जोशीमठ में भू-अवतलन का अध्ययन | 27 Sep 2023

प्रिलिम्स के लिये:

हिमालय, भूकंप, भूस्खलन, जोशीमठ, भू-अवतलन, ISRO

मेन्स के लिये:

जोशीमठ में भू-अवतलन पर प्राकृतिक और मानवजनित कारकों का प्रभाव

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में भूमि धँसने का कारण जानने के लिये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) सहित भारत के आठ प्रमुख संस्थानों द्वारा अलग-अलग अध्ययन किये गए और हिमालयी शहर के धँसने के विभिन्न कारण बताए गए।

जोशीमठ में भू-अवतलन के विषय में संस्थानों की रिपोर्ट:

  • केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान (Central Building Research Institute- CBRI):
    • अपनी रिपोर्ट में, CBRI ने कहा कि जोशीमठ शहर में क्रमशः 44%, 42% व 14% निर्माण चिनाई (Masonry), RCC और अन्य (पारंपरिक, संकर) प्रकार हैं, जिनमें से 99% गैर-इंजीनियर्ड हैं।
    • अन्य निष्कर्ष:
      • जोशीमठ शहर वैक्रिटा चट्टानों (मोटे अभ्रक-गार्नेट-कायनाइट और सिलिमेनाइट-असर वाले सैममिटिक मेटामोर्फिक्स से बनी) के समूह पर स्थित है जो मोरेनिक जमाव से ढका हुआ है जो अनियमित बोल्डर और अलग-अलग प्रकार की मृदा से बना है।
      • इस तरह के जमाव कम एकजुट होते हैं और धीमी गति से अवतलन तथा भूस्खलन धंसाव के प्रति संवेदनशील होते हैं।
  • राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (National Institute of Hydrology- NIH) की रिपोर्ट:
    • इस रिपोर्ट में विभिन्न झरनों, जल निकासी नेटवर्कों और भू-अवतलन वाले क्षेत्रों का मानचित्रण किया गया, जिससे अनुमान लगाया गया कि जोशीमठ में भूमि अवतलन एवं उपसतह जल के बीच कुछ संबंध हो सकते हैं।
    • संस्था ने ऊपरी इलाकों से आने वाले पानी के सुरक्षित निपटान और अपशिष्ट निपटान को सर्वोच्च प्राथमिकता के रूप में सुझाया।
  • वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी (WIHG) रिपोर्ट: 
    • संस्था ने धीमी और क्रमिक भू-अवतलन का कारण भूकंप को बताया है।
    • साथ ही संस्था ने कहा कि भू-अवतलन का मुख्य कारण उपसतह जल निकासी के कारण आंतरिक क्षरण प्रतीत होता है, जो वर्षा जल की प्रविष्टि/हिम के पिघलने/घरों और होटलों से अपशिष्ट जल के निर्वहन के कारण हो सकता है।
  • ISRO का रुख:
    • जोशीमठ क्षेत्र में भू-अवतलन टो-कटिंग (Toe-Cutting) के कारण हो सकता है।
    • इसके अलावा मिट्टी में स्थानीय जल निकासी के पानी के रिसाव के परिणामस्वरूप ढलान की अस्थिरता भी होती है।
    • भू-भाग और भू-भागीय विशेषताएँ भी भू-अवतलन के लिये उत्तरदायी हैं।
    • ढलान की ढीली और असंगठित मोराइन अर्थात् हिमोढ़ हिमनद मलबे (पुराने भूस्खलन के कारण) एवं वर्तमान में शहरी क्षेत्र तथा उसके आसपास बाढ़ की घटनाओं ने भी भूमि अवतलन में योगदान दिया।

जोशीमठ का स्थान:

  • जोशीमठ एक पहाड़ी शहर है जो उत्तराखंड के चमोली ज़िले में ऋषिकेश-बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (NH-7) पर स्थित है।
  • यह शहर एक पर्यटक शहर के रूप में कार्य करता है क्योंकि यह राज्य के अन्य महत्त्वपूर्ण धार्मिक एवं पर्यटक स्थानों जैसे बद्रीनाथ, औली, फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान और हेमकुंड साहिब की यात्रा करने वाले लोगों के लिये रात्रि विश्राम स्थल के रूप में कार्य करता है।
  • जोशीमठ भारतीय सशस्त्र बलों के लिये भी बहुत रणनीतिक महत्त्व रखता है और सेना की सबसे महत्त्वपूर्ण छावनियों में से एक है।
  • यह शहर उच्च जोखिम वाले भूकंपीय क्षेत्र-V में आता है, और विष्णुप्रयाग(धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों का संगम स्थल) से निकलने वाली उच्च ढाल वाली जलधाराएँ इस शहर से होकर प्रवाहित होती हैं।
  • यह आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार प्रमुख मठों में से एक है, जो हैं: कर्नाटक में शृंगेरी, गुजरात में द्वारका, ओडिशा में पुरी और उत्तराखंड में बद्रीनाथ के पास जोशीमठ।

Image: Geographical Location of Joshimath 

जोशीमठ को बचाने के उपाय: 

  • विशेषज्ञ क्षेत्र में विकास और जलविद्युत परियोजनाओं को पूरी तरह से बंद करने की सलाह देते हैं। लेकिन तत्काल आवश्यकता निवासियों को सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित करने और फिर नए बदलावों व बदलते भौगोलिक कारकों को समायोजित करके शहर की योजना की फिर से कल्पना करने की है।
  • जल निकासी योजना का निर्माण इसके सबसे बड़े कारकों में से एक है, इसका अध्ययन कर इसे पुनः विकसित किये जाने की आवश्यकता है। शहर में जल निकासी और सीवर प्रबंधन की समस्या काफी जटिल है क्योंकि इससे अधिक से अधिक अपशिष्ट मृदा में रिस रहा है, जिस कारण मृदा अंदर से मुलायम व भुरभुरी होती रही है। राज्य सरकार ने सिंचाई विभाग को इस मुद्दे पर ध्यान केन्द्रित करने तथा जल निकासी व्यवस्था के लिये एक नई योजना बनाने के लिये कहा है।
  • विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र में, विशेष रूप से मृदा की क्षमता बनाए रखने के लिये संवेदनशील स्थानों पर, पुनः रोपण का भी सुझाव दिया है। जोशीमठ को बचाने के लिये सीमा सड़क संगठन जैसे सैन्य संगठनों की सहायता से सरकार तथा नागरिक निकायों के बीच एक समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।
  • राज्य की मौजूदा मौसम पूर्वानुमान तकनीक, जो लोगों को स्थानीय घटनाओं के बारे में चेतावनी दे सकती है, के कवरेज में सुधार किये जाने की आवश्यकता है।
  • राज्य सरकार को वैज्ञानिक अनुसंधानों (वर्तमान समस्या के कारणों को स्पष्ट रूप से रेखांकित करने वाले) को भी अधिक गंभीरता से लेना चाहिये।

भूस्खलन:

  • भूस्खलन चट्टानों, मलबे अथवा पृथ्वी की शैलों की ढ़लान से नीचे खिसकने की प्रक्रिया है।
  • यह एक प्रकार का वृहत क्षरण (Mass wasting) हैं, जो गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव के कारण मृदा और चट्टान में किसी भी प्रकार से नीचे की ओर गति को दर्शाता है।
  • भूस्खलन शब्द में ढ़लान की गति के पाँच तरीके शामिल हैं: गिरना, पलटना, खिसकना, फैलना और बहना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं के प्रायः होते रहने के कारण बताइये। (2013)

प्रश्न. भूस्खलन के विभिन्न कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिये। राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिये। (2021)