परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम, | 17 Jun 2025
प्रिलिम्स के लिये:परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम, 2010 (CLNDA 2010), पूरक क्षतिपूर्ति अभिसमय (CSC, 1997), अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA), स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR), परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB)। मेन्स के लिये:भारत के परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम, 2010 के प्रावधान, चुनौतियाँ और सुधार की आवश्यकता, CLNDA 2010 में सुधार के लिये आवश्यक कदम। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
भारत, परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम, 2010 (CLNDA 2010) को सरल बनाने पर विचार कर रहा है ताकि आपूर्तिकर्त्ताओं पर दुर्घटना से संबंधित दंडात्मक दायित्व को कम किया जा सके। यह कदम विशेष रूप से विदेशी कंपनियों की असीमित दायित्व संबंधी चिंताओं को संबोधित करने के उद्देश्य से उठाया जा रहा है। इसका उद्देश्य रुकी हुई परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं को पुनर्जीवित करना और भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को आगे बढ़ाना है।
परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम, 2010 क्या है?
- परिचय: परमाणुवीय नुकसान के लिये सिविल दायित्व अधिनियम (CLNDA), 2010 भारत का परमाणु दायित्व कानून है, जिसका उद्देश्य पीड़ितों को मुआवज़ा सुनिश्चित कराना और परमाणु दुर्घटनाओं के लिये ज़िम्मेदारी परिभाषित करना है।
- यह अधिनियम पूरक क्षतिपूर्ति अभिसमय (CSC, 1997) के अनुरूप है, जिसे चेर्नोबिल दुर्घटना के पश्चात वैश्विक न्यूनतम मुआवज़ा मानकों को निर्धारित करने हेतु अपनाया गया था; भारत ने वर्ष 2016 में CSC की पुष्टि की थी।
- यह अधिनियम वियना अभिसमय 1963, पेरिस अभिसमय 1960, और ब्रुसेल्स पूरक अभिसमय 1963 में निहित परमाणु दायित्व के सिद्धांतों का अनुपालन करता है।
- यह अधिनियम परिचालकों पर कठोर, दोषरहित दायित्व (strict, no-fault liability) लागू करता है तथा परिचालक की दायित्व सीमा ₹1,500 करोड़ तक सीमित करता है।
- यदि हानि के दावों की राशि ₹1,500 करोड़ से अधिक हो जाती है, तो CLNDA सरकार से हस्तक्षेप की अपेक्षा करता है।
- सरकार की देनदारी की अधिकतम सीमा 300 मिलियन विशेष आहरण अधिकार (SDR) के समतुल्य रुपए तक निर्धारित है, जो लगभग ₹2,100 से ₹2,300 करोड़ के बीच है।
- यह अधिनियम न्यायसंगत मुआवज़ा सुनिश्चित करने और विवादों का समाधान करने हेतु एक "न्यूक्लियर डैमेज क्लेम्स कमीशन" की स्थापना भी करता है।
- यह अधिनियम पूरक क्षतिपूर्ति अभिसमय (CSC, 1997) के अनुरूप है, जिसे चेर्नोबिल दुर्घटना के पश्चात वैश्विक न्यूनतम मुआवज़ा मानकों को निर्धारित करने हेतु अपनाया गया था; भारत ने वर्ष 2016 में CSC की पुष्टि की थी।
- आपूर्तिकर्त्ता दायित्व: भारत का CLNDA अद्वितीय है, क्योंकि यह धारा 17(b) के तहत आपूर्तिकर्त्ता की देनदारी का प्रावधान करता है, जिससे संचालक (ऑपरेटर) आपूर्तिकर्त्ता के विरुद्ध प्रतिपूर्ति की मांग कर सकते हैं। यह प्रावधान वैश्विक ढाँचों, जैसे कि CSC, से भिन्न है, जो केवल ऑपरेटर पर ही दायित्व डालते हैं।
- CSC के विपरीत, जो केवल अनुबंध के उल्लंघन या जानबूझकर की गई कार्यवाहियों के मामलों में प्रतिपूर्ति की अनुमति देता है, CLNDA आपूर्तिकर्त्ता की जवाबदेही को व्यापक बनाता है। यह उन मामलों को भी शामिल करता है जहाँ कोई परमाणु दुर्घटना आपूर्तिकर्त्ता या उसके कर्मचारी द्वारा किये गए कार्य के कारण होती है—जैसे कि दोषपूर्ण उपकरण, सामग्री या निम्न गुणवत्ता की सेवाओं की आपूर्ति।
परमाणुवीय नुकसान पूरक क्षतिपूर्ति अभिसमय (CSC), 1997 क्या है?
- परमाणुवीय नुकसान पूरक क्षतिपूर्ति अभिसमय (CSC) एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जिसे वर्ष 1997 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के तहत स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य परमाणु क्षति के लिये एक वैश्विक दायित्व तंत्र बनाना है।
- यह किसी बड़ी परमाणु दुर्घटना की स्थिति में अतिरिक्त धनराशि उपलब्ध कराकर मौजूदा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुआवजा तंत्र को अनुपूरित करता है।
- सदस्यता के लिये पात्रता:
- मुख्य पात्रता मानदंड: CSC उन सभी IAEA सदस्य देशों के लिये खुला है, जो या तो परमाणुवीय नुकसान के लिये वियना सम्मेलन (1963) या परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में तृतीय पक्ष दायित्व के लिये पेरिस सम्मेलन (1960) के पक्षकार हैं।
- विशेष मामला (गैर-पक्ष राज्य): कोई भी देश जो वियना या पेरिस सम्मेलनों का पक्षकार नहीं है (जैसे भारत), वह CSC (Convention on Supplementary Compensation for Nuclear Damage) में शामिल हो सकता है, यदि उसके राष्ट्रीय परमाणु दायित्व कानून CSC के सिद्धांतों के अनुरूप हों और वह अनुमोदन के समय इसका पालन करने की घोषणा कीजिये।
- भारत की CSC में भागीदारी: भारत ने अपने न्यूक्लियर क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 (CLND Act, 2010) के आधार पर 2010 में CSC पर हस्ताक्षर किये तथा वर्ष 2016 में इसे अनुमोदित कर एक राज्य पक्ष बन गया, हालाँकि वह वियना या पेरिस सम्मेलनों का हिस्सा नहीं है।
परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 के संबंध में प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?
- आपूर्तिकर्ता दायित्व से जुड़ी चिंताएँ: विदेशी और घरेलू आपूर्तिकर्ता असीमित दायित्व की आशंका से चिंतित हैं, जिसका कारण बीमा नियमों की अस्पष्टता, "न्यूक्लियर डैमेज" की अस्पष्ट परिभाषा, और CLNDA की धारा 46 के अंतर्गत दीवानी मुकदमों का जोखिम है।
- हालाँकि सरकार CSC के अनुरूप होने का दावा करती है, विशेषज्ञों का मानना है कि धारा 17(b) अब भी आपूर्तिकर्त्ताओं को दोषपूर्ण उपकरण या जानबूझकर की गई गलतियों के लिये मुकदमों के दायरे में लाती है, जिससे दायित्व को लेकर चिंताएँ और बढ़ जाती हैं।
- भारत के परमाणु क्षेत्र में विदेशी निवेश को हतोत्साहित करना: भारत के परमाणु दायित्व कानूनों को शुरू में अमेरिका जैसे देशों के साथ परमाणु समझौतों के कार्यान्वयन में बाधा के रूप में देखा गया था।
- आलोचकों का तर्क है कि दायित्व से जुड़ी धाराएँ और प्रतिबंध विदेशी निवेश और परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग को रोक सकते हैं, खासकर जब CSC जैसे अंतरराष्ट्रीय ढाँचे की तुलना में देखा जाए, जिसमें अधिक व्यापक प्रावधान हैं।
- भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों के लिए चुनौतियाँ: CLNDA 2010 की दायित्व संबंधी धाराओं ने निवेशकों के विश्वास को प्रभावित किया है, अनिश्चितता उत्पन्न की है तथा भारत में परमाणु ऊर्जा की वृद्धि को धीमा कर दिया है, जो वर्ष 2030 तक 500 GW गैर-जीवाश्म ईंधन लक्ष्य के लिये बेहद आवश्यक है।
- कुल विद्युत उत्पादन में परमाणु ऊर्जा का योगदान मात्र 3% होने के कारण, जैतापुर (9.6 गीगावाट) जैसी परियोजनाओं में देरी के कारण डीकार्बोनाइजेशन प्रयासों में बाधा आ रही है ।
परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व (CLND) अधिनियम, 2010 को संशोधित करने के लिए क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?
- विधायी सुधार: धारा 17(B) में संशोधन करके आपूर्तिकर्त्ता की देयता को जानबूझकर गलत कार्य या घोर लापरवाही के मामलों तक सीमित किया जाना चाहिये, ताकि इसे अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के साथ और अधिक निकटता से जोड़ा जा सके। इससे असीमित देयता पर चिंताओं को कम करने और विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं को परमाणु क्षेत्र में भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करने में मदद मिलेगी।
- इसके अलावा, निजी क्षेत्र की भागीदारी को सक्षम करने के लिये परमाणु ऊर्जा अधिनियम में संशोधन (विशेष रूप से लघु मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMR) में) किया जाना चाहिये।
- वित्तीय सुरक्षा उपाय: और आपूर्तिकर्त्ता दायित्व संबंधी चिंताओं के समाधान के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय बीमा संघ का निर्माण करना।
- इसके अतिरिक्त, करदाताओं पर बोझ कम करने के लिये परमाणु जोखिम-साझाकरण निधि जैसे वैकल्पिक वित्तपोषण मॉडल का पता लगाना।
- कूटनीतिक एवं द्विपक्षीय समाधान: भारत प्रमुख साझेदारों (अमेरिका, फ्राँस, जापान) के साथ अंतर-सरकारी समझौतों (IGA) पर हस्ताक्षर कर सकता है, ताकि देयता शर्तों को स्पष्ट किया जा सके और सीमा पार दावों के लिये विवाद समाधान तंत्र स्थापित किया जा सके, साथ ही जैतापुर एवं कोव्वाडा जैसी रुकी हुई परियोजनाओं को पुनर्जीवित करने के लिये कूटनीतिक आश्वासन का उपयोग किया जा सके।
- नियामक एवं सुरक्षा ढाँचे को मज़बूत बनाना: परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड (AERB) जैसे स्वतंत्र नियामक निकायों की भूमिका को मज़बूत बनाना ताकि परमाणु सुरक्षा, संचालन और मानकों के पालन की कठोर निगरानी सुनिश्चित की जा सके तथा कड़े सुरक्षा मानकों को सुनिश्चित करने हेतु सभी परमाणु संयंत्रों के लिये तीसरे पक्ष द्वारा सुरक्षा ऑडिट अनिवार्य किया जा सके।
- परमाणु ऊर्जा में जनता का विश्वास बढ़ाने के लिये परमाणु आपदा प्रतिक्रिया प्रोटोकॉल को तीव्र गति से लागू किया जाए।
- निवेश को प्रोत्साहित करने के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करना: परमाणु ऊर्जा निवेश को बढ़ावा देने के लिये कर में रियायतें और सब्सिडी दी जाएँ, साथ ही जोखिम न्यूनीकरण उपाय अपनाए जाएँ ताकि निजी भागीदारी बढ़े और भारत में परमाणु ऊर्जा का विकास तीव्र हो सके।
- बीमा और जोखिम प्रबंधन की लागत निवेश में बाधा न बने, इसके लिये परमाणु ऊर्जा परियोजनाओं हेतु कम ब्याज दर पर ऋण या अनुदान देने पर विचार किया जाए।
भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र की स्थिति:
- वर्ष 2047 तक इसे 7.5 गीगावाट से बढ़ाकर 100 गीगावाट करने की योजना है, जिससे वर्ष 2050 तक कुल विद्युत उत्पादन का 25% परमाणु ऊर्जा से प्राप्त किया जा सके।
- कलपक्कम में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर जैसे प्रमुख विकास कार्य भारत की बढ़ती परमाणु क्षमता को दर्शाते हैं। 2025-26 के बजट में स्माल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) के लिये ₹20,000 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है और वर्ष 2033 तक पाँच स्वदेशी रूप से डिज़ाइन किये गए SMR की योजना है।
- भारत में वर्तमान में 22 चालू परमाणु रिएक्टर हैं, जिन्हें NPCIL (न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड) संचालित करता है। एक दर्जन से अधिक नए प्रोजेक्ट्स की योजना है, लेकिन जैतापुर (फ्राँस की EDF कंपनी) और कोव्वाडा (अमेरिकी कंपनियों) जैसे प्रमुख प्रोजेक्ट्स देरी का सामना कर रहे हैं, मुख्यतः दायित्व से जुड़ी चिंताओं के कारण।
निष्कर्ष
अब समय आ गया है कि भारत को परमाणु क्षति के लिये नागरिक उत्तरदायित्व अधिनियम, 2010 में सुधार करना चाहिये ताकि इसे वैश्विक परमाणु उत्तरदायित्व मानकों के अनुरूप बनाया जा सके। इससे आपूर्तिकर्त्ताओं की चिंताओं को कम किया जा सकेगा, साथ ही पीड़ितों को उचित मुआवजा सुनिश्चित किया जा सकेगा। बीमा पूलों का विस्तार करके और द्विपक्षीय समझौतों को मज़बूत करके, भारत रुके हुए परमाणु परियोजनाओं को पुनर्जीवित कर सकता है, विदेशी निवेश आकर्षित कर सकता है, तथा बिना सुरक्षा या जवाबदेही से समझौता किये अपने स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को आगे बढ़ा सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत के परमाणु क्षति के लिये नागरिक दायित्व अधिनियम, 2010 में सुधार की आवश्यकता की जाँच कीजिये। भारत अपने परमाणु ऊर्जा विस्तार लक्ष्यों के साथ आपूर्तिकर्त्ता दायित्व चिंताओं को कैसे संतुलित कर सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सनिम्नलिखित कथनों पर विचार करें: (2017)
उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. भारत में, क्यों कुछ परमाणु रिएक्टर “IAEA सुरक्षा उपायों” के अधीन रखे जाते हैं जबकि अन्य इस सुरक्षा के अधीन नहीं रखे जाते? (2020) (a) कुछ यूरेनियम का प्रयोग करते हैं और अन्य थोरियम का उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. ऊर्जा की बढ़ती हुई ज़रूरतों के परिप्रेक्ष में क्या भारत को अपने नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम का विस्तार करना जारी रखना चाहिये? नाभिकीय ऊर्जा से संबंधित तथ्यों और भयों की विवेचना कीजिये। (2018) प्रश्न. भारत में नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी की संवृद्धि और विकास का विवरण प्रस्तुत कीजिये। भारत में तीव्र प्रजनक रियेक्टर कार्यक्रम का क्या लाभ है ? (2017) |