ऋण पुनर्गठन पर कामथ समिति के सुझाव | 11 Sep 2020

प्रिलिम्स के लिये: 

ऋण पुनर्गठन, गैर-निष्पादित संपत्तियाँ, के. वी. कामथ समिति

मेन्स के लिये: 

भारतीय अर्थव्यवस्था पर COVID-19 का प्रभाव, COVID-19 की चुनौती से निपटने हेतु सरकार के प्रयास  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में के. वी. कामथ की अध्यक्षता में बनी एक पांच सदस्यीय विशेषज्ञ समिति ने COVID-19 महामारी के कारण आर्थिक चुनौती का सामना कर रहे कॉरपोरेट ऋणधारकों  के ऋण के एकमुश्त पुनर्गठन हेतु आवश्यक मापदंडों पर अपने सुझाव प्रस्तुत किये हैं।

प्रमुख बिंदु:

  • गौरतलब है कि अगस्त 2020 में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा COVID-19 महामारी के कारण हुई आर्थिक गिरावट के चलते कॉरपोरेट  ऋणधारकों के ऋण पुनर्गठन हेतु आवश्यक मापदंड निर्धारित करने के लिये इस समिति का गठन किया गया था।
  • इस समिति को 1,500 करोड़ रुपए या इससे अधिक के ऋण वाले ऋणधारकों के ऋण पुनर्गठन के लिये वित्तीय मापदंडों हेतु क्षेत्र विशेष के आधार पर बेंचमार्क का सुझाव देने का कार्य सौंपा गया था।
  • इस पहल के तहत सिर्फ उन्हीं कर्जदारों को ऋण पुनर्गठन की सुविधा दी जाएगी जो COVID-19 महामारी के कारण प्रभावित हुए हैं, COVID-19 से पहले के डिफाॅल्ट हुए लोन को इसमें शामिल नहीं किया जाएगा। 
  • कामथ समिति के अनुसार, COVID-19 महामारी के कारण व्यावसायिक क्षेत्र का 15.52 लाख करोड़ रुपए  का ऋण जोखिम में आ गया है, जबकि 22.20 लाख करोड़ रुपए का व्यावसायिक ऋण इस महामारी से पहले ही जोखिम/खतरे की श्रेणी में था।
  • समिति के अनुसार, खुदरा व्यापार, थोक व्यापार, सड़क और वस्त्र उद्योग जैसे क्षेत्रों से संबंधित कंपनियों पर COVID-19 महामारी के कारण दबाव बढ़ा है।
  •  गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (Non Banking Financial Company-NBFC), बिजली, इस्पात, रियल एस्टेट और निर्माण जैसे क्षेत्र COVID-19 महामारी से पहले ही दबाव में चल रहे थे।

प्रस्तावित सुझाव:

  • समिति ने कुल 26 क्षेत्रों में ऋण के पुनर्गठन के लिये 5 वित्तीय अनुपातों और क्षेत्र-विशिष्ट सीमाएँ निर्धारित की हैं।
  • ये 5 वित्तीय अनुपात निम्नलिखित हैं- 
    1. समायोजित मूर्त निवल मूल्य और कुल व्यक्तिगत देयता अनुपात
    2. कुल ऋण और EBIDTA अनुपात (To­tal debt to EBIDTA Ratio)
    3. ऋण सेवा कवरेज अनुपात (Debt Service Coverage Ratio- DSCR)
    4. चालू अनुपात (Cur­rent Ra­tio)
    5. औसत ऋण सेवा कवरेज अनुपात (Average Debt Service Coverage Ratio- ADSCR)
  • RBI द्वारा बड़े पैमाने पर समिति की सभी सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया है।  
  • RBI द्वारा प्रत्येक वित्तीय अनुपात के लिये क्षेत्र- विशिष्ट सीमा का निर्धारण कर लिया गया है।
  • इन मापदंडों का निर्धारण क्षेत्र विशेष पर COVID-19 महामारी के प्रभाव की गंभीरता के आधार पर किया गया है। उदाहरण के लिये- इस महामारी से सबसे गंभीर रूप से प्रभावित रियल स्टेट क्षेत्र को ऋण पुनर्गठन के लिये सर्वोच्च  EBIDTA अनुपात (स्वीकृति योग्य) प्रदान किया गया है।

क्रियान्वयन: 

  • इस योजना के तहत उन्हीं ऋणों के पुनर्गठन की अनुमति दी गई है जिन्हें 1 मार्च, 2020 तक मानकों के अनुरूप सही पाया गया था। 
  • बैंक RBI के दिशा-निर्देशों को ध्यान में रखते हुए अपने बोर्ड द्वारा अनुमोदित नीतियों को प्रस्तुत करेंगे, इसके साथ ही खुदरा ऋणों के पुनर्गठन के लिये भी व्यापक दिशा निर्देश निर्धारित किये जाएंगे।
  • ऐसे मामले जिनमें एक से अधिक ऋणदाता शामिल होंगे  उनमें ऋण पुनर्गठन से पहले ‘इंटर-क्रेडिटर एग्रीमेंट’ (Inter-Creditor Agreement- ICA) पर हस्ताक्षर करना अनिवार्य होगा।
  • इस रिज़ॉल्यूशन फ्रेमवर्क को 31 दिसंबर, 2020 से पहले शुरू किया जाएगा और इसे शुरू करने की तारीख से 180 दिनों से पहले लागू किया जाएगा।
  • ऋण का पुनर्गठन बची हुई अवधि को अधिकतम दो वर्षो (अधिस्थगन के साथ या बगैर) तक बढ़ाकर किया जा सकता है साथ ही इसमें ऋण को इक्विटी में बदलने का प्रावधान भी शामिल किया जा सकता है।

ऋण न चुकाने की स्थिति में: 

