लोकसभा की आचार समिति | 27 Oct 2023

प्रिलिम्स के लिये:

लोकसभा की आचार समिति, 'प्रश्न के बदले नकद', विशेषाधिकार समिति, संसद के सदस्यों का नैतिक और नीतिपरक आचरण।

मेन्स के लिये:

लोकसभा की आचार समिति, संसद और राज्य विधानमंडल, संरचना ,कार्यप्रणाली, व्यवसाय का संचालन, शक्तियाँ एवं विशेषाधिकार तथा इनसे उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में लोकसभा की आचार समिति ने संसद में प्रश्न पूछने के लिये "रिश्वत" लेने के आरोपी एक सांसद पर 'प्रश्न के बदले नकद' घोटाले की जाँच शुरू की है।

  • समिति आरोपों की जाँच करने और शिकायतकर्ता, गवाहों और आरोपी सांसद सहित सभी संबंधित पक्षों से सबूत इकट्ठा करने के लिये कार्यवाही करेगी।

संभावित परिणाम:

  • यदि आचार समिति को शिकायत सही पाई जाती है तो वह सिफारिशें कर सकती है। वह जिस संभावित सज़ा की सिफारिश करती है, उसमें आम तौर पर एक निर्दिष्ट अवधि के लिये सांसद का निलंबन शामिल है।
  • सदन, जिसमें सभी सांसद शामिल हैं, अंततः निर्णय करेगा कि समिति की सिफारिश को स्वीकार किया जाए अथवा नहीं और सजा की प्रकृति एवं सीमा, यदि कोई हो, तो वह निर्धारित की जाएगी।
  • यदि आरोपी को निष्कासित किया जाना था या संभावित प्रतिकूल निर्णय का सामना करना पड़ा, तो समिति इसे न्यायालय में चुनौती दे सकती थी।
    • ऐसे निर्णय को न्यायालय में चुनौती देने के आधार सीमित हैं और आम तौर पर इसमें असंवैधानिकता, घोर अवैधता या प्राकृतिक न्याय से इनकार के दावे शामिल हैं।

नोट: वर्ष 2005 में दोनों सदनों ने 10 लोकसभा सांसदों और एक राज्यसभा सांसद को निष्कासित करने के लिये प्रस्ताव को मंज़ूरी दी, जिन पर धन के बदले संसद में प्रश्न पूछने हेतु  सहमत होने का आरोप था। लोकसभा में यह प्रस्ताव बंसल समिति की रिपोर्ट पर आधारित था, जो इस मुद्दे की जाँच के लिये अध्यक्ष द्वारा गठित एक विशेष समिति थी।

  • राज्यसभा में शिकायत की जाँच सदन की आचार समिति द्वारा की गई।
  • निष्कासित सांसदों ने मांग की कि बंसल समिति की रिपोर्ट विशेषाधिकार समिति को भेजी जाए, ताकि सांसद अपना बचाव कर सकें। 

लोकसभा की आचार समिति: 

  • परिचय:
    • आचार समिति के सदस्यों की नियुक्ति अध्यक्ष द्वारा एक वर्ष की अवधि के लिये की जाती है। 
  • इतिहास:
    • वर्ष 1996 में दिल्ली में आयोजित पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में पहली बार दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के लिये आचार समिति गठित करने का विचार सामने आया।
    • तब तत्कालीन उपराष्ट्रपति (और राज्यसभा के सभापति) के.आर. नारायणन ने सदस्यों के नैतिक और नीतिपरक आचरण की निगरानी करने एवं इससे संदर्भित कदाचार के मामलों की जाँच करने के लिये 4 मार्च, 1997 को उच्च सदन की आचार समिति का गठन किया।
      • लोकसभा के मामले में वर्ष 1997 में सदन की विशेषाधिकार समिति के एक अध्ययन समूह ने एक आचार समिति के गठन की सिफारिश की, लेकिन इसे लोकसभा द्वारा अंगीकृत नहीं किया जा सका।
    • 13वीं लोकसभा के दौरान विशेषाधिकार समिति ने अंततः एक आचार समिति के गठन की सिफारिश की।
    • दिवंगत अध्यक्ष जी. एम. सी. बालयोगी ने वर्ष 2000 में एक तदर्थ आचार समिति का गठन किया, जो वर्ष 2015 में सदन का स्थायी हिस्सा बन गई।
  • शिकायतों की प्रक्रिया:
    • कोई भी व्यक्ति किसी सदस्य के विरुद्ध किसी अन्य लोकसभा सांसद के माध्यम से कथित कदाचार के साक्ष्यों और एक हलफनामे के साथ शिकायत कर सकता है, जिसमें कहा गया हो कि शिकायत "झूठी, तुच्छ या परेशान करने वाली" नहीं है।
      • यदि सदस्य स्वयं शिकायत करता है तो शपथ पत्र की आवश्यकता नहीं होती है।
    • अध्यक्ष किसी सांसद के विरुद्ध कोई भी शिकायत समिति को भेज सकता है।
    • समिति केवल मीडिया रिपोर्टों या विचाराधीन मामलों पर आधारित शिकायतों पर विचार नहीं करती है। किसी शिकायत की जाँच करने का निर्णय लेने से पूर्व समिति प्रथम दृष्टया जाँच करती है तथा शिकायत का मूल्यांकन करने के बाद अपनी सिफारिशें करती है।
    • समिति अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष को प्रस्तुत करती है, जो सदन से विचार विमर्श करता है कि क्या रिपोर्ट पर विचार किया जाना चाहिये।
      • रिपोर्ट पर आधे घंटे की चर्चा का भी प्रावधान है।
  • विशेषाधिकार समिति के साथ ओवरलैप:
    • आचार समिति और विशेषाधिकार समिति का कार्य प्रायः ओवरलैप होता है। किसी सांसद के विरुद्ध भ्रष्टाचार का आरोप किसी भी निकाय को भेजा जा सकता है, लेकिन आमतौर पर अधिक गंभीर आरोप विशेषाधिकार समिति के पास जाते हैं।
    • विशेषाधिकार समिति का कार्य "संसद की स्वतंत्रता, अधिकार और गरिमा" की रक्षा करना है।
    • इन विशेषाधिकारों का लाभ व्यक्तिगत सदस्यों के साथ-साथ संपूर्ण सदन को भी मिलता है। विशेषाधिकार के उल्लंघन के लिये एक सांसद की जाँच की जा सकती है; किसी गैर-सांसद व्यक्ति पर भी सदन के अधिकार और गरिमा को ठेस पहुँचाने वाले कार्यों के लिये विशेषाधिकार के उल्लंघन का आरोप लगाया जा सकता है।
    • आचार समिति केवल उन कदाचार के मामलों पर विचार कर सकती है जिनमें सांसद शामिल हों।