परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं के विरुद्ध हमलों का निषेध: भारत-पाकिस्तान | 03 Jan 2022

प्रिलिम्स के लिये:

परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं के विरुद्ध हमलों के निषेध पर समझौता

मेन्स के लिये:

परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं के विरुद्ध हमलों के निषेध पर समझौता, इसका महत्त्व और आवश्यकता, भारत-पाकिस्तान संबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और पाकिस्तान ने अपने परमाणु प्रतिष्ठानों की सूची का आदान-प्रदान किया है।

  • यह आदान-प्रदान पाकिस्तान और भारत के बीच परमाणु प्रतिष्ठानों तथा सुविधाओं के खिलाफ हमलों के निषेध पर समझौते के अनुच्छेद- II के अनुसार था।
  • दोनों देशों ने मई 2008 में हस्ताक्षरित कांसुलर एक्सेस समझौते के प्रावधानों के तहत एक-दूसरे की जेलों में बंद कैदियों की सूची का आदान-प्रदान भी किया था।
    • इस समझौते के तहत दोनों देशों को हर वर्ष 1 जनवरी और 1 जुलाई को व्यापक सूचियों का आदान-प्रदान करना चाहिये।

प्रमुख बिंदु:

  • परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं के खिलाफ हमलों का निषेध:
    • परिचय:
      • इस समझौते के तहत दोनों देशों को एक दूसरे की परमाणु सुविधाओं की जानकारी देनी होगी।
      • समझौते पर वर्ष 1988 में हस्ताक्षर किये गए और वर्ष 1991 में इसकी पुष्टि की गई।
      • यह दोनों पड़ोसी देशों के बीच सूची का लगातार 31वाँ आदान-प्रदान था।
    • कवरेज:
      • परमाणु ऊर्जा और अनुसंधान रिएक्टर, ईंधन निर्माण, यूरेनियम संवर्द्धन, आइसोटोप पृथक्करण तथा पुनर्संसाधन सुविधाओं के साथ-साथ किसी भी रूप में विकिरणित परमाणु ईंधन एवं सामग्री के साथ कोई अन्य प्रतिष्ठान व महत्त्वपूर्ण मात्रा में रेडियोधर्मी सामग्री का भंडारण करने वाले प्रतिष्ठान आदि सभी को “परमाणु प्रतिष्ठानों और सुविधाओं” के तहत शामिल किया गया है।
  • समझौते का महत्त्व:
    • इज़रायल द्वारा वर्ष 1981 में बगदाद के निकट इराक के ओसीराक रिएक्टर पर बमबारी के संदर्भ में समझौते की आवश्यकता महसूस की गई थी। इज़रायली लड़ाकू विमानों द्वारा शत्रुतापूर्ण हवाई क्षेत्र पर किये गए हमले ने इराक के परमाणु हथियार कार्यक्रम को महत्त्वपूर्ण रूप से निर्धारित किया था।
    • यह समझौता पाकिस्तान के संदर्भ में भी आया था।
      • इस्लामाबाद को वर्ष 1972 की उस हार की याद ने झकझोर दिया है जिसने देश को खंडित कर दिया था और भारत में सैन्य विकास जैसे कि वर्ष 1987 में ऑपरेशन ब्रासस्टैक्स, जो आक्रामक क्षमताओं हेतु तैयार करने के लिये एक युद्ध अभ्यास था। पाकिस्तान ने उस समय अपने परमाणु प्रतिष्ठानों और संपत्तियों को 'हाई अलर्ट' पर रखकर जवाब दिया था।

भारत-पाकिस्तान संबंध के वर्तमान मुद्दे

  • सीमा पार आतंकवाद:
    • पाकिस्तान के नियंत्रण वाले क्षेत्रों से उत्पन्न होने वाला आतंकवाद द्विपक्षीय संबंधों के लिये एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है।
    • भारत ने लगातार भारत के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद को समाप्त करने के लिये पाकिस्तान को विश्वसनीय, अपरिवर्तनीय और सत्यापन योग्य कार्रवाई करने की आवश्यकता पर बल दिया है।
  • सिंधु जल समझौता:
    • पाकिस्तान के सीमा पार आतंकवाद की प्रतिक्रिया के रूप में सिंधु जल संधि को निरस्त करने के लिये भारत में समय-समय पर हंगामा होता रहता है।
      • यह विश्व बैंक के माध्यम से संपन्न कराई एक संधि है, जो यह प्रशासित करती है कि सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी का उपयोग कैसे किया जाएगा जो कि दोनों देशों में बहती हैं।
  • सियाचिन ग्लेशियर
    • सियाचिन को दुनिया का सबसे ऊँचा और सबसे घातक युद्धक्षेत्र माना जाता है।
    • दशकों के सैन्य अभियानों ने ग्लेशियर और आसपास के वातावरण को नुकसान पहुँचाया है।
    • लेकिन भारत-पाक संबंधों की जटिल प्रकृति और दोनों देशों के बीच अविश्वास के कारण इस मामले पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ है।
  • सरक्रीक:
    • यह कच्छ दलदली भूमि के रण में भारत और पाकिस्तान के बीच विवादित पानी की 96 किमी. लंबी पट्टी है।
    • विवाद कच्छ और सिंध के बीच समुद्री सीमा रेखा की व्याख्या में निहित है।
      • पाकिस्तान मुहानों के पूर्वी किनारे का अनुसरण करने के लिये रेखा का दावा करता है, जबकि भारत एक केंद्र रेखा का दावा करता है (सिंध की तत्कालीन सरकार और कच्छ के राव महाराज के बीच हस्ताक्षरित 1914 के बॉम्बे सरकार के प्रस्ताव के अनुच्छेद 9 और 10 की अलग-अलग व्याख्या)।
  • जम्मू और कश्मीर का पुनर्गठन:
    • इसने कश्मीर-केंद्रित पाकिस्तान में भी संकट पैदा कर दिया क्योंकि एक ही बार में लद्दाख का बड़ा क्षेत्र कश्मीर विवाद से अलग हो गया था।
      • पाकिस्तान की हताशा आतंकवाद को बढ़ावा देने के उसके हताश प्रयासों और भारत के इस कदम के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने के असफल प्रयासों में दिखाई देती है।

आगे की राह 

  • दोनों देश फरवरी 2021 में नियंत्रण रेखा और अन्य सभी क्षेत्रों के साथ समझौतें और युद्धविराम के सख्त पालन पर सहमत हुए।
  • लेकिन जब तक आपसी इच्छा, राजनीतिक इच्छाशक्ति और दोनों पक्षों में निर्णायक कठिन निर्णय लेने का साहस न हो, देशों के भविष्य में  जुड़ाव की कोई उम्मीद नहीं है।
  • खुद को भारत के बराबर या उससे बेहतर साबित करने के लिये पाकिस्तान के कभी न खत्म होने वाले संघर्ष ने कभी भी दोनों देशों के बीच संबंधों को सामान्य नहीं होने दिया।
  • वास्तविक-लोकतंत्र की कमी और लगातार दंतविहीन नागरिक सरकारों ने यह साबित कर दिया है कि पाक सेना की चालों से नागरिक सरकार के साथ द्विपक्षीय जुड़ाव बेकार हो जाएगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस