पाकिस्तान UNHRC के लिये फिर से निर्वाचित | 16 Oct 2020

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

मेन्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तान को 1 जनवरी, 2021 को शुरू होने वाले 'संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद' (United Nations Human Rights Council- UNHRC) के तीन वर्ष के कार्यकाल के लिये एक सदस्य के रूप में पुन: निर्वाचित किया गया है। यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि पाकिस्तान वर्तमान में 1 जनवरी, 2018 से इस संस्थान में सेवा दे रहा है। 

प्रमुख बिंदु:

  • वर्तमान में UNHRC के 47 सदस्य हैं और सीटों का बंँटवारा भोगौलिक आधार पर होता है। हाल ही में परिषद में कुल पंद्रह सदस्य देश चुने गए हैं, जिनमें से रूस और क्यूबा निर्विरोध चुने गए है। पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, नेपाल और चीन एशिया-प्रशांत क्षेत्र से चुने गए हैं।
  • पाकिस्तान को मानवाधिकारों के गंभीर उल्लंघन पर मानवाधिकार कार्यकर्त्ता समूहों द्वारा किये जाने वाले विरोध के बावजूद फिर से चुना गया है। 
    • यह पाँचवीं बार है जब पाकिस्तान को UNHRC के लिये चुना गया है।
  • ब्रिटिश सरकार के 'विदेश और राष्ट्रमंडल कार्यालय' की 'मानवाधिकार और लोकतंत्र' रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में पाकिस्तान में मानव अधिकारों के उल्लंघन के गंभीर मामले सामने आए थे। 
    • इसमें नागरिक स्थानों/सिविल स्पेस और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध, असहिष्णुता, अल्पसंख्यकों के प्रति प्रत्यक्ष एवं खुले भेदभाव जैसे मामले शामिल हैं।

चिंता के विषय:

संदिग्ध रिकॉर्ड वाले देश: 

  • मानव अधिकारों के संबंध में संदिग्ध रिकॉर्ड रखने वाले कई देशों का UNHRC में निर्वाचित होना, परिषद में प्रवेश की वर्तमान प्रणाली में सुधार की आवश्यकता उजागर करता है।
  • चीन और रूस जैसे देशों का परिषद में चुनाव UNHRC की गरिमा को नुकसान पहुँचाता है। यह 'अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार समिति' की आंतरिक संरचना और उसकी बाहरी भूमिका दोनों स्थितियों में लागू है।

गैर-प्रतिस्पर्द्धी चुनाव: 

  • विपक्ष के बिना परिषद के सदस्यों का चुनाव भी एक प्रमुख समस्या है। उदाहरण के लिये पूर्वी यूरोपीय समूह में दो सीटें उपलब्ध थीं लेकिन उन पदों को भरने के लिये केवल दो देशों को नामांकित किया गया था, जिसका मतलब है कि इन स्थानों के लिये कोई प्रतियोगिता नहीं थी। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में प्रतियोगिता को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रीय समूहों में सदस्य देश निर्विरोध चुने गए थे।

अन्य पक्ष: 

  • संदिग्ध मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले देशों के चुनाव के साथ कुछ सकारात्मक पहलू भी जुड़े हैं। संदिग्ध मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले देशों का परिषद के लिये चुने जाने की एक सिल्वर लाइनिंग है- “मानवाधिकारों के प्रति अभिभावक के रूप में उनकी स्थिति उनके अपने स्वयं के मानवाधिकारों के हनन को छिपाना कहीं अधिक कठिन बनाती है।”

आगे की राह:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने वर्ष 2018 में UNHRC के संबंध में अप्रभावशीता और पूर्वाग्रह का हवाला देते हुए खुद को इससे अलग कर लिया है। भारत के लिये यह एक परीक्षण का समय है क्योंकि पाकिस्तान को मानवाधिकारों के बारे में संदिग्ध स्थिति के बावजूद फिर से चुना गया है।
  • भारत वैश्विक शासन संस्थानों का सम्मान करता है तथा अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के प्रति अपनी प्रतिबद्धता सिद्धांतों को आधार बनाकर बिना उचित कारणों के सदस्यता छोड़ने के बजाय ऐसी घटनाओं के खिलाफ आवाज़ उठाने तथा सुधारों का समर्थन करता है।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC):

  • UNHRC की स्थापना वर्ष 2006 में हुई थी, जिसका मुख्यालय: जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
  • सदस्यों का चुनाव तीन वर्षों की अवधि के लिये किया जाता है, जिसमें अधिकतम दो कार्यकाल लगातार हो सकते हैं। 

उद्देश्य: 

  • दुनिया भर में मानवाधिकारों का प्रचार करना और उनकी रक्षा करना, साथ ही साथ कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की जाँच करना।

विशेषताएँ: 

  • UNHRC में 5 समूहों से क्षेत्रीय समूह के आधार पर तीन वर्ष के लिये 47 सदस्य चुने गए हैं।

सदस्यता: 

  • सदस्य बनने के लिये एक देश को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 191 देशों में से कम -से-कम 96 देशों (पूर्ण बहुमत) के मत प्राप्त करने आवश्यक हैं। 
  • संकल्प 60/251 के अनुसार, जिसके तहत परिषद का निर्माण किया गया था, के अनुसार, परिषद सदस्यों को संयुक्त राष्ट्र महासभा के बहुमत द्वारा सीधे गुप्त मतदान द्वारा चुना जाता है। 
  • सदस्यता को भौगोलिक रूप से समान रूप से वितरित किया गया है।

सदस्यता के लिये पाँच क्षेत्रीय समूह: 

  • अफ्रीका, एशिया-प्रशांत, लैटिन अमेरिका एवं कैरेबियन, पश्चिमी यूरोप और पूर्वी यूरोप।

सत्र: 

  • मार्च, जून और सितंबर में तीन बार नियमित सत्र आयोजित किये जाते हैं।

महत्त्व:

  • परिषद द्वारा संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों की 'सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा' (Universal Periodic Review) की जाती है, जो 'नागरिक समाज समूहों' को सदस्य देशों द्वारा किये जाने वाले मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों को संयुक्त राष्ट्र के ध्यान में लाने का अवसर देता है।

स्रोत: द हिंदू