ओडीओपी: हस्तशिल्प क्षेत्र | 16 Jun 2022

प्रिलिम्स के लिये:

एक ज़िला एक उत्पाद, आत्मनिर्भर भारत, हस्तशिल्प से संबंधित योजनाएंँ। 

मेन्स के लिये:

हस्तशिल्प क्षेत्र का महत्त्व और संबंधित पहल, सरकारी नीतियांँ और हस्तक्षेप। 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में वस्त्र मंत्रालय ने राष्ट्रीय शिल्प संग्रहालय, नई दिल्ली में 'लोटा शॉप' का उद्घाटन किया। 

  • यह दुकान सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (CCIC) द्वारा खोली गई थी, जिसे सेंट्रल कॉटेज इंडस्ट्रीज एम्पोरियम के नाम से जाना जाता है। 
    • यह भारत के पारंपरिक शिल्प रूपों पर आधारित बेहतरीन दस्तकारी, स्मृति चिह्न, हस्तशिल्प और वस्त्रों को प्रदर्शित करता है। 
  • सरकार ने यह भी दोहराया कि वह 'एक ज़िला एक उत्पाद' की दिशा में काम कर रही है जो हस्तशिल्प क्षेत्र के साथ-साथ कारीगरों को भी प्रोत्साहन देगा। 

एक ज़िला एक उत्पाद: 

  • परिचय: 
    • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा 'एक ज़िला एक उत्पाद' (ODOP) शुरू किया गया था, ताकि ज़िलों को उनकी पूरी क्षमता उपभोग, आर्थिक और सामाजिक-सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देने तथा विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करने में मदद मिल सके। 
      • इसे जनवरी, 2018 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लॉन्च किया गया था, और बाद में इसकी सफलता के कारण केंद्र सरकार द्वारा अपनाया गया। 
    • यह पहल विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT), वाणिज्य विभाग द्वारा 'निर्यात हब के रूप में ज़िले (Districts as Exports Hub)' पहल के साथ की जाती है। 
      • 'निर्यात हब के रूप में ज़िले’ पहल ज़िला स्तर के उद्योगों को वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करती है ताकि लघु उद्योगों की मदद की जा सके और वे स्थानीय लोगों को रोज़गार के अवसर प्रदान कर सकें। 
  • उद्देश्य: 
    • इसका उद्देश्य एक ज़िले के उत्पाद की पहचान, प्रचार और ब्रांडिंग करना है। 
    • भारत के प्रत्येक ज़िले को उस उत्पाद के प्रचार के माध्यम से निर्यात हब में बदलना जिसमें ज़िला विशेषज्ञता रखता है। 
    • यह विनिर्माण को प्रवर्धन करके, स्थानीय व्यवसायों का समर्थन करके, संभावित विदेशी ग्राहकों को खोजकर और इसी तरह इसे पूरा करने की कल्पना करता है, अतः 'आत्मनिर्भर भारत' के दृष्टिकोण को प्राप्त करने में मदद करता है। 

भारत में हस्तशिल्प क्षेत्र की स्थिति: 

  • परिचय: 
    • हस्तशिल्प वे वस्तुएँ हैं जिनका निर्माण बड़े पैमाने पर उत्पादन विधियों और उपकरणों के बजाय सरल उपकरणों का उपयोग करके किया जाता है। जबकि बुनियादी कला और शिल्प के समान, हस्तशिल्प के साथ एक महत्त्वपूर्ण अंतर है। 
      • विभिन्न प्रयासों के परिणामस्वरूप उत्पादित इन वस्तुओं को एक विशिष्ट कार्य या उपयोग के साथ-साथ प्रकृति के सौंदर्य को बनाए रखने के लिये डिज़ाइन किया गया है।  
    • हथकरघा और हस्तशिल्प उद्योग दशकों से भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहा है। 
    • भारत लकड़ी के बर्तन, धातु के सामान, हाथ से मुद्रित वस्त्र, कढ़ाई वाले सामान, जरी के सामान, नकली आभूषण, मूर्तियाँ, मिट्टी के बर्तन, काँच के बने पदार्थ, अत्तर, अगरबत्ती आदि का उत्पादन करता है। 
  • व्यापार: 
    • भारत सबसे बड़े हस्तशिल्प निर्यातक देशों में से एक है। 
    • मार्च 2022 में, भारत से हस्तनिर्मित कालीनों को छोड़कर कुल हस्तशिल्प निर्यात 174.26 मिलियन अमेरिकी डॉलर था जिसमें फरवरी 2022 की तुलना में 8% की वृद्धि हुई। वर्ष 2021-22 के दौरान भारतीय हस्तशिल्प का कुल निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में 25.7% की वृद्धि के साथ 4.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। 
  • इस क्षेत्र का महत्त्व:  
    • सबसे बड़ा रोज़गार जनक: 
      • यह कृषि के बाद सबसे बड़े रोज़गार सृजनकर्त्ताओं में से एक है, जो देश की ग्रामीण और शहरी आबादी को आजीविका का एक प्रमुख साधन प्रदान करता है। 
      • भारतीय अर्थव्यवस्था में हस्तशिल्प सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक है, जिसमें सात मिलियन से अधिक लोग कार्यरत हैं। 
    • पर्यावरण-हितैषी: 
      • यह क्षेत्र एक आत्मनिर्भर व्यवसाय मॉडल पर कार्य करता है, जिसमें शिल्पकार अक्सर अपने स्वयं के कच्चे माल का उत्पादन करते हैं और पर्यावरण के अनुकूल शून्य-अपशिष्ट प्रथाओं के अग्रणी होने के लिये जाने जाते हैं। 
  • चुनौतियाँ: 
    • कारीगरों को धन की अनुपलब्धता, प्रौद्योगिकी की कम पहुँच, बाज़ार की जानकारी का अभाव और विकास के लिये खराब संस्थागत ढाँचे जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। 
    • इसके अलावा यह क्षेत्र हस्तनिर्मित उत्पादों के निहित अंतर्विरोध से ग्रस्त है, जो आम तौर पर उत्पादन के पैमाने के विपरीत होते हैं।  

