सीबीआई अंतरिम निदेशक | 08 Apr 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने सरकार से कहा कि केंद्रीय जाँच ब्यूरो  (Central Bureau of Investigation- CBI) के निदेशक पद पर अंतरिम नियुक्तियों को जारी नहीं रखा जा सकता है।

  • एक नियमित सीबीआई निदेशक (Regular CBI Director) की सेवानिवृत्ति के बाद अंतरिम सीबीआई निदेशक (Interim CBI Director)  नियुक्त किये जाने पर आपत्ति जताते हुए कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।

प्रमुख बिंदु:

याचिकाकर्त्ता के तर्क:

  • सरकार प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता के अंतर्गत गठित एक उच्च अधिकार प्राप्त चयन समिति के माध्यम से एक नियमित निदेशक नियुक्त करने में विफल रही थी।
  • 1946 के दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम (DSPE) की वैधानिक योजना में एक कार्यकारी आदेश के माध्यम से अंतरिम नियुक्ति की परिकल्पना शामिल नहीं थी।
  • इसके अलावा याचिकाकर्त्ता ने न्यायालय से इस बात के लिये भी आग्रह  किया कि CBI निदेशक के पद पर रिक्ति से 1-2 माह पूर्व ही केंद्र सरकार CBI  निदेशक की चयन प्रक्रिया शुरू करने हेतु एक प्रणाली विकसित करे।
  • इस संबंध में याचिकाकर्त्ता द्वारा अंजलि भारद्वाज बनाम भारत संघ (2019) मामले का संदर्भ लिया गया जो केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोगों में रिक्तियों से संबंधित था।
    • इसमें सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कहा, यह उचित होगा कि किसी विशेष रिक्ति को भरने की प्रक्रिया उस तिथि से 1-2 माह पूर्व शुरू की जाए, जिस दिन रिक्ति होने की संभावना है, ताकि रिक्ति होने और उसे भरने के मध्य अधिक समय अंतराल न हो।

केंद्रीय जांँच ब्यूरो (CBI) के बारे में:

  • CBI की स्थापना वर्ष 1963 में गृह मंत्रालय के एक प्रस्ताव द्वारा की गई थी।
  • अब CBI कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के प्रशासनिक नियंत्रण में आता है।
  • CBI की स्थापना भ्रष्टाचार निवारण पर संथानम समिति (1962–1964) द्वारा की गई थी।
  • CBI एक सांविधिक निकाय नहीं है। इसे दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के तहत  शक्तियांँ प्राप्त हैं।
  • यह केंद्रीय सतर्कता आयोग और लोकपाल को भी सहायता प्रदान करता है।
  • यह भारत की नोडल पुलिस एजेंसी भी है जो इंटरपोल सदस्य देशों की ओर से जाँच का समन्वय करती है।

CBI की कार्यप्रणाली से संबंधित मुद्दे:

  • कानूनी अस्पष्टता: कार्यों के अस्पष्ट सीमांकन और विभिन्न संस्थाओं के कार्यों के अतिव्यापन के कारण CBI की अखंडता और प्रभावकारिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
    • दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 के तहत एक राज्य के क्षेत्र के भीतर किये गए अपराधों की जांँच करने या उस जांँच को जारी रखने हेतु राज्य की सहमति महत्त्वपूर्ण है।
  • मानव संसाधनों का अभाव:  संसदीय पैनल ने वर्ष 2020 में कहा था कि सीबीआई में अधिकारियों की भारी कमी से जांच की गुणवत्ता में बाधा आ सकती है।
    • पैनल द्वारा किये गए निरीक्षण के अनुसार कार्यकारी रैंक में 789 पद, विधि अधिकारियों के 77 पद और तकनीकी अधिकारियों और कर्मचारियों के 415 पद रिक्त हैं।
  • पर्याप्त निवेश का अभाव:
    • कर्मियों के प्रशिक्षण, उपकरणों या अन्य सहायता संरचनाओं में अपर्याप्त निवेश अधिकारियों के कर्तव्यों के निर्वहन में बाधा उत्पन्न करता है।
    • एक प्रभावी आधुनिक पुलिस बल को तैयार करने में उच्च गुणवत्तापूर्ण अनुसंधान एवं प्रशिक्षण महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो पुलिस बल को बदलती सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार कार्य करने में सक्षम बनाता है।
  • जवाबदेही:
    • पिछले कुछ दशकों में सार्वजनिक जीवन और संस्थानों में पारदर्शिता और जवाबदेही जैसे गुणों में व्यापक प्रगति हुई है।
    • सभी को समान महत्त्व देते हुए सख्ती के साथ आंतरिक जवाबदेही को लागू करके पुलिस बल का मनोबल बनाए रखने की आवश्यकता है।
  • राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप:
    • यह देखते हुए कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 की धारा 4 के तहत एजेंसी का अधीक्षण और नियंत्रण व्यापक पैमाने पर कार्यपालिका में निहित है, राजनीतिक साधन के रूप में इसके प्रयोग की संभावना कभी बढ़ जाती है।

आगे की राह: 

  • यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि CBI एक औपचारिक एवं आधुनिक कानूनी ढांँचे जिसे समकालीन जांँच एजेंसियों हेतु निर्मित किया गया है, के तहत कार्य करती है। एक नए CBI अधिनियम को प्रख्यापित किया जाना चाहिये जो CBI की स्वायत्तता सुनिश्चित करता हो, साथ ही पर्यवेक्षण की गुणवत्ता में सुधार भी करता हो।
  •  CBI को राजनीतिक हस्तक्षेप से बचाए जाने की आवश्यकता है। ऐसा करने के लिये आवश्यक है कि नए अधिनियम में सरकारी हस्तक्षेप की स्थिति में अपराधी दायित्व (Criminal Culpability) को निर्धारित किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू