राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 | 15 Dec 2020

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) द्वारा राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- 5 (National Family Health Survey- NFHS-5) 2019-20 के पहले चरण के आँकड़े जारी किये गए हैं।

  • सभी NFHS का आयोजन अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान (International Institute for Population Sciences- IIPS) मुंबई के समन्वय से स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के नेतृत्व में किया जाता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान इसके लिये नोडल एजेंसी है।
    • IIPS की स्थापना सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट, भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र (UN) के संयुक्त प्रयोजन के तहत वर्ष 1956 में की गई थी तथा यह एशिया और प्रशांत क्षेत्र में विकासशील देशों हेतु जनसंख्या अध्ययन में प्रशिक्षण और अनुसंधान के लिये प्रमुख संस्थान है।
  • COVID-19 महामारी के कारण सर्वेक्षण के चरण 2 में (शेष राज्यों को शामिल करते हुए) देरी देखी गई तथा इसके परिणाम मई 2021 में उपलब्ध कराए जाने की उम्मीद है।

प्रमुख बिंदु:

  • सर्वेक्षण के संबंध में:
  • NFHS-5 ने 2014-19 के दौरान डेटा को इकठ्ठा किया और इसकी धारणा/अंतर्निहित वस्तु NFHS-4 (2015-16) के समान है ताकि समय के साथ तुलना की जा सके और इससे एक बदलाव भी हो।
  • यह 30 सतत विकास लक्ष्यों (SDG) जिन्हें देश को वर्ष 2030 तक हासिल करना है, को तय करने के लिये एक निर्देशक का काम करता है।
  • NFHS-5 में कुछ नए विषय जैसे- पूर्व स्कूली शिक्षा, दिव्यांगता, शौचालय की सुविधा, मृत्यु पंजीकरण, मासिक धर्म के दौरान स्नान करने की पद्धति और गर्भपात के तरीके एवं कारण आदि शामिल हैं।
  • वर्ष 2019 में पहली बार NFHS-5 ने उन महिलाओं और पुरुषों के प्रतिशत का विवरण एकत्र करने' का प्रयास किया, जिन्होंने कभी इंटरनेट का उपयोग किया है।

डेटा विश्लेषण:

  • देश भर के कई राज्यों में बाल कुपोषण का उच्च स्तर दर्ज किया गया, जबकि उन्होंने कार्यप्रणाली में बदलाव के चलते स्वच्छता, ईंधन व पीने योग्य जल तक बेहतर पहुँच प्रदान की।
    • नवीनतम डेटा राज्यों में महामारी से पहले की स्वास्थ्य स्थिति को दर्शाता है।
  • कई राज्यों में बच्चों (5 वर्ष से कम आयु) के चार प्रमुख मैट्रिक्स कुपोषण मापदंडों में अल्प सुधार या निरंतर परिवर्तन देखा गया है।
    • इन चार प्रमुख मेट्रिक्स- चाइल्ड स्टंटिंग, चाइल्ड वेस्टिंग, कम वज़न वाले बच्चों की हिस्सेदारी और बाल मृत्यु दर के आधार पर कई राज्यों में या तो सुधार या निरंतर बदलाव देखा गया है।
    • इन मेट्रिक्स के डेटा का उपयोग कई वैश्विक सूचकांकों जैसे कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स आदि में भी किया जाता है।

चाइल्ड स्टंटिंग:

  • सबसे आश्चर्यजनक परिवर्तन चाइल्ड स्टंटिंग में हुआ है, जो गंभीर कुपोषण की स्थिति को दर्शाता है और इस श्रेणी के अंतर्गत 5 वर्ष से कम उम्र के वे बच्चे आते हैं जिनकी लंबाई आयु के अनुपात में कम होती है।
  • स्टंटिंग किसी भी अन्य कारक की तुलना में एक बच्चे के संज्ञानात्मक और शारीरिक विकास पर लंबे समय तक प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
  • तेलंगाना, गुजरात, केरल, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में चाइल्ड स्टंटिंग का स्तर उच्च देखा गया है।

चाइल्ड वेस्टिंग:

  • इस श्रेणी के अंतर्गत 5 वर्ष से कम उम्र के वे बच्चे आते हैं जिनका वज़न उनकी लंबाई के अनुपात में कम होता है।
  • भारत में हमेशा चाइल्ड वेस्टिंग का उच्च स्तर रहा है।
    • चाइल्ड वेस्टिंग में कमी किये जाने के बजाय, इसमें तेलंगाना, केरल, बिहार, असम और जम्मू-कश्मीर में वृद्धि देखी गई है तथा महाराष्ट्र तथा पश्चिम बंगाल में स्थिरता की स्थिति है।

कम वज़न वाले बच्चों की हिस्सेदारी:

  • कम वज़न वाले बच्चों के अनुपात में गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, असम और केरल जैसे बड़े राज्यों में वृद्धि हुई है।

बाल मृत्यु दर:

  • नवजात शिशु मृत्यु दर (प्रति 1000 जीवित जन्मे शिशुओं मे से एक वर्ष या इससे कम उम्र में मरने वाले शिशुओं की संख्या) तथा 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर लगभग स्थिर बनी हुई है।
  • NFHS-3 (2005-05) और NFHS-4 के बीच मृत्यु दर में कम वृद्धि हुई थी। NFHS-5 और NFHS-4 के बीच पाँच वर्षों का अंतर है फिर भी कई राज्यों में बहुत कम वृद्धि देखी गई है।
  • महाराष्ट्र में बाल मृत्यु दर मूल रूप से NFHS-4 के समान है और बिहार में यह पाँच वर्षों में सिर्फ 3% कम हो पाई है।
  • बाल मृत्यु के 60% से अधिक मामलों का कारण बाल कुपोषण माना जाता है, जो कि एक प्रमुख समस्या है और इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।

इंटरनेट के उपयोग में शहरी-ग्रामीण लैंगिक अंतराल:

  • कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में इंटरनेट के उपयोग के संबंध में शहरी-ग्रामीण अंतराल के साथ-साथ लैंगिक विभाजन भी मौजूद है।
    • औसतन ग्रामीण भारत में 10 में से 3 और शहरी भारत में 10 में से 4 से भी कम महिलाएँ ऐसी हैं जिन्होंने इंटरनेट का उपयोग शायद ही किया हो।
  • सामान्य आँकड़े: औसतन 62.66% पुरुषों की तुलना में 42.6% महिलाओं ने शायद ही कभी इंटरनेट का इस्तेमाल किया हो।
  • शहरी भारत में: औसतन 73.76% पुरुषों की तुलना में 56.81% महिलाओं ने शायद ही कभी इंटरनेट का उपयोग किया है।
  • ग्रामीण भारत में: ग्रामीण भारत में 55.6% पुरुषों की तुलना में 33.94% महिलाओं ने शायद ही कभी इंटरनेट का उपयोग किया। 
    • ग्रामीण भारत में ऐसी महिलाओं का प्रतिशत कम है जिन्होंने कभी इंटरनेट का उपयोग किया हो।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस