नेपाल में राजनीतिक अशांति | 11 Sep 2025

प्रिलिम्स के लिये: बेल्ट एंड रोड पहल, महाकाली नदी जलविद्युत, बिम्सटेक 

मेन्स के लिये: भारत की पड़ोसी पहले नीति, भारत की एक्ट ईस्ट नीति 

स्रोत: IE 

चर्चा में क्यों?

नेपाल इस समय राजनीतिक अशांति के दौर से गुजर रहा है, जहाँ प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली ने व्यापक रूप से युवाओं (विशेषकर जेनरेशन-ज़ेड) द्वारा संचालित प्रदर्शनों के बीच इस्तीफा दे दिया है। यह अशांति लंबे समय से चले आ रहे भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, बेरोज़गारी और बढ़ती असमानताओं को लेकर चिंताओं से उत्पन्न हुई है, साथ ही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर लगाए गए प्रतिबंधों के प्रति असंतोष ने भी इसमें योगदान दिया है। 

  • काठमांडू में पुलिस गोलीबारी के कारण लोगों की मौत होने के बाद स्थिति और अधिक अस्थिर हो गई, जिससे जनता की शिकायतें और अस्थिरता बढ़ गई। 

भारत और नेपाल के बीच ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध 

  • महाकाव्य संबंध: रामायण में भगवान राम (अयोध्या) का विवाह देवी सीता (जनकपुर, नेपाल) से हुआ था। 
  • प्राचीन गणराज्य: ईसा पूर्व 6वीं शताब्दी में मगध और शाक्य गणराज्य भारत-नेपाल सीमा के दोनों ओर फैले हुए थे। 
    • राजकुमार सिद्धार्थ (बुद्ध) का जन्म लुंबिनी (नेपाल) में हुआ और उन्होंने निर्वाण बोधगया (भारत) में प्राप्त किया। 
  • साझा स्वतंत्रता संग्राम: वाराणसी में जन्मे के. पी. भट्टाराई ने भारत में ब्रिटिशों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन और नेपाल में एंटी-राणा आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया। 
  • उस समय बनारस राणा विरोधी सक्रियता का प्रमुख केंद्र था। 
  • सैन्य संबंध: वर्ष 1816 की सुगौली संधि, नेपाल के गोरखा प्रमुखों और ब्रिटिश भारतीय सरकार के बीच एक समझौता, ने एंग्लो-नेपाली युद्ध (1814-16) को समाप्त कर दिया और भारतीय (तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय) सेना में नेपालियों की भर्ती का मार्ग प्रशस्त किया। 
  • 1950 की शांति और मैत्री संधि: वर्ष 1950 की शांति और मैत्री संधि के द्वारा एक-दूसरे के नागरिकों को आर्थिक भागीदारी, संपत्ति के स्वामित्व, व्यापार, निवास और आवागमन में राष्ट्रीय व्यवहार प्रदान किया गया।

नेपाल का राजनीतिक संकट भारत के हितों को किस प्रकार प्रभावित करता है? 

  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता शासन में अंतराल उत्पन करती है, जिसका फायदा विद्रोही समूह, सीमा पार अपराधी और अवैध नेटवर्क उठा सकते हैं। 
    • भारत नेपाल के साथ खुली सीमा साझा करता है, इसलिये कानून-व्यवस्था में कोई भी कमी या अशांति भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये सीधा खतरा है तथा सीमा पार तस्करी, मानव तस्करी या आतंकवादी घुसपैठ को बढ़ा सकती है। 
  • आर्थिक प्रभाव: भारत नेपाल का प्रमुख व्यापारिक साझेदार है, जिसने वित्त वर्ष 2025 में नेपाल को 7.32 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात, जबकि 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर का आयात किया, जिससे भारत को महत्त्वपूर्ण व्यापार अधिशेष प्राप्त हुआ। 
    • राजनीतिक संकट के कारण, नेपाल में भारतीय निवेश और आपूर्ति शृंखलाएँ अनिश्चितता का सामना कर रही हैं, जबकि अस्थिरता चीन के लिये हस्तक्षेप के अवसर उत्पन्न कर रही है। 
  • विकास सहयोग पर प्रभाव: नेपाल में भारत की उच्च प्रभाव सामुदायिक विकास परियोजनाएँ (HICDP) (स्वास्थ्य, शिक्षा, विद्युतीकरण, स्वच्छता आदि में 573 से अधिक परियोजनाएँ) द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने और सकारात्मक संबंधों को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 
    • राजनीतिक अस्थिरता परियोजनाओं के क्रियान्वयन को कमज़ोर करती है और चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसी प्रतिस्पर्द्धी प्रभावों के लिये जगह बनाती है। 
  • जलविद्युत एवं ऊर्जा सहयोग में रुकावट: नेपाल भारत की सीमा-पार विद्युत व्यापार योजनाओं (जैसे भारत-नेपाल दीर्घकालिक विद्युत व्यापार समझौता तथा बांग्लादेश के साथ त्रिपक्षीय ऊर्जा व्यापार) का केंद्र है। 
    • राजनीतिक अस्थिरता अरुण-3, फुकोट कर्णाली और लोअर अरुण जैसी प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं को धीमा या पटरी से उतार सकती है। 
      • इससे भारत के क्षेत्रीय ऊर्जा केंद्र बनने के लक्ष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। 
  • रक्षा एवं सुरक्षा सहयोग में व्यवधान: भारत और नेपाल के बीच मज़बूत सैन्य संबंध (जैसे संयुक्त सूर्य किरण अभ्यास) हैं। 
    • किंतु राजनीतिक संकट संस्थागत निरंतरता को कमज़ोर करते हैं, रक्षा आदान-प्रदान को बाधित करते हैं और चीन जैसे प्रतिद्वंद्वी बाहरी शक्तियों को हस्तक्षेप का अवसर देते हैं।

नोट: नेपाल की राजनीतिक अशांति कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि भारत के पड़ोस में व्याप्त व्यापक नाज़ुकता का एक लक्षण है। ऐसी अशांति केवल सीमाओं तक सीमित नहीं रहती, बल्कि यह सुरक्षा, संपर्क और क्षेत्रीय सहयोग तक फैल जाती है, जिससे भारत की सामरिक क्षमता पर अंकुश लगता है। 

भारत के लिये पड़ोसी देशों में अशांति के क्या परिणाम हैं? 

  • आंतरिक सुरक्षा खतरा: पाकिस्तान के साथ जम्मू-कश्मीर विवाद एक मूल मुद्दा बना हुआ है, जो सीमा-पार आतंकवाद और सैन्य टकराव को बढ़ावा देता है। 
    • साथ ही, म्याँमार और बांग्लादेश से लगी पूर्वोत्तर की झिर्रीदार सीमाएँ हथियारों, नशीले पदार्थों और उग्रवादियों की अवैध आवाजाही की अनुमति देती हैं। 
  • भूराजनीतिक और सामरिक निहितार्थ: पड़ोसी देशों में अशांति शक्ति-शून्यता उत्पन्न करती है, जिसका लाभ प्रमुख शक्तियाँ, विशेषकर चीन और अमेरिका, उठाने का प्रयास करती हैं। 
    • चीन पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का उपयोग कर सामरिक प्रभाव बढ़ाता है और क्षेत्रीय अस्थिरता का लाभ उठाता है। 
    • हिंद महासागर का सैन्यीकरण और महत्त्वपूर्ण बंदरगाहों (श्रीलंका में हंबनटोटा, पाकिस्तान में ग्वादर) पर चीनी नियंत्रण भारत के लिये दीर्घकालिक सुरक्षा कमज़ोरियाँ उत्पन्न करते हैं। 
  • आर्थिक एवं विकासात्मक प्रभाव: राजनीतिक अशांति सीमा-पार परियोजनाओं में देरी करती है, जैसे भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग। इसका प्रभाव भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और क्षेत्रीय आर्थिक केंद्र की उसकी भूमिका पर पड़ता है। 
    • अस्थिरता निवेश को हतोत्साहित करती है और भारतीय विकास परियोजनाओं में देरी करती है, जिससे भारत की सद्भावना कमज़ोर होती है। 
    • राजनीतिक अस्थिरता साझा नदियों के प्रबंधन को भी जटिल बनाती है, जैसे बांग्लादेश के साथ तीस्ता नदी विवाद, जिसका प्रभाव कृषि और ऊर्जा सुरक्षा पर पड़ता है। 
  • शरणार्थी और मानवीय संकट: शरणार्थियों का आगमन सीमा क्षेत्रों जैसे असम में सामाजिक-सांस्कृतिक तनाव और संसाधनों पर प्रतिस्पर्द्धा को उत्पन्न देता है। 
    • भारत अक्सर संकटों के दौरान सहायता और आश्रय प्रदान करता है, जिससे उसकी ज़िम्मेदार छवि उभरती है, लेकिन इससे घरेलू अवसंरचना पर दबाव पड़ता है। 
    • ये प्रवाह कभी-कभी पहचान-आधारित तनाव को भड़काते हैं, जैसा कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 से संबंधित बहसों में देखा गया। 
  • बहुपक्षीय मंचों में भारत के रणनीतिक क्षेत्र का क्षरण: अस्थिरता दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय संगठनों (जैसे सार्क और बिम्सटेक) को कमज़ोर करती है, जिससे भारत की सर्वसम्मति बनाने और सहयोगात्मक पहलों को आगे बढ़ाने की क्षमता सीमित हो जाती है। 
    • राजनीतिक गतिरोध अक्सर भारत के प्रस्तावों को हाशिये पर डाल देता है और मंचों को अप्रभावी बना देता है, जिससे बाहरी शक्तियों को विभाजन का लाभ उठाकर क्षेत्रीय एजेंडा तय करने का अवसर मिलता है। 

भारत पड़ोसी देशों में अपनी सक्रिय भागीदारी बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपना सकता है? 

  • सीमा और सीमा पार प्रबंधन में सुधार: सुरक्षा खतरों को रोकने तथा सुचारू व्यापार सुनिश्चित करने के लिये प्रभावी सीमा प्रबंधन महत्त्वपूर्ण है। 
    • इसके लिये आधुनिकीकृत सीमा अवसंरचना (Modernized Border Infrastructure) में निवेश की आवश्यकता है, जिसमें एकीकृत चेक पोस्ट (Integrated Check Posts - ICPs) और डिजिटल कस्टम प्रणाली (Digital Customs Systems) शामिल हैं, ताकि सीमा पार व्यापार में होने वाली देरी को कम किया जा सके 
  • व्यापक सुरक्षा और रक्षा सहयोग: प्राकृतिक आपदाओं, राजनीतिक उथल-पुथल तथा सुरक्षा खतरों के प्रति समन्वित प्रतिक्रिया के लिये SAARC तथा BIMSTEC के सहयोग से क्षेत्रीय संकट प्रबंधन ढाँचे का निर्माण करना। 
    • नेपाल, मालदीव और म्याँमार जैसे देशों के साथ संयुक्त सैन्य अभ्यासों का विस्तार किया जाना चाहिये। इसके साथ ही समुद्री क्षेत्र की सतर्कता (Maritime Domain Awareness) को सुदृढ़ कर, भारतीय महासागर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये साझा संसाधनों के माध्यम से सहयोग बढ़ाया जाना आवश्यक है। 
  • क्षेत्रीय संपर्क और अवसंरचना को मज़बूत करना: BBIN मोटर वाहन समझौता (BBIN Motor Vehicle Agreement) तथा कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट परियोजना (Kaladan Multi-Modal Transit Project) जैसी पहलों के माध्यम से सड़क, रेल और बंदरगाह संपर्क का विस्तार किया जाना चाहिये। इससे भारत एवं उसके पड़ोसी देशों के बीच व्यापार, आवाजाही व रणनीतिक सहयोग को नई गति मिलेगी। 
    • नेपाल, श्रीलंका और अन्य पड़ोसी देशों में चल रही अवसंरचना परियोजनाओं को तेज़ी से आगे बढ़ाना तथा समय पर पूर्ण करना आवश्यक है। इसके लिये भारत को “संपूर्ण सरकार” (Whole-of-Government) के दृष्टिकोण अपनाना चाहिये। 
  • आर्थिक एवं संपर्क-संचालित कूटनीति: भारत को अपनी आर्थिक साझेदारी को प्राथमिकता देनी चाहिये तथा चीन की "ऋण जाल कूटनीति" (Debt Trap Diplomacy) के मुकाबले एक अधिक आकर्षक एवं विश्वसनीय विकल्प अपने पड़ोसी देशों को प्रदान करना चाहिये। इससे न केवल क्षेत्रीय सहयोग बढ़ेगा, बल्कि भारत की कूटनीतिक साख भी मज़बूत होगी। 
    • इसमें बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिये अनुकूल शर्तों के साथ आसान ऋण और अनुदान प्रदान करना तथा प्रत्येक देश की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप विकास सहायता प्रदान करना शामिल है। 
  • एक प्रभावी पड़ोसी नीति केवल सरकारों के बीच संबंधों तक सीमित नहीं रहनी चाहिये, बल्कि इसमें लोगों के बीच जुड़ाव (People-to-People Connections) को भी शामिल करना आवश्यक है। इससे आपसी समझ, विश्वास और सहयोग को मज़बूत किया जा सकता है। 
    • भारत अपने भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) जैसे कार्यक्रमों का विस्तार करके अपनी सॉफ्ट पावर को बढ़ा सकता है, जो पड़ोसी देशों के पेशेवरों को प्रशिक्षण तथा छात्रवृत्ति प्रदान करता है। 

निष्कर्ष 

नेपाल में राजनीतिक अशांति भारत के पड़ोसी क्षेत्र में बढ़ती अस्थिरता की चुनौतियों को उजागर करती है, जो व्यापार, सुरक्षा और क्षेत्रीय प्रभाव को प्रभावित कर रही है। भारत की नेबरहुड फर्स्ट नीति (Neighbourhood First Policy) सक्रिय भागीदारी की मांग करती है, जिसमें मज़बूत कूटनीति, रणनीतिक सुरक्षा सहयोग, विकास सहायता तथा सांस्कृतिक संपर्क का समन्वय शामिल हो। इसका उद्देश्य क्षेत्रीय स्थिरता की रक्षा करना एवं भारत को एक विश्वसनीय व प्रभावशाली साझेदार के रूप में मज़बूत करना है। 

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. पड़ोसी देशों में अस्थिरता भारत की सुरक्षा, व्यापार और क्षेत्रीय प्रभाव को किस प्रकार प्रभावित करती है, इसका आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। 

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs) 

प्रिलिम्स

प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में देखा जाने वाला एलीफेंट पास का उल्लेख निम्नलिखित में से किस मामले के संदर्भ में किया जाता है? (2009)

(a) बांग्लादेश 

(b) भारत 

(c) नेपाल 

(d) श्रीलंका

उत्तर: (d) 

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)

  1. पिछले दशक में भारत-श्रीलंका व्यापार के मूल्य में सतत् वृद्धि हुई है।  
  2. भारत और बांग्लादेश के बीच होने वाले व्यापार में “कपड़े और कपड़े से बनी चीज़ों का व्यापर प्रमुख है। 
  3. पिछले पाँच वर्षों में, दक्षिण एशिया में भारत के व्यापार का सबसे बड़ा भागीदार नेपाल रहा है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 2 

(b) केवल 2 

(c) केवल 3 

(d) 1,2 और 3

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. "चीन अपने आर्थिक संबंधों एवं सकारात्मक व्यापार अधिशेष को, एशिया में संभाव्य सैनिक शक्ति हैसियत को विकसित करने के लिये, उपकरणों के रूप में इस्तेमाल कर रहा है।" इस कथन के प्रकाश में, उसके पड़ोसी के रूप में भारत पर इसके प्रभाव पर चर्चा कीजिये। (2017)