  • निगरानी अवधि के दौरान ऋणधारक द्वारा किसी भी ऋणदाता (ICA में शामिल) के साथ डिफाॅल्ट की स्थिति में 30 दिन की समीक्षा अवधि शुरू हो जाएगी।
  • यदि ऋणधारक इस अवधि के अंत तक डिफाॅल्ट बना रहता है तो उस स्थिति में ऋणदाताओं द्वारा उस संपत्ति को NPA घोषित कर दिया जाएगा

अन्य प्रयास:    

बैंको द्वारा खुदरा ऋणधारकों और छोटी इकाइयों के लिये भी अलग-अलग योजनाओं पर कार्य किया जा रहा है।

रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स (India Ratings) के अनुसार, बैकों द्वारा दिये गए लगभग 2.10 लाख करोड़ के गैर-व्यावसायिक ऋण (बैंकिंग ऋण का 1.9%) के भी पुनर्गठन की संभावना है, यदि इस ऋण का पुनर्गठन नहीं किया जाता है तो ये ऋण गैर-निष्पादित संपत्तियों (Non-Performing Assets- NPA) में बदल सकते हैं।   

विभिन्न क्षेत्रों पर COVID-19 महामारी का प्रभाव:  

  • फार्मा, टेलीकॉम, आईटी, ब्रोकरेज सर्विसेज, कृषि और खाद्य प्रसंस्करण, चीनी और उर्वरक आदि कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिन पर COVID-19 महामारी का प्रभाव सबसे कम देखने को मिला है।
  • जबकि पर्यटन, होटल, रेस्तरां, निर्माण, अचल संपत्ति, विमानन, शिपिंग, मीडिया और मनोरंजन आदि इस महामारी से सबसे गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं। 
  • COVID-19 महामारी के कारण प्रभावित हुए 15.5 लाख करोड़ के बैंक ऋण में सबसे अधिक खुदरा और थोक व्यापार से संबंधित (कुल लगभग 5.42 लाख करोड़) हैं। 
  • इसके साथ ही सड़क क्षेत्र में 1.94 लाख करोड़ रुपए और कपड़ा उद्योग में 1.89 लाख करोड़ रुपए के ऋण  प्रभावित हुए हैं। 
  • इसके अतिरिक्त COVID-19 महामारी के कारण कुछ अन्य क्षेत्र भी प्रभावित हुए हैं जिन्हें बैंकों द्वारा बड़ी मात्रा में ऋण उपलब्ध कराया गया था, इनमें इंजीनियरिंग (1.18 लाख करोड़ रुपए), पेट्रोलियम और कोयला उत्पादन (73,000 करोड़ रुपए), बंदरगाह (64,000 करोड़ रुपए), सीमेंट (57,000 करोड़ रुपए), रसायन (54,000 करोड़ रुपए) और होटल और रेस्तरां (46,000 करोड़ रुपए) आदि शामिल हैं। 

प्रभाव:  

  • पूर्व में सरकार द्वारा ऋण-पुनर्गठन की घोषणाओं (वित्तीय वर्ष 2008-11 और वित्तीय वर्ष 2013-19) के परिणामों के बाद पुनर्गठन तंत्र की प्रभावशीलता के संदर्भ में कुछ चिंताएँ व्यक्त की गई थी, क्योंकि ऋण पुनर्गठन के बाद भी इनमें से अधिकांश संपत्तियाँ NPA में बदल गई थी। 
    • गौरतलब है कि RBI द्वारा 1 अप्रैल, 2015 को ‘कॉर्पोरेट ऋण पुनर्गठन (Corporate Debt Restructuring- CDR) योजना’ को बंद कर दिया गया था, कई बड़े कॉर्पोरेट्स के प्रमोटर इसका लाभ लेकर बैंक फंड का दुरुपयोग कर रहे थे जिससे उनकी इकाइयों को नुकसान उठाना पड़ा।
    • इसके तहत कई कंपनियाँ बैंकों से एक से अधिक बार अपने ऋण का पुनर्गठन कराने में सफल रहीं थी, इनमें से कुछ वर्तमान में दिवालियापन की प्रक्रिया में हैं।
    • RBI द्वारा इसके बाद तीन अन्य ऋण पुनर्गठन योजनाओं की शुरुआत की गई परंतु इन योजनाओं को भी या तो सही से लागू नहीं किया गया या ऋणधारकों द्वारा इनका भी दुरुपयोग किया गया।   
  • हालाँकि RBI द्वारा इस बार ऋण के पुनर्गठन के लिये निर्धारित समय-सीमा और बाहरी पुनरीक्षण जैसे कई सुरक्षात्मक प्रावधान किये गए हैं परंतु इस योजना की सफलता बड़े पैमाने पर देश की अर्थव्यवस्था के सुधार पर निर्भर करेगी।
    • ध्यातव्य है कि वर्तमान वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में देश की अर्थव्यवस्था में लगभग 23% की गिरावट देखी गई थी।
  • रेटिंग इंडिया के अनुसार, इन ऋणों में से लगभग 53% के NPA में बदलने की संभावना अधिक है, बचे हुए 47% ऋण पर जोखिम कम है परंतु इसकी प्रगति भी COVID-19 महामारी और अर्थव्यवस्था की गति पर निर्भर करेगी।

निष्कर्ष: 

RBI द्वारा ऋण पुनर्गठन की सुविधा देने से COVID-19 के कारण आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही कंपनियों को बड़ी राहत मिलेगी। हालाँकि ऋण पुनर्गठन को एक अस्थायी समाधान के तौर पर देखा जाना चाहिये, साथ ही नियामकों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कंपनियों द्वारा ऋण पुनर्गठन के प्रावधानों का दुरुपयोग न किया जाए। 

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस