PM फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज योजना | 30 Jun 2020

प्रीलिम्स के लिये:

सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के औपचारिकीकरण हेतु योजना

मेन्स के लिये:

सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 'खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय' (Ministry of Food Processing Industries- MoFPI) ने 'आत्मनिर्भर भारत अभियान' के एक भाग के रूप में ‘PM फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज’ (PM Formalization of Micro Food Processing Enterprises - PM FME) योजना की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु:

  • योजना के तहत कुल 35,000 करोड़ रुपये का निवेश किया जाएगा। जिससे 9 लाख कुशल और अर्द्ध-कुशल रोज़गारों के सृजित होने की संभावना है।
  • असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की लगभग 25 लाख इकाइयों में लगभग 74% खाद्य प्रसंस्करण श्रमिक कार्यरत हैं।

PM FME योजना के उद्देश्य:

  • मौजूदा सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यमों के उन्नयन के लिये वित्तीय, तकनीकी और व्यावसायिक सहायता प्रदान करना।
  • सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों के क्षमता निर्माण और अनुसंधान पर विशेष ध्यान केन्द्रित करना।

योजना की आवश्यकता:

  • असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र द्वारा निम्नलिखित चुनौतियों का सामना किया जा रहा है, जिनका समाधान आवश्यक है।
    • आधुनिक प्रौद्योगिकी और उपकरणों तक पहुँच की कमी;
    • संस्थागत प्रशिक्षण का अभाव;
    • संस्थागत ऋण तक पहुँच की कमी;
    • उत्पादों की खराब गुणवत्ता;
    • जागरूकता की कमी;
    • ब्रांडिंग और विपणन कौशल की कमी।

योजना का वित्तपोषण:

  • यह एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसके तहत 10,000 करोड़ रुपए का परिव्यय किया जाएगा।
    • परिव्यय को निम्नलिखित तरीके से केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा साझा किया जाएगा:
    • केंद्र और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के अनुपात में;
    • पूर्वोत्‍तर और हिमालयी राज्यों के बीच 90:10 के अनुपात में;
    • विधानमंडल युक्त केंद्र शासित प्रदेशों में 60:40 के अनुपात में;
  • अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में 100% व्यय केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।

योजना की समयावधि:

योजना को वर्ष 2020-21 से वर्ष 2024-25 तक पाँच वर्षों की अवधि में लागू किया जाएगा।

‘एक ज़िला एक उत्‍पाद’ (One District One Product- ODDP) का दृष्टिकोण:

  • निवेश प्रबंधन, आम सेवाओं का लाभ उठाने और उत्पादों के विपणन को बढ़ाने के लिये योजना के तहत एक ज़िला एक उत्‍पाद के दृष्टिकोण को अपनाया गया है।
  • राज्यों द्वारा कच्चे माल की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए एक ज़िले के लिये एक खाद्य उत्पाद की पहचान की जाएगी।
  • ODOP में जल्दी खराब होने वाला उत्‍पाद या अनाज आधारित उत्पाद हो सकता है जिसका ज़िले और उनके संबद्ध क्षेत्रों में व्यापक स्तर पर उत्पादन किया जाता है।
  • ऐसे उत्पादों की सूची में आम, आलू, लीची, टमाटर, साबूदाना, कीनू, भुजिया, पेठा, पापड़, अचार, मत्स्यन, मुर्गी पालन आदि शामिल हैं।

योजना के अन्य पहलू:

  • योजना के तहत ODOP उत्पादों के अलावा अन्य उत्पादों का उत्पादन करने वाली इकाइयों को भी सहायता दी जाएगी।
  • ODOP उत्पादों के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास के साथ ही ब्रांडिंग और विपणन हेतु भी सहायता दी जाएगी।
  • योजना के तहत ‘वेस्ट टू वेल्थ’ (Waste to Wealth) उत्पादों, लघु वन उत्पादों को प्रोसाहित किया जाएगा।
  • आकांक्षी ज़िलों’ (Aspirational Districts) पर विशेष ध्यान केन्‍द्रित किया जाएगा।

योजना के तहत वित्तीय सहायता:

  • मौजूदा सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयाँ, जो अपनी इकाइयों के उन्नयन की इच्छुक हैं, वे पात्र इकाइयाँ परियोजना लागत का 35% तक ऋण-आधारित पूंजीगत सब्सिडी का लाभ उठा सकती हैं, जिसकी अधिकतम सीमा 10 लाख रुपए प्रति इकाई है।
  • कृषक उत्पादक संगठनों (FPOs)/स्वयं सहायता समूहों (SHGs)/सहकारी समितियों या राज्य के स्वामित्व वाली एजेंसियों या निजी उद्यमों को सामान्य प्रसंस्करण सुविधा, प्रयोगशाला, गोदाम सहित बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये 35% की दर से क्रेडिट-लिंक्ड अनुदान के माध्यम से सहायता प्रदान की जाएगी।
  • सीड कैपिटल (आरंभिक वित्त पोषण) के रूप में प्रति स्वयं सहायता समूह सदस्य को कार्यशील पूंजी और छोटे उपकरण खरीदने के लिये 40,000 रुपए की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।

निष्कर्ष:

योजना के माध्यम से असंगठित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों यथा संस्थागत ऋण तक पहुँच, बुनियादी ढाँचे, ब्रांडिंग और मार्केटिंग कौशल आदि का समाधान करना संभव हो पाएगा। जिससे आत्मनिर्भर भारत के निर्माण के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

स्रोत: पीआईबी