समकालिक बदलती जलवायु में अत्यधिक वर्षा की निरंतरता | 16 Dec 2023

प्रिलिम्स के लिये:

बदलती जलवायु, ग्लोबल वार्मिंग, भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) में समकालिक अत्यधिक वर्षा की निरंतरता।

मेन्स के लिये:

बदलती जलवायु में समकालिक अत्यधिक वर्षा की निरंतरता, भारत में वर्षा को प्रभावित करने वाले कारक।

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एडवांसिंग अर्थ एंड स्पेस साइंसेज़ (AGU) द्वारा एक नया अध्ययन प्रकाशित किया गया है, जिसका शीर्षक है “जियोग्राफिकल ट्रैपिंग ऑफ सिंक्रोनस एक्सट्रीम्स एमिड्ट इंक्रीजिंग वेरिएबिलिटी ऑफ इंडियन समर मॉनसून रेनफॉल”, जिसमें बताया गया है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारतीय मॉनसून में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं।

  • यह अध्ययन भारतीय ग्रीष्मकालीन माॅनसून वर्षा (ISMR) वर्ष 1901 से 2019 तक के दौरान समकालिक अत्यधिक वर्षा की घटनाओं की जाँच करता है। यह मध्य भारत में परस्पर जुड़े चरम केंद्रों की निरंतर उपस्थिति पर प्रकाश डालता है, जो क्षेत्र में इन समवर्ती घटनाओं की भौगोलिक एकाग्रता का सुझाव देता है।

भारत में वर्षा की प्रवृत्ति कैसी रही है?

  • निरंतर स्थानिक एकाग्रता: 
    • पिछली शताब्दी में भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून वर्षा (ISMR) में बढ़ती परिवर्तनशीलता के बावजूद, समकालिक अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ मुख्य रूप से मध्य भारत में एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में केंद्रित रही हैं जो पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ हिस्सों से लेकर गुजरात और राजस्थान के कुछ हिस्सों तक फैली हुई है।
      • यह गलियारा वर्ष 1901 से 2019 तक अपरिवर्तित रहा है!
      • यह समग्र रूप से बढ़ी हुई परिवर्तनशीलता के बावजूद समकालिक चरम घटनाओं के एक स्थिर पैटर्न को इंगित करता है।
  • नेटवर्क सामंजस्य: 
    • CI में अत्यधिक परस्पर जुड़े चरम वर्षा केंद्रों का एक सतत नेटवर्क है। ये केंद्र मज़बूत स्थानीय कनेक्शन प्रदर्शित करते हैं, जो लंबी अवधि में इस क्षेत्र में चरम घटनाओं के स्थिर सिंक्रनाइज़ेशन पर ज़ोर देते हैं।
  • जलवायु पैटर्न के साथ सहसंबंध:
    • भारत में मानसून के पूर्वानुमान, अल नीनो और ला नीना परिघटना के साथ इसके संबंध पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं, हालाँकि यह सामंजस्य लगभग 60% समय तक ही रहता है।
    • भारतीय वर्षा की घटनाएँ अल-नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO) के साथ सहसंबंधित हैं, प्रबल अल नीनो अवधि के दौरान अधिक सिंक्रनाइज़ेशन और ला नीना स्थितियों के दौरान कम।
  • पूर्वानुमान हेतु निहितार्थ:
    • निष्कर्षों से पता चलता है कि ISMR की बढ़ती परिवर्तनशीलता और जटिलता के बावजूद, CI में अत्यधिक वर्षा सिंक्रनाइज़ेशन की निरंतर प्रकृति को समझने से सिंक्रोनस चरम की भविष्यवाणी करने के लिये महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि मिलती है।
    • यह ज्ञान माॅनसून के मौसम के दौरान प्रभावी अनुकूलन रणनीतियों और जोखिम प्रबंधन को विकसित करने में सहायता कर सकता है।

पूर्वानुमान पर निष्कर्षों के निहितार्थ क्या हैं?

