वन हेल्थ माॅडल: आवश्यकता | 16 Mar 2020

प्रीलिम्स के लिये:

COVID-19, निपाह वायरस, KFD रोग,  वन हेल्थ माॅडल

मेन्स के लिये:

वन हेल्थ माॅडल की आवश्यकता 

चर्चा में क्यों?

COVID- 19 की भयावह स्थिति ने मानव तथा पशुओं (घरेलू एवं जंगली) के स्वास्थ्य के बीच के संबंधों को उजागर किया है, ऐसे में एकीकृत स्वास्थ्य फ्रेमवर्क- जिसे ’वन हेल्थ माॅडल’ (Onehealth Model) के रूप में भी जाना जाता है, को देश में लागू करने का यह उचित समय है।

मुख्य बिंदु: 

  • वर्ष 2018 में ‘निपाह वायरस’ के प्रकोप से निपटने के लिये केरल सरकार ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में वन हेल्थ आधारित ‘केरल मॉडल’ का सफलतापूर्वक प्रयोग किया।
  • यद्यपि ‘वन हेल्थ माॅडल’ का विचार हाल ही में सामने आया है, परंतु भारत में ‘क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़’ (Kyasanur Forest Disease- KFD) के कर्नाटक में प्रकोप के समय प्रयोग में लाया जा चुका है।

वन हेल्थ माॅडल:

  • यह एक ऐसा समन्वित माॅडल है जिसमें पर्यावरण स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य तथा मानव स्वास्थ्य का सामूहिक रूप से संरक्षण किया जाता है। 
  • यह मॉडल महामारी विज्ञान पर अनुसंधान, उसके निदान और नियंत्रण के लिये वैश्विक स्तर पर स्वीकृत मॉडल है। 
  • वन हेल्थ मॉडल, रोग नियंत्रण में अंतःविषयक दृष्टिकोण की सुविधा प्रदान करता है ताकि उभरते या मौजूदा ज़ूनोटिक रोगों को नियंत्रित किया जा सके। 
  • इस मॉडल में सटीक परिणामों को प्राप्त के लिये स्वास्थ्य विश्लेषण और डेटा प्रबंधन उपकरण का उपयोग किया जाता है। 
  • वन हेल्थ मॉडल इन सभी मुद्दों को रणनीतिक रूप से संबोधित करेगा और विस्तृत अपडेट प्राप्त करने की सुविधा प्रदान करेगा।

आवश्यकता:

  • प्राकृतिक पर्यावरण के विनाश, वैश्विक व्यापार में वृद्धि, लोगों द्वारा की जाने वाली अधिक यात्राएँ, औद्योगिक खाद्य उत्पादन प्रणाली आदि ने नवीन रोगजनकों के लिये ‘जानवरों से मनुष्यों’ में पहुँचना संभव बनाया है।
  • वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि वन्यजीव आवासों की क्षति के कारण मनुष्यों में उभरते संक्रामक रोगों के प्रसार में वृद्धि हुई है। ये वन्यजीवों से मनुष्यों में फैलते हैं, जैसे- इबोला, वेस्ट नाइल वायरस, सार्स, मारबर्ग वायरस आदि।

केरल का वन हेल्थ मॉडल:

  • केरल सरकार ने ‘निपाह वायरस’ प्रभावित लोगों की संख्या को 23 पर सीमित कर स्वास्थ्य के क्षेत्र में वन-हेल्थ आधारित ‘केरल मॉडल’ का सफलतापूर्वक प्रयोग किया।
  • इस सफलता को मज़बूत सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचा, राजनीतिक इच्छाशक्ति, राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों, बहु-विषयक टीम आदि के सहयोग से प्राप्त करना संभव हो सका।

कर्नाटक सरकार का प्रयोग:

भारत में वन हेल्थ मॉडल का एक प्रचलित उदाहरण वर्ष 1950 के दशक के उत्तरार्द्ध में ‘क्यासानूर फॉरेस्ट डिज़ीज़’ (Kyasanur Forest Disease-KFD) से निपटने में देखा गया था।

उस समय रॉकफेलर फाउंडेशन (Rockefeller Foundation), वायरस रिसर्च सेंटर  (बाद में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी) पुणे, विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) तथा बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (Bombay Natural History Society) जैसी विभिन्न संस्थाओं/इकाइयों ने एक साथ मिलकर कार्य किया।

इकाई या संस्था 

निभाई गई भूमिका 

रॉकफेलर फाउंडेशन

• योगशाला सुविधाओं सहित वित्तीय और तकनीकी सहायता

वायरस अनुसंधान केंद्र

• संभावित वाहक का पता लगाना, जाँच

WHO

• WHO फंड द्वारा समर्थित ‘बर्ड मैन ऑफ इंडिया’- सलीम अली ने इस बात का खंडन किया कि ‘पार महाद्वीपीय प्रवासी पक्षी इस रोग के रोगजनकों  के प्रसार के लिये ज़िम्मेदार हैं।’

  • इस पार-क्षेत्रीय सहयोग (Cross-Sectoral Collaboration) का आगे बहुत कम प्रयोग देखने को मिला तथा भारत में कई दशकों बाद भी एक वास्तविक ‘वन हेल्थ नीति’ का संचालन करना अभी बाकी है।

अनुमति संबंधी बाधाएँ (Permission Constraints):

  • भारत में वन हेल्थ नीति के निर्माण में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के अलावा अनेक विनियामक संस्थाओं के अधिकारियों से अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।
  • अनुमति में देरी इन रोगों के प्रति तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करने में बाधा उत्पन्न करती है, इन संस्थाओं में शामिल हैं-  
    • भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (Indian Council of Medical Research-ICMR) 
    • विदेश मंत्रालय तथा वित्त मंत्रालय (Ministries of External Affairs and Finance)
    • सशस्त्र बलों के महानिदेशालय
    • राष्ट्रीय जैव विविधता प्राधिकरण (National Biodiversity Authority)
    • जानवरों पर नियंत्रण और परीक्षणों के पर्यवेक्षण के लिये समिति (Committee for the Purpose of Control & Supervision of Experiments on Animals)
    • राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण (State Health Authorities)
    • राज्य के वन प्राधिकारी (State Forest Authorities) 
    • जैव विविधता बोर्ड (Biodiversity Board)

सरकार की पहल:

  • भारत सरकार ने हाल ही में जैव विविधता और मानव कल्याण पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Biodiversity and Human Well-being) शुरू किया है।

जैव विविधता और मानव कल्याण पर राष्ट्रीय मिशन:

  • मिशन का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन एवं संबंधित आपदाओं के प्रभावों को कम करने की दिशा में स्वास्थ्य, आर्थिक विकास, कृषि उत्पादन, आजीविका हेतु उत्पादन जैसे विभिन्न क्षेत्रों में जैव विविधता विज्ञान एवं मानव कल्याण के बीच अब तक उपेक्षित किये गए संबंध का पता लगाना है।
  • वन हेल्थ इस मिशन का एक घटक है, जिसका उद्देश्य एक स्पष्ट ढाँचे  के माध्यम से मानव स्वास्थ्य एवं जैव विविधता के मध्य संबंध स्थापित करना है। 

आगे की राह:

  • ज़ूनोटिक रोगों से निपटने का भारत के पास अग्रणी ऐतिहासिक अनुभव तथा जैव चिकित्सा अनुसंधान में मज़बूत संस्थागत ढाँचे की उपलब्धता, भारत को उभरते संक्रामक रोगों से निपटने में वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ता बनने का अवसर प्रदान करता है।
  • जिस तेज़ी से रोगजनकों का हाल ही में उभार देखने को मिला है ऐसे में अधिक पारदर्शिता तथा अंतराष्ट्रीय सहयोग युक्त  एक एकीकृत राष्ट्रीय बुनियादी ढांचे के माध्यम से वन हेल्थ माडल पर कार्य करने की तत्काल आवश्यकता है।

स्रोत: द हिंदू