निजी सदस्य विधेयक | 05 May 2025

प्रिलिम्स के लिये:

निजी सदस्य विधेयक, संसद सदस्य, दलबदल-रोधी कानून, शून्य काल, प्रश्न काल 

मेन्स के लिये:

भारतीय लोकतंत्र में निजी सदस्यों के विधेयकों की भूमिका और महत्त्व, संसद का विचार-विमर्शकारी निकाय के रूप में सुदृढ़ीकरण करने हेतु संस्थागत सुधार

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत के उपराष्ट्रपति ने निजी सदस्य विधेयकों (PMB) को भारत के लोकतंत्र के लिये "भविष्यगामी, प्रगतिशील और स्वर्ण खान" के रूप में निर्दिष्ट किया।

  • उनकी इस टिपण्णी से PMB की कम होती प्रासंगिकता पुनः चर्चा का विषय बन गया है, जिनकी संसद में अनदेखी जारी है जबकि इनमें वैयक्तिक विधायी पहल को बढ़ावा देने की पूर्ण क्षमता है।

निजी सदस्य विधेयक क्या हैं?

  • परिचय: PMB ऐसे सांसदों (MP) द्वारा प्रस्तुत विधायी प्रस्ताव हैं, जो मंत्री नहीं हैं (अर्थात, सरकार का हिस्सा नहीं हैं), जिससे उन्हें मुद्दे उठाने और अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण मामलों पर विधि अथवा संशोधन का सुझाव देने की सुविधा मिलती है। 
  • मुख्य विशेषताएँ: केवल गैर-सरकारी सांसद ही इन विधेयकों को प्रस्तुत कर सकते हैं, जिससे स्वतंत्र विधायी प्रस्तावों को अवसर मिलता है। 
    • सांसद भी विशिष्ट मामलों पर ध्यान आकर्षित करने के लिये प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकते हैं।
  • प्रक्रिया:
    • प्रारूपण और नोटिस: सांसद कम-से-कम एक माह के नोटिस पर विधेयक का प्रारूप तैयार कर इसको प्रस्तुत करते हैं। 
    • प्रस्तुतिकरण: संसद में विधेयक पेश किये जाते हैं, उसके बाद प्रारंभिक चर्चा होती है। 
    • बहस: यदि विधेयक का चयन कर लिया जाता है, तो सामान्यतः शुक्रवार अपराह्न के सीमित सत्रों में विधेयकों पर बहस की जाती है। 
    • निर्णय: विधेयक वापस लिये जा सकते हैं अथवा उन पर मतदान किया जा सकता है। 
  • PMB की संख्या में कमी: स्वतंत्रता पश्चात् से अभी तक केवल 14 PMB को दोनों सदनों द्वारा पारित किया गया है और राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हुई है। वर्ष 1970 के पश्चात् से कोई भी PMB दोनों सदनों द्वारा पारित नहीं हुआ है।
    • 17वीं लोकसभा (2019-2024) के दौरान, लोकसभा में 729 और राज्यसभा में 705 PMB पेश किये गए, लेकिन प्रत्येक सदन में क्रमशः केवल 2 और 14 पर ही चर्चा हुई।
    • 18वीं लोकसभा (मई 2025 तक) में 64 PMB पेश किये गए, लेकिन किसी पर चर्चा नहीं हुई। 82 में से 49 PMB राज्यसभा में पेश किये गए, जिनमें से केवल एक पर चर्चा हुई।

सरकारी विधेयक बनाम निजी सदस्य विधेयक

सरकारी विधेयक

निजी सदस्य विधेयक

इसे संसद में एक मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

यह मंत्री के अतिरिक्त किसी अन्य सांसद द्वारा प्रस्तुत किया जाता है।

यह सरकार की नीतियों को प्रदर्शित करता है।

यह विपक्ष की नीतियों को प्रदर्शित करता है।

संसद में इसके पारित होने की संभावना अधिक होती है।

संसद में इसके पारित होने के संभावना कम होती है।

संसद द्वारा सरकारी विधेयक अस्वीकृत होने पर सरकार को इस्तीफा देना पड़ सकता है।

इसके अस्वीकृत होने पर सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

सरकारी विधेयक को संसद में पेश होने के लिये सात दिनों का नोटिस होना चाहिये।

इस विधेयक को संसद में पेश करने के लिये एक महीने का नोटिस होना चाहिये

इसे संबंधित विभाग द्वारा विधि विभाग के परामर्श से तैयार किया जाता है।

इसे संबंधित सदस्य द्वारा तैयार किया जाता है।

भारत में निजी सदस्य विधेयक से विधायी लोकतंत्र का किस प्रकार सशक्तीकरण होता है?

  • स्वतंत्र विचार और विधायी नवाचार को बढ़ावा देना: PMB से सांसदों को, पार्टी की परवाह किये बिना, सरकार की कार्यसूची से बाहर के मुद्दों को उठाने की सुविधा मिलती है जिससे विधायी चर्चा में नवाचार को बढ़ावा मिलता है।
    • 'राइट टू डिस्कनेक्ट' विधेयक (2019) कर्मचारियों को कार्य समय के पश्चात् कार्य का समापन करने का विधिक अधिकार प्रदान करने हेतु पेश किया गया था। 
      • यद्यपि यह विधेयक पारित नहीं हुआ, लेकिन इससे कार्य-जीवन संतुलन और मानसिक स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय वार्ता शुरू हुई, तथा इससे यह स्पष्ट हुआ, किस प्रकार PMB से उन सामाजिक मुद्दों का समाधान किया जा सकता है, जिन्हें प्रायः सरकारी विधानों में अनदेखा कर दिया जाता है।
  • सामाजिक परिवर्तन को गति देना: 'ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकार' विधेयक (2014) 40 वर्षों में राज्यसभा में पारित किया गया पहला PMB था। 
  • शासन में सुधार: संसद द्वारा पारित पहला निजी सदस्य विधेयक मुस्लिम वक्फ विधेयक, 1952 था, जिसका उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के शासन और प्रशासन में सुधार करना था।
    • इसके परिणामस्वरूप वक्फ अधिनियम, 1954 अधिनियमित हुआ, जिसे बाद में वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 के रूप में संशोधित किया गया।
  • राष्ट्रीय बहस के उत्प्रेरक के रूप में PMB: वर्ष 1966 में, लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के उपरांत, एच.वी. कामथ ने संविधान में संशोधन करने के लिये PMB पेश किया, जिससे केवल लोकसभा सदस्य ही प्रधानमंत्री पद के लिये पात्र हो गए।
    • इस विधेयक से प्रधानमंत्री की भूमिका तथा लोकसभा और राज्यसभा में शक्ति संतुलन पर एक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक चर्चा शुरू हुई।

निजी सदस्यों के विधेयकों की प्रासंगिकता को कमज़ोर करने वाली चुनौतियाँ क्या हैं?

  • समय का अभाव: PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च के आँकड़ों से पता चलता है कि 17वीं लोकसभा ने बजट सत्र के लिये केवल 9.08 घंटे आवंटित किये, जबकि राज्यसभा ने 27.01 घंटे आवंटित किये, जो कुल सत्र के घंटों का एक छोटा सा अंश है।
    • शुक्रवार को निजी सदस्यों के कार्य निर्धारित होने से चर्चा सीमित हो जाती है, क्योंकि कई सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिये निकल जाते हैं और सत्र प्रायः व्यवधानों या अत्यावश्यक सरकारी कार्य के कारण बाधित हो जाता है।
    • इन विधेयकों की लोकप्रियता में गिरावट का कारण सांसदों की गंभीरता की कमी भी हो सकती है, क्योंकि कई सांसद चर्चाओं में भाग ही नहीं लेते हैं
  • संरचनात्मक बाधाएँ : समीक्षा समिति जैसे समर्पित संसदीय तंत्र की कमी से PMB, प्राथमिकता न मिलने एवं इस पर समय पर चर्चा न होने से विधायी अकुशलता उत्पन्न होती है।
    • दल-बदल विरोधी कानून (52वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1985) सांसदों की स्वतंत्रता को सीमित करता है जिससे सांसदों के लिये अपने दल के एजेंडे से अलग विधेयक प्रस्तुत करना कठिन हो जाता है।
  • विधायी रूपांतरण में कमी: बहुत कम PMB ही चर्चा या मतदान के चरण तक पहुँचते हैं, जिससे सांसदों के लिये इस प्रक्रिया में गंभीरता से शामिल होने का प्रोत्साहन कम हो जाता है।

भारत में निजी सदस्य विधेयक तंत्र को पुनः स्थापित करने के लिये कौन से सुधार किये जा सकते हैं?

