सातवाहन राजवंश और संस्कृति | 05 May 2025

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI), अभिलेख, गौतमीपुत्र शातकर्णी, महायान बौद्ध धर्म, कार्ले चैत्य, नासिक विहार, अमरावती स्तूप, सिक्के

मेन्स के लिये:

राजनीति, अर्थव्यवस्था, अभिलेख, धार्मिक संरक्षण और सांस्कृतिक क्षेत्र में सातवाहन वंश का योगदान

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) ने तेलंगाना के पेद्दपल्ली में सातवाहन वंश से संबंधित 11 प्राचीन अभिलेखों का दस्तावेज़ीकरण किया है। 

  • ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में रचित ये 1 ईसा पूर्व से 6वीं ईस्वी के अभिलेख सातवाहन युग और प्रारंभिक दक्कन की राजनीति और संस्कृति की जानकारी का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।
  • इन अभिलेखों से तेलंगाना का सोलह महाजनपदों में से एक, अस्माका का हिस्सा होने की पुष्टि हुई है, तथा इसकी ऐतिहासिक भूमिका और प्रमुख राजवंशों के साथ प्रारंभिक संबंधों काक इसमें विवरण शामिल है।

सातवाहन राजवंश से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: दक्कन और मध्य भारत में मौर्य शासन के पश्चात् सातवाहन वंश (ईसा पूर्व पहली शताब्दी से ईसवी तीसरी शताब्दी के प्रारंभ तक) का प्रभुत्व स्थापित हुआ, जिनका आरंभिक शासन केंद्र उत्तर महाराष्ट्र (ऊपरी गोदावरी घाटी) था और कालांतर में इसका विस्तार कर्नाटक और आंध्र में हुआ।
    • उनकी पहचान पुराणों में वर्णित आंध्रों से की जाती है, यद्यपि अभिलेखों में इस नाम का प्रयोग नहीं किया गया है।

Satavahans

प्रमुख शासक:

शासक

शासन काल

विवरण

सिमुक 

60 ई.पू.- 37 ई.पू.

सातवाहन राजवंश के संस्थापक और नानेघाट अभिलेख में सातवाहन राजवंश की सूची में प्रथम राजा के रूप में इनका उल्लेख है।

गौतमीपुत्र शातकर्णी

106 ई.–130 ई.

सातवाहन राजवंश के सबसे महत्त्वपूर्ण शासक

शक वंश को पराजित किया और क्षहरात वंश (नहपान द्वारा शासित) का समूल नाश किया।

उत्तर में मालवा और दक्षिण में कर्नाटक तक साम्राज्य का विस्तार किया।

नहपान (क्षहरात शासक) के सिक्के गौतमीपुत्र द्वारा पुनः टंकित कराए गए, जो विजय का प्रतीक थे।

वशिष्ठिपुत्र पुलुमयी

130 ई.-154 ई.

गोदावरी के तट पर स्थित पैठण (प्रतिष्ठान) को नई राजधानी बनाया।

आंध्र पर सातवाहन साम्राज्य का प्रभुत्व स्थापित किया। रुद्रदामन (पश्चिमी क्षत्रप वंश) और सातवाहन वंश में अनेक युद्ध हुए, लेकिन इस संघर्ष को रोकने के लिये राजा पुलुमावी के पुत्र वशिष्ठपुत्र शातकर्णी ने रुद्रदामन की पुत्री से विवाह किया।

यज्ञ श्री सातकर्णी

165-194 ई.

