स्वदेशी सौर मूल्य शृंखला | 15 Sep 2025
चर्चा में क्यों?
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय वर्ष 2028 तक एक पूर्णत: स्वदेशी सौर विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करने की योजना बना रहा है, जिसमें मॉड्यूल, सेल, वेफर और इंगॉट्स शामिल होंगे।
सौर विनिर्माण मूल्य शृंखला क्या है?
- परिचय: सौर विनिर्माण मूल्य शृंखला में कच्चे माल को एक पूर्णत: कार्यात्मक सौर फोटोवोल्टिक (PV) मॉड्यूल में बदलने की संपूर्ण प्रक्रिया शामिल होती है।
- यह एक क्रमिक कार्यप्रवाह है और सामान्यतः इस शृंखला को अपस्ट्रीम (उच्च-प्रौद्योगिकी, पूंजी-गहन) तथा डाउनस्ट्रीम (श्रम-गहन) खंडों में विभाजित किया जाता है।
- मुख्य चरण:
- अपस्ट्रीम विनिर्माण (मुख्य घटक):
- पॉलीसिलिकॉन: यह प्रक्रिया क्वार्ट्ज रेत से प्राप्त धातुकर्म-ग्रेड सिलिकॉन से शुरू होती है, जिसे बाद में पॉलीसिलिकॉन में संसाधित किया जाता है।
- इंगॉट्स: पॉलीसिलिकॉन को पिघलाकर और क्रिस्टलीकृत करके बड़े, बेलनाकार ब्लॉकों (इंगॉट्स) का निर्माण किया जाता है।
- वेफर्स: इंगॉट्स को वायर सॉ की सहायता से अत्यंत पतली, डिस्क-आकार की शीट्स में काटा जाता है। ये शीट्स, जिन्हें वेफर कहा जाता है, सोलर सेल की मूल इकाई होती हैं।
- सोलर सेल: वेफर्स पर डोपिंग (फॉस्फोरस और बोरॉन मिलाकर विद्युत क्षेत्र बनाना), प्रिंटिंग (इलेक्ट्रॉनों के प्रवाह हेतु धातु संपर्क जोड़ना) और एंटी-रिफ्लेक्टिव कोटिंग (प्रकाश परावर्तन कम करने के लिये) की प्रक्रिया की जाती है। परिणामस्वरूप एक ऐसा सोलर सेल बनता है जो सूर्य के प्रकाश को विद्युत में परिवर्तित कर सकता है।
- डाउनस्ट्रीम विनिर्माण (असेंबली एवं स्थापना):
- मॉड्यूल विनिर्माण: सोलर सेल आपस में जोड़े जाते हैं, फिर उन्हें लैमिनेट कर काँच और पॉलिमर बैक शीट्स के बीच सील किया जाता है तथा फ्रेम में लगाकर एक सोलर मॉड्यूल का निर्माण किया जाता है।
- प्रणाली स्थापना एवं एकीकरण: मॉड्यूल को ऐरे के रूप में संयोजित कर इन्वर्टर, माउंटिंग संरचनाओं और वायरिंग से जोड़ा जाता है तथा इन्हें छतों, खेतों या सौर फार्मों में स्थापित किया जाता है।
- अपस्ट्रीम विनिर्माण (मुख्य घटक):
- वर्तमान स्थिति: भारत की सौर मॉड्यूल क्षमता पहले ही 100 गीगावाट तक पहुँच चुकी है, लेकिन सोलर सेल क्षमता केवल 27 गीगावाट है, जबकि इंगट और वेफर क्षमता मात्र 2.2 गीगावाट है। इससे भारत आयात, विशेषकर चीन पर, अत्यधिक निर्भर हो गया है।
- भारत आने वाले वर्षों में स्वदेशी पॉलीसिलिकॉन उत्पादन के लिये एक रोडमैप को अंतिम रूप देने का लक्ष्य रखता है।
- प्रस्तावित सुधार: एक महत्त्वपूर्ण कदम मॉडलों और निर्माताओं की अनुमोदित सूची (ALMM) का प्रस्तावित विस्तार है, जो वर्तमान में मॉड्यूल के लिये है, जिसमें सौर सेल, वेफर्स एवं इंगट शामिल हैं।
- ALMM यह अनिवार्य करता है कि सौर परियोजना डेवलपर स्वीकृत मॉडलों और निर्माताओं से ही उपकरण खरीदें। इससे घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा मिलता है और निम्न गुणवत्ता अथवा आयात-निर्भर उत्पादों पर गैर-टैरिफ बाधा के रूप में कार्य होता है।
स्वदेशी सौर मूल्य शृंखला विकसित करने में क्या चुनौतियाँ हैं?
स्मरणीय सूत्र: HURDLE
- H – High-Cost & Scale Issues (उच्च लागत एवं पैमाने की समस्याएँ): भारतीय निर्मित अवयव प्रारंभ में महँगे और कम प्रतिस्पर्द्धी होते हैं, क्योंकि उत्पादन विस्तार के साथ लागत प्रति इकाई घटने के बजाय बढ़ जाती है।
- U – Upstream Infrastructure Gaps (अपस्ट्रीम अवसंरचना अंतराल): पॉलीसिलिकॉन और वेफर निर्माण प्रौद्योगिकी-प्रधान और पूंजी-गहन है, जिसमें घरेलू अनुभव सीमित है।
- R – RoW & Land Bottlenecks (भू-अधिग्रहण एवं मार्गाधिकार अवरोध): भूमि अधिग्रहण और मार्गाधिकार से जुड़े मुद्दे परियोजनाओं को बाधित करते हैं।
- D – Delayed Power Purchase Agreements (PPAs) (विद्युत क्रय समझौतों (PPA) में विलंब): राज्यों/डिस्कॉम्स द्वारा खरीद में देरी से परियोजनाओं की व्यवहार्यता प्रभावित होती है।
- L – Lack of Experience (अनुभव का अभाव): उन्नत सौर विनिर्माण में अनुभव सीमित है।
- E – Export/Import Dependence (निर्यात/आयात निर्भरता): आयात पर निर्भरता से भेद्यता बढ़ जाती है।
सौर ऊर्जा में उपलब्धियाँ
- नवीकरणीय ऊर्जा: भारत ने 251.5 गीगावाट गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता प्राप्त कर ली है, जो वर्ष 2030 तक के 500 गीगावाट लक्ष्य का आधे से अधिक है।
- पीएम सूर्यघर योजना: भारत ने पीएम सूर्यघर योजना के तहत अब तक 20 लाख रूफटॉप सोलर प्रोजेक्ट स्थापित किये हैं और जल्द ही यह संख्या 50 लाख से अधिक होने की आशा है।
- पीएम-कुसुम योजना: पीएम-कुसुम योजना के तहत अब तक 16 लाख से अधिक सौर पंप लगाए या सौरकृत किये जा चुके हैं, जिससे प्रतिवर्ष लगभग 1.3 अरब लीटर डीज़ल की बचत हो रही है और 40 मिलियन टन CO₂ उत्सर्जन में कमी आई है।
भारत में स्वदेशी सौर मूल्य शृंखला विकसित करने हेतु किन कदमों की आवश्यकता है?
स्मरणीय सूत्र: SHINE
- S- Sustained Policy Support (निरंतर नीति समर्थन): ALMM का विस्तार करना, स्थिर PLI सुनिश्चित करना, चरणबद्ध सीमा शुल्क लागू करना और स्पष्ट तकनीकी अधिग्रहण योजनाएँ बनाना।
- H- Harness Investment (हार्नेस निवेश): ग्रीनफील्ड विनिर्माण स्थापित करना, पूंजी सहायता प्रदान करना और भूमि/राइट ऑफ वे (RoW) से संबंधी समस्याएँ हल करना।
- I- Innovation & R&D (नवाचार और अनुसंधान एवं विकास): पेरोव्स्काइट जैसी अगली पीढ़ी की तकनीकों को प्रोत्साहन प्रदान करना और सहायक उद्योगों को मज़बूत करना।
- N- Navigate Coordination (समन्वय का मार्गदर्शन/संचालन): राज्य-स्तरीय क्रियान्वयन को सुव्यवस्थित करना, डिस्कॉम की वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करना और पीएम सूर्यघर योजना व पीएम-कुसुम जैसी योजनाओं के साथ समन्वय स्थापित करना।
- E- Expand Demand (मांग का विस्तार): नीतिगत और तैनाती कार्यक्रमों के माध्यम से घरेलू सौर विनिर्माण की मांग को बढ़ाना।
निष्कर्ष
भारत का हरित ऊर्जा परिवर्तन 2070 तक नेट-ज़ीरो प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण है, जिसमें वर्ष 2047 तक 1,800 गीगावाट नवीकरणीय क्षमता और वर्ष 2070 तक 5,000 गीगावाट का लक्ष्य है। एक एकीकृत रोडमैप की आवश्यकता है: घरेलू सौर विनिर्माण विकसित करना, भूमि और RoW अवरोधों को दूर करना, PPA साइनिंग को तेज़ी से आगे बढ़ाना तथा वेफर्स, इंगट्स और पॉलीसिलिकॉन के लिये ALMM को संस्थागत बनाना, जिससे ऊर्जा सुरक्षा, स्थिरता एवं भारत का वैश्विक सौर नेतृत्व सुदृढ़ हो।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न : प्रश्न: स्वदेशी सौर विनिर्माण स्थापित करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा कीजिये तथा उन्हें दूर करने के उपाय बताइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2016)
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन को 2015 में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में लॉन्च किया गया था।
- गठबंधन में संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश शामिल हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (a)
मेन्स
प्रश्न. भारत में सौर ऊर्जा की प्रचुर संभावनाएँ हैं, हालाँकि इसके विकास में क्षेत्रीय भिन्नताएँ हैं। विस्तृत वर्णन कीजिये। (2020)