  • PMB के लिये समय को आरक्षित करना: PMB के लिये शुक्रवार का दिन निर्धारित करने हेतु प्रक्रिया एवं कार्य संचालन नियमों में संशोधन किया जाए। इस विशेष समयावधि को केवल राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में ही परिवर्तित किया जा सके।
    • PMB पर उचित चर्चा और इसको पारित करने के क्रम में इसे प्रभावी बनाया जाए होने के लिये इस अनुसूची को लगातार लागू करें।
    • इसके अतिरिक्त, संसदीय कार्य के लिये आरक्षित समय का अतिक्रमण करने की बजाय, सरकार को संसदीय कार्य के घंटों को बढ़ाना चाहिये यहाँ तक ​​कि 1-2 घंटे का मामूली विस्तार भी संसदीय कार्य के घंटों पर चर्चा को सुनिश्चित करते हुए शून्यकाल और प्रश्नकाल की दक्षता को बढ़ा सकता है।
      • यह सुधार आगामी परिसीमन के मद्देनजर विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, जिससे सांसदों की संख्या में वृद्धि होने की उम्मीद है।
  • संस्थागत और परिचालन सुधार: संवैधानिक वैधता, सामाजिक प्रासंगिकता और द्विदलीय समर्थन के लिये प्रस्तावों की जाँच के क्रम में PMB समीक्षा समिति का गठन करना चाहिये।
    • पर्याप्त सार्वजनिक और संसदीय समर्थन के साथ उच्च प्रभाव वाले PMB के लिये एक फास्ट-ट्रैक प्रक्रिया होनी चाहिये
  • समय और प्रारूप में नवीनताएँ: सरकारी और निजी कार्य को अलग-अलग समायोजित करने के लिये संसदीय कार्य के समय को बढ़ाया जाना चाहिये।
    • ब्रिटेन के अनुरूप टेन मिनट रूल लागू किया जाना चाहिये, जिससे सांसदों को एक निश्चित समय के अंदर PMB और विरोधी विचारों को संक्षेप में प्रस्तुत करने की अनुमति मिल सके, जिससे दक्षता को बढ़ावा मिलेगा।
  • राजनीतिक सहभागिता को प्रोत्साहित करना: जागरूकता बढ़ाने के साथ सत्तारूढ़ व विपक्षी सांसदों को प्रोत्साहित करना चाहिये, कि वे निजी सदस्य विधेयकों (PMBs) को जनहित एवं जमीनी स्तर की आवाज़ उठाने के साधन के रूप में देखें। संसद टीवी, बुलेटिन और जनसुनवाइयों के माध्यम से इनकी दृश्यता बढ़ानी चाहिये।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: विधि निर्माण में सीमित सफलता के बावजूद, संसद में लोकतांत्रिक जीवंतता के लिये निजी सदस्यों के विधेयक महत्त्वपूर्ण हैं। चर्चा कीजिये 

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. भारत की संसद के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

  1. गैर-सरकारी विधेयक ऐसा विधेयक है जो संसद् के ऐसे सदस्य द्वारा प्रस्तुत किया जाता है जो निर्वाचित नहीं है किन्तु भारत के राष्ट्रपति द्वारा नामनिर्दिष्ट है।
  2.  हाल ही में, भारत की संसद के इतिहास में पहली बार एक गैर-सरकारी विधेयक पारित किया गया है। उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1, न ही 2

उत्तर: (d)

व्याख्या: 

  • कानून बनाने की प्रक्रिया संसद के किसी भी सदन में विधेयक पेश किये जाने से शुरू होती है। विधेयक को मंत्री या मंत्री के अलावा कोई अन्य सदस्य पेश कर सकता है। पहले मामले में इसे सरकारी विधेयक कहा जाता है और दूसरे मामले में इसे गैर-सरकारी सदस्य का विधेयक कहा जाता है।
  • दूसरे शब्दों में, एक गैर-सरकारी सदस्य का विधेयक किसी मंत्री के अलावा संसद के किसी भी सदस्य (निर्वाचित या मनोनीत) द्वारा पेश किया जा सकता है। इसे पेश करने से पहले एक महीने की नोटिस अवधि की आवश्यकता होती है। इसका मसौदा तैयार करना उस सदस्य की एकमात्र ज़िम्मेदारी है जो विधेयक पेश करता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • संसद द्वारा पारित पहला गैर-सरकारी विधेयक मुस्लिम वक्फ विधेयक, 1952 था, जिसका उद्देश्य वक्फों का बेहतर शासन और प्रशासन प्रदान करना था। इसे वर्ष 1954 में पारित किया गया था। अतः कथन 2 सही नहीं है। 
  • वर्ष 2015 में राज्य सभा द्वारा पारित ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2014 पिछले 45 वर्षों में राज्य सभा की स्वीकृति पाने वाला पहला गैर-सरकारी विधेयक बन गया। अतः विकल्प (d) सही उत्तर है।