जम्मू-कश्मीर परिसीमन | 06 May 2022

प्रिलिम्स के लिये: परिसीमन आयोग और संबंधित संवैधानिक प्रावधान, लोकसभा, विधानसभा, सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 370

मेन्स के लिये: भारतीय संविधान, चुनाव, वैधानिक निकाय, परिसीमन प्रक्रिया, जम्मू-कश्मीर का परिसीमन और संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा गठित एक आयोग ने जम्मू और कश्मीर में विधानसभा एवं संसदीय क्षेत्रों के परिसीमन के लिये अपनी अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की

आयोग का गठन:

  • परिसीमन तब आवश्यक हो गया जब जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 ने विधानसभा में सीटों की संख्या बढ़ा दी।
  • तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य में 111 सीटें थीं, कश्मीर में 46, जम्मू में 37 और लद्दाख में 4, साथ ही 24 सीटें पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर (PoK) के लिये आरक्षित थीं।
  • तत्कालीन राज्य में संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन भारत के संविधान द्वारा शासित था और विधानसभा सीटों का परिसीमन जम्मू और कश्मीर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1957 के तहत तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा किया गया था।
  • वर्ष 2019 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को निरस्त करने के बाद विधानसभा और संसदीय दोनों सीटों का परिसीमन संविधान द्वारा शासित होता है।
  • परिसीमन आयोग का गठन 6 मार्च, 2020 को किया गया था।
  • इसकी अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई ने की थी, इसमें मुख्य चुनाव आयुक्त और जम्मू-कश्मीर के मुख्य चुनाव अधिकारी तथा जम्मू-कश्मीर के पांँच सांसद सहयोगी सदस्य के रूप में शामिल हैं।

किये गए बदलाव:

  • विधानसभा: आयोग ने सात विधानसभा सीटों की वृद्धि की है- जम्मू में छह (अब 43 सीटें) और कश्मीर में एक (अब 47)।
    • इसने मौजूदा विधानसभा सीटों की संरचना में भी बड़े पैमाने पर बदलाव किया है।
  • लोकसभा: इस क्षेत्र में पांँच संसदीय क्षेत्र हैं। परिसीमन आयोग ने जम्मू और कश्मीर क्षेत्र को एकल केंद्रशासित प्रदेश के रूप में रखा है।
    • आयोग ने अनंतनाग और जम्मू सीटों की सीमाएंँ पुनः निर्धारित की हैं।
    • जम्मू का पीर पंजाल क्षेत्र जिसमें पुंछ एवं राजौरी ज़िले शामिल हैं और जो पहले जम्मू संसदीय सीट का हिस्सा था, अब कश्मीर के अनंतनाग सीट में जोड़ा गया है।
    • साथ ही श्रीनगर संसदीय क्षेत्र के एक शिया बहुल क्षेत्र को बारामूला निर्वाचन क्षेत्र में शामिल कर दिया गया है।
  • कश्मीरी पंडित: आयोग ने विधानसभा में कश्मीरी प्रवासियों (कश्मीरी हिंदुओं) के कम-से-कम दो सदस्यों के प्रावधान की सिफारिश की है।
    • इसने यह भी सिफारिश की है कि केंद्र को जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) से विस्थापित व्यक्तियों को प्रतिनिधित्व देने पर विचार करना चाहिये, जो कि
    • विभाजन के बाद जम्मू चले गए थे।
  • अनुसूचित जनजाति: पहली बार अनुसूचित जनजाति के लिये कुल नौ सीटें आरक्षित हैं।

विवादास्पद गतिविधियांँ:

  • निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को केवल जम्मू-कश्मीर में फिर से खींचा जा रहा है, जबकि देश के बाकी हिस्सों के लिये परिसीमन वर्ष 2026 तक रोक दिया गया है।
  • जम्मू-कश्मीर में अंतिम परिसीमन अभ्यास वर्ष 1995 में किया गया था।
  • वर्ष 2002 में तत्कालीन जम्मू-कश्मीर सरकार ने देश के बाकी हिस्सों की तरह वर्ष 2026 तक परिसीमन अभ्यास को स्थिर करने के लिये जम्मू-कश्मीर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन किया।
  • इसे जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय और फिर सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, दोनों ने रोक को बरकरार रखा।
  • इसके अलावा जब परिसीमन एक नियम के रूप में जनगणना की आबादी के आधार पर किया जाता है, आयोग ने कहा कि यह जम्मू-कश्मीर के लिये कुछ अन्य कारकों को ध्यान में रखेगा, जिसमें आकार, दूरदर्शिता और सीमा की निकटता शामिल है।

