विश्वास-आधारित विनियमन | 12 Jun 2025
प्रिलिम्स के लिये:जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) अधिनियम, 2023, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, MSME, केंद्रीय बजट 2025-26, भारतीय वन अधिनियम, 1927, चालान प्रबंधन प्रणाली (IMS), GST, वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR), 73वाँ/74वाँ संशोधन, PARIVESH, MCA21 मेन्स के लिये:नियामक निकाय और जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम 2023, भारत में विश्वास-आधारित विनियमन की आवश्यकता। |
स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया
चर्चा में क्यों?
जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम 2023, जो अगस्त 2023 से प्रभावी है, मामूली उल्लंघनों के लिये आपराधिक दंडों को आर्थिक ज़ुर्मानों से प्रतिस्थापित करता है। यह अधिनियम 42 केंद्रीय कानूनों के 183 प्रावधानों का अपराधमुक्तिकरण करता है, जिसका उद्देश्य है- जीवनयापन की सुगमता, व्यवसाय करने में सुविधा और विश्वास-आधारित नियामक दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।
जन विश्वास (प्रावधानों का संशोधन) अधिनियम, 2023 क्या है?
- परिचय: यह एक महत्त्वपूर्ण विधायी सुधार है, जिसका उद्देश्य भारत में व्यवसाय करने में सुगमता बढ़ाना और विश्वास-आधारित विनियमन को प्रोत्साहित करना है। यह अधिनियम पर्यावरण, कृषि, कॉरपोरेट मामलों सहित 19 मंत्रालयों से संबंधित कानूनों को शामिल करता है।
- उदाहरण के लिये, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत होने वाली प्रक्रियात्मक त्रुटियों (procedural lapses) के लिये अब कारावास के स्थान पर आर्थिक दंड का प्रावधान है।
- उद्देश्य: यह सुधार दंडात्मक व्यवस्था से सुधारात्मक कानूनी तंत्र की ओर एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन है, जिसमें छोटे और दुर्भावनाहीन उल्लंघनों के लिये कारावास की सज़ा के स्थान पर आर्थिक दंड का प्रावधान किया गया है, जिससे भय तथा उत्पीड़न कम हो जाता है तथा विशेष रूप से सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) के लिये अनुपालन सुगम बनता है।
- आवश्यकता: कई पुराने प्रावधानों ने कानूनी अनिश्चितता उत्पन्न कर दी है, जिससे हाशिये पर रह रहे समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है और व्यवसायों पर अभियोजन का भय बढ़ गया है।
- एक समान अनुपालन ढाँचे ने MSME पर असमान दबाव डाला, जिससे उच्च लागत के कारण औपचारिकीकरण और विस्तार में बाधा उत्पन्न हुई।
- आर्थिक क्षमता को पूरी तरह से विकसित करने के लिये भारत को औपनिवेशिक युग की भय आधारित कानून व्यवस्था को बदलकर एक विश्वास-आधारित शासन मॉडल की आवश्यकता थी, जो मामूली उल्लंघनों को अपराध की श्रेणी में डाल देता था।
- आगामी कदम: केंद्रीय बजट 2025–26 में जन विश्वास विधेयक 2.0 का प्रस्ताव रखा गया, जिसका उद्देश्य 100 से अधिक प्रावधानों का अपराधमुक्तिकरण करना है तथा विश्वास-आधारित नियामक प्रणाली को और अधिक दृढ़ बनाना है।
- इसमें राज्यों और नगर पालिकाओं से, जहाँ अधिकांश कारावास संबंधी कानून मौजूद हैं, सुधारों को अपनाने, कानूनी ढाँचे को आधुनिक बनाने तथा कारावास के लिये स्पष्ट मानदंड निर्धारित करने का आग्रह किया गया है।
विश्वास-आधारित विनियामक दृष्टिकोण क्या है?
- परिचय: यह एक शासन प्रणाली (governance approach) है जिसमें सरकार यह मानती है कि व्यक्ति और व्यवसाय सद्भावना (good faith) के साथ कार्य करेंगे तथा कानून का पालन करेंगे, न कि उन्हें शुरू से ही संभावित अपराधी मानकर व्यवहार किया जाए।
- दृष्टिकोण: यह मॉडल अनावश्यक कानूनी बोझ को कम करने और स्वैच्छिक अनुपालन (voluntary compliance) को बढ़ावा देने पर केंद्रित है, जबकि गंभीर उल्लंघनों के लिये कठोर दंड बनाए रखता है।
- यह पुलिसिंग माइंडसेट (मामूली उल्लंघनों के लिये कठोर दंड) से साझेदारी मॉडल (चूक के लिये उचित परिणामों के साथ स्वैच्छिक अनुपालन को प्रोत्साहित करना) की ओर स्थानांतरित हो रहा है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- छोटे अपराधों का गैर-अपराधीकरण: प्रक्रियागत या तकनीकी उल्लंघनों के लिये कारावास की सज़ा के स्थान पर ज़ुर्माने का प्रावधान।
- जोखिम-आधारित प्रवर्तन: केवल गंभीर उल्लंघनों (जैसे- धोखाधड़ी, सुरक्षा जोखिम) के लिये सख्त कार्रवाई।
- सरलीकृत अनुपालन: व्यापार वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिये नौकरशाही लालफीताशाही को कम करना।
- स्व-घोषणा और पारदर्शिता: व्यवसायों/नागरिकों पर केवल उच्च जोखिम वाले मामलों हेतु ऑडिट का अनुपालन करने का विश्वास करना।
- सरकारी हस्तक्षेप में कमी: अधिकारियों द्वारा उत्पीड़न और वसूली को न्यूनतम करना।
भारत को विश्वास-आधारित नियामक दृष्टिकोण की आवश्यकता क्यों है?
- औपनिवेशिक युग के दंडात्मक उपायों को कम करना: भारतीय वन अधिनियम, 1927 जैसे कई औपनिवेशिक काल के कानून नियंत्रण के उद्देश्य से बनाए गए थे, न कि आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिये। ये कानून मामूली उल्लंघनों पर भी आपराधिक दंड आरोपित करते थे, जिससे छोटे व्यवसायों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता था।
- ये कानून भय, उत्पीड़न और रेंट-सीकिंग (लाभ के लिये दबाव बनाने) का वातावरण बनाते हैं, जिसे विश्वास-आधारित नियामक दृष्टिकोण के माध्यम से संबोधित किया जा सकता है।
- व्यापार सुगमता: अत्यधिक अनुपालन बोझ उद्यमिता में बाधा डालते हैं, जिसमें 75% से अधिक MSME डिजिटल अनुपालन से जूझ रहे हैं तथा 95% को GST के तहत चालान प्रबंधन प्रणाली (IMS) को अपनाने के लिये अधिक समय और संसाधनों की आवश्यकता है।
- यह अधिनियम विनियमों को सरल, व्यवसायों के लिये अनुपालन को आसान तथा कम चुनौतीपूर्ण बनाकर इस समस्या का समाधान करने में मदद करता है ।
- न्यायपालिका पर बोझ कम करना: भारतीय अदालतों में 5 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से कई सामान्य उल्लंघनों से संबंधित हैं, जिनके लिये आपराधिक मुकदमे के बजाय ज़ुर्माने से बेहतर समाधान किया जा सकता है।
- मध्यस्थता, मध्यस्थता और सुलह जैसे तंत्र मुकदमेबाज़ी को आसान बना सकते हैं तथा अदालतों को अधिक महत्त्वपूर्ण मामलों पर ध्यान केंद्रित करने की अनुमति दे सकते हैं।
- भ्रष्टाचार और उत्पीड़न में कमी: प्रक्रियागत चूक के लिये कारावास की धमकी से भ्रष्ट अधिकारियों को लाभ कमाने में मदद मिलती है, जबकि अनिवार्य सत्यापन, निरीक्षण और अनावश्यक डेटा अनुरोधों से संसाधनों की बर्बादी होती है, विश्वास आधारित प्रणाली में बदलाव से नौकरशाही में कमी आ सकती है साथ ही उत्पादक उपयोग के लिये संसाधनों को मुक्त किया जा सकता है।
- आर्थिक विकास: अनजाने में नियमों का पालन न करने से आपराधिक आरोपों का डर छोटे व्यवसायों के विस्तार में बाधक बनता है, लेकिन मध्य प्रदेश, केरल और हरियाणा जैसे राज्यों ने ऐसे सुधारों को अपनाया है जो क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देते हैं।
- इस पर निर्माण करते हुए, जन विश्वास 2.0 (बजट 2025-26) में 100 से अधिक प्रावधानों को गैर-अपराधीकरण करने, अनुपालन को और आसान बनाने तथा व्यापार-अनुकूल शासन का समर्थन करने की योजना है।
- विकसित भारत 2047 विज़न के साथ संतुलन: भारत का अमृत काल विज़न न्यूनतम सरकार, अधिकतम शासन को बढ़ावा देता है, जिससे नागरिकों और व्यवसायों को न्यूनतम हस्तक्षेप के साथ कार्य करने में सक्षम बनाया जा सके। एक विश्वास-आधारित प्रणाली परिणाम-आधारित शासन को प्राथमिकता देती है, नवाचार एवं निवेश को प्रोत्साहित करती है।
भारत में विश्वास-आधारित विनियमन की दिशा में बदलाव में कौन-सी चुनौतियाँ हैं?
- शासन में औपनिवेशिक अविश्वास की विरासत: भारत की औपनिवेशिक विरासत में शक और प्रक्रियात्मक नौकरशाही का वर्चस्व रहा है, जिससे अत्यधिक निगरानी, लालफीताशाही तथा अविश्वास की संस्कृति बनी रहती है। यह प्रणाली नियंत्रण पर केंद्रित रहती है, जिससे नियमों के अनुपालन और व्यापार करने में आसानी को बढ़ावा देने वाली विश्वास-आधारित विनियमन प्रणाली की ओर स्थानांतरित होना कठिन हो जाता है।
- विनियामक ढाँचा में दोहराव: भारत में कुल 1,536 कानून और 69,233 अनुपालनीय (compliances) हैं, जिनमें से कई या तो अप्रासंगिक हो चुकी हैं या एक-दूसरे के साथ विरोधाभासी हैं। केंद्र सरकार द्वारा जन विश्वास अधिनियम जैसे उपायों से कानूनों का अपराधीकरण कम किया जा रहा है, लेकिन राज्य स्तरीय कठोर विनियम भ्रम उत्पन्न करते हैं और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSMEs) पर असमान रूप से भार डालते हैं।
- विकेंद्रीकरण और स्वायत्तता का प्रतिरोध: 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधनों के बावजूद, स्थानीय सरकारों को वास्तविक स्वायत्तता प्राप्त नहीं है क्योंकि व्यवस्था अब भी ऊपर से नीचे तक नियंत्रण आधारित है। अधिकारी जोखिम-आधारित प्रवर्तन के बजाय ऑडिट और दंड को प्राथमिकता देते हैं, जिससे अविश्वास की भावना बनी रहती है।
- विश्वास मेट्रिक्स का अभाव: भारत में विश्वास-आधारित विनियमन की ओर बढ़ते समय एक प्रमुख चुनौती यह है कि विश्वास को वित्तीय या सेवा संकेतकों की भाँति प्रायः मापा नहीं जाता, जिससे नीतियों के प्रभाव का आकलन करना कठिन हो जाता है।
- इसके अतिरिक्त, ई-बिल प्रणाली और परिवेश जैसी पहलों के क्रियान्वयन में मौजूद खामियों के कारण देरी होती है, जिससे विश्वास-आधारित शासन ढाँचा बनाने के प्रयास कमज़ोर पड़ते हैं।
भारत में विश्वास-आधारित विनियमन को कैसे सुदृढ़ किया जा सकता है?
- 'एक राष्ट्र, एक व्यवसाय' पहचान प्रणाली: एकीकृत 'एक राष्ट्र, एक व्यवसाय' पहचान प्रणाली को अपनाने से प्रक्रियाओं को सरल बनाया जा सकता है, जबकि डिजी लॉकर जैसे उपकरणों का उपयोग करते हुए डिजिटल-प्रथम दृष्टिकोण अपनाने से अनुमोदन में लगने वाले समय में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है।
- डिजी यात्रा और FSSAI के पूर्वानुमेय नियामकीय अद्यतनों जैसी पहलों से प्राप्त शिक्षाएँ विभिन्न क्षेत्रों में सुधारों का मार्गदर्शन करने में सहायक हो सकती हैं।
- कानूनों का सामंजस्यकरण: जन विश्वास 2.0 को 100 से अधिक प्रावधानों के गैर-अपराधीकरण की प्रक्रिया को तेज़ करना चाहिये, विशेषकर राज्य स्तरीय कानूनों पर ध्यान केंद्रित करते हुए, जिनमें 80% कारावास संबंधी प्रावधान निहित हैं।ज़ुर्माने लागू किये जाने चाहिये।
- जोखिम-आधारित प्रवर्तन का संस्थानीकरण: अनुपालन भार का मूल्यांकन करने और दंड को वास्तविक क्षति के अनुरूप बनाने हेतु विनियामक प्रभाव आकलन (RIA) को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- सामूहिक निरीक्षणों के स्थान पर लक्षित ऑडिट के लिये AI-आधारित उपकरणों का उपयोग किया जाए और कारावास के लिये स्पष्ट मानदंड निर्धारित किये जाएँ, जिससे इसे केवल गंभीर अपराधों जैसे- धोखाधड़ी या सार्वजनिक सुरक्षा जोखिमों तक सीमित रखा जा सके।
- पारदर्शिता बढ़ाना और विवेकाधिकार कम करना: MCA21 जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म का विस्तार करते हुए ब्लॉकचेन प्रमाणीकरण को शामिल किया जाए ताकि कागज़ रहित अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।
- भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुखबिरों की सुरक्षा को सुदृढ़ किया जाए और निरीक्षण एवं दंड प्रक्रिया में वास्तविक समय की पारदर्शिता हेतु सार्वजनिक डैशबोर्ड का उपयोग किया जाए।
- विश्वास एवं परिणामों का आकलन: सुधारों के प्रभाव का मूल्यांकन करने हेतु अनुपालन सुगमता स्कोर और नागरिक प्रतिक्रिया जैसे मापदंड विकसित किये जाएँ। फिनटेक जैसे क्षेत्रों में पायलट कार्यक्रम प्रारंभ किये जाएँ और नीतियों को परिष्कृत करने के लिये नियमित उद्योग-नियामक संवाद हेतु हितधारक परिषदों की स्थापना की जाए।
निष्कर्ष
जन विश्वास अधिनियम, 2023 छोटे उल्लंघनों को अपराधमुक्त कर और विनियामक भार को कम कर विश्वास-आधारित शासन की दिशा में एक प्रगतिशील परिवर्तन का संकेत देता है। इसके पूर्ण लाभ को प्राप्त करने हेतु भारत को कानूनों को सरल बनाना, स्थानीय निकायों को सशक्त करना, डिजिटल उपकरणों को अपनाना और संस्थागत विश्वास का निर्माण करना होगा — जिससे विकासोन्मुखी, नागरिक-केंद्रित तथा कुशल शासन सुनिश्चित हो सके जो विकसित भारत 2047 के लक्ष्य के अनुरूप हो।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: "विकसित समाज की एक प्रमुख विशेषता है सरकार का अपने नागरिकों और संस्थाओं पर विश्वास।" इस संदर्भ में भारत में विश्वास-आधारित शासन की ओर हो रहे परिवर्तन का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स प्रश्न. विनिर्माण क्षेत्र के विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भारत सरकार ने कौन-सी नई नीतिगत पहल की है/हैं? (2012) राष्ट्रीय निवेश तथा विनिर्माण क्षेत्रो की स्थापना 'एकल खिड़की मंज़ूरी' (सिंगल: विंडो क्लीयरेंस) की सुविधा प्रदान करना प्रौद्योगिकी अधिग्रहण तथा विकास कोष की स्थापना निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 (b) केवल 2 और 3 (c) केवल 1 और 3 (d) 1, 2 और 3 उत्तर: (d) मेन्सप्रश्न. "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक-नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहाँ तक सक्षम हैं? (2017) प्रश्न. राष्ट्रपति द्वारा हाल में प्रख्यापित अध्यादेश के द्वारा माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 में क्या प्रमुख परिवर्तन किये गए हैं? यह भारत के विवाद समाधान यांत्रिकत्व को किस सीमा तक सुधारेगा? चर्चा कीजिये। (2015) |