मूडीज़ ने भारतीय अर्थव्यवस्था की रेटिंग घटाई | 02 Jun 2020

प्रीलिम्स के लिये:

सकल घरेलू उत्पाद, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी

मेन्स के लिये:

मूडीज़ द्वारा रेटिंग घटाने से भारत पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में क्रेडिट रेटिंग एजेंसी (Credit Rating Agency) मूडीज़ ने भारत की सावरेन क्रेडिट रेटिंग को ‘Baa2’ से घटाकर ‘Baa3’ कर दिया है, साथ ही चालू वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश की सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product-GDP) दर में गिरावट का भी अनुमान लगाया है।

प्रमुख बिंदु:

  • उल्लेखनीय है कि मूडीज़ ने भारत के लिये विदेशी मुद्रा (Foreign-Currency) और स्थानीय मुद्रा दीर्घकालिक जारीकर्त्ता (Local-Currency Long-Term Issuer Rating) रेटिंग को Baa2 से घटाकर Baa3 करने के साथ ही भारतीय अर्थव्यवस्था हेतु ‘निगेटिव आउटलुक’ (Negative Outlook) दृष्टिकोण बनाए रखा है।
    • किसी भी देश के ‘नेगेटिव आउटलुक’ से यह पता चलता है कि उस देश की अर्थव्यवस्था और वित्तीय प्रणाली बुरे दौर से गुजर रही है और आने वाले समय में राजकोषीय स्थिति पर दबाव बढ़ सकता है। 
    • मूडीज़ की रेटिंग प्रणाली में Baa3 निवेश ग्रेड में सबसे खराब स्तर की श्रेणी है। 
    • मूडीज़ ने नवंबर 2017 में भारत की रेटिंग को Baa3 से अद्यतन कर Baa2 किया था किंतु तीन वर्ष बाद वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए इसे घटा दिया है।
    • मूडीज़ के अनुसार, भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ते जोखिमों और आर्थिक विकास दर पहले की तुलना में कम रहने के कारण ऐसा किया गया है।
  • मूडीज़ ने मेक्सिको के लिये ‘निगेटिव आउटलुक’ दृष्टिकोण बनाए रखा है, जबकि सऊदी अरब को ‘स्थिर से निगेटिव आउटलुक’ में परिवर्तित कर दिया है। सऊदी अरब के मामले में वैश्विक तेल की मांग और कीमतों को देखते हुए ऐसा किया गया है। 

मूडीज़ का अनुमान:

  • देशभर में COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु लागू लॉकडाउन से वित्तीय वर्ष 2020-21 में देश की सकल घरेलू उत्पाद दर में 4% की गिरावट का अनुमान है। 
  • ध्यातव्य है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारत की सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि दर 11 वर्ष के निचले स्तर पर थी, जबकि राजकोषीय घाटा, सकल घरेलू उत्पाद के अनुमानित 3.8% से बढ़कर 4.6% हो गया था।
  • मूडीज़ के अनुसार, COVID-19 से पहले एवं हाल ही में जारी आर्थिक पैकेज आगामी दिनों में वास्तविक जीडीपी वृद्धि दर को 8% करने में सहायक साबित नहीं हो सकते हैं। 
  • बैंकिंग और गैर-बैंक वित्तीय संस्थान उपभोग तथा निवेशकर्त्ताओं के लिये ऋण की आपूर्ति के माध्यम से संचालित होते हैं या उनका विकास होता है। लेकिन वर्तमान दौर की हालत को देखते हुए इनकी समस्या का समाधान शीघ्रता से होने की उम्मीद नहीं है।
  • भारत की कम आय वाली आबादी सरकार के कर राजस्व आधार को सीमित कर देगी। साथ ही धीमा आर्थिक विकास सरकार के ऊपर ऋण के बोझ को कम करने की क्षमता को कम कर देगा। महामारी के कारण चालू वित्तीय वर्ष में सरकार के ऊपर कर्ज़ का बोझ सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 74% से बढ़कर 84% हो जाएगा।   

गिरावट के कारण:

  • देशभर में लॉकडाउन से आर्थिक गतिविधियाँ बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं।
  • शिक्षा, यात्रा और पर्यटन क्षेत्र को प्रतिबंधित करना भी अर्थव्यवस्था की गिरावट के प्रमुख कारणों में से एक हैं।
  • निज़ी क्षेत्रों में निरंतर निवेश की कमी।
  • नौकरियों का सृजन न हो पाना।

निष्कर्ष:

  • भारत के सामने गंभीर आर्थिक सुस्ती का खतरा है जिसके कारण राजकोषीय लक्ष्य पर दबाव बढ़ रहा है। नीति निर्माताओं के समक्ष आने वाले समय में निम्न आर्थिक वृद्धि, बिगड़ती वित्तीय स्थिति और वित्तीय क्षेत्र के जोखिम को कम करना चुनौतीपूर्ण होगा। लंबी अवधि तक वृद्धि दर में कमी से लोगों का जीवन स्तर (Living Standard) भी प्रभावित होगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस