भारत में सामरिक रक्षा प्रौद्योगिकियाँ | 13 May 2025
प्रिलिम्स के लिये:ब्रह्मोस, S-400 ट्रायम्फ, सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल, हिंद महासागर क्षेत्र, मानव रहित हवाई प्रणाली (अनमैन्ड एरियल सिस्टम), यूएस-इंडिया कॉम्पैक्ट पहल, MFN, स्कॉर्पीन पनडुब्बियाँ। मेन्स के लिये:भारत में सामरिक रक्षा प्रौद्योगिकियाँ और भारत की रक्षा तैयारियों में उनकी भूमिका। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ में ब्रह्मोस इंटीग्रेशन और टेस्टिंग सेंटर का उद्घाटन किया और ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल के महत्त्व को रेखांकित किया।
- एक अलग घटनाक्रम में, भारत के बढ़ते रक्षा संबंधों और S-400 ट्रायम्फ प्रणाली की प्रभावशीलता पर प्रकाश डाला गया, क्योंकि इसने पाकिस्तान द्वारा किये गए मिसाइल और असिसगार्ड सोंगर ड्रोन हमलों को सफलतापूर्वक रोक दिया, जो एक त्वरित और निर्णायक प्रतिक्रिया को दर्शाता है।
ब्रह्मोस और S-400 ट्रायम्फ के बारे में मुख्य बिंदु क्या हैं?
ब्रह्मोस:
- नाम की उत्पत्ति: इसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है।
- विकास: ब्रह्मोस मिसाइल का निर्माण ब्रह्मोस एयरोस्पेस के तहत किया जा रहा है, जो भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) (50.5%) और रूस के NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया (NPOM) (49.5%) के बीच एक संयुक्त उद्यम है।
- प्रथम परीक्षण: ब्रह्मोस का सफल परीक्षण वर्ष 2001 में चांदीपुर, ओडिशा से किया गया था।
- प्रकार: ब्रह्मोस एक दो-चरणीय सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है, जिसे उच्च परिशुद्धता और गति के लिये डिज़ाइन किया गया है। इसमें पहले चरण में एक ठोस-प्रणोदक बूस्टर है, उसके बाद दूसरे चरण में एक तरल-ईंधन वाला रैमजेट है, जो मैक 3 (ध्वनि की गति से तीन गुना) की उच्च गति के साथ विश्व की सबसे तेज़ क्रूज़ मिसाइल में से एक है।
- यह एक सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइल है, जो "फायर एंड फॉरगेट/दागो और भूल जाओ" सिद्धांत पर कार्य करती है यानी लॉन्च के बाद इसे मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती।
- ब्रह्मोस एक स्टैंड-ऑफ रेंज हथियार है जिसे दुश्मन की रक्षा सीमा से बाहर सुरक्षित दूरी से लॉन्च करने के लिये डिज़ाइन किया गया है। यह अधिकतम 15 किलोमीटर की ऊँचाई तक उड़ान भर सकता है तथा केवल 10 मीटर की न्यूनतम ऊँचाई पर स्थित लक्ष्यों पर सटीकता से हमला कर सकता है।
- रेंज: ब्रह्मोस की मारक क्षमता 290 किमी से बढ़कर 350 किमी हो गई है तथा भविष्य के संस्करण की मारक क्षमता का लक्ष्य 800 किमी और हाइपरसोनिक गति (मैक 5+) है।
- ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल में, सबसोनिक मिसाइलों की तुलना में तीन गुना अधिक तीव्रता, 2.5 गुना अधिक रेंज और अधिक सीकर रेंज की क्षमता है, जिसके परिणामस्वरूप यह अधिक सटीकता के साथ नौ गुना अधिक गतिज ऊर्जा प्रदान करती है।
- ब्रह्मोस के विभिन्न प्रकार:
- जहाज़-आधारित संस्करण: वर्ष 2005 से भारतीय नौसेना के अग्रिम पंक्ति के युद्धपोतों पर तैनात, यह एकल मिसाइल या एक साथ कई (अधिकतम 8) मिसाइलें लॉन्च करने में सक्षम है, जो समुद्र से समुद्र तथा समुद्र से भूमि तक दोनों प्रकार के हमलों को प्रभावी रूप से अंजाम दे सकती है।
- इसे पहली बार INS राजपूत पर तैनात किया गया, जिससे भारतीय नौसेना की हमला करने की क्षमता में वृद्धि हुई।
