अनुच्छेद 240 के तहत विनियमन और लद्दाख द्वारा छठी अनुसूची की मांग | 07 Jun 2025
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 240, छठी अनुसूची, अनुच्छेद 370, अनुच्छेद 371, स्वायत्त ज़िला परिषदें, अनुच्छेद 244(2), राज्यपाल, उच्च न्यायालय मेन्स के लिये:लद्दाख के लिये हाल ही में किये गए प्रशासनिक उपाय और उनके दोष, छठी अनुसूची की प्रमुख विशेषताओं तथा लद्दाख के शासन व्यस्था में सुधार के लिये आवश्यक, आगे की कार्रवाई की समीक्षा |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
रोज़गार आरक्षण, भाषाई मान्यता और लद्दाख वासियों की राजनीतिक प्रतिनिधित्व की लंबे समय से की जा रही मांगों को पूरा करने के लिये, केंद्र ने छठी अनुसूची का दर्जा न देकर अनुच्छेद 240 के तहत लद्दाख के लिये कुछ विनियम अधिसूचित किये हैं, जैसा कि व्यापक रूप से अनुरोध किया गया था।
नोट:
- अनुच्छेद 240 में राष्ट्रपति को कुछ संघ राज्य क्षेत्रों की शांति और सुशासन के लिये विनियम बनाने की शक्ति प्रदान की गई है, इन नियमों में संसद के अधिनियमों के समान बल होगा तथा विद्यमान विधियों या अधिनियमों को संशोधित या निरसित करने की शक्ति होगी।
लद्दाख के लोगों की मांगें क्या हैं और सरकार द्वारा क्या विनियम अधिसूचित किये गए हैं?
- प्रमुख मांगें: अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरसित करने और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के कार्यान्वयन के बाद, लद्दाख को बिना विधानमंडल के केंद्रशासित प्रदेश के रूप में नामित किया गया था।
- इसके प्रत्युत्तर में लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA) लद्दाख की भूमि, रोज़गार और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा के लिये उसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किये जाने की मांग करते आए हैं
- प्रमुख मांगों में शामिल है:
- संवैधानिक संरक्षण के लिये छठी अनुसूची के अंतर्गत शामिल किया जाना।
- राज्य में बाहर के व्यक्तियों के आगमन को रोकने के लिये भूमि स्वामित्व पर प्रतिबंध।
- प्रतिनिधि शासन के लिये विधानसभा।
- इन मांगों के विकल्प के रूप में, केंद्र सरकार ने क्षेत्र को अनुच्छेद 371 जैसी सुरक्षा प्रदान करने का प्रस्ताव किया।
- लद्दाख के लिये किये गए प्रमुख विनियम:
- अधिवास आधारित संरक्षण: पहली बार लद्दाख में सभी सरकारी नौकरियों के लिये अधिवास आधारित नौकरी आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
- अधिवास मानदंडों में लद्दाख में 15 वर्ष का निवास, 7 वर्ष की शिक्षा और कक्षा 10वीं या 12वीं उत्तीर्ण होना आदि शामिल हैं।
- आरक्षण का प्रावधान: लद्दाख में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और अन्य सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिये कुल आरक्षण 85% तक सीमित किया गया है, जबकि आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (EWS) के लिये 10% आरक्षण अपरिवर्तित रखा गया है।
- ये प्रावधान पेशेवर कॉलेजों तक भी विस्तृत किये गए हैं, जिससे स्थानीय स्तर पर चिकित्सा और इंजीनियरिंग शिक्षा तक पहुँच बढ़ेगी।
- स्थानीय भाषाओं का संरक्षण: कानून के तहत अंग्रेज़ी, हिंदी, उर्दू, भोटी और पुर्गी को लद्दाख की आधिकारिक भाषाओं के रूप में नामित किया गया है, साथ ही शिना, ब्रोक्सकट, बाल्टी और लद्दाखी को क्षेत्र की भाषाई एवं सांस्कृतिक विविधता के संरक्षण के लिये प्रोत्साहित किया गया है।
- महिलाओं के लिये प्रतिनिधित्व: लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (LAHDC) अधिनियम, 1997 में संशोधन किया गया है, जिसके तहत लेह और कारगिल की LAHDC में महिलाओं के लिये एक-तिहाई सीटें चक्रानुक्रम के माध्यम से आरक्षित की जाएँगी।
- अधिवास आधारित संरक्षण: पहली बार लद्दाख में सभी सरकारी नौकरियों के लिये अधिवास आधारित नौकरी आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
लद्दाख के लोग संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत विशेष दर्जे की मांग क्यों कर रहे हैं?
- संवैधानिक सुरक्षा: छठी अनुसूची के दर्जे की मांग इसलिये की जा रही है क्योंकि अनुच्छेद 240 के तहत जारी नियमों को केंद्र एकतरफा रूप से रद्द या संशोधित कर सकता है, जबकि छठी अनुसूची संवैधानिक रूप से संरक्षित है, जो स्थानीय शासन के लिये अधिक स्वायत्तता और सुरक्षा सुनिश्चित करती है।
- भूमि अधिकारों के संरक्षण: छठी अनुसूची का दर्जा इसलिये आवश्यक है ताकि लद्दाख में गैर-स्थानीय लोगों द्वारा भूमि खरीदने पर प्रतिबंध लगाया जा सके, क्योंकि यहाँ का नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र अनियंत्रित पर्यटन और अवसंरचना विकास से खतरे में है।
- 97% से अधिक जनजातीय जनसंख्या अपनी सांस्कृतिक और आर्थिक जीविका के लिये भूमि पर निर्भर है, इसलिये भूमि अधिकारों की सुरक्षा अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- विधायी स्वायत्तता: छठी अनुसूची दर्जा स्वायत्त ज़िला परिषदों (ADC) के लिये प्रावधान करता है, जो भूमि, वन, जल संसाधन, परंपरागत कानूनों और शिक्षा पर कानून बना सकती हैं।
- LAHDC प्रशासनिक संस्थान बने हुए हैं जो मुख्य निर्णयों के लिये केंद्र पर निर्भर हैं, जिससे वास्तविक स्वशासन सीमित होता है।
- प्रतीकात्मक सांस्कृतिक मान्यता: छठी अनुसूची का दर्जा आदिवासी भाषाओं जैसे- भोटी, पुर्गी और अन्य स्वदेशी भाषाओं को संरक्षित करने के लिये आवश्यक है, क्योंकि यह स्थानीय भाषाओं में शिक्षा तथा आधिकारिक संचार में लद्दाखी बोलियों के उपयोग को सुनिश्चित करती है।
- छठी अनुसूची के तहत ADC को प्राथमिक शिक्षा और सांस्कृतिक संरक्षण पर संवैधानिक अधिकार प्राप्त है।
भारतीय संविधान की छठी अनुसूची क्या है?
- परिचय: संविधान की छठी अनुसूची (धारा 244(2)) के तहत चार पूर्वोत्तर राज्यों — असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम — के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन की व्यवस्था की गई है, जहाँ जनजातियाँ अपने पारंपरिक रीति-रिवाज़ों को अधिकांशतः संरक्षित किये हुए हैं, जो भारत के अन्य जनजातीय क्षेत्रों से भिन्न है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- स्वायत्त ज़िले और क्षेत्र: जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया जाता है, जो संबंधित राज्य की कार्यपालिका के अधीन रहते हैं।
- राज्यपाल को स्वायत्त ज़िलों के गठन, पुनर्गठन, सीमाओं के निर्धारण तथा यदि एक से अधिक जनजातियाँ निवास करती हैं, तो उन्हें स्वायत्त क्षेत्रों में विभाजित करने का अधिकार है।
- स्वायत्त ज़िला और क्षेत्रीय परिषद: राज्यपाल इन चार राज्यों में स्वायत्त ज़िला परिषदें (ADC) और स्वायत्त क्षेत्रीय परिषदें (ARC) गठित कर सकते हैं।
- प्रत्येक स्वायत्त ज़िले में 30 सदस्यों की ज़िला परिषद होती है जिनमें से 26 सदस्य वयस्क मताधिकार द्वारा चुने जाते हैं और 4 सदस्यों को राज्यपाल नामित करते हैं। वर्तमान में ऐसी 10 स्वायत्त ज़िला परिषदें हैं।
- स्वायत्त क्षेत्रों की अपनी अलग क्षेत्रीय परिषद होती है।
- इन परिषदों का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, जब तक कि उन्हें पहले भंग न कर दिया जाए।
- विधायी शक्तियाँ: ADC और ARC भूमि, वन, जल, झूम कृषि, ग्राम प्रशासन, विवाह, उत्तराधिकार तथा सामाजिक परंपराओं जैसे विषयों पर कानून बना सकते हैं, बशर्ते राज्यपाल की स्वीकृति प्राप्त हो।
- न्यायिक शक्तियाँ: परिषदें जनजातीय विवादों के निपटारे हेतु ग्राम परिषदों या न्यायालयों का गठन कर सकती हैं और अपीलों की सुनवाई कर सकती हैं।
- इन मामलों पर उच्च न्यायालय का अधिकार क्षेत्र राज्यपाल द्वारा निर्धारित किया जाता है।
- प्रशासनिक शक्तियाँ: परिषदें प्राथमिक विद्यालयों, औषधालयों, बाज़ारों, सड़कों, नौका घाटों, मत्स्य पालन आदि का प्रबंधन कर सकती हैं। वे राज्यपाल की अनुमति से गैर-जनजातियों द्वारा ऋण देने और व्यापार करने को भी नियंत्रित कर सकती हैं।
- वे भूमि राजस्व का आकलन और संग्रह कर सकती हैं तथा कर भी लगा सकती हैं।