उत्तर कोंकण और मालवा के क्षेत्रों पर पुनः प्रभुत्व स्थापित किया।

व्यापार और नौवहन के संरक्षक; उनके सिक्कों पर जहाज़ों का अंकन है।

इनके शासनकाल में समुद्री व्यापार शीर्ष पर था।

  • भौतिक संस्कृति: कुदाल, हल और तीर जैसे लौह औज़ारों का व्यापक उपयोग किया जाता था, तथा इनके प्रगलन स्थल करीमनगर और वारंगल में थे। 
  • कृषि: लौह औज़ारों के उपयोग और धान की रोपाई से कृषि क्षेत्र संपन्न हुआ, जिससे कृष्णा-गोदावरी डेल्टा एक प्रमुख चावल उत्पादन क्षेत्र बन गया। 
    • प्लिनी (नेचुरल हिस्ट्री के लेखक) द्वारा उल्लेखित कपास उत्पादन, आंध्र की एक पहचान थी। 
  • नगरीकरण और व्यापार: पेद्दबांकुर (200 ईसा पूर्व-200 ईसवी) में ईंट की संरचनाएँ, कुएँ और आवरित भूमिगत जल निकासी व्यवस्था थी। प्लिनी ने पूर्वी दक्कन (आंध्र क्षेत्र) में 30 दीवार वाले नगरों का उल्लेख किया है। 
    • व्यापार में वृद्धि कृष्णा-गोदावरी क्षेत्र में रोमन और सातवाहन सिक्कों के प्रसार में परिलक्षित होती है।
  • सिक्के: सिक्कों पर प्राकृत अभिलेख और प्रतीक जैसे दो मस्तूल वाले जहाज़, हाथी (बल), सिंह (शक्ति), नक्षत्र, चैत्य और धर्मचक्र अंकित थे। 
    • सिक्के सीसा, पोटिन (ताँबा, सीसा और टिन का मिश्रण), ताँबा और काँस्य में जारी किये गए थे, जबकि सोने का उपयोग बुलियन के रूप में किया गया था। 
  • सामाजिक संगठन: सातवाहन, जो मूल रूप से एक दक्कन जनजाति थी, में ब्राह्मणवादी परंपराओं और सामाजिक संरचनाओं को अपनाया गया, गौतमीपुत्र शातकर्णी ने शकों द्वारा बाधित वर्ण व्यवस्था को पुनः स्थापित किया।
    • सातवाहन राजवंश में मातृवंशीय प्रभाव रहा, जिसमें राजाओं के नाम उनकी माताओं के नाम पर रखे जाते थे, लेकिन इसकी प्रकृति पितृसत्तात्मक रही, जिसमें उत्तराधिकार पुरुष उत्तराधिकारी को मिलता था।
    • शिल्प और वाणिज्य का विकास हुआ, व्यापारियों और शिल्पकारों, विशेषकर गंधिकाओं (सुगंधित पदार्थ बनाने वालों) ने बौद्ध उद्देश्यों के लिये दान दिया। 
  • प्रशासन: त्रिस्तरीय सामंती व्यवस्था में राजा (जो सिक्के जारी कर सकता था), महाभोज (द्वितीय श्रेणी का शासक) तथा सेनापति (स्थानीय प्राधिकार वाला सैन्य प्रमुख) शामिल थे।
    • ज़िले (आहार या राष्ट्र) का प्रशासन महामात्रों (अधिकारियों) द्वारा किया जाता था। 
  • सैन्य-आधारित शासन: 
    • सेनापति (कमांडर) प्रांतीय गवर्नर के रूप में कार्य करता था।
    • गौल्मिक (सैन्य अधिकारी) ग्रामीण विधि एवं व्यवस्था बनाए रखता था।
    • सैन्य शिविर (कटक, स्कंधवारा) प्रशासनिक केंद्रों के रूप में भूमिका निभाते थे।
    • रोमन इतिहासकार प्लिनी ने उल्लेख किया है कि आँध्र राज्य (सातवाहन) के पास पैदल सेना, घुड़सवार सेना तथा हाथियों सहित एक बड़ी सेना थी, जो उनकी सैन्य शक्ति का परिचायक है।
  • धर्म: सातवाहन शासकों ने ब्राह्मण के रूप में ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दिया, अश्वमेध और वाजपेय जैसे वैदिक यज्ञ किये एवं कृष्ण तथा वासुदेव जैसे वैष्णव देवताओं की पूजा की।
    • सातवाहनों ने बौद्ध धर्म का समर्थन किया और नागार्जुनकोंडा तथा अमरावती में भिक्षुओं को भूमि दान दी, जहाँ महायान बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार हुआ।
    • सातवाहन प्रथम शासक थे जिन्होंने ब्राह्मणों को भूमि दान दी, किंतु उन्होंने बौद्ध भिक्षुओं को भी भूमिदान किया था।
  • स्थापत्य: सातवाहन अपनी शैलकृत वास्तुकला के लिये जाने जाते हैं, जिनमें कार्ले चैत्य और नासिक विहार जैसे उल्लेखनीय उदाहरण शामिल हैं।
    • अमरावती स्तूप का पुनर्निर्माण सातवाहन काल के दौरान किया गया था, जिसमें बुद्ध के जीवन से संबंधित जटिल मूर्तियों का अंकन किया गया है।
    • सातवाहनों ने बौद्ध कला और वास्तुकला को संरक्षण दिया, जैसा कि अजंता की गुफा संख्या 9 और 10 में देखा जा सकता है तथा अमरावती कला शैली को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया, जिसे जटिल मूर्तियों के लिये जाना जाता था।
    • महाराष्ट्र के नानेघाट अभिलेखों से राजवंश के धार्मिक संरक्षण (विशेष रूप से बौद्ध धर्म के प्रति संरक्षण) पर प्रकाश पड़ता है तथा बौद्ध भिक्षुओं को दी गई भूमि पर कर छूट का उल्लेख मिलता है।
    • नागार्जुनकोंडा को दूसरी-तीसरी शताब्दी में सातवाहनों के उत्तराधिकारियों, इक्ष्वाकुओं के संरक्षण में सबसे अधिक समृद्धि मिली। 
  • भाषा: सातवाहनों की आधिकारिक भाषा प्राकृत थी तथा उनके शिलालेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए थे। 
    • गाथासप्तशती (राजा हाल द्वारा रचित एक प्राकृत ग्रन्थ) इस काल की एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक कृति है, जिसमें 700 श्लोक हैं। 
  • पतन: तीसरी शताब्दी ई. के आसपास इस राजवंश का पतन हो गया और पूर्वी दक्कन में इक्ष्वाकुओं ने इसका स्थान लिया, जिन्होंने कई सातवाहन परंपराओं (विशेष रूप से बौद्ध संरक्षण में) को जारी रखा। 
  • बाद में, पल्लव दक्षिणी क्षेत्र में प्रमुखता से उभरे। 

निष्कर्ष 

तेलंगाना में सातवाहन अभिलेखों से इस राजवंश के राजनीतिक, धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव के बारे में बहुमूल्य जानकारी मिली है। अपनी सैन्य शक्ति, बौद्ध धर्म के समर्थन तथा मातृवंशीय प्रभावों के लिये प्रसिद्ध सातवाहनों ने व्यापार, शहरीकरण के विकास तथा प्रारंभिक दक्कन इतिहास को आकार देने में प्रमुख भूमिका निभाई। अपने पतन के बाद इक्ष्वाकु पूर्वी दक्कन में इनके उत्तराधिकारी के रूप में उभरे, जिन्होंने उनकी कई प्रशासनिक एवं सांस्कृतिक परंपराओं (विशेष रूप से बौद्ध धर्म का संरक्षण) को जारी रखा।

दृष्टि मुख्य परीक्षा

प्रश्न: सातवाहन राजवंश की सामाजिक-राजनीतिक संरचना को बताते हुए उनके प्रशासन, सैन्य प्रणाली एवं सामंती संबंधों पर प्रकाश डालिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से किस शासक ने अपनी प्रजा को इस अभिलेख के माध्यम से परामर्श दिया ?

"कोई भी व्यक्ति जो अपने संप्रदाय को महिमा-मंडित करने की दृष्टि से अपने धार्मिक संप्रदाय की प्रशंसा करता है या अपने संप्रदाय के प्रति अत्यधिक भक्ति के कारण अन्य संप्रदायों की निन्दा करता है, वह अपितु अपने संप्रदाय को गंभीर रूप से हानि पहुँचाता है।" (2020)

(a) अशोक
(b) समुद्रगुप्त
(c) हर्षवर्धन
(d) कृष्णदेव राय

उत्तर: (a)


प्रश्न. निम्नलिखित में से किस उभारदार मूर्तिशिल्प (रिलीफ स्कल्प्चर) शिलालेख में अशोक के प्रस्तर रूपचित्र के साथ ‘राण्यो अशोक’ (राजा अशोक) उल्लिखित है? (2019)

(a) कंगनहल्ली  
(b) साँची
(c) शाहबाजगढ़ी
(d) सोहगौरा

उत्तर: (a)


मेन्स:

प्रश्न. आरंभिक भारतीय शिलालेखों में अंकित तांडव नृत्य की विवेचना कीजिये। (2013)