- भूमि-आधारित संस्करण: इसमें 4-6 मोबाइल लांचर होते हैं, जिनमें से प्रत्येक में 3 मिसाइलें होती हैं, जिन्हें विभिन्न विन्यासों में विभिन्न लक्ष्यों पर एक साथ दागा जा सकता है।
- इसे भारतीय सेना द्वारा वर्ष 2007 में 2.8 मैक की गति से प्रचालन में लाया गया था और उन्नयन के बाद यह 400 किलोमीटर तक सटीकता के साथ लक्ष्य पर प्रहार कर सकता है।
- वायु-प्रक्षेपित संस्करण: ब्रह्मोस वायु-प्रक्षेपित क्रूज़ मिसाइल (ALCM) भारत के सुखोई-30 MKI लड़ाकू विमानों में प्रयुक्त सबसे भारी हथियार है।
- 1,500 किलोमीटर की रेंज के साथ ब्रह्मोस से लैस सुखोई विमान सीमाओं और हिंद महासागर क्षेत्र में प्रमुख निवारक के रूप में कार्य करते हैं।
- पनडुब्बी से प्रक्षेपित संस्करण: यह जल के अंदर और हवाई उड़ान के लिये अलग-अलग सेटिंग्स का उपयोग करके 50 मीटर जल के अंदर से संचालित हो सकता है।
- भविष्योन्मुखी ब्रह्मोस-NG: ब्रह्मोस-NG (नेक्स्ट जेनरेशन), एक हल्का और स्टील्थ (गुप्तता युक्त) अगली पीढ़ी का मिसाइल है, जो विकासाधीन है। इसे वायु, नौसेना और जल के नीचे के प्लेटफाॅर्मों तथा टारपीडो ट्यूब से प्रक्षेपण की क्षमता के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- जहाज़-आधारित संस्करण: वर्ष 2005 से भारतीय नौसेना के अग्रिम पंक्ति के युद्धपोतों पर तैनात, यह एकल मिसाइल या एक साथ कई (अधिकतम 8) मिसाइलें लॉन्च करने में सक्षम है, जो समुद्र से समुद्र तथा समुद्र से भूमि तक दोनों प्रकार के हमलों को प्रभावी रूप से अंजाम दे सकती है।
S400 ट्रायम्फ
- परिचय: S-400 ट्रायम्फ रूस द्वारा विकसित एक मोबाइल, सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (SAM) प्रणाली है।
- उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) द्वारा इसे SA-21 ग्रोलर नाम दिया गया है तथा इसे वर्ष 2007 में सेवा में शामिल किया गया था।
- इसे बहुस्तरीय वायु रक्षा के लिये डिज़ाइन किया गया है, यह विमान, बैलिस्टिक मिसाइलों, क्रूज़ मिसाइलों, ड्रोन और स्टील्थ लक्ष्यों सहित हवाई खतरों की एक विस्तृत शृंखला को रोक सकता है।
- रेंज: 400 किमी दूर और 30 किमी तक की ऊँचाई पर लक्ष्य को भेद सकता है।
- गति: मैक 14 (~17,000 किमी/घंटा) तक की गति से उड़ने वाले लक्ष्यों को रोक सकता है।
- रडार पहुँच: उन्नत रडार प्रणालियों का उपयोग करके 600 किमी तक के लक्ष्यों का पता लगाता है।
- लक्ष्य प्रबंधन: 300 लक्ष्यों तक ट्रैक करता है और एक साथ 36 लक्ष्यों पर हमला करता है।
- मिसाइल के प्रकार :
- 40N6: लंबी दूरी (400 किमी तक)
- 48N6: मध्यम दूरी (250 किमी तक)
- 9M96E/9M96E2: छोटी से मध्यम दूरी (40-120 किमी)
- S-400 के साथ भारत की भूमिका: वर्ष 2018 में, भारत ने पाँच S-400 वायु रक्षा स्क्वाड्रनों के लिये रूस के साथ 5.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर के समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- तीन वर्तमान में संचालित हैं तथा वर्ष 2026 तक दो और शुरू हो जाएंगे। भारत में सुदर्शन चक्र के नाम से विख्यात S-400 का इस्तेमाल भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी हवाई हमले का मुकाबला करने के लिये किया था, जो इसके सामरिक महत्त्व को दर्शाता है।
नोट: असीसगार्ड सोंगर ड्रोन तुर्की का पहला स्वदेशी सशस्त्र अनमैन्ड एरियल सिस्टम (UAS) है जो असॉल्ट राइफलों, ग्रेनेड लांचर, मोर्टार या आँसू गैस से लैस है, जिसमें सभी सुरक्षा तंत्र मौजूद हैं। गुप्तता और समन्वय के लिये डिज़ाइन की गई ये प्रणाली निगरानी तथा सटीक हमलों को संभव बनाती है।
काइनेटिक और नॉन-काइनेटिक वारफेयर क्या है?
