ईरान परमाणु समझौता | 05 Mar 2022

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त व्यापक कार्य योजना, ईरान और आसपास के देश।

मेन्स के लिये:

भारत के हितों को प्रभावित करने वाले भारत से जुड़े समूह और समझौते, JCPOA और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ईरान (तेहरान) के वर्ष 2015 के परमाणु समझौते को पुनर्जीवित करने हेतु एक समझौते की तलाश में ईरान तथा विश्व शक्तियों के राजनयिकों ने वियना (ऑस्ट्रिया) में फिर से मुलाकात की।

  • राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा हस्ताक्षरित ईरान परमाणु समझौता, 2015 को वर्ष 2018 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने समाप्त कर दिया था।
  • अमेरिका ने कहा कि अगर ईरान मूल समझौता शर्तों का अनुपालन करता है तथा बैलिस्टिक मिसाइल भंडार और छद्म युद्ध से संबंधित अन्य मुद्दों को संबोधित करता है तो वह इस समझौते में फिर से शामिल हो सकता है।

वर्ष 2015 का ईरान परमाणु समझौता:

  • इस सौदे को औपचारिक रूप से संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) के रूप में जाना जाता है।
  • CPOA ईरान और P5+1 देशों (चीन, फ्राँस, जर्मनी, रूस, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ या EU) के बीच वर्ष 2013 एवं वर्ष 2015 के बीच चली लंबी बातचीत का परिणाम था।
  • ईरान एक प्रोटोकॉल को लागू करने पर भी सहमत हुआ जो अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA)  के निरीक्षकों को अपने परमाणु स्थलों तक पहुँचने की अनुमति देगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित नहीं कर रहा है।
  • हालाँकि पश्चिम, ईरान के परमाणु प्रसार से संबंधित प्रतिबंधों को हटाने के लिये सहमत हो गया है, जबकि मानवाधिकारों के कथित हनन और ईरान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को संबोधित करने वाले अन्य प्रतिबंध यथावत रहेंगे।
  • अमेरिका ने तेल निर्यात पर प्रतिबंध हटाने के लिये प्रतिबद्धता व्यक्त की है, लेकिन वित्तीय लेन-देन को प्रतिबंधित करना जारी रखा है जिससे ईरान का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बाधित हुआ है।
  • फिलहाल ईरान की अर्थव्यवस्था में मंदी, मुद्रा मूल्यह्रास और मुद्रास्फीति के बाद समझौता प्रभावी होने से काफी स्थिरता आ गई है तथा इसके निर्यात में वृद्धि हो रही है।
  • मध्य पूर्व में अमेरिका के सबसे करीबी सहयोगी इज़रायल ने इस सौदे को दृढ़ता से खारिज कर दिया है और ईरान के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब जैसे अन्य देशों ने शिकायत की है कि वे वार्ता में शामिल नहीं थे, हालाँकि ईरान के परमाणु कार्यक्रम ने इस क्षेत्र के हर देश के लिये सुरक्षा ज़ोखिम पैदा कर दिया है।
  • ट्रम्प द्वारा इस सौदे को छोड़ने, बैंकिंग तथा तेल प्रतिबंधों को बहाल करने के बाद ईरान ने अपने परमाणु कार्यक्रम को बढ़ा दिया, जो वर्ष 2015 से पहले की उसकी परमाणु क्षमता का लगभग 97% है।

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अमेरिका के समझौते से हटने के बाद:

  • अप्रैल 2020 में अमेरिका ने प्रतिबंधों को वापस लेने के अपने इरादे की घोषणा की। हालाँकि अन्य साझेदारों ने इस कदम पर आपत्ति जताते हुए कहा कि अमेरिका अब इस सौदे का हिस्सा नहीं है, इसलिये वह एकतरफा प्रतिबंधों को फिर से लागू नहीं कर सकता है।
  • प्रारंभ में वापसी के बाद कई देशों ने ट्रम्प प्रशासन द्वारा दी गई छूट के तहत ईरान से तेल का आयात करना जारी रखा। एक साल बाद अमेरिका ने बहुत अधिक अंतर्राष्ट्रीय आलोचनाओं के साथ इस छूट को समाप्त कर ईरान के तेल निर्यात पर काफी हद तक अंकुश लगा दिया।
  • अन्य पक्षों ने सौदे को बनाए रखने के प्रयास में अमेरिकी बैंकिंग प्रणाली के बाहर ईरान के साथ लेन-देन की सुविधा हेतु ‘INSTEX’ के रूप में जानी जाने वाली एक वस्तु विनिमय प्रणाली शुरू की। हालाँकि  ‘INSTEX’ ने केवल भोजन एवं दवा को कवर किया, जो कि पहले से ही अमेरिकी प्रतिबंधों से मुक्त थे।
  • जनवरी 2020 में अमेरिका द्वारा शीर्ष ईरानी जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद ईरान ने घोषणा की कि वह अब अपने यूरेनियम संवर्द्धन को सीमित नहीं करेगा।

JCPOA की बहाली संबंधी चुनौतियाँ:

  • सऊदी अरब और ईरान के बीच क्षेत्रीय शीत युद्ध इस बहाली में एक बड़ी बाधा है।
  • अमेरिका और सऊदी अरब ने अमेरिका की मध्य पूर्व नीति के अनुसार ईरान का मुकाबला करने के लिये अपने द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत किया है।
  • इन देशों के बीच पारंपरिक ‘शिया’ बनाम ‘सुन्नी’ संघर्ष ने इस क्षेत्र में शांति हेतु वार्ता को मुश्किल बना दिया है।
  • ईरान वर्तमान में अपनी कई प्रतिबद्धताओं का उल्लंघन कर रहा है, जिसमें समृद्ध यूरेनियम के भंडार की सीमा का भी उल्लंघन शामिल है और यह जितना अधिक होगा सौदा उतना ही चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
  • ट्रंप प्रशासन के सौदे से पीछे हटने और पुनः प्रतिबंध लगाने के कारण ईरान अपने आर्थिक नुकसान के लिये अमेरिकी प्रतिबंधों को उत्तरदायी ठहरा रहा है।

भारत के लिये JCPOA का महत्त्व: 

  • क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को बढ़ावा:
    • ईरान पर लगे प्रतिबंधों के हटने से चाबहार, बंदर अब्बास बंदरगाह और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी से संबंधित अन्य योजनाओं में भारत के हितों का संरक्षण किया जा सकेगा।
    • यह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में चीनी उपस्थिति को बेअसर करने में भारत की मदद करेगा।
    • चाबहार के अलावा ईरान से होकर गुज़रने वाले ‘अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण पारगमन गलियारे’ (INSTC) से भारत के हितों को भी बढ़ावा मिल सकता है। गौरतलब है कि INSTC के माध्यम से पाँच मध्य एशियाई देशों के साथ कनेक्टिविटी में सुधार होगा।
  • ऊर्जा सुरक्षा:
    • अमेरिका की आपत्तियों और CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) के दबाव के कारण भारत को ईरान से तेल के आयात को शून्य करना है।
    • अमेरिका और ईरान के बीच संबंधों की बहाली से भारत को ईरान से सस्ते तेल की खरीद करने तथा अपनी ऊर्जा सुरक्षा को समर्थन प्रदान करने में सहायता मिलेगी।

आगे की राह

  • अमेरिका को न केवल ईरान के परमाणु कार्यक्रम बल्कि क्षेत्र में उसके बढ़ते शत्रुतापूर्ण व्यवहार पर भी ध्यान देना होगा। उसे नए बहुध्रुवीय विश्व की वास्तविकता को भी ध्यान में रखना होगा, जिसमें अब उसके एकतरफा नेतृत्व की गारंटी नहीं है।
  • ईरान को मध्य पूर्व में तेज़ी से बदलती गतिशीलता पर विचार करना होगा, यह देखते हुए कि हाल के वर्षों में इज़रायल ने कई मध्य पूर्वी अरब देशों के साथ अपने संबंधों को पुनर्गठित किया है।

स्रोत: द हिंदू