भारत के विदेशी ऋण में वृद्धि | 08 Oct 2025

स्रोत: इकोनॉमिक टाइम्स

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा जारी नवीनतम आँकड़ों के अनुसार, जून 2025 के अंत तक भारत का विदेशी ऋण बढ़कर 747.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है, जो पिछली तिमाही की तुलना में 1.5% की वृद्धि दर्शाता है।

भारत के विदेशी ऋण की वर्तमान स्थिति क्या है?

  • मूल्यांकन प्रभाव: विदेशी ऋण में वृद्धि मुख्यतः मुद्रा में उतार-चढ़ाव से उत्पन्न मूल्यांकन प्रभावों के कारण हुई।
    • अमेरिकी डॉलर के अवमूल्यन के कारण मूल्यांकन में 5.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की हानि हुई।
  • ऋण कवरेज: कुल विदेशी ऋण में वृद्धि के बावजूद, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार से 93% से अधिक ऋण आच्छादित है, जिससे विदेशी स्थिरता मज़बूत बनी रहती है।
    • विदेशी ऋण-GDP अनुपात 18.9% है, जो विदेशी देनदारियों के एक मध्यम और स्थाई स्तर को दर्शाता है।
  • ऋण परिपक्वता प्रोफाइल:
    • दीर्घकालिक ऋण (एक वर्ष से अधिक की परिपक्वता) 611.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ सबसे बड़ा हिस्सा है, जबकि अल्पकालिक ऋण घटकर कुल ऋण का 18.1% रह गया है।
      • अल्पकालिक ऋण-आरक्षित अनुपात में सुधार हुआ है, जिससे रोलओवर और तरलता जोखिम कम हुए हैं।
  • मुद्रा के अनुसार संरचना:
    • अमेरिकी डॉलर: 53.8% - भारत के विदेशी ऋण में प्रमुख मुद्रा, जो वैश्विक मौद्रिक उतार-चढ़ाव के प्रति महत्त्वपूर्ण संवेदनशीलता दर्शाती है।
    • भारतीय रुपया: 30.6% - घरेलू मुद्रा ऋण में एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा।
    • जापानी येन: 6.6% - एक छोटा हिस्सा।
    • विशेष आहरण अधिकार (SDR): 4.6% - एक छोटा हिस्सा।
    • यूरो: 3.5% - एक अपेक्षाकृत छोटा हिस्सा।
  • क्षेत्रवार वितरण
    • गैर-वित्तीय निगम: 35.9% - सबसे बड़ा क्षेत्र, जो निजी क्षेत्र के विदेशी ऋण में वृद्धि को दर्शाता है।
    • सरकार एवं वित्तीय संस्थाएँ: विदेशी ऋण का शेष हिस्सा।

विदेशी ऋण 

  • परिचय: विदेशी ऋण से तात्पर्य किसी देश द्वारा अपनी सीमाओं के बाहर के स्रोतों से उधार ली गई धनराशि से है। 
    • इन स्रोतों में विदेशी वाणिज्यिक बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक जैसी अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएँ तथा अन्य देशों की सरकारें शामिल हैं।
    • समझौते के आधार पर इसे विदेशी मुद्रा या घरेलू मुद्रा में अंकित किया जा सकता है।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • पुनर्भुगतान दायित्व: इसमें मूलधन और ब्याज दोनों शामिल है।
    • मुद्रा जोखिम: विदेशी मुद्रा में उधार ली गई राशि का भुगतान विनिमय दरों पर निर्भर करता है।
    • क्षेत्र के अनुसार: सरकार, वित्तीय संस्थाओं या निजी निगमों द्वारा ऋण लिया जा सकता है।
    • उपकरण के अनुसार: इसमें ऋण, व्यापारिक क्रेडिट, बॉण्ड, जमा आदि शामिल होते हैं।

बढ़ते विदेशी ऋण से जुड़ी प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • विनिमय दर जोखिम: चूॅंकि विदेशी ऋण अक्सर विदेशी मुद्राओं में होता है, इसलिये विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव के बोझ को बढ़ा सकते हैं, जिससे ऋण की सेवा महॅंगी हो जाती है।
  • ब्याज का बोझ: बढ़ते कर्ज से ब्याज दायित्व बढ़ता है, जिससे राजकोषीय संसाधनों पर दबाव पड़ता है और विकास के लिये धन कम हो जाता है।
    • लंबे समय तक मुद्रास्फीति बनी रहने से ब्याज दरें बढ़ सकती हैं, जिससे आर्थिक विकास धीमा हो सकता है। इसके परिणामस्वरूप बाह्य ऋण-GDP अनुपात बढ़ सकता है, जिससे अर्थव्यवस्था पर और दबाव बढ़ सकता है।
  • वैश्विक आघातों के प्रति संवेदनशीलता: स्टैगफ्लेशन जैसी वैश्विक आर्थिक समस्या के कारण भारत के निर्यात की मांग कम हो सकती है, जिससे ऋण सेवा अनुपात (Debt Service Ratio) प्रभावित होगा तथा ऋण की प्रक्रिया और भी जटिल हो जाएगी।
  • घरेलू निवेश का विस्थापन: ऋण चुकाने (Debt Servicing) में संसाधनों के उपयोग से उत्पादक घरेलू निवेश और जनकल्याण पर होने वाला खर्च प्रभावित हो सकता है, जिससे देश की आर्थिक वृद्धि और सामाजिक विकास पर नकारात्मक असर पड़ता है।

विदेशी ऋण प्रबंधन के लिये प्रमुख उपाय क्या हैं?

  • मुद्रा जोखिम में विविधता लाना: अमेरिकी डॉलर जैसी विदेशी मुद्राओं पर निर्भरता कम करना और बाहरी ऋण के लिये स्थानीय मुद्रा, जैसे रुपये में ऋण का उपयोग बढ़ाना, ताकि मुद्रा जोखिम कम किया जा सके।
  • सतत् ऋण प्रथाएँ अपनाना: सुनिश्चित करना कि उधार लिये गए धन का उपयोग उपभोग के बजाय उत्पादक निवेश, जैसे बुनियादी ढाँचा और विकास परियोजनाओं में हो, ताकि दीर्घकालिक आर्थिक लाभ प्राप्त हो सकें।
  • ऋण की अवधि बढ़ाना: दीर्घकालिक ऋण का चयन करना ताकि पुनर्भुगतान का बोझ लंबी अवधि में फैल सके और तत्काल वित्तीय दबाव कम हो सके।
  • राजकोषीय नीतियों को सुदृढ़ बनाना: मज़बूत राजकोषीय नीतियाँ लागू करें, जो घाटे को कम करने, मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने पर केंद्रित हों, ताकि बाहरी ऋण के जोखिम को कम किया जा सके।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: भारत में सार्वजनिक ऋण के सतत् प्रबंधन हेतु चुनौतियों का परीक्षण कीजिये तथा रणनीति प्रस्तावित कीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. भारत के विदेशी ऋण में कौन-सा घटक प्रमुख है?
अमेरिकी डॉलर में नामांकित ऋण का सबसे बड़ा हिस्सा है (53.8%), इसके बाद रुपये (30.6%), येन (6.6%) और यूरो (3.5%) का हैं।

2. भारत के विदेशी ऋण की स्थिरता को क्या सुनिश्चित करता है?
93% से अधिक विदेशी मुद्रा भंडार, दीर्घकालिक ऋण अवधि संरचना और मध्यम ऋण-से-जीडीपी अनुपात भारत के बाहरी ऋण की मज़बूती और सहनशीलता सुनिश्चित करते हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न    

प्रश्न: भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के संदर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सी उसकी प्रमुख विशेषता मानी जाती है? (2020)

(a) यह मूलतः किसी सूचीबद्ध कम्पनी में पूँजीगत साधनों द्वारा किया जाने वाला निवेश है।

(b) यह मुख्यतः ऋण सृजित न करने वाला पूँजी प्रवाह है।

(c) यह ऐसा निवेश है जिससे ऋण-समाशोधन अपेक्षित होता है।

(d) यह विदेशी संस्थागत निवेशकों द्वारा सरकारी प्रतिभूतियों में किया जाने वाला निवेश है।

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न 2. उदारीकरण के बाद की अवधि के दौरान बजट बनाने के संदर्भ में सार्वजनिक व्यय प्रबंधन भारत सरकार के लिये एक चुनौती है। स्पष्ट कीजिये। (2019)