारण भी बनती है।
- भारत के अधिकांश शहरों में समग्र, कुशल और एकीकृत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की कमी है, जिसके कारण निजी वाहनों पर अत्यधिक निर्भरता रहती है तथा ट्रैफिक की समस्या और बढ़ जाती है।
- उदाहरण के लिये, झारखंड की राजधानी राँची में 1.46 मिलियन की आबादी के लिये केवल 41 बसें हैं।
- एशियाई विकास बैंक के अनुसार, शहरी परिवहन की अकुशलता, रसद में देरी और खराब बुनियादी ढाँचे के कारण भारत को प्रतिवर्ष 22 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक का नुकसान होता है।
- भारत के अधिकांश शहरों में समग्र, कुशल और एकीकृत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की कमी है, जिसके कारण निजी वाहनों पर अत्यधिक निर्भरता रहती है तथा ट्रैफिक की समस्या और बढ़ जाती है।
- वायु प्रदूषण: वर्ष 2023 में, विश्व के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 42 भारत के हैं, जबकि वर्ष 2022 में यह संख्या 39 थी। खराब वायु गुणवत्ता के प्राथमिक कारणों में वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन, निर्माण कार्य से उत्पन्न धूलकण और बायोमास का जलना शामिल हैं।
- इससे श्वसन रोगों का खतरा बढ़ता है, जिससे दिल्ली, मुंबई और बंगलूरू जैसे शहरों में लाखों लोग प्रभावित होते हैं।
- जल संकट: भारत की लगभग आधी नदियाँ प्रदूषित हैं, जिससे शहरी क्षेत्रों में स्वच्छ जल की उपलब्धता गंभीर रूप से प्रभावित होती है। अपर्याप्त जलशोधन तथा अपशिष्ट जल प्रबंधन से जल संसाधनों पर और दबाव पड़ता है।
- इसके अतिरिक्त, पुराने पाइपलाइन सिस्टम के कारण शहरी क्षेत्रों में 40-50% पानी का नुकसान हो जाता है।
- ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: भारतीय शहरों में प्रतिदिन 1,50,000 टन से ज़्यादा ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है, लेकिन इसका केवल एक छोटा-सा हिस्सा ही स्थायी रूप से संसाधित किया जाता है। कई शहरों में प्रभावी अपशिष्ट पृथक्करण और पुनर्चक्रण प्रणालियों का अभाव है।
- खराब अपशिष्ट प्रबंधन से प्रदूषण, स्वास्थ्य संबंधी खतरे और अस्वच्छ शहरी वातावरण में योगदान होता है, जिससे शहर रहने लायक नहीं रह जाते।
- स्वच्छता की कमी: कई शहरी क्षेत्रों, विशेषकर अनौपचारिक बस्तियों में उचित स्वच्छता सुविधाओं की कमी है ।
- कई शहरों में अपर्याप्त सीवेज प्रणालियाँ और जल निकायों में सीवेज रिसाव एक चुनौती बनी हुई है।
- किफायती आवास की कमी: भारत में 10 मिलियन किफायती घरों की कमी है और यह संख्या वर्ष 2030 तक तीन गुनी होने की उम्मीद है। शहरी गरीब लोग अक्सर अनौपचारिक बस्तियों या मलिन बस्तियों में रहते हैं, जहाँ स्वच्छ पानी, स्वच्छता और बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव होता है।
- इस बढ़ती कमी के कारण न केवल भीड़भाड़ वाली झुग्गियाँ बनती हैं, बल्कि शहरी बस्तियाँ भी बनती हैं, जिससे सुरक्षा चुनौतियाँ बढ़ती हैं तथा सांप्रदायिक या धार्मिक हिंसा की संभावना बढ़ जाती है।
- इसके अतिरिक्त, शहरी स्थान की बढ़ती मांग के कारण संपत्ति की कीमतें बढ़ जाती हैं, जिससे किफायती आवास कई लोगों के लिये दुर्गम हो जाता है।
- शहरी बाढ़: कई शहरों में अपर्याप्त जल निकासी व्यवस्था, वर्षा जल निकासी नालियों पर अतिक्रमण और तेज़ी से शहरीकरण के कारण शहरी बाढ़ का सामना करना पड़ता है।
- केरल में वर्ष 2018 की बाढ़ और चेन्नई में वर्ष 2015 की बाढ़ इस बात के प्रमुख उदाहरण हैं कि शहरी बुनियादी ढाँचा चरम मौसम की घटनाओं से निपटने के लिये किस तरह संघर्ष करता है।
- कमज़ोर नगरपालिका वित्त: भारतीय शहर स्थानीय करों और नगर निगम बॉण्डों के माध्यम से पर्याप्त राजस्व जुटाने में विफल रहते हैं। अधिकांश नगरपालिकाएँ केंद्रीय सरकार के फंड पर निर्भर रहती हैं, जो अक्सर अपर्याप्त या अक्षम रूप से उपयोग किये जाते हैं।
- कई शहर शहरी विकास परियोजनाओं के लिये केंद्र सरकार के वित्तपोषण पर निर्भर रहते हैं, लेकिन आवंटित धनराशि अक्सर अपर्याप्त होती है या उसका अकुशल उपयोग किया जाता है।
- डिजिटल अवसंरचना की कमी: सिंगापुर, हॉन्गकॉन्ग और सियोल जैसे देशों के शहरों की तुलना में भारत में इंटरनेट स्पीड बहुत कम है।
- इससे डिजिटल व्यवसायों की वृद्धि बाधित होती है और समग्र आर्थिक विकास धीमा हो जाता है।
- शहरी ऊष्मा द्वीप: उच्च तापमान के कारण एयर कंडीशनर का अत्यधिक उपयोग होता है, जिससे बिजली की मांग बढ़ती है और कार्बन उत्सर्जन में इजाफा होता है।
- इससे स्वास्थ्य जोखिम, हरित आवरण में कमी, जैवविविधता पर प्रभाव, जल संसाधनों पर दबाव, बाढ़ का खतरा और शहरी संरचना पर प्रभाव जैसे कई गंभीर परिणाम सामने आते हैं।
शहरी क्षेत्र में विकास और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये भारत की कौन-सी पहल हैं?
भारत के शहरी भविष्य के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है?
- शहरी बुनियादी ढाँचे को मुख्य राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचे के रूप में समझना: शहरी बुनियादी ढाँचे जैसे गतिशीलता, जल, स्वच्छता और कचरा प्रबंधन को राजमार्गों, बंदरगाहों तथा ऊर्जा ग्रिड के समान दर्जा दिया जाना चाहिये।
- स्मार्ट शहरों और लॉजिस्टिक्स इकोसिस्टम को “रणनीतिक अवसंरचना” के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये ताकि दीर्घकालिक पूंजी निवेश और नीतिगत समन्वय को बढ़ावा दिया जा सके।
- औद्योगिक गलियारों के साथ शहरी विस्तार को समन्वित करना: आवास, वाणिज्य और परिवहन के बीच के अंतर को कम करने के लिये ट्रांज़िट-ओरिएंटेड डिवेलपमेंट को बढ़ावा देना आवश्यक है। परिवहन, ज़ोनिंग और आर्थिक योजना का स्थानिक एकीकरण कर के संवहनीय, रहने योग्य और उत्पादक शहरी-औद्योगिक क्षेत्र विकसित किये जा सकते हैं।
- एकीकृत, तकनीक-सक्षम शहरी शासकीय निकायों का निर्माण करना: शहरी नियोजन और अनुमोदनों को सुव्यवस्थित करना आवश्यक है। शहरी शासन निकायों को निजी क्षेत्र के नेतृत्व को शामिल करना चाहिये तथा जवाबदेही में सुधार के लिये सार्वजनिक प्राधिकरणों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिये।
- रियल-टाइम प्रदर्शन डैशबोर्ड और अर्बन डिजिटल ट्विन्स (शहर का एक गतिशील डिजिटल संस्करण जो उन्नत तकनीकों से डेटा अंतर्दृष्टि प्रदान करता है) शहरी प्रणालियों के उत्तरदायी और पारदर्शी प्रबंधन को सुनिश्चित कर सकते हैं।
- स्वच्छता और अवशिष्ट प्रबंधन को राष्ट्रीय आर्थिक प्राथमिकता बनाना: स्वच्छता और अपशिष्ट प्रबंधन आर्थिक मुद्दे हैं।
- जैसे तिरुपुर जल PPP परियोजना ने BOOT मॉडल के माध्यम से उद्योगों और नागरिकों को जल आपूर्ति सफलतापूर्वक प्रदान की, वैसे ही उद्योग-प्रेरित मॉडल को अवशिष्ट प्रबंधन, परिपथीय अर्थव्यवस्था और विकेंद्रीकृत स्वच्छता में भी अपनाया जा सकता है।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) का पुनर्पूंजीकरण: वर्तमान शहरी परिप्रेक्ष्य में PPP को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता है, ताकि लंबी अवधि की निजी पूंजी को मौजूदा (ब्राउनफील्ड) ढाँचागत परियोजनाओं और नई (ग्रीनफील्ड) परियोजनाओं दोनों में आकर्षित किया जा सके।
- जोखिम-न्यूनन उपाय जैसे व्यवहार्यता अंतर वित्तपोषण (Viability Gap Funding) और शहरी चुनौती निधि (Urban Challenge Fund) इस तरह के निवेश को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
- आधुनिक शहरों की डिजिटल अवसंरचना का सह-निर्माण करना: उद्योगों को सरकार के साथ मिलकर शहरों की डिजिटल संरचना विकसित करनी चाहिये, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित अवसंरचना नियोजन और स्वचालित निर्माण स्वीकृति प्रणाली जैसी सुविधाएँ शामिल हों।
- यह डिजिटल अवसंरचना दक्षता, पारदर्शिता और विश्वास को बढ़ावा दे सकती है तथा शहरी विकास की गति को तीव्र कर सकती है।
- शहरों में जलवायु सहनशीलता को सुदृढ़ करना: शहरी नियोजन में जलवायु सहनशीलता को एकीकृत किया जाना चाहिये, जिसके अंतर्गत बाढ़-रोधी अवसंरचनाएँ और ऊष्मा-प्रतिरोधी संरचनाएँ जैसी अनुकूलनशील अधोसंरचनाओं का निर्माण शामिल है। ग्रीन रूफ्स (हरी छतें), शहरी वानिकी और हरित स्थान जैसे उपायों से हीट आइलैंड प्रभाव को कम किया जा सकता है तथा शहरी जीवन की गुणवत्ता को बढ़ाया जा सकता है।
- शहरी सुधार में समाज की भूमिका: शहरी सुधार केवल व्यवस्थाओं के सुधार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज की सक्रिय भागीदारी से भी जुड़ा हुआ है। सुधारों को नागरिकों और उद्योगों के साथ मिलकर सह-निर्मित किया जाना चाहिये।
- ऐसे भागीदारी आधारित ढाँचे, जो नीति, जनता और निजी पूंजी को एक साथ जोड़ते हैं, शहरों की सहनशीलता तथा वैधता सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं। इस प्रकार के सहयोग शहरों को स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये सशक्त बनाती हैं, साथ ही वे राष्ट्रीय प्रगति में भी योगदान देती हैं।
निष्कर्ष
भारतीय शहर क्षेत्रीय विकास के महत्त्वपूर्ण प्रेरक हैं, लेकिन इन्हें अवसंरचना, स्थिरता और शासन संबंधी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सतत् शहरी नियोजन, बेहतर सार्वजनिक परिवहन और संसाधनों के कुशल प्रबंधन जैसे- उपाय सतत् विकास लक्ष्य (SDG) 11 (सतत् शहर), SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) तथा SDG 10 (असमानताओं को कम करना) को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक हैं, जिससे समान एवं समावेशी शहरी विकास सुनिश्चित हो सके।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: शहरीकरण भारत के लिये एक अवसर और चुनौती दोनों है। चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)मेन्सप्रश्न. कई वर्षों से उच्च तीव्रता की वर्षा के कारण शहरों में बाढ़ की बारंबारता बढ़ रही है। शहरी क्षेत्रों में बाढ़ के कारणों पर चर्चा करते हुए इस प्रकार की घटनाओं के दौरान जोखिम कम करने की तैयारियों की क्रियाविधि पर प्रकाश डालिये। (2016) प्रश्न. क्या कमज़ोर और पिछड़े समुदायों के लिये आवश्यक सामाजिक संसाधनों को सुरक्षित करने के द्वारा, उनकी उन्नति के लिये सरकारी योजनाएँ, शहरी अर्थव्यवस्थाओं में व्यवसायों की स्थापना करने में उनको बहिष्कृत कर देती हैं? (2014) |