थारू जनजाति | 08 Dec 2020

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा वन विभाग की एक ‘होम स्टे’ (घर पर ठहरने) योजना के माध्यम से नेपाल से सटे प्रदेश के चार ज़िलों  बलरामपुर, बहराइच, लखीमपुर और पीलीभीत के थारू गाँवों को जोड़ने के लिये  कार्य किया जा रहा है। 

  • इसका उद्देश्य पर्यटकों को थारू जनजाति के प्राकृतिक निवास स्थान  (जैसे- जंगलों से एकत्रित घास से बनी पारंपरिक झोपड़ियों आदि) में रहने का अनुभव प्रदान करना है।   
  • इस योजना के माध्यम से जनजातीय आबादी के लिये रोज़गार सृजन और आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करने का प्रयास किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु:

  • थारू का शाब्दिक अर्थ: ऐसा माना जाता है कि ‘थारू’ शब्द की उत्पत्ति ‘स्थविर’ (Sthavir) से हुई है जिसका अर्थ होता है बौद्ध धर्म की थेरवाद शाखा/परंपरा को मानने वाला। 
  • निवास स्थान: थारू समुदाय शिवालिक या निम्न हिमालय की पर्वत शृंखला के बीच तराई क्षेत्र से संबंधित है।
    • तराई उत्तरी भारत और नेपाल के बीच हिमालय की निचली श्रेणियों के सामानांतर स्थित क्षेत्र है।
    • थारू समुदाय के लोग भारत और नेपाल दोनों देशों में पाए जाते हैं, भारतीय तराई क्षेत्र में ये अधिकाशंतः उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार में रहते हैं।   
  • अनुसूचित जनजाति: थारू समुदाय को उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार राज्यों में एक अनुसूचित जनजाति के रूप में चिह्नित किया गया है।  
  • आजीविका: इस समुदाय के अधिकांश लोग अपनी आजीविका के लिये वनों पर आश्रित रहते हैं हालाँकि समुदाय के कुछ लोग कृषि भी करते हैं।
  • संस्कृति: 
    • इस समुदाय के लोग थारू भाषा (हिंद-आर्य उपसमूह की एक भाषा) की अलग-अलग बोलियाँ और हिंदी, उर्दू तथा अवधी भाषा के भिन्न रूपों/संस्करणों का प्रयोग बोलचाल के लिये करते हैं।  
    • थारू समुदाय के लोग भगवान शिव को महादेव के रूप में पूजते हैं और वे अपने उपनाम के रूप में ‘नारायण’ शब्द का प्रयोग करते हैं, उनकी मान्यता है कि नारायण धूप, बारिश और फसल के प्रदाता हैं।  
    • उत्तर भारत के हिंदू रीति-रिवाजों की अपेक्षा थारू समुदाय की महिलाओं को संपत्ति में ज़्यादा मज़बूत अधिकार प्राप्त हैं।
    • थारू समुदाय के मानक पकवानों में दो प्रमुख ‘बगिया या  ढिकरी’ तथा घोंघी हैं। बगिया (ढिकरी) चावल के आटे का उबला हुआ एक पकवान है, जिसे चटनी या सालन के साथ खाया जाता है। वहीं घोंघी एक खाद्य घोंघा है,  जिसे धनिया, मिर्च, लहसुन और प्याज से बने सालन में पकाया जाता है।

थेरवाद बौद्ध परंपरा: 

  • बौद्ध धर्म की यह शाखा श्रीलंका, कंबोडिया, थाईलैंड, लाओस और म्याँमार में अधिक प्रचलित है। कई बार इसे ‘दक्षिणी बौद्ध धर्म’ के नाम से भी संबोधित किया जाता है।
  • इसका शाब्दिक अर्थ है ‘बड़ों/बुज़ुर्गों का सिद्धांत’ जहाँ बुज़ुर्गों से आशय वरिष्ठ बौद्ध भिक्षुओं से है।
  • बौद्ध धर्म की इस परंपरा के लोगों का मानना है कि यह परंपरा बुद्ध की मूल शिक्षाओं के सबसे करीब है। हालाँकि इसके तहत कट्टरपंथी तरीके से इन शिक्षाओं की मान्यता पर अधिक ज़ोर नहीं दिया जाता है, इन्हें अपनी श्रेष्ठता या योग्यता के लिये नहीं बल्कि लोगों को सत्य की पहचान करने में सहायता हेतु एक माध्यम/उपकरण के रूप में देखा जाता है ।  
  • इस परंपरा में अपने स्वयं के प्रयासों से ‘आत्म-मुक्ति’ प्राप्त करने पर ज़ोर दिया जाता है। इसके अनुयायियों से ‘सभी प्रकार की बुराइयों से दूर रहने, जो भी अच्छा है उसे संचित करने और अपने मन को शुद्ध करने’ की अपेक्षा की जाती है।   
    • थेरवाद बौद्ध धर्म का आदर्श वह अर्हत या सिद्ध संत है, जो अपने प्रयासों के परिणामस्वरूप आत्मज्ञान को प्राप्त करता है।
  • थेरवाद बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिये स्वयं में बदलाव लाने के लिये ‘ध्यान’ को एक प्रमुख माध्यम माना जाता है और इसलिये एक भिक्षु अपना बहुत समय ध्यान में ही बिता देता है।

अनुसूचित जनजाति:

  • संविधान के अनुच्छेद 366 (25) में अनुसूचित जनजाति को उन समुदायों के रूप में संदर्भित किया गया है जिन्हें संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
  • अनुच्छेद 342 के अनुसार, अनुसूचित जनजातियाँ वे समुदाय हैं जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा एक सार्वजनिक अधिसूचना या संसद द्वारा संबंधित अधिनियम में संशोधन के पश्चात् इस प्रकार घोषित किया गया है।   
  • अनुसूचित जनजातियों की सूची राज्य/केंद्रशासित प्रदेश से संबंधित होती है, ऐसे में एक राज्य में अनुसूचित जनजाति के रूप में घोषित एक समुदाय को दूसरे राज्य में भी यह दर्जा प्राप्त होना अनिवार्य नहीं है। 
  • भारतीय संविधान में एक अनुसूचित जनजाति के रूप में चिह्नित किसी समुदाय की विशिष्टता के बारे में कोई विशेष जानकारी नहीं दी गई है। आदिमता, भौगोलिक अलगाव और सामाजिक, शैक्षणिक तथा आर्थिक पिछड़ापन ऐसे लक्षण हैं जो अनुसूचित जनजाति के समुदायों को अन्य समुदायों से अलग करते हैं।
  • देश में कुछ ऐसी जनजातियाँ [ विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (Particularly Vulnerable Tribal Groups -PVTG) के रूप में ज्ञात 75 ] हैं, जिन्हें (i)प्रौद्योगिकी के पूर्व-कृषि स्तर, (ii) स्थिर या घटती जनसंख्या, (iii) अत्यंत कम साक्षरता और (iv) आर्थिक निर्वाह स्तर के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
  • सरकार के प्रयास:  अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पारंपरिक वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006’ या ‘वन अधिकार अधिनियम’ (Forest Rights Act- FRA), ‘पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996’,  अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम एवं जनजातीय उप-योजना रणनीति आदि जनजातीय समुदायों के सामाजिक-आर्थिक सशक्तीकरण पर केंद्रित हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस