आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण 2020-21 | 16 Jun 2022

प्रिलिम्स के लिये:

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO), बेरोजगारी दर, श्रम बल, 

मेन्स के लिये:

रोजगार, संवृद्धि और विकास, मानव संसाधन, भारत में बेरोजगारी के प्रकार, बेरोजगारी से लड़ने के लिये सरकार द्वारा हाल की पहलें 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MOSPI) द्वारा 2020-21 के लिये आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) जारी किया गया। 

PLFS के मुख्य बिंदु : 

  • बेरोजगारी दर:  
    • इससे पता चलता है कि बेरोजगारी दर वर्ष 2020-21 में गिरकर 4.2% हो गई, जबकि वर्ष 2019-20 में यह दर 4.8% थी।  
    • ग्रामीण क्षेत्रों में 3.3%  तथा शहरी क्षेत्रों में 6.7% की बेरोजगारी दर दर्ज की गई। 
  • श्रम बल भागीदारी दर (LFPR): 
    • जनसंख्या में श्रम बल (अर्थात् काम करने वाले या काम की तलाश करने वाले या काम के लिये उपलब्ध) में व्यक्तियों का प्रतिशत पिछले वर्ष के 40.1% से बढ़कर वर्ष 2020-21 के दौरान 41.6% हो गया।  
  • श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR):  
    • यह पिछले वर्ष के 38.2% से बढ़कर 39.8% हो गया। 
  • प्रवासन दर: 
    • प्रवासन दर 28.9% है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में महिलाओं की प्रवास दर क्रमशः 48% और 47.8% थी। 

अन्य प्रमुख बिंदु 

  • बेरोज़गारी दर: बेरोज़गारी दर को श्रम बल में बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है। 
  • श्रम बल: करेंट वीकली स्टेटस (CWS) के अनुसार, श्रम बल का आशय सर्वेक्षण की तारीख से पहले एक सप्ताह में औसत नियोजित या बेरोज़गार व्यक्तियों की संख्या से है। 
  • CWS दृष्टिकोण: शहरी बेरोज़गारी PLFS, CWS के दृष्टिकोण पर आधारित है। 
    • CWS के तहत एक व्यक्ति को बेरोज़गार तब माना जाता है यदि उसने सप्ताह के दौरान किसी भी दिन एक घंटे के लिये भी काम नहीं किया, लेकिन इस अवधि के दौरान किसी भी दिन कम-से-कम एक घंटे के लिये काम की मांग की या काम उपलब्ध था। 
  • श्रमिक जनसंख्या अनुपात (WPR): WPR को जनसंख्या में नियोजित व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है। 

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS): 

  • अधिक नियत समय अंतराल पर श्रम बल डेटा की उपलब्धता के महत्त्व को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ने अप्रैल 2017 में आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) की शुरुआत की। 
  • PLFS के मुख्य उद्देश्य हैं: 
    • 'वर्तमान साप्ताहिक स्थिति' (CWS) में केवल शहरी क्षेत्रों के लिये तीन माह के अल्‍पकालिक अंतराल पर प्रमुख रोज़गार और बेरोज़गारी संकेतकों (अर्थात् श्रमिक-जनसंख्या अनुपात, श्रम बल भागीदारी दर, बेरोज़गारी दर) का अनुमान लगाना। 
    • प्रतिवर्ष ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों में सामान्य स्थिति (पीएस+एसएस) और CWS दोनों में रोज़गार एवं बेरोज़गारी संकेतकों का अनुमान लगाना। 

बेरोज़गारी से निपटने हेतु सरकार की पहल: 

भारत में बेरोजगारी के प्रकार: 

  • प्रच्छन्न बेरोज़गारी: यह एक ऐसी घटना है जिसमें वास्तव में आवश्यकता से अधिक लोगों को रोज़गार दिया जाता है। 
    • यह मुख्य रूप से भारत के कृषि और असंगठित क्षेत्रों में व्याप्त है। 
  • मौसमी बेरोज़गारी: यह एक प्रकार की बेरोज़गारी है, जो वर्ष के कुछ निश्चित मौसमों के दौरान देखी जाती है। 
    • भारत में खेतिहर मज़दूरों के पास वर्ष भर काफी कम कार्य होता है। 
  • संरचनात्मक बेरोज़गारी: यह बाज़ार में उपलब्ध नौकरियों और श्रमिकों के कौशल के बीच असंतुलन होने से उत्पन्न बेरोज़गारी की एक श्रेणी है। 
    • भारत में बहुत से लोगों को आवश्यक कौशल की कमी के कारण नौकरी नहीं मिलती है तथा शिक्षा के खराब स्तर के कारण उन्हें प्रशिक्षित करना मुश्किल हो जाता है।  
  • चक्रीय बेरोज़गारी: यह व्यापार चक्र का परिणाम है, जहाँ मंदी के दौरान बेरोज़गारी बढ़ती है और आर्थिक विकास के साथ घटती है।  
    • भारत में चक्रीय बेरोज़गारी के आँकड़े नगण्य हैं। यह एक ऐसी घटना है जो अधिकतर पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में पाई जाती है।  
  • तकनीकी बेरोज़गारी: यह प्रौद्योगिकी में बदलाव के कारण नौकरियों का नुकसान है। 
    • वर्ष 2016 में विश्व बैंक के आँकड़ों ने भविष्यवाणी की थी कि भारत में ऑटोमेशन से खतरे में पड़ी नौकरियों का अनुपात वर्ष-दर-वर्ष 69% है। 
  • घर्षण बेरोज़गारी: घर्षण बेरोज़गारी का आशय ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति नई नौकरी की तलाश या नौकरियों के बीच स्विच कर रहा होता है, तो यह नौकरियों के बीच समय अंतराल को संदर्भित करती है। 
    • दूसरे शब्दों में एक कर्मचारी को नई नौकरी खोजने या नई नौकरी में स्थानांतरित करने के लिये समय की आवश्यकता होती है, यह अपरिहार्य समय की देरी घर्षण बेरोज़गारी का कारण बनती है। 
    • इसे अक्सर स्वैच्छिक बेरोज़गारी के रूप में माना जाता है क्योंकि यह नौकरी की कमी के कारण नहीं होता है, बल्कि वास्तव में बेहतर अवसरों की तलाश में श्रमिक स्वयं अपनी नौकरी छोड़ देते हैं। 
  • सुभेद्य रोज़गार: इसका अर्थ है, अनौपचारिक रूप से काम करने वाले लोग, बिना उचित नौकरी अनुबंध के और बिना किसी कानूनी सुरक्षा के। 
    • इन व्यक्तियों को 'बेरोजगार' माना जाता है क्योंकि उनके काम का रिकॉर्ड कभी नहीं रखा जाता है। 
    • यह भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकारों में से एक है। 

यूपीएससी सिविल सेवा, विगत वर्षों के प्रश्न: 

प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोजगारी का आम तौर पर अर्थ होता है- 

(a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं 
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है 
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है 
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है 

उत्तर:(d) 

व्याख्या: 

  • अर्थव्यवस्था प्रच्छन्न बेरोज़गारी को प्रदर्शित करती है जब उत्पादकता कम होती है और बहुत से श्रमिक ज़रूरत से ज़्यादा संख्या में कार्यरत होते है। 
  • सीमांत उत्पादकता उस अतिरिक्त उत्पादन को संदर्भित करती है जो श्रम की एक इकाई को जोड़कर प्राप्त की जाती है। 
  • चूंँकि प्रच्छन्न बेरोज़गारी में आवश्यकता से अधिक श्रमिक पहले से ही कार्य में लगे हुए हैं, इसलिये श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है। 

अतः विकल्प (c) सही है। 

स्रोत: द हिंदू