  • स्थिरता पर दोबारा गौर करना:
    • इस धारणा के बावजूद कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु प्रणालियों में स्थिर तत्त्व अब मौजूद नहीं हैं, भारतीय मानसून की भारी बारिश की घटनाओं को सिंक्रनाइज़ करने की क्षमता इस धारणा को चुनौती देती है।
    • इससे पता चलता है कि कुछ सुसंगत पैटर्न, जैसे कि विशिष्ट गलियारों/कॉरिडोर में समकालिक अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ, बदलती जलवायु में भी बनी रहती हैं।
  • कॉरिडोर डायनेमिक्स को समझना: 
    • एक भौगोलिक कॉरिडोर की पहचान, मुख्य रूप से पश्चिमी तट के साथ और पूरे मध्य भारत में पर्वत शृंखला, समकालिक अत्यधिक वर्षा की घटनाओं और मानसून अवनमन/अवसादों के लिये संभावित ट्रैपिंग क्षेत्र के रूप में एक महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
      • यह परिकल्पना इस बात की समझ को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ाएगी कि ये घटनाएँ किस प्रकार और कहाँ घटित होती हैं, जिससे अधिक सटीक पूर्वानुमानों में सहायता मिलेगी।
  • पूर्वानुमान में सुधार:
    • शोध से पता चलता है कि समकालिक अत्यधिक वर्षा की घटनाओं के पूर्वानुमान में सुधार के लिये बढ़े हुए मॉडल रिज़ॉल्यूशन या उच्च कम्प्यूटेशनल लागत की आवश्यकता नहीं है।
    • इसके बदले मौजूदा मॉडलों के भीतर सिंक्रनाइज़ेशन की गतिशीलता को समझने पर ध्यान केंद्रित करने से अधिक सटीक भविष्यवाणियाँ हो सकती हैं। यह पूर्वानुमान दृष्टिकोण में एक रणनीतिक बदलाव पर प्रकाश डालता है।
  • जोखिम न्यूनीकरण रणनीतियाँ:
    • बड़े पैमाने पर अत्यधिक वर्षा की इन घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान कृषि, जल प्रबंधन, ऊर्जा, परिवहन तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे विभिन्न क्षेत्रों में जोखिमों को कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
      • ये रणनीतियाँ तत्परता तथा शमन के लिये बेहतर पूर्वानुमानों का उपयोग करके छोटे पैमाने पर खतरे में कमी की रणनीति में सुधार करने का मौका प्रदान करते हैं।
  • भारत के संसाधनों का दोहन:
    • इस अध्ययन में भारत की सुदृढ़ मॉडलिंग क्षमता तथा कम्प्यूटेशनल संसाधनों पर ज़ोर दिया गया है, जिससे देश बेहतर पूर्वानुमान के लिये इस क्षमता का उपयोग कर सके।
    • यह समकालिकता गतिशीलता को गहराई से समझने तथा पूर्वानुमानों को अनुकूलित करने की क्षमता पर प्रकाश डालता है, जिससे संभावित रूप से विभिन्न क्षेत्रों पर अत्यधिक वर्षा की घटनाओं के प्रभाव को कम किया जा सकता है।

भारतीय मानसून को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं?