- काइनेटिक वारफेयर: काइनेटिक वारफेयर में शत्रु को पराजित करने के लिये प्रत्यक्ष भौतिक बल का प्रयोग किया जाता है, जैसे हवाई हमले, तोपखाना और ज़मीनी हमले।
- उदाहरणों में ऑपरेशन सिंदूर (2025) और बालाकोट एयरस्ट्राइक (2019) शामिल हैं, जहाँ पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद भारतीय वायु सेना ने जैश-ए-मोहम्मद के ठिकानों को निशाना बनाया था।
- नॉन-काइनेटिक वारफेयर: इसमें ऐसी रणनीतियाँ शामिल होती हैं जो सीधे भौतिक हमलों पर निर्भर नहीं होतीं, बल्कि शत्रु की राजनीतिक, आर्थिक, सूचनात्मक या मानसिक स्थिरता को लक्ष्य बनाती हैं।
- इसमें साइबर युद्ध (जैसे—ईरान के परमाणु केंद्रों पर इज़राइल का साइबर हमला), सूचना युद्ध (जैसे—ऑपरेशन सिंदूर के दौरान राफेल को गिराने के फर्ज़ी दावे), इलेक्ट्रॉनिक युद्ध (जैसे—भारत की संयुक्ता और दिव्य दृष्टि प्रणालियाँ), मानसिक युद्ध (जैसे—धमकियाँ, सैन्य वीडियो) और आर्थिक युद्ध (जैसे—पुलवामा हमले के बाद भारत द्वारा पाकिस्तान का सर्वाधिक तरजीही राष्ट्र (MFN) दर्जा वापस लेना) शामिल हैं।
हालिया वर्षों में भारत द्वारा किये गए रक्षा समझौते क्या हैं?
- भारत–रूस: भारत ने रूस से S-400 वायु रक्षा प्रणाली, MiG-29 लड़ाकू विमान तथा कामोव हेलीकॉप्टर प्राप्त किये हैं, साथ ही T-90 टैंकों, Su-30MKI लड़ाकू विमानों, AK-203 राइफलों और ब्रह्मोस मिसाइलों के लाइसेंसयुक्त उत्पादन के समझौते किये हैं।
- भारत–अमेरिका: भारत और अमेरिका ने सैन्य एवं तकनीकी सहयोग को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से US–इंडिया कॉम्पैक्ट पहल शुरू की।
- आपूर्ति व्यवस्था की सुरक्षा (SOSA) एवं संयोजन अधिकारियों पर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए, जिससे रक्षा आवश्यकताओं के लिये परस्पर समर्थन सुनिश्चित हुआ।
- भारत ने कई अमेरिकी मूल के रक्षा उपकरणों को एकीकृत किया है, जिनमें C-130J सुपर हरक्यूलिस, C-17 ग्लोबमास्टर III तथा AH-64E अपाचे हेलीकॉप्टर शामिल हैं और F-35 लाइटनिंग II लड़ाकू विमान प्राप्ति पर भी बातचीत चल रही है।
- भारत–UK: रक्षा व्यापार और सहयोग को बढ़ाने के लिये मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप दिया गया। थेल्स UK और भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (BDL) के बीच लेज़र बीम राइडिंग MANPADs (मैन-पोर्टेबल एयर डिफेंस सिस्टम्स) तथा STARStreak मिसाइलों (कम दूरी की सतह-से-वायु मिसाइल) की आपूर्ति के लिये समझौता हुआ है।
- ये दोनों हैदराबाद में अपनी तरह की प्रथम वायु-से-वायु मिसाइल असेंबली एवं परीक्षण सुविधा पर सहयोग कर रहे हैं।
- भारत–फ्राँस: भारत और फ्राँस ने भारतीय नौसेना के लिये 26 राफेल-M विमानों के लिये अंतर-सरकारी समझौता (IGA) पर हस्ताक्षर किये तथा स्कॉर्पीन पनडुब्बियों, राफेल विमानों और स्वदेशी उत्पादन को शामिल करते हुए एक रक्षा औद्योगिक रोडमैप तैयार किया।
निष्कर्ष
भारत की रक्षा रणनीति धमकियों का मुकाबला करने के लिये काइनेटिक (ब्रह्मोस हमले, S-400 इंटरसेप्शन) और नॉन-काइनेटिक (साइबर एवं इलेक्ट्रॉनिक युद्ध) क्षमताओं का समन्वय करती है। रूस (S-400, ब्रह्मोस), अमेरिका (F-35 सौदे) एवं फ्राँस (राफेल-M) के साथ समझौतों द्वारा सशक्त यह रणनीति भारत की बहु-क्षेत्रीय युद्ध तत्परता को सुदृढ़ कर रही है, जिससे पाकिस्तान और चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों के विरुद्ध निरोधक क्षमता सुनिश्चित होती है तथा स्वदेशी रक्षा उत्पादन को भी प्रोत्साहन मिलता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत के बदलते सामरिक परिवेश के संदर्भ में स्वदेशी वायु रक्षा एवं मिसाइल प्रणालियों के विकास की प्रासंगिकता समझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा के विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित "टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD)" क्या है? (2018) (a) इज़रायल की एक रडार प्रणाली उत्तर: (c) मेन्सप्रश्न. भारत-रूस रक्षा समझौतों की तुलना में भारत-अमेरिका रक्षा समझौतों की क्या महत्ता है? हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में स्थायित्व के संदर्भ में विवेचना कीजिये। (2020) |