लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट-2020 | 16 Sep 2020

प्रिलिम्स के लिये :

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर, लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट-2020

मेन्स के लिये:

कशेरुक प्रजातियों की आबादी में गिरावट एवं इसके निहितार्थ

चर्चा में क्यों? 

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर’ (World Wide Fund for Nature) द्वारा जारी ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट-2020’ (Living Planet Report- 2020) के अनुसार, पिछली आधी शताब्दी में कशेरुक (Vertebrate) प्रजातियों की आबादी में बड़े पैमाने पर गिरावट आई है।

प्रमुख बिंदु:

  • कशेरुक (Vertebrate): 
    • कशेरुक वे जीव-जंतु होते हैं जिनमें रीढ़ या कशेरुक स्तंभ विद्यमान होते हैं। उनमें एक पेशी प्रणाली की भी विशेषता होती है जिसमें मुख्य रूप से द्विपक्षीय रूप से युग्मित द्रव्यमान होता है और एक केंद्रीय तंत्रिका तंत्र जो आंशिक रूप से रीढ़ की हड्डी के भीतर संलग्न होता है।
  • लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट ने कशेरुक प्रजातियों में गिरावट की गणना करने के लिये ‘लिविंग प्लैनेट इंडेक्स’ (Living Planet Index) का उपयोग किया गया है।
    • लिविंग प्लैनेट इंडेक्स’ (Living Planet Index): यह स्थलीय, मीठे पानी एवं समुद्री आवासों में कशेरुक प्रजातियों की जनसंख्या के रुझान के आधार पर दुनिया की जैव विविधता की स्थिति का आकलन करता है।
      • यह ‘इंस्टीट्यूट ऑफ ज़ूलॉजी’ (ज़ूलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन) द्वारा जारी किया जाता है।
      • वर्ष 1826 में स्थापित ‘ज़ूलॉजिकल सोसाइटी ऑफ लंदन’ वन्यजीव संरक्षण के लिये कार्य करने वाला एक ‘इंटरनेशनल कंज़र्वेशन चैरिटी’ है।
  • ‘लिविंग प्लैनेट इंडेक्स’ में वर्ष 1970 से वर्ष 2016 के बीच 4000 से अधिक कशेरुक प्रजातियों के लगभग 21,000 जीवों को ट्रैक करके रिपोर्ट को तैयार किया गया है।

रिपोर्ट से प्राप्त निष्कर्ष:

  • रिपोर्ट में वर्ष 1970 से वर्ष 2016 के बीच वैश्विक कशेरुकी प्रजातियों की आबादी में औसतन 68% की गिरावट का उल्लेख किया गया है। एशिया-प्रशांत क्षेत्र में यह गिरावट 45% है।
    • अमेरिका के उष्णकटिबंधीय उप-भागों के लिये लिविंग प्लैनेट इंडेक्स में 94% की गिरावट दुनिया के किसी भी हिस्से में दर्ज की गई सबसे बड़ी गिरावट है।
  • मीठे जल की प्रजातियों की आबादी में वर्ष 1970 के बाद से औसतन 84% की कमी आई है।
    • मीठे जल की प्रजातियों की आबादी स्थलीय या समुद्री प्रजातियों की तुलना में तेज़ी से कम हो रही है। IUCN के अनुसार, मीठे जल की प्रजातियों में से लगभग एक तिहाई प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है।
    • मीठे जल के आवासों में वन्यजीवों की आबादी में 84% की गिरावट आई है जो विशेष रूप से लैटिन अमेरिका एवं कैरिबियन देशों में प्रति वर्ष 4% की गिरावट के बराबर है।
  • आकार के संदर्भ में मेगाफौना (Megafauna) या बड़ी प्रजातियाँ अधिक असुरक्षित हैं क्योंकि वे गहन मानवजनित खतरों एवं अत्यधिक दोहन के अधीन हैं। उदाहरण- बांध निर्माण से बड़ी मछलियाँ भी प्रभावित होती हैं।
  • वर्ष 1970 के बाद से पारिस्थितिकी पदचिह्न (Ecological Footprint) पृथ्वी की पारिस्थितिकी के पुनरुत्पादन की दर को अधिक है।
    • पारिस्थितिकी पदचिह्न, पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्र पर मानवीय मांग का एक मापक है। यह मानव की मांग की तुलना पृथ्वी की पारिस्थितिकी के पुनरुत्पादन क्षमता से करता है। इसका प्रयोग करते हुए यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अगर प्रत्येक व्यक्ति एक निश्चित जीवनशैली का अनुसरण करे तो मानवता की सहायता के लिये पृथ्वी के कितने हिस्से की ज़रूरत होगी। 
  • वर्तमान में मानव की मांग पृथ्वी की पारिस्थितिकी के पुनरुत्पादन की दर की तुलना में 1.56 गुना अधिक है। 