इस क्षेत्र के विकास का समर्थन करने वाले कारक: 

  • सरकारी योजनाएँ:  
    • केंद्र सरकार अपनी क्षमता को अधिकतम करने के लिये उद्योग को विकसित करने की दिशा में सक्रिय रूप से कार्य कर रही है। 
    • कई योजनाओं और पहलों की शुरूआत से शिल्पकारों को उनके सामने आने वाली चुनौतियों से निज़ात पाने में मदद मिल रही है। 
  • समर्पित व्यापार प्लेटफार्मों का उदय:   
    • क्राफ्टेज़ी (Craftezy) जैसे कुछ मंच उभर कर सामने आए हैं जो घरेलू और वैश्विक बाज़ारों में भारतीय कारीगरों को बहुत आवश्यक समर्थन प्रदान करते हैं। 
    • ये वैश्विक हस्तशिल्प व्यापार मंच एक मुफ्त आपूर्तिकर्त्ता प्रेरण प्रक्रिया के रूप में कार्य करते हैं और इसका उद्देश्य इसे वैश्विक बाज़ार में भारत को एक संगठित छवि प्रदान करना है।   
  • समावेशन के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना: 
    • प्रौद्योगिकी जो सीमाओं को पार करने में मदद कर सकती है, हस्तशिल्प उद्योग के लिये वरदान साबित हुई है।  
    • ई-कॉमर्स ने उपभोक्ता वस्तुओं तक निर्बाध पहुँच के दरवाजे खोल दिये हैं और इसने समावेशी विकास को सक्षम किया है क्योंकि दुनिया के किसी भी हिस्से में सभी निर्माता इन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से अपने उत्पादों को प्रदर्शित कर सकते हैं। 
    • यहांँ तक कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म भी वैश्विक स्तर पर भारतीय हस्तशिल्प के विपणन में काफी मदद कर रहे हैं। 
  • निर्यात बनाम आयात: 
    • पिछले पांँच वर्षों में, भारतीय हस्तशिल्प का निर्यात 40% से अधिक बढ़ा है, क्योंकि तीन-चौथाई हस्तशिल्प को निर्यात किया जाता है। 
    • भारतीय हस्तशिल्प प्रमुख रूप से सौ से अधिक देशों को निर्यात किए जाते हैं और अकेले अमेरिका भारत के हस्तशिल्प निर्यात का लगभग एक तिहाई हिस्सा आयात करता है। 
  • कारीगरों के व्यवहार में परिवर्तन: 
    • आय में वृद्धि कारीगर नए कौशल के अनुकूल होती है जिससे ये ऐसे उत्पाद निर्मित करते हैं जो बाज़ार की नई मांँगों को पूरा करते हैं। 
    • इस प्रकार, प्रौद्योगिकी की शुरूआत और उसके आसान उपयोग के कारण, हस्तशिल्प के विक्रेताओं और खरीदारों के व्यवहार में महत्त्वपूर्ण बदलाव आया है। 

संबंधित सरकारी पहलें: 

  • अम्बेडकर हस्तशिल्प विकास योजना: 
    • कारीगरों को उनके बुनियादी ढांँचे, प्रौद्योगिकी और मानव संसाधन विकास की ज़रूरतों के साथ समर्थन देना। 
    • योजना का उद्देश्य कच्चे माल की खरीद में थोक उत्पादन और मितव्ययिता को सुविधाजनक बनाने के एजेंडे के साथ कारीगरों को स्वयं सहायता समूहों और समाजों में संगठित करना । 
  • मेगा क्लस्टर योजना: 
    • इस योजना के उद्देश्य में रोजगार सृजन और कारीगरों के जीवन स्तर में सुधार शामिल है। 
    • यह कार्यक्रम विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में हस्तशिल्प केंद्रों में बुनियादी ढांँचे और उत्पादन शृंखलाओं को बढ़ाने में क्लस्टर-आधारित दृष्टिकोण का अनुसरण करता है। 
  • विपणन सहायता और सेवा योजना: 
    • यह योजना कारीगरों को घरेलू विपणन कार्यक्रमों के लिये वित्तीय सहायता के रूप में हस्तक्षेप प्रदान करती है जो उन्हें देश और विदेश में व्यापार मेलों तथा प्रदर्शनियों के आयोजन एवं भाग लेने में सहायता करती है। 
  • अनुसंधान और विकास योजना: 
    • उपरोक्त योजनाओं के कार्यान्वयन का समर्थन करने के उद्देश्य से, इस क्षेत्र में शिल्प और कारीगरों के आर्थिक, सामाजिक, सौंदर्य और प्रचारात्मक पहलुओं पर प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिये यह पहल शुरू की गई थी। 
  • राष्ट्रीय हस्तशिल्प विकास कार्यक्रम: 
    • इस कार्यक्रम का महत्त्वपूर्ण घटक सर्वेक्षण करना, डिज़ाइन और प्रौद्योगिकी का उन्नयन, मानव संसाधन विकसित करना, कारीगरों को बीमा और ऋण सुविधाएंँ प्रदान करना, अनुसंधान एवं विकास, आधारभूत संरचना विकास और विपणन सहायता गतिविधियांँ हैं। 
  • व्यापक हस्तशिल्प क्लस्टर विकास योजना: 
    • इस योजना का दृष्टिकोण हस्तशिल्प समूहों में बुनियादी ढांँचे और उत्पादन शृंखला को बढ़ाना है। इसके अतिरिक्त, इस योजना का उद्देश्य उत्पादन, मूल्यवर्धन और गुणवत्ता आश्वासन के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचा प्रदान करना है।  
  • हस्तशिल्प के लिए निर्यात संवर्धन परिषद: 
    • परिषद का मुख्य उद्देश्य हस्तशिल्प के निर्यात को बढ़ावा देना, समर्थन, सुरक्षा, रखरखाव और वृद्धि करना है। 
    • परिषद की अन्य गतिविधियों में ज्ञान का प्रसार, सदस्यों को पेशेवर सलाह और सहायता प्रदान करना, प्रतिनिधिमंडल के दौरे और मेलों का आयोजन, निर्यातकों और सरकार के बीच संपर्क प्रदान करना तथा जागरूकता कार्यशालाएंँ आयोजित करना शामिल है। 

आगे की राह 

  • भारतीय शिल्प क्षेत्र के पास उचित समर्थन और व्यावसायिक वातावरण के साथ एक अरब डॉलर का बाज़ार बनने की संभावना है। 
  • एक व्यवस्थित दृष्टिकोण विकसित करना, जो शिल्प कौशल के आंतरिक मूल्य का पोषण करता है और उत्पाद डिज़ाइन और निर्माण के लिये रास्ते खोलता है, नए बाजारों तक पहुंँच बढ़ाएगा। 
  • साथ ही, ऑनलाइन दृश्यता और परिचालन क्षमता के लिये ई-कॉमर्स पर पूंजीकरण एक महत्त्वपूर्ण सफलता कारक साबित होगा क्योंकि यह क्षेत्र विकसित होता है तो आगे कर्षण प्राप्त करता है। 
  • वैश्वीकरण के वर्तमान समय में, हस्तशिल्प क्षेत्र में घरेलू और वैश्विक बाज़ारों में व्यापक अवसर हैं। जबकि कारीगरों की अनिश्चित स्थिति को उनके उत्थान के लिये सावधानीपूर्वक हस्तक्षेप की आवश्यकता है, सरकार पहले से ही ऐसे उपायों को अपनाकर काफी प्रगति की है, जो हस्तशिल्प उत्पादों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बना कर हमारे शिल्पकारों की स्थिति में सुधार करेंगे। 

स्रोत : पीआईबी