अंतरिक्ष में नया परमाणु क्षेत्र | 04 Dec 2025

प्रिलिम्स के लिये: लूनर फिशन सतह शक्ति परियोजना, छोटा परमाणु रिएक्टर, वोयेजर अंतरिक्ष यान, मंगल, मीथेन, रेडियोधर्मी पदार्थ, बाह्य अंतरिक्ष संधि, बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र समिति (COPUOS), IAEA, 1972 दायित्व सम्मेलन  

मेन्स के लिये: अंतरिक्ष के लिये विभिन्न परमाणु प्रौद्योगिकियाँ, उनकी आवश्यकता, संबंधित चुनौतियाँ और उन्हें नियंत्रित करने हेतु कानूनी ढाँचा, अंतरिक्ष में ज़िम्मेदार परमाणु भविष्य सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक कदम।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपने लूनर फिशन सतह शक्ति परियोजना के तहत एक महत्त्वाकांक्षी योजना की घोषणा की है, जिसके अंतर्गत 2030 के शुरुआती दशक तक चंद्रमा पर एक छोटा परमाणु रिएक्टर स्थापित किया जाएगा।

  • यह पहल नासा की आर्टेमिस बेस कैंप रणनीति का हिस्सा है और पृथ्वी से बाहर रहने वाले आवासों के लिये परमाणु ऊर्जा के बड़े पैमाने पर उपयोग की शुरुआत को चिह्नित करती है। यदि इसे कार्यान्वित किया गया तो यह पृथ्वी की कक्षा के बाहर पहला स्थायी परमाणु ऊर्जा स्रोत बन जाएगा।

परमाणु प्रौद्योगिकियाँ अंतरिक्ष अन्वेषण के भविष्य को कैसे आकार देती है?

  • विकसित हो रहे रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जनरेटर (RTGs): ये क्षय हो रहे प्लूटोनियम-238 से उत्पन्न उष्मा को बिजली में परिवर्तित हैं, लेकिन केवल कुछ सैकड़ों वाट बिजली उत्पन्न करते हैं—जो उपकरणों के लिये पर्याप्त है, मानव बेस के लिये नहीं। वर्तमान में इसका उपयोग (उदाहरणतः वोयेजर अंतरिक्ष यान पर) हो रहा है।
  • कॉम्पैक्ट फिशन रिएक्टर: आकार में यह एक शिपिंग कंटेनर के बराबर होता है, और यह 10 से 100 किलोवाट तक बिजली उत्पन्न कर सकता है, जो आवासीय क्षेत्रों और प्रारंभिक औद्योगिक इकाइयों को ऊर्जा प्रदान करने में सक्षम है।
  • न्यूक्लियर थर्मल प्रोपल्शन (NTP): न्यूक्लियर थर्मल प्रोपल्शन (जैसे कि अमेरिकी DRACO प्रोग्राम, जिसकी टेस्टिंग वर्ष 2026 तक होने की योजना है) प्रोपेलेंट को गर्म करके थ्रस्ट उत्पन्न करता है, जिससे मंगल ग्रह की यात्रा के समय को महीनों तक कम किया जा सकता है।
  • न्यूक्लियर इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन (NEP): यह रिएक्टर की बिजली का उपयोग करके प्रोपेलेंट को आयनीकृत करता है और वर्षों तक स्थिर, कुशल थ्रस्ट प्रदान करता है, जो गहरे अंतरिक्ष के प्रोब और माल ढुलाई के लिये उपयुक्त है।

अंतरिक्ष आधारित कार्यों हेतु न्यूक्लियर पावर की आवश्यकता क्यों है?