जैव विविधता के लिये खतरा:    

  • आवास की हानि एवं क्षरण: यह पर्यावरण में परिवर्तन को संदर्भित करता है जहाँ एक प्रजाति, प्रमुख निवास स्थान की गुणवत्ता में पूर्णतः गिरावट, विखंडन के बाद भी उसमें निवास करती है। इसके सामान्य कारण हैं- अस्थिर कृषि, लॉगिंग (Logging), परिवहन, नदियों के प्रवाह में परिवर्तन आदि।
  • प्रजातियों का अतिदोहन: प्रत्यक्ष अतिदोहन अरक्षणीय (Unsustainable) शिकार एवं अवैध शिकार या दोहन को संदर्भित करता है। अप्रत्यक्ष अति दोहन तब घटित होता है जब गैर-लक्षित प्रजातियों को अनायास ही मार दिया जाता है उदाहरण के लिये मछली पकड़ने के दौरान अन्य प्रजातियों का जाल में फँसना। 
  • प्रदूषण: प्रदूषण, पर्यावरण में किसी प्रजाति के अस्तित्व को प्रत्यक्ष तौर पर प्रभावित कर सकता है। यह खाद्य उपलब्धता या प्रजनन निष्पादन को प्रभावित करके अप्रत्यक्ष रूप से भी किसी प्रजाति को प्रभावित कर सकता है।
  • आक्रामक प्रजातियाँ एवं रोग: आक्रामक प्रजातियाँ स्थान, भोजन तथा अन्य संसाधनों के लिये देशी प्रजातियों के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर सकती हैं, वे ऐसे शिकारी हो सकते हैं या बीमारियाँ फैला सकते हैं जो पहले इस पर्यावरण में मौजूद नहीं थीं।
  • जलवायु परिवर्तन: प्रजातियों पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अधिकतर अप्रत्यक्ष रूप से होता है। तापमान में परिवर्तन उन संकेतों को उलझा सकता है जो मौसमी घटनाओं जैसे प्रवास एवं प्रजनन को बढ़ावा देते हैं, जिसके कारण ये घटनाएँ गलत समय पर होती हैं। उदाहरण: पक्षियों के प्रवास पैटर्न में बदलाव।

आगे की राह: 

  • नि:संदेह यह सत्य है कि मानवता का अस्तित्व हमारी प्राकृतिक प्रणालियों पर निर्भर करता है, फिर भी हम एक खतरनाक दर से प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं।
  • यह महत्त्वपूर्ण है कि प्रकृति एवं लोगों को ध्यान में रखते हुए जैव-विविधता हानि के वक्र (Curve) को मोड़ने के लिये एक नया वैश्विक समझौता किया जाना चाहिये और राजनीतिक रूप से प्रकृति की प्रासंगिकता बढ़े तथा राज्य एवं गैर-राज्य भागीदारों द्वारा एकजुट होकर आंदोलन को बढ़ावा दिया जाए।
  • वर्ष 2017 में वैज्ञानिकों ने पेरिस जलवायु समझौते के एक भाग के रूप में 'प्रकृति के लिये एक नए वैश्विक समझौते' का प्रस्ताव पेश करते हुए एक लेख प्रकाशित किया। इसने आवास (Habitat) संरक्षण एवं पुनर्स्थापना, राष्ट्रीय और ईको-क्षेत्र पैमाने के आधार पर संरक्षण रणनीतियों को बढ़ावा देने तथा अपनी संप्रभु भूमि की रक्षा के लिये स्थानीय लोगों के सशक्तीकरण के बारे में बात की है।
  • सतत् विकास एवं जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के तहत वर्ष 2030 के एजेंडे को प्राप्त करने के लिये प्राकृतिक प्रणालियों में गिरावट के मद्देनज़र ऐसा समझौता आवश्यक है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