भारत में पुलिस की स्थिति रिपोर्ट 2019 | 03 Sep 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कॉमन कॉज़ एवं सेंटर फॉर द स्टडी डेवलपिंग सोसाइटीज़ ने “भारत में पुलिस की स्थिति रिपोर्ट 2019: पुलिस की पर्याप्तता और कार्य करने की स्थिति” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

प्रमुख बिंदु

  • भारत में पुलिस की स्थिति रिपोर्ट 2019 (Status of Policing in India Report- SPIR 2019) उन कार्य-परिस्थितियों के बारे में बताती है जिन स्थितियों में भारतीय पुलिस कार्य करती है।
  • यह रिपोर्ट निम्न दो स्रोतों से प्राप्त आँकड़ों के विश्लेषण पर आधारित है। पहला सरकारी एजेंसियों द्वारा राज्य पुलिस की राज्यवार पर्याप्तता के स्तर को मापने के लिये ‘आधिकारिक समय-शृंखला आँकडें’ (Official Time-Series Data) एवं दूसरा, 21 प्रमुख भारतीय राज्यों में पुलिसकर्मियों के साक्षात्कार से प्राप्त आँकडें।
  • पुलिसकर्मियों की कार्य-परिस्थितियों, उनके परिवार के सदस्यों के विचार, सामाजिक विविधता के मामलों में उनके खराब रिकॉर्ड, अपराध की जाँच हेतु बुनियादी ढाँचा और दिन-प्रतिदिन के कार्यों पर ‘SPIR 2019’ भारत एवं दक्षिण एशिया में अपनी तरह का पहला अध्ययन है।
  • इस अध्ययन में पुलिस और आम जनता के बीच संबंध, पुलिस और हाशिये के समुदायों के बीच संबंध एवं पुलिस द्वारा हिंसा के प्रयोग के बारे में भी बताया गया है।
  • अध्ययन में भारत के 20 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली के पुलिस स्टेशनों में कार्यरत 11,834 पुलिसकर्मियों के अलावा 10,535 पुलिसकर्मियों के परिवार के सदस्यों का साक्षात्कार शामिल है।
  • पहली बार कई मापदंडों पर पुलिस बलों के प्रदर्शन के संकेतकों में सुधार या गिरावट की दर दिखाने के लिये आधिकारिक आँकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
  • सर्वेक्षण में पुलिस पदानुक्रम के सबसे निचले पायदान पर स्थित पुलिसकर्मी और विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि से पुरुषों और महिलाओं को शामिल किया गया है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • एक-तिहाई पुलिस अफसरों ने यह माना है कि यदि उन्हें समान वेतन और सुविधाओं वाली कोई अन्य नौकरी दी जाए तो वे अपनी पुलिस की नौकरी छोड़ देंगे।
  • चार में से तीन पुलिसकर्मियों ने कहा कि कार्यभार के कारण उनके लिये अपने काम को अच्छी तरह से करना मुश्किल हो जाता है और इससे उनके शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।
    • आँकड़ों के अनुसार, एक औसत पुलिस अधिकारी एक दिन में लगभग 14 घंटे कार्य करता है, जबकि मॉडल पुलिस अधिनियम (Model Police Act) सिर्फ 8 घंटों की ड्यूटी की सिफारिश करता है।
    • हर दूसरे पुलिसकर्मी ने सप्ताह में एक भी अवकाश न मिलने की बात कही है।

Police Hour

  • कार्य तथा निजी जीवन के बीच असंतुलन के अतिरिक्त पुलिसकर्मियों को संसाधनों की कमी की समस्या से भी जूझना पड़ता है।
    • कुछ पुलिस स्टेशनों में पीने का पानी, स्वच्छ शौचालय, परिवहन, पर्याप्त कर्मचारियों और नियमित खरीद के लिये धन जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
    • पुलिसकर्मियों ने बुनियादी तकनीकी सुविधाओं जैसे- कंप्यूटर और भंडारण सुविधा न होने की भी बात कही है।

Police basic facilities

  • सर्वेक्षण में न्यायिक प्रक्रियाओं के प्रति पुलिस बल में कई लोगों के आकस्मिक (Casual) रवैये पर प्रकाश डाला गया है।
    • लगभग पाँच में से तीन पुलिसकर्मियों का मानना ​​है कि प्राथमिक जाँच रिपोर्ट (First Investigation Report-FIR) दर्ज होने से पहले प्राथमिक जाँच होनी चाहिये, चाहे वह कितना भी गंभीर अपराध क्यों न हो।
      • यह 2013 के सर्वोच्च न्यायालय के एक फैसले के विपरीत है जिसमें कहा गया है कि यदि किसी पीड़ित द्वारा संज्ञेय अपराध के बारे में जानकारी का खुलासा किया जाता है तो पुलिस द्वारा FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
    • सर्वेक्षण में शामिल हर तीसरे पुलिसकर्मी ने सहमति व्यक्त की है कि मामूली अपराधों के लिये पुलिस द्वारा अभियुक्तों को दी मामूली सज़ा कानूनी परीक्षण से बेहतर है।
    • सर्वेक्षण में भाग लेने वाले तीन-चौथाई लोगों का मानना है कि पुलिस का अपराधियों के प्रति हिंसक रवैया अपनाना ठीक है।
  • सर्वेक्षण में यह भी पाया गया कि पुलिसकर्मियों को शारीरिक मापदंडों, हथियारों और भीड़ नियंत्रण के लिये पर्याप्त रूप से प्रशिक्षित किया गया है, तथापि अभी तक उन्हें साइबर अपराध या फोरेंसिक तकनीक के मॉड्यूल का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है।
  • उपरोक्त तथ्यों के कारण ही वर्ल्ड जस्टिस प्रोजेक्ट (World Justice Project) द्वारा जारी रूल ऑफ लॉ इंडेक्स (Rule of Law Index) में भारत की रैंकिंग 126 देशों में से 68वीं है।

Centre for the Study of Developing Societies (CSDS)

CSDS

  • इसकी स्थापना वर्ष 1963 में हुई थी।
  • यह सामाजिक विज्ञान और मानविकी के लिये एक भारतीय, गैर-सरकारी अनुसंधान संस्थान है।
  • CSDS को वर्ष 1969 से भारत सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय के तहत भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR), नई दिल्ली द्वारा समर्थन प्राप्त है।

कॉमन कॉज़ (Common Cause)

कॉमन कॉज़ एक पंजीकृत ‘सोसायटी’ है, जिसके पूरे देश में 2500 से अधिक सदस्य फैले हुए हैं।

कॉमन कॉज़ जनहित से जुड़े मुद्दों को लोकतंत्र, सुशासन और सार्वजनिक नीति में सुधारों की वकालत करके नीति निर्माताओं के साथ औपचारिक एवं अनौपचारिक बातचीत से, विचारों के प्रसार तथा अभियानों के माध्यम से बढ़ावा देने का प्रयास करती है।

विज़न: एक ऐसे भारत के लिये प्रयास करना जहाँ हर नागरिक का सम्मान किया जाए और उसके साथ उचित व्यवहार किया जाए।

मिशन: महत्त्वपूर्ण सार्वजनिक हितों की रक्षा करना।

लक्ष्य: सभी नागरिक-समूहों के अधिकारों के बचाव हेतु संघर्ष करना।

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स