रेड-इयर्ड स्लाइडर कछुआ | 17 May 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में हेपेटोलॉजिस्टों (Herpetologists) ने कहा है कि आक्रामक रेड-इयर्ड स्लाइडर कछुआ (Red-Eared Slider Turtle) भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में जल निकायों की जैव विविधता के लिये एक बड़ा खतरा बन सकता है।

  • भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र देश में कछुओं और कछुओं की 72% से अधिक प्रजातियों का घर है।

Red-Eared-Slider-Turtle

प्रमुख बिंदु

रेड-इयर्ड स्लाइडर कछुआ के विषय में:

  • वैज्ञानिक नाम: ट्रेकेमीस स्क्रिप्टा एलिगेंस (Trachemys Sscripta Elegans)
  • पर्यावास: अमेरिका और उत्तरी मेक्सिको
  • विवरण: इस कछुए का नाम उसके कानों के समीप पाई जाने वाली लाल धारियों तथा किसी भी सतह से पानी में जल्दी से सरक जाने की इसकी क्षमता की वजह से रखा गया है।
  • लोकप्रिय पालतू जानवर: यह कछुआ अपने छोटे आकार, आसान रखरखाव और अपेक्षाकृत कम लागत के कारण अत्यंत लोकप्रिय पालतू जानवर है।

चिंता का कारण:

  • आक्रामक प्रजातियाँ: चूँकि यह एक आक्रामक प्रजाति है, इसलिये यह तेज़ी से वृद्धि करती है और मूल प्रजातियों के खाने को खा जाती है, जिससे उन क्षेत्रों तथा प्रजातियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जहाँ ये वृद्धि व विकास करते हैं।
  • कैच-22 स्थिति: जो लोग कछुए को पालतू जानवर के रूप में रखते हैं, वे कछुए के संरक्षण के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं, लेकिन इन कछुओं के बड़े हो जाने पर इन्हें घर पर बने एक्वेरियम, टैंक या पूल से निकालकर प्राकृतिक जल निकायों में छोड़कर स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल देते हैं।
  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव: ये प्रजातियाँ अपने ऊतकों में विषाक्त पदार्थों को जमा कर सकती हैं। अतः इन्हें भोजन के रूप में खाने पर  मानव स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है।

भारत की आक्रामक प्रजातियाँ

आक्रामक प्रजातियों पर अंतर्राष्ट्रीय कार्यक्रम

जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल, 2000:

  • इस प्रोटोकॉल का उद्देश्य आधुनिक जैव प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप संशोधित जीवों द्वारा उत्पन्न संभावित जोखिमों से जैव विविधता की रक्षा करना है।

जैविक विविधता पर सम्मलेन:

  • यह रियो डी जनेरियो में वर्ष 1992 के पृथ्वी शिखर सम्मेलन (Earth Summit) में अपनाए गए प्रमुख समझौतों में से एक था।
  • इस सम्मेलन का अनुच्छेद 8 (h) उन विदेशी प्रजातियों का नियंत्रण या उन्मूलन करता है जो प्रजातियों के पारिस्थितिकी तंत्र, निवास स्थान आदि के लिये खतरनाक हैं।

प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर कन्वेंशन (CMS) या बॉन कन्वेंशन, 1979:

  • यह एक अंतर-सरकारी संधि है जिसका उद्देश्य स्थलीय, समुद्री और एवियन प्रवासी प्रजातियों को संरक्षित करना है।
  • इसका उद्देश्य पहले से मौजूद आक्रामक विदेशी प्रजातियों को नियंत्रित करना या खत्म करना भी है।

CITES (वन्यजीव और वनस्पति की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन):

  • यह वर्ष 1975 में अपनाया गया एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका उद्देश्य वन्यजीवों और पौधों के प्रतिरूप को किसी भी प्रकार के खतरे से बचाना है तथा इनके अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को रोकना है।
  • यह आक्रामक प्रजातियों से संबंधित उन समस्याओं पर भी विचार करता है जो जानवरों या पौधों के अस्तित्व के लिये खतरा उत्पन्न करती हैं।

रामसर कन्वेंशन, 1971:

  • यह कन्वेंशन अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व के वेटलैंड्स के संरक्षण और स्थायी उपयोग के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
  • यह अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर आर्द्र-भूमि पर आक्रामक प्रजातियों के पर्यावरणीय, आर्थिक और सामाजिक प्रभाव को भी संबोधित करता है तथा उनसे निपटने के लिये नियंत्रण और समाधान के तरीकों को भी खोजता है।

स्रोत: द हिंदू