पैंडोरा पेपर्स लीक | 05 Oct 2021

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय रिज़र्व बैंक, उदारीकृत प्रेषण योजना

मेन्स के लिये

विदेशों में ट्रस्ट स्थापित करने का कारण और इसके प्रभाव, सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘पैंडोरा पेपर्स लीक’ में कई प्रमुख भारतीयों के नाम सामने आए हैं।

  • ‘पैंडोरा पेपर्स लीक’ में 300 से अधिक भारतीय नाम शामिल हैं, जिनमें 60 से अधिक प्रसिद्ध लोग भी हैं।
  • ‘पैंडोरा पेपर्स’ 14 वैश्विक कॉर्पोरेट सेवा फर्मों की 11.9 मिलियन लीक फाइलें हैं, जिन्होंने लगभग 29,000 ऑफ-द-शेल्फ कंपनियों और निजी ट्रस्टों की स्थापना की थी।

ट्रस्ट

  • परिचय:
    • ‘ट्रस्ट’ को एक प्रत्ययी व्यवस्था के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जहाँ एक तृतीय पक्ष, जिसे ट्रस्टी के रूप में संदर्भित किया जाता है, व्यक्तियों या संगठनों की ओर से संपत्ति धारित करता है।
    • ट्रस्ट एक अलग कानूनी इकाई नहीं होती है, इसकी कानूनी प्रकृति 'ट्रस्टी' में निहित होती है। कभी-कभी, 'सेटलर' एक ‘संरक्षक' की नियुक्ति करता है, जिसके पास ट्रस्टी की निगरानी करने की शक्ति होती है और वह ट्रस्टी को हटाकर एक नई नियुक्ति भी कर सकता है।
  • भारतीय कानून:
    • भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 ट्रस्ट की अवधारणा को कानूनी आधार प्रदान करता है। भारतीय कानून, ट्रस्ट को 'लाभार्थियों' के लाभ हेतु संपत्ति का प्रबंधन और उपयोग करने के लिये ट्रस्टी के दायित्व के रूप में मान्यता देते हैं। भारत ‘ऑफशोर’ ट्रस्टों को भी मान्यता देता है।

ऑफ-द-शेल्फ कंपनी:

  • 'ऑफ-द-शेल्फ' कंपनी या पूर्वनिर्मित कंपनी एक पूर्व-पंजीकृत लिमिटेड कंपनी है, हालाँकि इसने अभी तक अपना कारोबार शुरू नहीं किया होता है। एक 'ऑफ-द-शेल्फ' कंपनी तत्काल उपयोग के लिये तैयार होती है और एक निश्चित लागत का भुगतान करने के बाद इसे आसानी से खरीदा जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • ‘पैंडोरा पेपर्स लीक’ से पता चलता है कि व्यापारिक परिवारों और अति-समृद्ध व्यक्तियों द्वारा निवेश एवं अन्य संपत्तियों को रखने के उद्देश्य से ऑफशोर कंपनियों के साथ ट्रस्ट का उपयोग किया जा रहा है।
      • ट्रस्ट को प्रायः ‘टैक्स हेवन’ में स्थापित किया जा सकता है, जो सापेक्ष कर लाभ प्रदान करते हैं।
      • उदाहरण के लिये: समोआ, बेलीज़, पनामा और ब्रिटिश वर्जिन द्वीप समूह।
    • यह लीक बताती है कि किस प्रकार अमीरों ने संपत्ति नियोजन के लिये ऐसे क्षेत्राधिकारों में जटिल बहु-स्तरित ट्रस्ट संरचनाओं की स्थापना की, जहाँ कर संबंधी कानून तो काफी जटिल थे, किंतु वहाँ गोपनीयता कानून काफी सख्त हैं।
    • विभिन्न देशों द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद के वित्तपोषण और कर चोरी की बढ़ती चिंताओं के बीच ‘ऑफ-शोर संस्थाओं’ पर अपने कानूनों को कड़ा किया गया है, हालाँकि इस लीक से पता चला है कि व्यवसायों द्वारा अभी भी इन माध्यमों का प्रयोग किया जा रहा है।
      • ध्यातव्य है कि ‘पनामा’ और ‘पैराडाइज़’ पेपर्स लीक भी व्यापक पैमाने पर व्यक्तियों एवं निगमों द्वारा स्थापित ‘ऑफ-शोर’ संस्थाओं से संबंधित थे। 
  • विदेशों में ट्रस्ट स्थापित करने का कारण:
    • गोपनीयता:
      • विदेशी ट्रस्ट अपने क्षेत्राधिकार में कड़े गोपनीयता कानूनों के कारण महत्त्वपूर्ण गोपनीयता प्रदान करते हैं।
    • अलगाव बनाए रखना:
      • व्यवसायियों द्वारा निजी ‘ऑफ-शोर’ ट्रस्टों की स्थापना का मूल उद्देश्य स्वयं को अपनी अवैध संपत्ति से अलग करना है।
    • कर से बचाव:
      • व्यवसायी अपनी संपत्ति से होने वाली आय पर कर देने से बचने के लिये सभी संपत्तियों को एक ट्रस्ट में स्थानांतरित कर देते हैं।
    • ‘संपत्ति शुल्क’ से बचाव:
      • प्रायः व्यवसायियों में यह डर रहता है कि ‘संपत्ति शुल्क’, जिसे वर्ष 1985 में समाप्त कर दिया गया था, को जल्द ही फिर से प्रस्तुत किया जा सकता है।
      • इस तरह ट्रस्ट की स्थापना से भविष्य में स्वयं और आने वाली पीढ़ी को कर का भुगतान करने से बचाया जा सकता है, जो कि तकरीबन 85% था (संपदा शुल्क अधिनियम, 1953)।
    • पूंजी-नियंत्रित अर्थव्यवस्था में लचीलापन:
      • भारत एक पूंजी नियंत्रित अर्थव्यवस्था है। भारतीय रिज़र्व बैंक की उदारीकृत प्रेषण योजना (LRS) के तहत एक व्यक्ति प्रतिवर्ष केवल 2,50,000 अमेरिकी डॉलर का ही निवेश कर सकता है।
      • इस स्थिति पर नियंत्रण पाने के लिये व्यवसायियों ने अनिवासी भारतीयों की ओर रुख किया है, क्योंकि ‘विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999’ के तहत अनिवासी भारतीय भारत के बाहर अपनी वर्तमान वार्षिक आय के अलावा प्रतिवर्ष 1 मिलियन अमेरिकी डॉलर भेज सकते हैं।
        • इसके अलावा विदेशी क्षेत्राधिकार में कर की दर, भारत में 30% व्यक्तिगत आयकर दर से बहुत कम है।
  • भारतीय कराधान की अस्पष्टता:
    • भारतीय कराधान व्यवस्था में कुछ अस्पष्टताएँ हैं, जहाँ आयकर विभाग ‘ऑफ-शोर’ ट्रस्टों का मुकाबला करने में सक्षम नहीं है।
    • ‘काला धन (अघोषित विदेशी आय और संपत्ति) तथा कर अधिरोपण अधिनियम, 2015’ के लागू होने के बाद से निवासी भारतीयों को अपने विदेशी वित्तीय हितों एवं संपत्ति की रिपोर्ट करनी होती है।
      • हालाँकि अनिवासी भारतीयों के लिये यह अनिवार्य नहीं है।
    • यदि ट्रस्टी एक भारतीय निवासी है, तो आयकर विभाग कराधान उद्देश्यों के लिये एक ‘ऑफ-शोर’ ट्रस्ट को भारत का निवासी मान सकता है।
    • ऐसे मामलों में जहाँ ट्रस्टी एक ‘ऑफ-शोर’ इकाई या एक अनिवासी भारतीय है और कर विभाग यह स्थापित करता है कि ट्रस्टी एक निवासी भारतीय से निर्देश ले रहा है, तो भी ट्रस्ट को कराधान उद्देश्यों के लिये भारत का निवासी माना जा सकता है।
  • सरकारी प्रयास

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस