KIIFB ऋण मुद्दा | 22 Jan 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ने कहा है कि महत्त्वपूर्ण बुनियादी परियोजनाओं के लिये केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB) द्वारा लिये गए ऑफ-बजट ऋण ने संविधान के अनुच्छेद 293 (1) के तहत सरकारी ऋण की निर्धारित सीमा को दरकिनार कर दिया है और ऐसे ऋणों के लिये विधायी स्वीकृति नहीं दी गई है।

  • ऑफ-बजट ऋण  एक ऐसा साधन है जिसके द्वारा सरकार राजकोषीय घाटे को कम करने के लिये अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं को निश्चित समयावधि के लिये आंशिक रूप से ऋण देती है।

संविधान के तहत ऋण हेतु प्रावधान:

  • केंद्र और राज्यों द्वारा ऋण लेना: भारत के संविधान के भाग XII में अध्याय II ऋण से संबंधित है। अनुच्छेद 292 में केंद्र सरकार और अनुच्छेद 293 में राज्यों द्वारा ऋण लिये जाने संबंधी प्रावधान हैं।
  • राज्य विधानसभाओं को सशक्त बनाना: अनुच्छेद 293 (1) राज्य विधानमंडलों को राज्य की कार्यकारी शक्तियों को ऋण लेने और गारंटी देने में सक्षम बनाने या उनकी शक्ति को सीमित करने के लिये कानूनी अधिकार प्रदान करता है।
  • केंद्र की सहमति: अनुच्छेद 293 की धारा (3) और (4) के तहत ऐसे मामलों में जहाँ राज्य सरकारों द्वारा केंद्र से लिये गए ऋण बकाया का भुगतान किया जाना हो, उस स्थिति में नए ऋण प्राप्त करने के लिये केंद्र की सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता होती है और ऐसी सहमति शर्तों के अधीन दी जा सकती है।

प्रमुख बिंदु:

मुद्दे:

  • संवैधानिक सीमा को दरकिनार किया: CAG के अनुसार, KIIFB ने संविधान के अनुच्छेद 293 के तहत सरकारी ऋण पर निर्धारित सीमा को दरकिनार कर दिया है क्योंकि इन ऋणों को विधायी स्वीकृति नहीं प्राप्त थी।
  • केंद्र की शक्तियों का अतिक्रमण: CAG ने कहा कि संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 1 की प्रविष्टि 37 के तहत केवल केंद्र को विदेशी ऋण लेने की शक्ति प्राप्त है। इस प्रकार KIIFB द्वारा लिया गया ऋण संविधान के उल्लंघन और केंद्र की शक्तियों का अतिक्रमण है।
  • पारदर्शिता का अभाव: KIIFB द्वारा लिये गए ऋण को बजट दस्तावेज़ों या खातों में नहीं दर्शाया गया है।
    • यह पारदर्शिता को लेकर संदेह पैदा करता है और ऋण की इंटर-जेनेरिक इक्विटी के कारण राज्य को ओपन मार्केट डेब्ट सहित सभी वित्तीय विवरणों को केंद्र के समक्ष प्रस्तुत करना पड़ता है, जिसमें सभी स्रोतों से प्राप्त रसीदें तथा भुगतान विवरण दिखाया जाता है।
  • बोझिल राज्य वित्त: KIIFB ने बॉण्ड जारी करके यह ऋण जुटाया जिसे पेट्रोलियम उपकर और मोटर वाहन कर के माध्यम से चुकाया जाना था।
    • CAG ने बताया कि चूँकि KIIFB के पास आय का कोई स्रोत नहीं है, इसलिये KIIFB द्वारा लिया गया ऋण (जिसके लिये राज्य गारंटर के रूप में था), अंततः राज्य सरकार के लिये प्रत्यक्ष दायित्व बन सकता है।
  • बाहरी देयताओं के समायोजन का जोखिम: राज्य को मसाला बाॅड जारी करने हेतु मंज़ूरी देने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की आलोचना की गई थी। CAG ने चिंता जताई है कि यदि इस प्रकार की प्रक्रिया को किसी अन्य राज्य द्वारा दोहराया गया, तो केंद्र की जानकारी के बिना देश की बाहरी देनदारियों में वृद्धि हो सकती है।
  • निवेश में वृद्धि: केरल सरकार द्वारा बाॅण्ड जारी किये जाने से राज्य में बहुराष्ट्रीय निगमों के माध्यम से निवेश में वृद्धि हुई, जिसे परंपरागत रूप से अपनी गैर-मैत्रीपूर्ण व्यावसायिक नीतियों, नौकरशाही की वजह से  देरी और आवर्तक औद्योगिक हड़तालों के लिये जाना जाता है।

केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड बोर्ड (KIIFB):

  • स्थापना: KIIFB की स्थापना ‘केरल इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट फंड’ का प्रबंधन करने हेतु वर्ष 1999 में केरल सरकार के वित्त विभाग के तहत हुई थी।
  • उद्देश्य: इस फंड का मुख्य उद्देश्य केरल राज्य में महत्त्वपूर्ण और बड़े बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं हेतु निवेश प्रदान करना है।
  • विशेषताएँ:
    • KIIFB भारत में पहली उप-संप्रभु इकाई थी जो अपतटीय रुपए के अंतर्राष्ट्रीय बॉण्ड बाज़ार का दोहन करती थी।
    • वर्ष 2019 में KIIFB ने लंदन स्टॉक एक्सचेंज में अपना ₹ 2,150 करोड़ का मसाला बॉण्ड जारी किया। मसाला बॉण्ड भारत के बाहर जारी किया जाने वाला बॉण्ड है, लेकिन स्थानीय मुद्रा की बजाय इसे भारतीय मुद्रा में निर्दिष्ट किया जाता है।

भूमिका में बदलाव: वर्ष 2016 में KIIFB की भूमिका बजट से परे विकास संबंधी परियोजनाओं के लिये संसाधन जुटाने हेतु निवेश बाॅण्ड के संचालक से बदलकर एक इकाई के रूप में कर दी गई थी।

केरल सरकार की चिंताएँ:

  • राज्य के विकास के लिये हानिकारक: केरल सरकार के अनुसार, KIIFB से प्राप्त धन का उपयोग स्कूलों, सड़कों, अस्पतालों आदि जैसे सार्वजनिक अवसंरचना के निर्माण के लिये किया जा रहा है और CAG के इस तरह के कदम से राज्य के हितों को चोट पहुँच सकती है।
  • एकपक्षीयता: केरल सरकार ने CAG द्वारा रिपोर्ट प्रकाशित किये जाने से पहले राज्य को टिप्पणी, अवलोकन या स्पष्टीकरण की पेशकश करने का अवसर नहीं देने पर चिंता जताई है।
  • RBI द्वारा पहले से ही स्वीकृत: केरल सरकार ने इस तथ्य को भी उजागर किया कि KIIFB बॉण्ड RBI की मंज़ूरी के बाद ही जारी किये गए थे जो कि भारत सरकार के अधीन एक केंद्रीय निकाय है, तो फिर ऐसे ऋण असंवैधानिक कैसे हो सकते हैं।
  • RBI की भूमिका: 
    • RBI, बाॅण्ड और डिबेंचर के मुद्दे तथा उनके प्रबंधन के लिये केंद्र एवं राज्य सरकारों के एजेंट के रूप में कार्य करने हेतु अधिकृत है।
    • RBI का आंतरिक ऋण प्रबंधन विभाग विभिन्न फंडों के तहत दिनांकित प्रतिभूतियों में राज्य सरकारों के अधिशेष नकद वित्त के निवेश की सुविधा के लिये राज्य सरकार को ऋण जारी करने की शक्ति रखता है।
    • यह केंद्र और राज्यों के लिये 'वेज एंड मीन्स एडवांस' (Ways and Means Advances- WMAs) का निर्माण करने तथा इसके लिये सीमाएँ तय करने हेतु भी अधिकृत है।
  • संघवाद को कमज़ोर करना: वित्तीय स्वायत्तता के विकेंद्रीकरण के लिये राज्य उप-ऋण के विनियमन हेतु  एक तंत्र प्रदान करना आवश्यक है।
    • यह राज्यों की व्यापक आर्थिक स्थिरता को बढ़ा सकता है। इसलिये अनुच्छेद 293 द्वारा केंद्र को प्रदत्त शक्ति का प्रयोग परिस्थितियों तक सीमित होना चाहिये।

आगे की राह:

  • उप-राष्ट्रीय राजकोषीय नीति की समीक्षा: चूँकि हाल के राजकोषीय झटकों जैसे-विमुद्रीकरण, जीएसटी और COVID-19 संकट के कारण राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ रहा है, इसलिये भारत की उप-राष्ट्रीय राजकोषीय नीति की समीक्षा की जानी चाहिये ताकि राज्यों को ऋण लेने में सक्षम बनाया जा सके। यह उन्हें वित्तीय स्वायत्तता का लाभ उठाने के अधिक अवसर प्रदान करेगा।
  • राज्य के राजकोषीय उत्तरदायित्व कानूनों को मान्य करना: यहाँ तक कि मैथ्यू बनाम भारत सरकार मामले में केरल उच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि अनुच्छेद 293 राज्य को ऋण लेने में सक्षम बनाता है और यह राज्यों को अपने स्वयं के राजकोषीय उत्तरदायित्व कानून (FRLs) को पारित करने का अधिकार देता है।
  • सहकारी संघवाद: CAG द्वारा उठाई गई KIIFB की विधायी चिंताओं को दूर करने की आवश्यकता है, इसके लिये केंद्र तथा केरल सरकार को जनहित में उपचारात्मक उपाय अपनाने चाहिये

स्रोत: द हिंदू