  • सौर ऊर्जा की सीमाएँ: चंद्रमा की रात का समय लगभग 14 पृथ्वी दिवसों के बराबर होता है और तापमान –170°C से भी नीचे गिर जाता है, जिससे विशाल बैटरी सिस्टम की आवश्यकता के कारण सौर ऊर्जा अस्थिर और अविश्वसनीय हो जाती है।
    • मंगल ग्रह पर लंबे समय तक चलने वाले धूल भरे तूफान सौर ऊर्जा की क्षमता को कम कर देते हैं। NASA द्वारा विकसित KRUSTY सिस्टम 10 किलोवाट तक निरंतर और विश्वसनीय ऊर्जा उपलब्ध कराता है।
  • विश्वसनीय ऊर्जा की समस्या: मानव बेस 24 घंटे, 7 दिन, 365 दिन काम करना चाहिये, जिसके लिये जीवन समर्थन, आवासीय हीटिंग, संचार और ईंधन उत्पादन व निर्माण जैसी वैज्ञानिक तथा औद्योगिक गतिविधियों के लिये भरोसेमंद ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
    • एक न्यूक्लियर रिएक्टर लगातार और पूर्वानुमेय बेस-लोड बिजली प्रदान करता है, जो सूर्य की रोशनी या मौसम से प्रभावित नहीं होता।
  • स्थानीय स्वतंत्रता की चुनौती: न्यूक्लियर ऊर्जा की सहायता से मिशन किसी भी स्थान पर संचालित किये जा सकते हैं, जैसे पानी की बर्फ वाले स्थायी छायादार गड्ढे, सूर्य-प्रचुर क्षेत्रों के बाहर विभिन्न क्षेत्रों की खोज और पूरे ग्रह में बेस या रोबोटिक स्टेशन स्थापित करना, बिना सूर्य की रोशनी पर निर्भर हुए।
  • स्केलेबिलिटी समस्या: एक छोटी टीम सौर ऊर्जा और बैटरियों के सहारे काम चला सकती है, लेकिन बड़ी टीमों को इन-सीटू रिसोर्स यूटिलाइज़ेशन (ISRU) संयंत्रों, कृषि तथा औद्योगिक परियोजनाओं के लिये मेगावाट-स्तर की ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऐसे उच्च ऊर्जा मांगों को बाह्य-स्थलीय (Extraterrestrial) वातावरण में पूरा करने में सक्षम और स्केल-अप हो सकने वाली एकमात्र सिद्ध तकनीक परमाणु विखंडन (Nuclear Fission) है।
  • मिशन आर्किटेक्चर समस्या: कई मंगल मिशन योजनाओं में सतह पर ईंधन उत्पादन की आवश्यकता होती है, लेकिन जल-बर्फ (वाटर आइस) को खंडित कर हाइड्रोजन निकालना और गैसों की अभिक्रिया से मीथेन बनाना जैसी प्रक्रियाएँ अत्यधिक ऊर्जा-गहन होती हैं। एक विश्वसनीय परमाणु रिएक्टर इस ‘मंगल गैस स्टेशन’ को ऊर्जा प्रदान कर सकता है, जिससे मिशन अधिक सुरक्षित बनते हैं और पृथ्वी से ले जाए जाने वाले ईंधन की मात्रा कम हो जाती है।

अंतरिक्ष में परमाणु ऊर्जा के उपयोग का वर्तमान कानूनी ढाँचा

  • आउटर स्पेस संधि (OST) 1967: आउटर स्पेस संधि (OST) 1967 के अनुच्छेद IV में देशों को पृथ्वी की कक्षा, चंद्रमा या बाह्य अंतरिक्ष के किसी भी हिस्से में परमाणु हथियार या किसी भी प्रकार के व्यापक विनाश के हथियार तैनात करने से प्रतिबंधित किया गया है।
    • हालाँकि, यह शांतिपूर्ण अंतरिक्ष अन्वेषण हेतु परमाणु-चालित उपकरणों के उपयोग की अनुमति प्रदान करता है।
  • अंतरिक्ष में परमाणु ऊर्जा स्रोतों के उपयोग से संबंधित सिद्धांत, 1992: वर्ष 1992 में अपनाई गई संयुक्त राष्ट्र की यह संधि अंतरिक्ष में परमाणु ऊर्जा के सुरक्षित उपयोग को सुनिश्चित करती है और सार्वजनिक सुरक्षा मूल्यांकन (Public Safety Assessments) अनिवार्य करती है। रेडियोआइसोटोप जनरेटरों का उपयोग अंतरग्रहीय मिशनों के लिये किया जा सकता है या उपयोग के बाद उन्हें पृथ्वी की उच्च कक्षा में संग्रहीत किया जा सकता है तथा उनके उचित निस्तारण का प्रावधान भी अनिवार्य है।

अंतरिक्ष में परमाणु ऊर्जा के उपयोग में कानूनी और पर्यावरणीय चुनौतियाँ क्या हैं?

  • अप्रत्यावर्ती पर्यावरणीय प्रदूषण: निम्नस्तरीय रिएक्टर होने के कारण चंद्रमा या मंगल जैसी अछूती बाह्य-स्थलीय वातावरण में स्थायी प्रदूषण हो सकता है, जिससे रेडियोधर्मी पदार्थ फैल सकते हैं। यह सौर मंडल के इतिहास के विशिष्ट वैज्ञानिक रिकॉर्ड को नष्ट कर सकता है और भविष्य में जीवन योग्य होने की संभावना को प्रभावित कर सकता है।
  • सुरक्षा क्षेत्र दुविधा: सुरक्षा के दृष्टिकोण से तर्कसंगत होते हुए भी परमाणु स्थलों के चारों ओर निषेध क्षेत्र (Exclusion Zones) बनाना कानूनी संघर्ष उत्पन्न करता है। बिना नियमन वाले क्षेत्र एक राष्ट्र को वास्तव में संसाधन-समृद्ध क्षेत्रों पर नियंत्रण की अनुमति दे सकते हैं, जो आउटर स्पेस संधि के तहत राष्ट्रीय अधिग्रहण पर प्रतिबंध का उल्लंघन है और अन्य देशों की पहुँच को अवरुद्ध करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष तक बढ़ना: अंतरिक्ष में परमाणु घटनाएँ सीमाओं के पार प्रभाव डाल सकती हैं, जैसे कि रेडियोधर्मी मलबा/अपशिष्ट या हथियार के रूप में संभावित उपयोग का संदेह, जो कूटनीतिक विश्वास को नुकसान पहुँचा सकता है, आरोपों को उत्पन्न कर सकता है और प्रतिशोधी कदमों को प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे अन्वेषण सहयोग संदेह और संघर्ष में परिवर्तित हो सकता है।
  • अविनियमित और जोखिमपूर्ण परीक्षण: यदि सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत सुरक्षा मानक नहीं हैं तो राज्य या निजी संस्थाएँ सशक्त रिएक्टरों या प्रोपल्शन सिस्टम के प्रयोगात्मक परीक्षण कर सकती हैं। इससे सुरक्षा प्रोटोकॉल में ‘नीचे की ओर प्रतिस्पर्द्धा’ (Race to the Bottom) उत्पन्न हो सकती है और दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है, जो सभी अंतरिक्ष-यात्रा करने वाले देशों के लिये खतरा बन सकती हैं।

ज़िम्मेदार अंतरिक्ष परमाणु ढाँचे का नेतृत्व करने के लिये क्या किया जा सकता है?

  • मुख्य कानूनी ढाँचे को सुदृढ़ करना: संयुक्त राष्ट्र की आउटर स्पेस के शांतिपूर्ण उपयोग पर समिति (COPUOS) को 1992 के सिद्धांतों का आधुनिकीकरण करना चाहिये, ताकि इसके दायरे में परमाणु थर्मल और इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन शामिल हो और डिज़ाइन, परिचालन सुरक्षा, ईंधन की स्थिरता और जीवन समाप्ति पर निस्तारण के लिये बाध्यकारी सुरक्षा मानक स्थापित किये जा सकें।
  • बहुपक्षीय निगरानी और पारदर्शिता: एक अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी परामर्श निकाय (जैसे IAEA के समान एक अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष परमाणु सुरक्षा समूह) का गठन किया जाना चाहिये, जो अंतरिक्ष में सभी परमाणु प्रणालियों के लिये डिज़ाइन प्रमाणित करे और सुरक्षा प्रोटोकॉल के पालन की जाँच सुनिश्चित करे।
  • महत्त्वपूर्ण परिदृश्यों के लिये विशिष्ट प्रोटोकॉल: आकाशीय पिंडों पर अस्थायी, गैर-भेदभावपूर्ण सुरक्षा क्षेत्रों के लिये नियम स्थापित करें जो संप्रभुता दावों को रोकें। अंतरिक्ष में परमाणु घटनाओं के लिये दायित्व अभिसमय, 1972 को अपडेट करें, जिसमें पार-सीमांत दुर्घटनाओं के लिये स्पष्ट ज़िम्मेदारी और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल शामिल हों।
  • पूर्व-सक्रिय मानक-निर्माण को बढ़ावा देना: अमेरिका, रूस, चीन जैसी प्रमुख अंतरिक्ष शक्तियों और भारत जैसे उभरते देशों को वार्ता का नेतृत्व करना चाहिये, यह दिखाने के लिये कि सुरक्षा एक साझा प्राथमिकता है।
    • मुख्य उपयोगकर्त्ताओं के लिये नियामक स्पष्टता सुनिश्चित करने हेतु नियम-निर्माण में वाणिज्यिक अंतरिक्ष कंपनियों को शामिल करें।
  • नैतिक और कानूनी मानक: तकनीकी उन्नति इस तरह कानूनी और नैतिक ढाँचे द्वारा निर्देशित हो कि दीर्घकालिक पर्यावरणीय या भू-राजनीतिक परिणाम वाली दुर्घटनाओं से बचा जा सके।