- राज्य और केंद्रीय कानूनों से स्वायत्तता: संसद या राज्य विधानमंडल के अधिनियम स्वायत्त ज़िलों और क्षेत्रों पर लागू नहीं होते या केवल संशोधनों के साथ लागू होते हैं।
- राज्यपाल का पर्यवेक्षण: राज्यपाल प्रशासन की समीक्षा के लिये आयोग नियुक्त कर सकते हैं और आवश्यकता होने पर परिषदों को भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं।
- स्वायत्त ज़िले और क्षेत्र: जनजातीय क्षेत्रों को स्वायत्त ज़िलों के रूप में गठित किया जाता है, जो संबंधित राज्य की कार्यपालिका के अधीन रहते हैं।
लद्दाख की विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- संवैधानिक सुरक्षा: यदि छठी अनुसूची में शामिल करना व्यावहारिक नहीं हो, तो लद्दाख की जनसांख्यिकीय पहचान की रक्षा करने और निर्वाचित निकायों को सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा छठी अनुसूची के तहत एक अनुकूलित ढाँचा अधिनियमित किया जा सकता है।
- वैकल्पिक रूप से, लद्दाख की भू-राजनीतिक और पारिस्थितिक संवेदनशीलता को देखते हुए छठी अनुसूची में संशोधन कर उसमें विशिष्ट प्रावधान शामिल किये जा सकते हैं।
- भूमि संबंधी सुरक्षा: जम्मू-कश्मीर, सिक्किम या हिमाचल प्रदेश जैसे भूमि स्वामित्व प्रतिबंध बाह्य अधिग्रहण को रोकने, पारंपरिक आजीविका की रक्षा करने और लद्दाख के नाज़ुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने के लिये आवश्यक हैं।
- स्थानीय निवासियों को भूमि हस्तांतरण को सीमित करने हेतु एक विशेष भूमि विनियमन कानून बनाया जाना चाहिये, जिसमें गैर-निवासियों द्वारा खरीद के लिये सरकार की स्वीकृति अनिवार्य होनी चाहिये।
- LAHDC को सुदृढ़ करना: LAHDC को छठी अनुसूची के तहत ADC के समान विधायी शक्तियाँ प्रदान की जानी चाहिये, जिससे वे भूमि, जल, वन, शिक्षा और संस्कृति पर कानून बनाने में सक्षम हो सकें।
- स्थानीय संसाधनों जैसे पर्यटन राजस्व और खनन रॉयल्टी के प्रबंधन, स्वशासन को सुदृढ़ करने एवं क्षेत्रीय विकास के लिये वित्तीय स्वायत्तता दी जानी चाहिये।
- पर्यावरण और पर्यटन विनियमन: पारिस्थितिकी पर्यटन नीतियों, वहन क्षमता सीमाओं और पर्यावरणीय प्रभाव आकलन को लागू करना, साथ ही समुदाय-नेतृत्व वाले संरक्षण को बढ़ावा देना एवं पारिस्थितिकी रूप से संवेदनशील क्षेत्रों में वाणिज्यिक निर्माण को प्रतिबंधित करना।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 240 के तहत लद्दाख के नए नियम नौकरियों में आरक्षण और भाषा को मान्यता देते हैं, लेकिन छठी अनुसूची के संरक्षण से कम हैं। भूमि अधिकार और विधायी स्वायत्तता जैसे मुद्दे अभी भी अनसुलझे हैं। इस रणनीतिक क्षेत्र में विकास, जनजातीय अधिकारों और पारिस्थितिक स्थिरता के बीच संतुलन बनाने के लिये एक विशेष संवैधानिक सुरक्षा, भूमि स्वामित्व पर प्रतिबंध तथा सशक्त लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (LAHDC) आवश्यक हैं।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के महत्त्व की जाँच कीजिये और हाल की मांगों तथा नियमों के संदर्भ में लद्दाख में इसकी प्रयोज्यता का मूल्यांकन कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारतीय संविधान के निम्नलिखित में से कौन-से प्रावधान शिक्षा पर प्रभाव डालते हैं? (2012)
नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर चुनिये: (a)केवल 1 और 2 उत्तर: (d) प्रश्न. भारत के संविधान की किस अनुसूची के तहत खनन के लिये निजी पार्टियों को आदिवासी भूमि के हस्तांतरण को शून्य और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019) (a) तीसरी अनुसूची उत्तर: (b) प्रश्न. सरकार ने अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (PESA) अधिनियम को 1996 में अधिनियमित किया। निम्नलिखित में से कौन-सा एक उसके उद्देश्य के रूप में अभिज्ञात नहीं है? (2013) (a) स्वशासन प्रदान करना उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. भारत में आदिवासियों को 'अनुसूचित जनजाति' क्यों कहा जाता है? उनके उत्थान के लिये भारत के संविधान में निहित प्रमुख प्रावधानों को इंगित कीजिये। (2016) |