विधानसभा सीटों में बदलाव की आवश्यकता:

  • जब परिसीमन का आधार 2011 की जनगणना है, तो परिवर्तनों का मतलब है कि 44% आबादी (जम्मू) 48% सीटों पर मतदान करेगी, जबकि कश्मीर में रहने वाले 56% लोग शेष 52% सीटों पर मतदान करेंगे।

परिसीमन:

  • निर्वाचन आयोग के अनुसार, किसी देश या एक विधायी निकाय वाले प्रांत में क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों (विधानसभा या लोकसभा सीट) की सीमाओं को तय करने या फिर से परिभाषित करने का कार्य परिसीमन है।
  • परिसीमन अभ्यास (Delimitation Exercise) एक स्वतंत्र उच्च शक्ति वाले पैनल द्वारा किया जाता है जिसे परिसीमन आयोग के रूप में जाना जाता है, इसके आदेशों में कानून का बल होता है और किसी भी न्यायालय द्वारा इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
  • किसी निर्वाचन क्षेत्र के क्षेत्रफल को उसकी जनसंख्या के आकार (पिछली जनगणना) के आधार पर फिर से परिभाषित करने के लिये वर्षों से अभ्यास किया जाता रहा है।
  • एक निर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं को बदलने के अलावा इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप राज्य में सीटों की संख्या में भी परिवर्तन हो सकता है।
  • संविधान के अनुसार, इसमें अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिये विधानसभा सीटों का आरक्षण भी शामिल है।
  • इसका मुख्य उद्देश्य भौगोलिक क्षेत्रों का एक निष्पक्ष विभाजन सुनिश्चित करने हेतु जनसंख्या के समान क्षेत्रों में समान प्रतिनिधित्व प्राप्त करना है ताकि सभी राजनीतिक दलों या चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के पास मतदाताओं की संख्या के मामले में समान अवसर हो।

परिसीमन का संवैधानिक आधार:

  • प्रत्येक जनगणना के बाद भारत की संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद-82 के तहत एक परिसीमन अधिनियम लागू किया जाता है।
  • अनुच्छेद 170 के तहत राज्यों को भी प्रत्येक जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम के अनुसार क्षेत्रीय निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।
  • एक बार अधिनियम लागू होने के बाद केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है
    • परिसीमन आयोग प्रत्येक जनगणना के बाद संसद द्वारा परिसीमन अधिनियम लागू करने के बाद अनुच्छेद 82 के तहत गठित एक स्वतंत्र निकाय है।
  • हालाँकि पहला परिसीमन राष्ट्रपति के आदेश द्वारा (चुनाव आयोग की मदद से) 1950-51 में किया गया था।
    • परिसीमन आयोग अधिनियम 1952 में अधिनियमित किया गया था।
  • 1952, 1962, 1972 और 2002 के अधिनियमों के तहत चार बार- 1952, 1963, 1973 तथा 2002 में परिसीमन आयोग का गठन किया गया था।
    • 1981 और 1991 की जनगणना के बाद कोई परिसीमन नहीं हुआ।

परिसीमन आयोग की संरचना:

  • परिसीमन आयोग का गठन भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है और यह भारत के चुनाव आयोग के सहयोग से कार्य करता है।
  • संघटन:
    • सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश
    • मुख्य चुनाव आयुक्त
    • संबंधित राज्य चुनाव आयुक्त

विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. परिसीमन आयोग के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2012)

1. परिसीमन आयोग के आदेश को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।

2. जब परिसीमन आयोग के आदेश लोकसभा या राज्य विधानसभा के समक्ष रखे जाते हैं, तो वे आदेशों में कोई संशोधन नहीं कर सकते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: C

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस