अमेरिकी वन्यजीवों के संरक्षण से संबंधित प्रावधान | 17 Aug 2019

चर्चा में क्यों?

ट्रंप प्रशासन ने यू.एस. लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम (Endangered Species Act) को लचीला बनाने के लिये कदम उठाए हैं तथा राज्य के वकीलों और सामान्य संरक्षण समूहों द्वारा जोखिम वाली प्रजातियों की रक्षा के लिये की जाने वाली कानूनी कार्रवाई को हतोत्साहित किया।

प्रमुख बिंदु:

  • 1970 के दशक में विलुप्तप्राय प्रजातियों (Extinct Species) गंजा ईगल, ग्रे व्हेल और घड़ियाल आदि को संरक्षित करने का श्रेय लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम को जाता है। किंतु यह अधिनियम ड्रिलिंग और खनन तथा अन्य कंपनियों के लिये परेशानी का कारण बना हुआ था क्योंकि इनसे संबंधित कार्यों के लिये भूमि के विशाल क्षेत्र की आवश्यकता थी और इस अधिनियम के प्रावधानों के चलते कंपनियों को अनुमति मिलने में कठिनाई होती थी।
  • अधिनियम के संरक्षण को कमज़ोर करने के पीछे अमेरिकी राष्ट्रपति के कई उद्देश्य थे, जैसे तेल, गैस और कोयला उत्पादन में वृद्धि हेतु मौजूदा नियमों को तेज़ी से लागू करना, साथ ही संघीय भूमि के लिये चराई, खेती और लॉगिंग के स्थान को बढ़ावा देना।

परिणाम

  • चूँकि प्रकृति में उपस्थित सभी प्रजातियाँ पारिस्थितिकी (ecosystem) का अहम हिस्सा होती हैं तथा प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अतः इनकी विलुप्ति पारिस्थितिकी असंतुलन को बढ़ावा देगी तथा पर्यावरण की क्षति का कारण बनेगी।
  • इन परिवर्तनों से वह प्रथा समाप्त हो जाएगी जो खतरे से घिरी प्रजातियों को स्वत: ही सुरक्षा प्रदान करती है और अधिकारियों को निर्देशित करती है कि जानवरों को कैसे सुरक्षित रखा जाए।
  • इससे पर्यावरणीय विकास से ज़्यादा आर्थिक विकास को महत्त्व मिलेगा जिससे आपदाओं को बढ़ावा भी मिलेगा और मानवीय जनजीवन को क्षति पहुँचेगी।
  • इसका सबसे अधिक प्रभाव जनजातियों पर पड़ेगा क्योंकि वे प्रकृति के अत्यंत समीप होती हैं तथा कुछ वन्यजीवों से उनकी धार्मिक भावनाएँ भी जुड़ी होती है। इस प्रकार ट्रंप के इस फैसले से जनजातियों की संप्रभुता का हनन होगा।

आगे की राह

  • चूँकि पर्यावरण पर किसी भी प्रकार का खतरा संपूर्ण विश्व के लिये विनाशकारी है। अतः ट्रंप प्रशासन के इस फैसले को परिवर्तित करने हेतु UNFCCC जैसी वैश्विक संस्थाओं को आगे आने की ज़रुरत है।
  • वन्यजीवों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिये ग्रीन पीस (Green Peace) जैसे गैर-सरकारी संगठन, पर्यवारणविद व नागरिक आपस में सहयोग कर सकते हैं।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया