जज एडवोकेट जनरल (JAG) भर्ती हेतु सेना का लिंग-आधारित कोटा खारिज | 14 Aug 2025

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने भारतीय सेना की उस नीति को निरस्त कर दिया, जिसमें महिला अधिकारियों की नियुक्ति को केवल जज एडवोकेट जनरल (JAG) शाखा तक सीमित किया गया था। अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि महिलाएं काउंटर-इंसर्जेंसी या काउंटर-टेरर बलों में सेवा नहीं कर सकतीं, और सभी कॉम्बैट-सपोर्ट शाखाओं में लैंगिक समानता पर जोर दिया।

नोट: JAG भारतीय सेना की कानूनी शाखा है, जो सेना अधिनियम, 1950 के तहत सैन्य कानून पर सलाह देती है और परिचालन, प्रशासनिक और अनुशासनात्मक मामलों पर कमांडरों का मार्गदर्शन करती है।

  • JAG अधिकारी कमीशंड कॉम्बैटेंट होते हैं, जिन्हें युद्धकाल में कॉम्बैट-सपोर्ट भूमिकाओं में तैनात किया जा सकता है।
  • सेना अधिनियम, 1950 की धारा 12 के तहत महिलाएँ JAG में शामिल होने के लिये पात्र हैं। 

सेना में JAG की भर्ती और ऑपरेशनल भूमिकाओं में महिलाओं के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश क्या हैं?

  • सामान्य योग्यता सूची: सर्वोच्च न्यायालय ने सेना की उस नीति को रद्द कर दिया जिसके तहत संयुक्त प्रशासनिक श्रेणी (JAG) की नौ में से छह रिक्तियाँ पुरुषों के लिये आरक्षित थीं। सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि सेना और केंद्र सरकार, JAG में महिला अधिकारियों की संख्या को सीमित नहीं कर सकते, क्योंकि उन्हें सेना अधिनियम, 1950 के तहत प्रवेश की अनुमति मिल गई है। सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें एकल योग्यता-आधारित सूची तैयार करने का निर्देश दिया, ताकि केवल योग्यता के आधार पर चयन सुनिश्चित हो सके।
  • कॉम्बैट-सपोर्ट भूमिकाओं में समान अवसर: सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि महिलाओं को काउंटर-इंसर्जेंसी या काउंटर-टेरर भूमिकाओं से बाहर रखना किसी कानूनी आधार का अभाव है, यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है तथा यह भी कहा कि कोई भी राष्ट्र तब तक सुरक्षित नहीं हो सकता जब तक समानता का अधिकार न दिया जाए।
  • सिद्ध संचालन क्षमता: सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी रेखांकित किया कि सेना के विपरीत, अन्य बलों में महिलाओं के कॉम्बैट भूमिकाओं में शामिल होने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। उदाहरणस्वरूप, कैप्टन ओजस्विता श्री, मेजर द्विपन्निता कलिता और फ्लाइट लेफ्टिनेंट शिवांगी सिंह, जिन्होंने उच्च-जोखिम वाले कार्यों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने मेजर गोपिका भट्टी द्वारा उग्रवादी-प्रभावित क्षेत्रों में काफिले की कमान और कर्नल अंशु जमवाल द्वारा युद्ध क्षेत्रों में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में भागीदारी का हवाला देते हुए प्रश्न उठाया कि ऐसे सक्षम अधिकारियों को काउंटर-इंसर्जेंसी या काउंटर-टेरर अभियानों में तैनाती से क्यों बाहर रखा गया है।

रक्षा बलों में महिलाओं पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसले

  • सचिव, रक्षा मंत्रालय बनाम बबीता पुनिया (2020): सर्वोच्च न्यायालय ने सेना में उन सभी शाखाओं में महिलाओं के लिये स्थायी कमीशन (PC) अनिवार्य कर दिया जहाँ शॉर्ट सर्विस कमीशन (SSC) उपलब्ध है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि महिलाओं को कमान के पदों पर रहने की अनुमति दी जानी चाहिये तथा लिंग के आधार पर स्थायी कमीशन से वंचित करना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन घोषित किया।
  • कुश कालरा बनाम भारत संघ (2021): सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) में महिलाओं के प्रवेश का आदेश दिया, ताकि उन्हें पुरुषों के साथ स्थायी कमीशन के लिये प्रशिक्षण की अनुमति मिल सके।

रक्षा क्षेत्र में नारी शक्ति

  • पिछले एक दशक में, भारत की रक्षा सेनाओं में महिलाओं की संख्या लगभग 3,000 (वर्ष 2014) से बढ़कर 11,000 (वर्ष 2025) से अधिक हो गई है, जो नीति और सोच में बड़े बदलाव को दर्शाती है।
  • राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA) ने वर्ष 2022 में अपनी पहली 17 महिला कैडेट्स को शामिल किया, और तब से अब तक चार बैचों में कुल 126 महिलाएँ शामिल हो चुकी हैं, जो महिलाओं को कॉम्बैट सपोर्ट और ऑपरेशनल भूमिकाओं में एकीकृत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।

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रक्षा बलों में महिलाओं का क्या महत्त्व है?

  • संचालन क्षमता में वृद्धि: महिलाएँ आधुनिक सैन्य अभियानों की प्रभावशीलता बढ़ाती हैं, क्योंकि वे खुफिया, लॉजिस्टिक्स और मानवीय मिशनों में विविध कौशल का योगदान देती हैं, जिससे संघर्ष क्षेत्रों में स्थिति की बेहतर समझ और निर्णय लेने की क्षमता में सुधार होता है।
  • शांति और सुरक्षा को सुदृढ़ बनाना: रक्षा क्षेत्र में कार्यरत महिलाएँ संघर्ष के दौरान कमज़ोर आबादी, विशेषकर महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
    • लिंग-विविध सेनाएँ समाज की आवश्यकताओं के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं, जिससे सुरक्षा रणनीतियाँ समग्र और प्रभावी बनती हैं।
  • सामाजिक प्रभाव: वरिष्ठ पदों पर महिलाएँ युवा अधिकारियों को प्रेरित और मार्गदर्शन करती हैं, जिससे उनके कॅरियर में प्रगति और मनोबल में वृद्धि होती है।
  • ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने नेतृत्व और व्यावसायिकता का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया, जिससे समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा।

रक्षा में महिलाओं का एकीकरण समाज की प्रगति को दर्शाता है, प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करता है और सशस्त्र बलों में समानता, जवाबदेही तथा मानवाधिकारों को बढ़ावा देता है, साथ ही संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 को भी सशक्त करता है। 

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मेन्स कीवर्ड्स

  • “विविधता रणनीति को मजबूत करती है”: लैंगिक समावेशन से परिचालन प्रभावशीलता में सुधार होता है।
  • “समावेश के माध्यम से शांति”: मानवीय कार्यों, शांति स्थापना तथा नागरिक अभियानों के संचालन में महिलाओं की भागीदारी।
  • “युद्ध के लिये तैयार समानता": महिलाएँ सभी प्रकार की युद्ध-सहायक भूमिकाओं में नियुक्ति हेतु योग्य हैं।
  • "योग्यता लैंगिक पहचान से ऊपर है" : सशस्त्र बलों में चयन क्षमता के आधार पर न कि लैंगिक आधार पर।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. राष्ट्रीय सुरक्षा संस्थाओं में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने में न्यायिक हस्तक्षेप की भूमिका का मूल्यांकन कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ) 

मेन्स

प्रश्न. भारत में समय और स्थान के विरुद्ध महिलाओं के लिये निरंतर चुनौतियाँ क्या हैं? (2019)