निष्कर्ष

अंतरिक्ष में परमाणु रिएक्टरों का उपयोग चंद्र और मंगल मिशनों में स्थायी तथा व्यापक ऊर्जा आपूर्ति सुनिश्चित करने का साधन है, जिससे जीवन समर्थन, औद्योगिक संचालन और प्रणोदन तकनीकों को सक्षम बनाया जा सकता है। हालाँकि, मज़बूत कानूनी ढाँचे और बहुपक्षीय निगरानी के बिना, प्रदूषण, संघर्ष तथा असुरक्षित परीक्षण के जोखिम अंतरिक्ष अन्वेषण को कमज़ोर कर सकते हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय सहयोग एवं विनियमन आवश्यक हो जाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. चंद्रमा पर परमाणु फिशन रिएक्टरों की तैनाती का रणनीतिक और तकनीकी महत्त्व की चर्चा कीजिये। इसके साथ जुड़ी पर्यावरणीय और कानूनी चुनौतियों का वर्णन कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. लूनर फिशन सर्फेस पावर प्रोजेक्ट क्या है?
यह एक अमेरिकी पहल है, जिसके तहत वर्ष 2030 के शुरुआती दशक तक चंद्रमा पर एक छोटा परमाणु रिएक्टर तैनात किया जाएगा, ताकि चंद्र अभियान के संचालन हेतु निरंतर और विश्वसनीय ऊर्जा उपलब्ध हो सके।

2. अंतरिक्ष में प्रयोग होने वाली मुख्य परमाणु तकनीकें कौन‑सी हैं?
कम ऊर्जा वाले उपकरणों के लिये RTG, आवास और बेस कैंप के लिये कॉम्पैक्ट फिशन रिएक्टर्स, स्पेसक्राफ्ट थ्रस्ट के लिये न्यूक्लियर थर्मल प्रोपल्शन (NTP) और न्यूक्लियर इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन (NEP)।

3. अंतरिक्ष में परमाणु ऊर्जा उपयोग हेतु प्रमुख कानूनी दिशा-निर्देश क्या हैं?
वर्ष 1992 के संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांत और आउटर स्पेस संधि शांतिपूर्ण परमाणु उपयोग की अनुमति देते हैं, लेकिन आधुनिक प्रणालियों जैसे प्रोपल्शन रिएक्टरों के लिये बाध्यकारी सुरक्षा मानक नहीं प्रदान करते।

सारांश

  • सौर ऊर्जा चंद्र एवं मंगल पर सतत संचालन के लिये पर्याप्त नहीं है, इसलिये विश्वसनीय और बड़े पैमाने पर ऊर्जा के लिये कॉम्पैक्ट फिशन रिएक्टर आवश्यक हैं।
  • वर्ष 1967 का आउटर स्पेस संधि परमाणु ऊर्जा की अनुमति देता है, लेकिन यह कानून पुराना है और इसमें बाध्यकारी सुरक्षा मानक, दायित्व नियम तथा दुर्घटना प्रोटोकॉल नहीं हैं।
  • मुख्य जोखिम हैं: रेडियोधर्मी प्रदूषण, क्षेत्रीय ‘सुरक्षा क्षेत्र’ और किसी घटना से अंतर्राष्ट्रीय विवाद।
  • बाध्यकारी नियम, एक वैश्विक निगरानी निकाय और स्पष्ट सुरक्षा क्षेत्रों के निर्माण के लिये तत्काल अंतर्राष्ट्रीय शासन की आवश्यकता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स 

प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर ‘‘आई.ए.ई.ए. सुरक्षा उपायों’’ के अधीन रखे जाते हैं, जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020)

(a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का

(b) कुछ आयातित यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य घरेलू आपूर्ति का

(c) कुछ विदेशी उद्यमों द्वारा संचालित होते हैं और अन्य घरेलू उद्यमों द्वारा

(d) कुछ सरकारी स्वामित्व वाले होते हैं और अन्य निजी स्वामित्व वाले

उत्तर: (b) 


प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)

  1. परमाणु सुरक्षा शिखर-सम्मेलन, संयुक्त राष्ट्र के तत्त्वावधान में आवधिक रूप से किये जाते हैं।
  2. विखंडनीय सामग्रियों पर अंतर्राष्ट्रीय पैनल अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण का एक अंग है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1  

(b) केवल 2   

(c) 1 और 2 दोनों

(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)


मेन्स 

प्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष्य में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये ? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों एवं भयों की विवेचना कीजिये। (2018)

प्रश्न. भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिये। भारत में तीव्र प्रजनक रिएक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ है? (2017)