  • हिमालय पर्वत:
    • भारत में मानसूनी वायु की उत्पत्ति में हिमालय एक प्रमुख कारक है।
    • ग्रीष्म ऋतु के दौरान, भारतीय उपमहाद्वीप का भूभाग तेज़ी से ऊष्मित होता है, जिससे निम्न-दाब प्रणाली का निर्माण होता है।
      • हिमालय, जो एक अवरोधक के रूप में कार्य करता है, उत्तर से ठंडी, शुष्क वायु के आगमन को रोकता है, जिसके परिणामस्वरूप एक दाब प्रवणता उत्पन्न होती है जो हिंद महासागर से गर्म, नम वायु खींचती है।
  • थार मरुस्थल:
    • थार मरुस्थल, जिसे महान भारतीय मरुस्थल भी कहा जाता है, भारत में मानसूनी पवनों की उत्पत्ति का एक महत्त्वपूर्ण कारक है।
    • यह यह मानसून की बंगाल की खाड़ी की शाखा के लिये वर्षा छाया क्षेत्र के रूप में कार्य करता है, जिसका अर्थ है कि अरावली पर्वत शृंखला द्वारा निर्मित अवरोध के कारण यहाँ बहुत कम वर्षा होती है।
      • इस प्रकार, दक्षिणी-पश्चिम मानसून की अरब सागर शाखा, जो थार मरुस्थल के समानांतर चलती है, के कारण आसपास के क्षेत्रों में भी बहुत कम वर्षा करती है।
        • वर्षा की इस कमी का क्षेत्र में कृषि तथा स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
      • मरुस्थल से आने वाली गर्म और शुष्क वायु भारत के पूरे उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में निम्न-दाब का क्षेत्र बनाती है, जो हिंद महासागर से नमी से भरी हवाएँ खींचती है, जिसके परिणामस्वरूप गर्मी के माह के दौरान भारी वर्षा होती है।
  • हिंद महासागर:
    • भारत में मानसूनी पवनों के निर्माण में हिंद महासागर का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
      • समुद्र की गर्म और नम हवा भारतीय उपमहाद्वीप पर कम दबाव प्रणाली के साथ संपर्क करती है, जिसके परिणामस्वरूप मानसूनी पवनों का निर्माण होता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय मानसून का पूर्वानुमान करते समय कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित 'इंडियन ओशन डाइपोल (IOD)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. IOD परिघटना उष्णकटिबंधीय पश्चिमी हिंद महासागर एवं उष्णकटिबंधीय पूर्वी प्रशांत महासागर के बीच सागर- पृष्ठ तापमान में अंतर से विशेषित होती है।
  2. एक IOD घटना माॅनसून पर अल-नीनो के असर को प्रभावित कर सकती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग करके सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD) उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में एक वायुमंडलीय महासागर युग्मित घटना है (जैसे अल नीनो उष्णकटिबंधीय प्रशांत में है), जो समुद्र-सतह तापमान (SST) में अंतर की विशेषता है।
  • एक 'पॉज़िटिव IOD' पूर्वी भूमध्यरेखीय हिंद महासागर में समुद्र की सतह के सामान्य तापमान से अधिक ठंडे और पश्चिमी उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में समुद्र की सतह के सामान्य तापमान से अधिक गर्म के साथ जुड़ा हुआ है।
  • विपरीत घटना को 'नकारात्मक IOD' कहा जाता है और पूर्वी भूमध्यरेखीय हिंद महासागर में सामान्य  SST की तुलना में गर्म और पश्चिमी उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में सामान्य SST की तुलना में ठंडा होता है।
  • इसे भारतीय नीनो के रूप में भी जाना जाता है, यह हिंद महासागर में समुद्र की सतह के तापमान का एक अनियमित दोलन है जिसमें पश्चिमी हिंद महासागर हिंद महासागर के पूर्वी हिस्से की तुलना में बारी-बारी से गर्म और ठंडा हो जाता है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • IOD वैश्विक जलवायु के सामान्य चक्र का एक पहलू है, जो प्रशांत महासागर में एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ENSO) जैसी समान घटनाओं के साथ बातचीत करता है। एक IOD भारतीय माॅनसून पर अल नीनो के प्रभाव को या तो बढ़ा सकता है या कमज़ोर कर सकता है। यदि सकारात्मक IOD है, तो यह अल नीनो वर्ष के बावजूद भारत में अच्छी वर्षा ला सकता है। अतः कथन 2 सही है।
  • अतः विकल्प (b) सही उत्तर है

मेन्स:

प्रश्न. आप कहाँ तक सहमत हैं कि मानवीय दृश्भूमियों  के कारण भारतीय मानसून के आचरण में परिवर्तन होता रहा है? चर्चा कीजिये। (2015)