नाटो-रूस परिषद वार्ता | 14 Jan 2022

प्रिलिम्स के लिये:

नाटो, नाटो-रूस परिषद, यूरोपीय संघ (EU), रोम घोषणा।

मेन्स के लिये:

रूस-यूक्रेन संकट, नाटो, नाटो-रूस संबंध।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन’ (नाटो) और रूस के मध्य ब्रुसेल्स में नाटो-रूस परिषद (NRC) में यूक्रेन की मौजूदा स्थिति और यूरोप की सुरक्षा हेतु इसके निहितार्थों पर चर्चा की गई।

  • नाटो और रूस के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता बिना किसी स्पष्ट परिणाम के संपन्न हुई।

प्रमुख बिंदु

  • नाटो-रूस परिषद
    • ‘नाटो-रूस परिषद’ की स्थापना 28 मई 2002 को रोम (रोम घोषणा) में नाटो-रूस शिखर सम्मेलन में की गई थी।
      • इसने स्थायी संयुक्त परिषद (PJC) का स्थान लिया, जो कि आपसी संबंधों पर वर्ष 1997 के नाटो-रूस स्थापना अधिनियम द्वारा परामर्श और सहयोग हेतु एक मंच है।
    • ‘नाटो-रूस परिषद’ परामर्श, सर्वसम्मति-निर्माण, सहयोग, संयुक्त निर्णय और संयुक्त कार्रवाई हेतु एक तंत्र है, जिसमें व्यक्तिगत नाटो सदस्य राज्य और रूस समान हित के सुरक्षा मुद्दों के व्यापक स्पेक्ट्रम पर समान भागीदार के रूप में काम करते हैं।
  • बैठक की मुख्य विशेषताएँ:
    • नाटो ने यूरोप में एक नए सुरक्षा समझौते की रूस की मांग को खारिज कर दिया, रूस को यूक्रेन के पास तैनात सैनिकों को वापस लेने और खुले संघर्ष के खतरे को कम करने हेतु बातचीत में शामिल होने की चुनौती दी।
      • अमेरिका और यूरोपीय संघ के लिये यूक्रेन रूस के साथ एक महत्त्वपूर्ण बफर के रूप में कार्य करता है। यूक्रेन ओचाकिव में और दूसरा बर्दियांस्क में एक नौसैनिक अड्डा भी बना रहा है, जिससे रूस खुश नहीं है।
    • रूस ने नाटो में और सदस्यों को शामिल करने तथा अपने पूर्वी सहयोगियों से पश्चिमी ताकतों को वापस लेने की मांग की। इसने यह भी चेतावनी दी कि इससे "यूरोपीय सुरक्षा के लिये सबसे अप्रत्याशित और सबसे भयानक परिणाम" हो सकते हैं।
      • नाटो सहयोगियों और रूस के मध्य अत्यधिक मतभेद हैं जिन्हें पाटना आसान नहीं होगा।
  • रूस-यूक्रेन संकट पर भारत का रुख:
    • भारत पश्चिमी शक्तियों द्वारा क्रीमिया में रूस के हस्तक्षेप की निंदा में शामिल नहीं है तथा इस मुद्दे पर उसने अपना एक तटस्थ रुख रखा।
    • नवंबर 2020 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र (UN) में यूक्रेन द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया, जिसमें क्रीमिया में कथित मानवाधिकार उल्लंघन की निंदा की गई थी तथा रूस द्वारा इसका समर्थन किया गया था।

उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो):

  • नाटो की स्थापना 4 अप्रैल, 1949 की उत्तरी अटलांटिक संधि (जिसे वाशिंगटन संधि भी कहा जाता है) द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा और कई पश्चिमी यूरोपीय देशों द्वारा सोवियत संघ के खिलाफ सामूहिक सुरक्षा प्रदान करने के लिये की गई थी।
  • नाटो सामूहिक रक्षा के सिद्धांत पर काम करता है, जिसका तात्पर्य ‘एक या अधिक सदस्यों पर आक्रमण सभी सदस्य देशों पर आक्रमण माना जाता है। ज्ञातव्य है कि यह नाटो के अनुच्छेद 5 में निहित है।
  • वर्ष 2019 तक इसके सदस्य देशों की संख्या 30 थी। वर्ष 2017 में मोंटेनेग्रो इस गठबंधन में शामिल होने वाला नवीनतम सदस्य देश बन गया है।

NATO

आगे की राह

  • स्थिति का एक व्यावहारिक समाधान मिन्स्क शांति प्रक्रिया को पुनर्जीवित करना है। इसलिये पश्चिम (अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों) को दोनों पक्षों के बीच बातचीत फिर से शुरू करने तथा सीमा पर शांति बहाल करने हेतु मिन्स्क समझौते के अनुसार अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के लिये प्रेरित करना चाहिये।
  • यूरोपीय सुरक्षा को हो रहे नुकसान, मानवीय और आर्थिक लागतों को मज़बूत करने तथा यूक्रेन की संप्रभुता के लिये खतरे को रोकने हेतु अमेरिका को सभी पक्षों के साथ एक ओएससीई-मध्यस्थता प्रक्रिया में सीधे शामिल होने के लिये समझौता कीकरना चाहिये

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस