समुद्री सुरक्षा पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक | 13 Aug 2021

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, सागर,  बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव 

मेन्स के लिये:

समुद्री सुरक्षा के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि का महत्त्व एवं समुद्री सुरक्षा की  दिशा में भारत के प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) ने समुद्री सुरक्षा पर पहली बार अध्यक्षीय वक्तव्य (Presidential Statement) को अपनाया है।

प्रमुख बिंदु 

समुद्री सुरक्षा पर वक्तव्य:

  • महासागरों के वैध उपयोग और तटीय समुदायों की सुरक्षा पर ज़ोर देते हुए इस बात की पुष्टि की गई  कि  अन्य वैश्विक उपकरणों के मध्य समुद्री सुरक्षा पर अंतर्राष्ट्रीय कानून वर्ष 1982 की  संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UN Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) में परिलक्षित होता है जो महासागरों में अवैध गतिविधियों का मुकाबला करने हेतु एक कानूनी ढांँचा प्रदान करती है।
  • नौपरिवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हुए सदस्य देशों को अंतर्राष्ट्रीय जहाज़ और बंदरगाह सुविधा सुरक्षा कोड तथा समुद्री जीवों की सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अध्याय XI-2 को लागू करने और अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के साथ कार्य करने हेतु सुरक्षित नौपरिवहन को बढ़ावा देने के लिये कहा गया।
  • सदस्य राज्यों को अन्य शर्तों के अनुसार अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध और उसके प्रोटोकॉल के विरुद्ध वर्ष 2000 के संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का समर्थन करने, उसे स्वीकार करने और  लागू करने पर भी विचार करना चाहिये।

संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS)

  • 'लॉ ऑफ द सी ट्रीटी', (Law of the Sea Treaty) जिसे औपचारिक रूप से संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (UNCLOS) के रूप में जाना जाता है, को वर्ष 1982 में  विश्व के सागरों और महासागरों पर देशों के अधिकार व ज़िम्मेदारियों का निर्धारण करने हेतु अपनाया गया था।
  • यह कन्वेंशन बेसलाइन से 12 समुद्री मील की दूरी को प्रादेशिक समुद्र सीमा के रूप में और 200 समुद्री मील की दूरी को विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र सीमा के रूप में परिभाषित करता है।
  • भारत वर्ष 1982 में UNCLOS का हस्ताक्षरकर्त्ता देश बना।

अंतर्राष्ट्रीय पोत और पोर्ट सुविधा सुरक्षा (ISP ) कोड 

  • ISPS कोड जहाज़ों और बंदरगाह सुविधाओं की सुरक्षा बढ़ाने के उपायों का एक समूह है। इसे 9/11 के हमलों के बाद जहाज़ों और बंदरगाह सुविधाओं हेतु कथित खतरों के जवाब में विकसित किया गया था।
  • समुद्री जीवों की सुरक्षा के लिये अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के अध्याय XI-2 में ISPS कोड निहित है।

अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO)

  • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) संयुक्त राष्ट्र (UN) की एक विशेष संस्था हैI यह एक अंतर्राष्ट्रीय मानक-निर्धारण प्राधिकरण है जो मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग की सुरक्षा में सुधार करने और जहाज़ों द्वारा होने वाले प्रदूषण को रोकने हेतु उत्तरदायी है।
  • वर्ष 1959 में भारत IMO में शामिल हुआ। IMO वर्तमान में भारत को 'अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार में सबसे अधिक रुचि' वाले 10 राज्यों में सूचीबद्ध करता है।

अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNTOC)

  • UNTOC  को पलेर्मो कन्वेंशन (Palermo Convention) के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसे वर्ष 2000 में इटली के पलेर्मो में अपनाया गया था तथा यह वर्ष 2003 में लागू हुआ। भारत वर्ष 2002 में UNTOC में शामिल हुआ।
  • संगठित अपराध के खिलाफ एक अंतर्राष्ट्रीय  कन्वेंशन रखने के पीछे का विचार यह था कि यदि अपराध सीमा को पार करते हैं, तो इनके लिये एक प्रवर्तन कानून (Enforcement  Law) भी होना चाहिये।
  • भारत का पक्ष: भारत ने समुद्री सुरक्षा के लिये पाँच बुनियादी सिद्धांत सामने रखे हैं।
    • बिना किसी बाधा के वैध व्यापार स्थापित करना।
    • इस संदर्भ में ‘सागर’ (क्षेत्र में सभी के लिये सुरक्षा और विकास) विज़न पर प्रकाश डाला जा सकता है।
  • समुद्री विवादों का निपटारा शांतिपूर्ण और अंतर्राष्ट्रीय कानून के आधार पर ही होना चाहिये।
    • इसी समझ और परिपक्वता के चलते भारत ने अपने पड़ोसी देश बांग्लादेश के साथ अपनी समुद्री सीमा के मुद्दे का समाधान किया।
  • उत्तरदायी समुद्री संपर्क को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का संदर्भ देते हुए भारत ने माना कि "समुद्री संपर्क" हेतु संरचनाएँ बनाते समय, देशों को "वित्तीय स्थिरता" और मेज़बान देशों की क्षमता को बनाए रखना चाहिये।
  • गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं और प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न समुद्री खतरों का सामूहिक रूप से मुकाबला करने की आवश्यकता है।
    • हिंद महासागर में भारत की भूमिका एक शुद्ध सुरक्षा प्रदाता की रही है।
  • समुद्री पर्यावरण और समुद्री संसाधनों का संरक्षण करना।
    • प्लास्टिक कचरे और तेल रिसाव से बढ़ते प्रदूषण पर प्रकाश डालना।

अमेरिका का पक्ष:

  • दक्षिण चीन सागर या किसी भी महासागर में संघर्ष के कारण सुरक्षा और वाणिज्य हेतु गंभीर वैश्विक परिणाम उत्पन्न होंगे।
  • इसने इस बात पर प्रकाश डाला कि चीन इस क्षेत्र के कृत्रिम द्वीपों पर सैन्य ठिकाने बना रहा है, जिस पर ब्रुनेई, मलेशिया, फिलीपींस, ताइवान और वियतनाम भी दावा करते हैं।
  • अमेरिका ने पाँच वर्ष पहले UNCLOS के तहत गठित मध्यस्थ न्यायाधिकरण द्वारा सर्वसम्मति से दिये गए और कानूनी रूप से बाध्यकारी निर्णय का भी उल्लेख किया, जिसे चीन ने अवैध रूप से खारिज़ कर दिया।

UNCLOS

चीन का पक्ष:

  • चीन ने माना कि चीन और आसियान देशों के संयुक्त प्रयासों से दक्षिण चीन सागर में स्थिति सामान्य रूप से स्थिर बनी हुई है।
  • परोक्ष रूप से क्वाड (अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया) का जिक्र करते हुए कुछ देश एशिया प्रशांत क्षेत्र में विशेष क्षेत्रीय रणनीतियों का अनुसरण कर रहे हैं।
    • यह समुद्री संघर्षों को और तेज़ कर सकता है तथा संबंधित देशों की संप्रभुता एवं सुरक्षा हितों को कमज़ोर करने के साथ ही क्षेत्रीय शांति तथा स्थिरता को कमज़ोर कर सकता है।
  • इसके अलावा चीन, अमेरिका की आलोचना करता है कि दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर उसे  गैर-ज़िम्मेदाराना टिप्पणी नहीं करनी चाहिये, क्योंकि अमेरिका खुद UNCLOS में शामिल नहीं हुआ है।

रूस का पक्ष:

  • रूस ने दक्षिण चीन सागर या हिंद-प्रशांत का उल्लेख नहीं किया।
  • यह संयुक्त राष्ट्र चार्टर में निहित अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रमुख मानदंडों और सिद्धांतों के सख्त पालन को बढ़ावा देता है, जैसे कि संप्रभुता का सम्मान, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना और बातचीत के माध्यम से विवादों का निपटारा करना।

UK का पक्ष:

  • UK के पास एक स्वतंत्र, खुला और सुरक्षित हिंद-प्रशांत का विज़न है। 
  • इस संदर्भ में ब्रिटेन की विदेश, सुरक्षा, रक्षा और विकास नीति की हालिया एकीकृत समीक्षा ने हिंद-प्रशांत के महत्त्व को निर्धारित किया है।

फ्राँस का पक्ष:

  • इसने माना कि समुद्री क्षेत्र नई पीढ़ी की चुनौतियों के लिये एक रंगमंच के रूप में उभरा है और इस मुद्दे से निपटने हेतु UNSC के सदस्यों के बीच अधिक सहयोग का आग्रह किया।
  • जैसे कि जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना और सुरक्षा को लेकर इसके परिणाम विशेष रूप से प्राकृतिक आपदाओं के संदर्भ में।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस