भारत में बेरोज़गारी | 25 Nov 2022

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, बेरोज़गारी के प्रकार, सरकार की पहलें

मेन्स के लिये:

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, बेरोज़गारी; इसके प्रकार, कारण और संबंधित पहलें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) ने आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey- PLFS) जारी किया है।

  • 15 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों की शहरी क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर जुलाई-सितंबर 2021 में 9.8% से घटकर जुलाई-सितंबर 2022 में 7.2% हो गई।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (जुलाई-सितंबर 2022) के प्रमुख बिंदु:

  • बेरोज़गारी अनुपात:
    • बेरोज़गारी अनुपात को श्रम बल में व्यक्तियों के बीच बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • बेरोज़गारी दर: पुरुषों में 6.6%, महिलाओं में 9.4% (जुलाई-सितंबर 2021 में 9.3% और 11.6%) थी।
  • श्रमिक-जनसंख्या अनुपात (Worker-Population Ratio- WPR):
    • WPR को जनसंख्या में रोज़गार वाले व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है।
    • 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये शहरी क्षेत्रों में WPR 5% (जुलाई-सितंबर 2021 में 42.3%) था।
    • पुरुषों में WPR 68.6% और महिलाओं में 19.7% (2021 में 66.6% और 17.6%) था।
  • श्रम बल भागीदारी दर (Labour Force Participation Rate- LFPR):
    • इसे श्रम बल में उन व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है जो शहरी क्षेत्रों में 15 वर्ष अथवा उससे अधिक आयु के हैं, और वे काम कर रहे हैं या काम की तलाश में हैं।
    • यह बढ़कर 9% (जुलाई-सितंबर 2021 में 46.9%) हो गया।
    • पुरुषों में LFPR 73.4% तथा महिलाओं में 21.7% (73.5% और 19.9%, जुलाई-सितंबर 2021 में) था।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण:

  • अधिक नियत समय अंतराल पर श्रम बल डेटा की उपलब्धता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) की शुरुआत की
  • PLFS के मुख्य उद्देश्य हैं:
    • 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना।
    • प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति तथा CWS दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना।
  • बेरोज़गारी:
    • किसी व्यक्ति द्वारा सक्रियता से रोज़गार की तलाश किये जाने के बावजूद जब उसे काम नहीं मिल पाता तो यह अवस्था बेरोज़गारी कहलाती है।
      • बेरोज़गारी का प्रयोग प्रायः अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य के मापक के रूप में किया जाता है।
    • बेरोज़गारी को सामान्यत: बेरोज़गारी दर के रूप में मापा जाता है, जिसे श्रमबल में शामिल व्यक्तियों की संख्या में से बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या को भाग देकर प्राप्त किया जाता है।
    • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) किसी व्यक्ति की निम्नलिखित स्थितियों पर रोज़गार और बेरोज़गारी को परिभाषित करता है:
      • कार्यरत (आर्थिक गतिविधि में संलग्न) यानी 'रोज़गार'।
      • काम की तलाश में या काम के लिये उपलब्ध यानी 'बेरोज़गार'।
      • न तो काम की तलाश में है और न ही उपलब्ध।
      • पहले दो श्रम बल का गठन करते हैं और बेरोज़गारी दर उस श्रम बल का प्रतिशत है जो बिना काम के है।
      • बेरोज़गारी दर = (बेरोज़गार श्रमिक/कुल श्रम शक्ति) × 100
  • बेरोज़गारी के प्रकार:
    • प्रच्छन्न बेरोज़गारी:
      • यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जाता है।
      • यह मुख्य रूप से भारत के कृषि और असंगठित क्षेत्रों में पाई जाती है।
    • मौसमी बेरोज़गारी:
      • यह एक प्रकार की बेरोज़गारी है, जो वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है।
      • भारत में खेतिहर मज़दूरों के पास वर्ष भर काफी कम काम होता है।
    • संरचनात्मक बेरोज़गारी:
      • यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच असंतुलन होने से उत्पन्न बेरोज़गारी की एक श्रेणी है।
      • भारत में बहुत से लोगों को आवश्यक कौशल की कमी के कारण नौकरी नहीं मिलती है और शिक्षा के खराब स्तर के कारण उन्हें प्रशिक्षित करना मुश्किल हो जाता है।
    • चक्रीय बेरोज़गारी:
      • यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।
      • भारत में चक्रीय बेरोज़गारी के आँकड़े नगण्य हैं। यह एक ऐसी स्थिति है जो अधिकतर पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में पाई जाती है।
    • तकनीकी बेरोज़गारी:
      • यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण नौकरियों का नुकसान है।
      • वर्ष 2016 में विश्व बैंक के आँकड़ों ने भविष्यवाणी की थी कि भारत में ऑटोमेशन से खतरे में पड़ी नौकरियों का अनुपात साल-दर-साल 69% है।
    • घर्षण बेरोज़गारी:
      • घर्षण बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश कर रहा होता है या नौकरियों के बीच स्विच कर रहा होता है, तो यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करती है।
      • दूसरे शब्दों में, एक कर्मचारी को एक नई नौकरी खोजने या एक नई नौकरी में स्थानांतरित करने के लिये समय की आवश्यकता होती है, यह अपरिहार्य समय की देरी घर्षण बेरोज़गारी का कारण बनती है।
      • इसे अक्सर स्वैच्छिक बेरोज़गारी के रूप में माना जाता है क्योंकि यह नौकरी की कमी के कारण नहीं होता है, बल्कि वास्तव में बेहतर अवसरों की तलाश में श्रमिक स्वयं अपनी नौकरी छोड़ देते हैं।
    • सुभेद्य रोज़गार:
      • इसका मतलब है कि लोग बिना उचित नौकरी अनुबंध के अनौपचारिक रूप से काम कर रहे हैं और इस प्रकार इनके लिये कोई कानूनी सुरक्षा नहीं है।
      • इन व्यक्तियों को 'बेरोज़गार' माना जाता है क्योंकि उनके कार्य का रिकॉर्ड कभी भी बनाया नहीं जाता हैं।
      • यह भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकारों में से एक है।

भारत में बेरोज़गारी का कारण:

  • सामाजिक कारक:
    • भारत में जाति व्यवस्था प्रचलित है कुछ क्षेत्रों में विशिष्ट जातियों के लिये कार्य निषिद्ध है।
    • बड़े व्यवसाय वाले बड़े संयुक्त परिवारों में बहुत से ऐसे व्यक्ति होंगे जो कोई काम नहीं करते हैं तथा परिवार की संयुक्त आय पर निर्भर रहते हैं।
  • जनसंख्या का तीव्र विकास:
    • भारत में जनसंख्या में निरंतर वृद्धि एक बड़ी समस्या बन गई है।
      • यह बेरोज़गारी के प्रमुख कारणों में से एक है।
  • कृषि का प्रभुत्व:
    • भारत में अभी भी लगभग आधा कार्यबल कृषि पर निर्भर है।
      • हालाँकि भारत में कृषि अविकसित है।
      • साथ ही यह मौसमी रोज़गार भी प्रदान करती है।
  • कुटीर और लघु उद्योगों का पतन:
    • औद्योगिक विकास का कुटीर और लघु उद्योगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
    • कुटीर उद्योगों का उत्पादन गिरने से कई कारीगर बेरोज़गार हो गए।
  • श्रम की गतिहीनता:
    • भारत में श्रम की गतिशीलता कम है। परिवार से लगाव के कारण लोग नौकरी के लिये दूर-दराज़ के इलाकों में नहीं जाते हैं।
    • कम गतिशीलता के लिये भाषा, धर्म और जलवायु जैसे कारक भी ज़िम्मेदार हैं।
  • शिक्षा प्रणाली में दोष:
    • पूंजीवादी दुनिया में नौकरियाँ अत्यधिक विशिष्ट हो गई हैं लेकिन भारत की शिक्षा प्रणाली इन नौकरियों के लिये आवश्यक सही प्रशिक्षण और विशेषज्ञता प्रदान नहीं करती है।
    • इस प्रकार बहुत से लोग जो कार्य करने के इच्छुक हैं, वे कौशल की कमी के कारण बेरोज़गार हो जाते हैं।
  • सरकार द्वारा हाल की पहल:

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है-

(a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है

उत्तर:(d)

व्याख्या:

  • अर्थव्यवस्था प्रच्छन्न बेरोज़गारी को प्रदर्शित करती है जब उत्पादकता कम होती है और बहुत से श्रमिक ज़रूरत से ज़्यादा संख्या में कार्यरत होते है।
  • सीमांत उत्पादकता उस अतिरिक्त उत्पादन को संदर्भित करती है जो श्रम की एक इकाई को जोड़कर प्राप्त की जाती है।
  • चूंँकि प्रच्छन्न बेरोज़गारी में आवश्यकता से अधिक श्रमिक पहले से ही कार्य में लगे हुए हैं, इसलिये श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है।

अतः विकल्प (c) सही है।

स्रोत: द हिंदू