ह्यूमन पैनजीनोम मैप | 23 May 2023

प्रिलिम्स के लिये:

ह्यूमन पैनजीनोम मैप, जीनोम, डीएनए, जीन, रेफरेंस जीनोम, जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट

मेन्स के लिये:

ह्यूमन पैनजीनोम मैप और इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में नेचर जर्नल में एक नया अध्ययन प्रकाशित हुआ है, जिसमें मुख्य रूप से अफ्रीका के साथ-साथ कैरिबियन, अमेरिका, पूर्वी एशिया और यूरोप के 47 गुमनाम व्यक्तियों (19 पुरुष तथा 28 महिलाएँ) के जीनोम का उपयोग करके बनाया गया पैनजीनोम रेफरेंस मैप का वर्णन किया गया है।

जीनोम: 

  • परिचय: 
    • जीनोम जीवन के लिये एक रूपरेखा या निर्देश पुस्तिका की तरह है। इसमें हमारे सभी जीन तथा जीनों के बीच का अंतर शामिल होता है जो हमारे गुणसूत्र का निर्माण करते हैं।
    • हमारे गुणसूत्र डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (Deoxyribonucleic Acid- DNA) से बने होते हैं, जो न्यूक्लियोटाइड्स या बेस (A, T, G और C) नामक चार बिल्डिंग ब्लॉक्स से बना एक लंबा तंतु है। इन बिल्डिंग ब्लॉक्स को विभिन्न संयोजनों में व्यवस्थित किया जाता है और 23 जोड़ी गुणसूत्रों को बनाने के लिये लाखों बार दोहराया जाता है।
    • जीनोम हमारे जेनेटिक मेकअप के बारे में मूल्यवान जानकारी प्रदान करता है और शोधकर्त्ताओं को मानव जीव विज्ञान तथा स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं का पता लगाने में मदद करता है।
  • जीनोम अनुक्रमण: 
    • जीनोम अनुक्रमण वह विधि है जिसका उपयोग चार न्यूक्लियोटाइड्स (A, T, G और C) के सटीक क्रम के निर्धारण तथा उन्हें गुणसूत्रों में कैसे व्यवस्थित किया जाए, के लिये किया जाता है।
    • अलग-अलग जीनोम का अनुक्रमण करके वैज्ञानिक मानव आनुवंशिक विविधता के बारे में जान सकते हैं और यह समझ सकते हैं कि कुछ बीमारियाँ हमें कैसे प्रभावित करती हैं।

संदर्भ जीनोम:

  • परिचय:
    • संदर्भ जीनोम या संदर्भ मानचित्र एक मानक मानचित्र की तरह होता है जिसका उपयोग वैज्ञानिक तब करते हैं जब वे नए जीनोम का अनुक्रम और अध्ययन करते हैं। यह नए अनुक्रमित जीनोम एवं संदर्भ जीनोम के बीच के अंतरों की तुलना करने तथा समझने हेतु’ दिशा-निर्देश  के रूप में कार्य करता है।
  • महत्त्व: 
    • वर्ष 2001 में बनाया गया पहला संदर्भ जीनोम एक महत्त्वपूर्ण वैज्ञानिक उपलब्धि थी। इसने वैज्ञानिकों को रोग-संबंधी जीन खोजने, कैंसर जैसी बीमारियों के आनुवंशिक पहलुओं को समझने एवं नए नैदानिक परीक्षण विकसित करने में मदद की। हालाँकि इसकी कमियों के कारण यह उपयोगी नहीं था।
  • दोष: 
    • यह ज़्यादातर अफ्रीकी और यूरोपीय मिश्रित वंश के व्यक्ति के जीनोम पर आधारित था और इसमें कुछ अंतराल और कमियाँ थीं।
    • जबकि नया संदर्भ जीनोम या पैन-जीनोम व्यापक और त्रुटि मुक्त है, फिर भी यह मानव आनुवंशिकी की पूर्ण विविधता का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।

पैन जीनोम मैप: 

  • पैन जीनोम मैप: 
    • पैन जीनोम, पिछले रैखिक संदर्भ जीनोम के विपरीत एक ग्राफ के रूप में दर्शाया गया है। पैन जीनोम में प्रत्येक गुणसूत्र की नोड्स के साथ बाँस के तने के रूप में कल्पना की जा सकती है।
    • ये नोड्स अनुक्रमों के विस्तार को प्रदर्शित करते हैं जो सभी 47 व्यक्तियों के बीच अनुक्रमों का खंड अभिसरण (समान) हैं। नोड्स के बीच इंटरनोड्स लंबाई में भिन्न होते हैं एवं विभिन्न वंशों के व्यक्तियों के बीच आनुवंशिक भिन्नता को प्रदर्शित करते हैं।
    • पैन-जीनोम परियोजना में गुणसूत्रों के पूर्ण और निरंतर मानचित्रण के लिये शोधकर्त्ताओं ने लॉन्ग-रीड DNA अनुक्रमण नामक एक तकनीक का उपयोग किया जिसके द्वारा सटीक एवं लॉन्ग DNA स्ट्रैंड का उत्पादन कर पूर्ण और निरंतर गुणसूत्र मानचित्रण किया जा सकता है।
  • पैन जीनोम मैप का महत्त्व: 
    • हालाँकि कोई भी दो इंसान अपने DNA का 99% से अधिक हिस्सा साझा कर सकते हैं, किंतु फिर भी किन्हीं दो व्यक्तियों के मध्य लगभग 0.4% DNA का अंतर रहता है। यह अंतर कम हो सकता है लेकिन मानव जीनोम (3.2 बिलियन न्यूक्लियोटाइड्स) के विशाल आकार को देखते हुए यह अंतर जो कि लगभग 12.8 मिलियन न्यूक्लियोटाइड्स का है, महत्त्वपूर्ण हो जाता है।
    • मानव जीनोम का एक पूर्ण और सटीक पैन जीनोम मैप इन अंतरों को बेहतर ढंग से समझने एवं इंसानों के मध्य विविधता की व्याख्या करने में मदद कर सकता है
    • यह आनुवंशिक विविधताओं का अध्ययन करने में भी सहायता करेगा जो अंतर्निहित स्वास्थ्य स्थितियों में योगदान करते हैं
    • हालाँकि वर्तमान मैप/मानचित्रण में भारतीयों के जीनोम शामिल नहीं हैं, फिर भी यह मौजूदा ऐक्यूरेट रेफरेंस जीनोम के सम्मुख भारतीय जीनोम की तुलना और मानचित्रण करने में सहायक होगा।
    • भविष्य का पैन जीनोम मानचित्रण उच्च गुणवत्ता वाले भारतीय जीनोम सहित देश के भीतर विविध और अलग-थलग आबादी को समाहित करते हुए रोगों की व्यापकता, दुर्लभ रोगों से संबंधित नए जीनों की खोज, बेहतर नैदानिक ​​तरीकों तथा इन रोगों के लिये उचित दवाओं के विकास में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करेंगे। 
  • कमियाँ: 
    • हालाँकि वर्तमान पैन जीनोम मैप में अफ्रीका, भारतीय उपमहाद्वीप, एशिया और ओशिनिया में स्वदेशी समूहों तथा पश्चिम एशियाई क्षेत्रों जैसी विविध आबादी के प्रतिनिधित्व का अभाव है। 

भारत में जीनोम मैपिंग पहल की स्थिति: 

  • अप्रैल 2023 में सरकार ने घोषणा की कि उसका लक्ष्य जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट (GIP) के तहत वर्ष 2023 के अंत तक 10,000 जीनोम का अनुक्रम करना है। 
  • GIP का उद्देश्य भारतीय जीनोम का एक डेटाबेस बनाना है, शोधकर्त्ता इन अद्वितीय आनुवंशिक रूपों के बारे में जान सकते हैं और दवाओं के निर्माण एवं उपचार के लिये व्यक्तिगत जानकारी का उपयोग कर सकते हैं। 
    • यूनाइटेड किंगडम, चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका उन देशों में से हैं जिनके पास अपने जीनोम के कम-से-कम 1,00,000 अनुक्रमों के लिये कार्यक्रम हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में कृषि के संदर्भ में प्रायः समाचारों में आने वाले ' जीनोम अनुक्रमण (जीनोम सीक्वेंसिंग)' की तकनीक का आसन्न भविष्य में किस प्रकार उपयोग किया जा सकता है? (2017) 

  1. विभिन्न फसली पौधों में रोग प्रतिरोध और सूखा सहिष्णुता के लिये आनुवंशिक सूचकों का अभिज्ञान करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया जा सकता है।
  2. यह तकनीक फसली पौधों की नई किस्मों को विकसित करने में लगने वाले आवश्यक समय को घटाने में मदद करती है।
  3. इसका प्रयोग फसलों में पोषी-रोगाणु संबंधों को समझने के लिये किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

  • चीनी वैज्ञानिकों ने वर्ष 2002 में चावल के जीनोम को डिकोड किया। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के वैज्ञानिकों ने चावल की बेहतर किस्मों जैसे- पूसा बासमती-1 और पूसा बासमती-1121 को विकसित करने के लिये जीनोम अनुक्रमण का उपयोग किया, जिसने वर्तमान में भारत के चावल निर्यात में काफी हद तक वृद्धि की है। कई ट्रांसजेनिक किस्में भी विकसित की गई हैं, जिनमें कीट प्रतिरोधी कपास, शाकनाशी सहिष्णु सोयाबीन और वायरस प्रतिरोधी पपीता शामिल हैं। अत: कथन 1 सही है।
  • पारंपरिक प्रजनन में पादप प्रजनक अपने खेतों की जाँच करते हैं और उन पौधों की खोज करते हैं जो वांछनीय लक्षण प्रदर्शित करते हैं। ये लक्षण उत्परिवर्तन नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से उत्पन्न होते हैं, लेकिन उत्परिवर्तन की प्राकृतिक दर उन सभी पौधों में लक्षणों को उत्पन्न करने के लिये बहुत धीमी और अविश्वसनीय है जो कि प्रजनक चाहते हैं। हालाँकि जीनोम अनुक्रमण में कम समय लगता है, इस प्रकार यह अधिक बेहतर विकल्प है। अत:  कथन 2 सही है।
  • जीनोम अनुक्रमण एक फसल के संपूर्ण डीएनए अनुक्रम का अध्ययन करने में सक्षम बनाता है, इस प्रकार यह रोगजनकों के अस्तित्व या प्रजनन क्षेत्र को समझने में सहायता प्रदान करता है। अत:  कथन 3 सही है।
  • अतः विकल्प (D) सही है।

स्रोत: द हिंदू