प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में सुधार | 16 Feb 2022

प्रिलिम्स के लिये:

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना 

मेन्स के लिये:

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से बाहर निकलने वाले राज्य, PMFBY संबंधी मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में महाराष्ट्र ने संकेत दिया है कि वह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से बाहर हो सकता है।

  • आंध्र प्रदेश, झारखंड, तेलंगाना, बिहार, गुजरात, पंजाब और पश्चिम बंगाल जैसे कृषि प्रधान राज्य पहले ही इस योजना से बाहर हो चुके हैं।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) से संबंधित प्रमुख प्रावधान:

  • वर्ष 2016 में PMFBY को लॉन्च किया गया तथा इसे कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा प्रशासित किया जा रहा है।
  • इसने राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (NAIS) और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना (MNAIS) को परिवर्तित कर दिया गया।
  • उद्देश्य: फसल के खराब होने की स्थिति में एक व्यापक बीमा कवर प्रदान करना ताकि किसानों की आय को स्थिर करने में मदद मिल सके।
  • क्षेत्र/दायरा: वे सभी खाद्य और तिलहनी फसलें तथा वार्षिक वाणिज्यिक/बागवानी फसलें, जिनके लिये पिछली उपज के आँकड़े उपलब्ध हैं।
  • बीमा किस्त: इस योजना के तहत किसानों द्वारा दी जाने वाली निर्धारित बीमा किस्त/प्रीमियम- खरीफ की सभी फसलों के लिये 2% और सभी रबी फसलों के लिये 1.5% है। वार्षिक वाणिज्यिक तथा बागवानी फसलों के मामले में बीमा किस्त 5% है। 
    • किसानों के हिस्से की प्रीमियम लागत का वहन राज्यों और केंद्र सरकार द्वारा सब्सिडी के रूप में बराबर साझा किया गया था।
    • हालाँकि पूर्वोत्तर भारत के राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा इस योजना के तहत बीमा किस्त सब्सिडी का 90% हिस्सा वहन किया जाता है।
  • कार्यान्वयन: इसका कार्यान्वयन पैनल में शामिल सामान्य बीमा कंपनियों द्वारा किया जाता है। कार्यान्वयन एजेंसी (IA) का चयन संबंधित राज्य सरकार बोली के माध्यम से करती है।
  • संशोधित PMFBY: संशोधित PMFBY को अक्सर PMFBY 2.0 कहा जाता है, इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं:
  • पूर्ण रूप से स्वैच्छिक: वर्ष 2020 के खरीफ सीज़न से यह सभी किसानों हेतु वैकल्पिक है।
    • इससे पहले अधिसूचित फसलों के लिये फसल ऋण/किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) खाते का लाभ उठाने वाले ऋणी किसानों के लिये यह योजना अनिवार्य थी। 
  • केंद्रीय सब्सिडी की सीमा: कैबिनेट ने इस योजना के तहत प्रीमियम दरों को असिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिये 30% और सिंचित क्षेत्रों/फसलों हेतु 25% तक सीमित करने का निर्णय लिया है। उल्लेखनीय है कि इन प्रीमियम दरों के आधार पर ही केंद्र सरकार द्वारा 50% सब्सिडी का वहन किया जाता है।
  • राज्यों को अधिक नम्यता: सरकार ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को PMFBY को लागू करने की छूट दी है और उन्हें किसी भी संख्या में अतिरिक्त जोखिम कवर/सुविधाओं का चयन करने का विकल्प दिया है।
  • IEC गतिविधियों में निवेश: बीमा कंपनियों को सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) गतिविधियों पर एकत्रित कुल प्रीमियम का 0.5% खर्च करना होता है।

PMFBY से संबंधित मुद्दे:

  • राज्यों की वित्तीय बाधाएँ: राज्य सरकारों की वित्तीय बाधाएँ और सामान्य मौसम के दौरान कम दावा अनुपात इन राज्यों द्वारा योजना को लागू न करने के प्रमुख कारण हैं।
    • राज्य ऐसी स्थिति से निपटने में असमर्थ हैं जहाँ बीमा कंपनियाँ किसानों को राज्यों और केंद्र से एकत्र किये गए प्रीमियम दर से कम मुआवज़ा देती हैं।
    • राज्य सरकारें समय पर धनराशि जारी करने में विफल रहीं जिसके कारण बीमा क्षतिपूर्ति जारी करने में देरी हुई है।
    • इससे किसान समुदाय को समय पर वित्तीय सहायता प्रदान करने की योजना का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाता है।
  • दावा निपटान संबंधी मुद्दे: कई किसान मुआवज़े के स्तर और निपटान में देरी दोनों से असंतुष्ट हैं।
    • ऐसे में बीमा कंपनियों की भूमिका और शक्ति अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है क्योकि कई मामलों में उन्होंने स्थानीय आपदा के कारण हुए नुकसान की जांँच नहीं की जिस कारण दावों का भुगतान नहीं किया।
  • कार्यान्वयन के मुद्दे: बीमा कंपनियों द्वारा उन समूहों के लिये बोली लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है जो फसल के नुकसान से प्रभावित हो सकते हैं।
    • बीमा कंपनियाँ अपनी प्रकृति के अनुसार यह कोशिश करती हैं कि जब फसल कम खराब हो तो मुनाफा कमाया जाए।
  • पहचान संबंधी मुद्दे: वर्तमान में PMFBY योजना बड़े और छोटे किसानों के बीच अंतर नहीं करती है तथा इस प्रकार पहचान के मुद्दे को भी सामने लाती है। छोटे किसान सर्वाधिक कमज़ोर वर्ग हैं।

आगे की राह 

  • PMFBY में सुधारः अगर किसान प्रीमियम पर 95-98% सब्सिडी के बावजूद फसल बीमा को लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं तो इसका मतलब है कि उत्पादन में सुधार की ज़रूरत है।
  • इस लिहाज से बीमा कंपनियों को एक क्लस्टर के लिये करीब तीन साल की बोली लगानी चाहिये, ताकि उन्हें अच्छे और बुरे दोनों वर्षों (फसल उत्पादन के सकारात्मक एवं नकारात्मक संदर्भ में) के उचित प्रबंधन का बेहतर मौका मिल सके।
  • खरीफ/रबी सीज़न की शुरुआत से पहले बोलियाँ बंद कर दी जानी चाहिये।
  • बीड मॉडल को अपनाना: महाराष्ट्र में 'बीड मॉडल’ का पालन किया जा रहा है', जहांँ एक बीमा फर्म को सकल प्रीमियम के 110 प्रतिशत से अधिक के दावों पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है। बीमाकर्त्ता को नुकसान (पूल राशि) से बचाने के लिये एकत्र किये गए प्रीमियम के 110 प्रतिशत से अधिक मुआवज़े की लागत राज्य सरकार को वहन करनी होगी। 
    • यह मॉडल मौजूदा जटिलताओं से निकलने का रास्ता प्रदान कर सकता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