FPI पर एच.आर. कार्यसमूह | 25 May 2019

चर्चा में क्यों?

पिछले साल भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (Securities and Exchange Board-SEBI) ने  RBI के पूर्व डिप्टी गवर्नर एच.आर. खान की अध्यक्षता में गठित कार्यसमूह की रिपोर्ट जारी की थी।

  • रिपोर्ट में कहा गया था कि अंतर्राष्ट्रीय निवेशक भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये पूंजी के प्रमुख स्रोत हैं, इसलिये अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों के लिये एक सामंजस्यपूर्ण और परेशानी मुक्त निवेश अनुभव सुनिश्चित किया जाना चाहिये। साथ ही आर्थिक नियमों के प्रस्तुतिकरण के साथ-साथ पारदर्शिता में सुधार पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया जाना चाहिये।
  • इस पृष्ठभूमि के आलोक में समूह के प्राथमिक उद्देश्य विदेशी पोर्टफोलियो निवेश ढाँचे का उदारीकरण, समेकन, सरलीकरण एवं युक्तिकरण था।

प्रमुख सिफारिशें

  • भारतीय बाज़ार में विदेशी प्रवाह को प्रोत्साहित करने के लिये नियमों को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये। इसके लिये समूह ने सरलीकृत पंजीकरण प्रक्रिया के साथ-साथ निवेशकों हेतु तीव्र बोर्डिंग प्रक्रिया (Boarding Procedure) का प्रस्ताव दिया है।
  • समूह ने श्रेणी I के विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) के पंजीकरण, अपारदर्शी संरचना को हटाने और उचित रूप से विनियमित संस्थाओं के लिये विस्तृत परिस्थितियों पर आधारित समीक्षा हेतु पेंशन फंडों पर विचार करने की सिफारिश की है।
  • समूह ने कॉर्पोरेट ऋण प्रतिभूतियों में निवेश के लिये सॉवरेन वेल्थ फंड (Sovereign Wealth Funds-SWFs) पर प्रतिबंध, ऑफ-मार्केट लेनदेन (Off-Market Transactions) के लिये FPI की अनुमति और FPI में विदेशी निवेश हेतु निषिद्ध क्षेत्रों की समीक्षा के लिये एक उदार निवेश स्तर (Liberalised Investment Cap) का प्रस्ताव किया है।
  • समिति ने FPI और वैकल्पिक निवेश कोष (Alternative Investment Funds-AIFs) के लिये विनियमों के संयोजन एवं एफपीआई नियमों तथा विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (Foreign Exchange Management Act-FEMA) में निवेश प्रतिबंधों को लेकर सामंजस्य बनाने का भी प्रस्ताव किया है।
  • म्यूचुअल फंड (Mutual Funds) में FPI निवेश पर प्रतिबंध के संदर्भ में समूह ने विचार-विमर्श किये जाने की सिफारिश की है।
  • विदेशी पोर्टफोलियो निवेश किसी देश में धनराशि की प्रविष्टि का वह तरीका है जिसमें किसी भी देश का नागरिक किसी अन्य देश के बैंक में धन जमा करता है या दूसरे देशों  के स्टॉक और बॉण्ड बाज़ारों में खरीदारी करता है।

FPIs क्यों महत्वपूर्ण है?

  • FPI इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वे भारतीय शेयर बाज़ारों के लिये प्रमुख निवेशक रहे हैं।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की श्रेणियाँ

  • श्रेणी I (कम जोखिम): इसमें सरकार और विदेशी केंद्रीय बैंक, सॉवरिन वेल्थ फंड, बहुपक्षीय संगठन आदि शामिल होंगे।
  • श्रेणी II: इसमें बड़े पैमाने पर विनियमित संस्थान, व्यक्ति, व्यापक आधार वाली निधि (Broad-Based Funds) और विश्वविद्यालय, पेंशन एवं बंदोबस्ती निधि शामिल हैं।
  • श्रेणी III (उच्च जोखिम): इसमें वे FPIs शामिल होंगे जो उक्त दोनों श्रेणियों में शामिल होने के योग्य नहीं हैं।

वैकल्पिक निवेश कोष (Alternative Investment Fund-AIF)

  • AIFs किसी ट्रस्ट या कंपनी या कॉर्पोरेट निकाय या LLP (Limited Liability Partnership) के रूप में निजी तौर पर जमा किये गए निवेश फंड हैं, जिन्हें वर्तमान में सेबी के किसी भी विनियमन द्वारा कवर नहीं किया जाता है और न ही ये किसी अन्य के प्रत्यक्ष विनियमन (IRDA, PFRDA, RBI में सेक्टोरल रेगुलेटर) के तहत आते हैं।
  • अतः भारत में AIFs निजी फंड हैं जो भारत में किसी भी नियामक एजेंसी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आते हैं।
  • AIF की श्रेणियाँ:
  • श्रेणी I AIF: वे AIF जो आमतौर पर स्टार्ट-अप या प्रारंभिक चरण के उपक्रमों में निवेश करते हैं जिन्हें सरकार या नियामक सामाजिक या आर्थिक रूप से वांछनीय मानते हैं। जैसे- वेंचर कैपिटल फंड (एंजेल फंड्स सहित), एसएमई फंड्स।
  • श्रेणी II AIF: ये AIF श्रेणी I और III में शामिल नहीं होते हैं और ये AIF  सेबी (वैकल्पिक निवेश कोष) विनियम, 2012 द्वारा अनुमति प्राप्त दिन-प्रतिदिन की परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने के अलावा लाभ अर्जित करने या उधार लेने का कार्य नहीं करते हैं। जैसे- रियल एस्टेट फंड, निजी इक्विटी फंड।
  • श्रेणी III AIFs: ये विविध या जटिल व्यापारिक रणनीतियों को रोज़गार प्रदान करते हैं और सूचीबद्ध या गैर-सूचीबद्ध डेरिवेटिव में निवेश के माध्यम से लाभ उठा सकते हैं। जैसे- हेज फंड, पब्लिक इक्विटी फंड में निजी निवेश।

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI)

  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) की स्थापना भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड अधिनियम, 1992 के प्रावधानों के अनुसार 12 अप्रैल, 1992 को हुई थी।
  • इसका मुख्यालय मुंबई में है।
  • इसके मुख्य कार्य हैं-
  • प्रतिभूतियों (Securities) में निवेश करने वाले निवेशकों के हितों का संरक्षण करना।
  • प्रतिभूति बाज़ार (Securities Market) के विकास का उन्नयन करना तथा उसे विनियमित करना और उससे संबंधित या उसके आनुषंगिक विषयों का प्रावधान करना।