H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि | 30 Sep 2025
प्रिलिम्स के लिये: H-1B वीज़ा, एसटीईएम, धनप्रेषण, 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता, सेवाओं में व्यापार पर सामान्य समझौता (GATS), WTO, AI, क्वांटम कंप्यूटिंग।
मेन्स के लिये: भारतीय IT पर वैश्विक संरक्षणवाद का प्रभाव तथा घरेलू कौशल विकास तथा नवाचार को बढ़ावा देते हुए बाह्य आर्थिक झटकों के प्रबंधन की रणनीतियाँ।
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी राष्ट्रपति ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किये हैं जिसके तहत कंपनियों को प्रत्येक H-1B वीज़ा के लिये 1,00,000 अमेरिकी डॉलर का भुगतान करना अनिवार्य है। यह आदेश 21 सितंबर से प्रभावी होगा और इसकी अवधि 12 महीने तक रहेगी, जब तक कि इसे आगे न बढ़ाया जाए। इस शुल्क वृद्धि से भारतीय IT कंपनियों पर गहरा असर पड़ने की उम्मीद है, जो अधिकांश H-1B आवेदन दायर करती हैं।
H-1B वीज़ा कार्यक्रम क्या है?
- परिचय: H-1B वीज़ा एक अस्थायी, गैर-आप्रवासी वीज़ा है जो अमेरिकी कंपनियों को एसटीईएम और IT जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में कुशल विदेशी पेशेवरों को नियुक्त करने में सक्षम बनाता है, जिसके लिये कम-से-कम स्नातक की डिग्री आवश्यक होती है।
- वर्ष 1990 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य नियोक्ताओं को उस समय कौशल की कमी को दूर करने में मदद करना था, जब योग्य अमेरिकी श्रमिक उपलब्ध नहीं थे।
- वैधता अवधि: H-1B वीज़ा छह वर्ष तक वैध रहता है। इसके बाद धारकों को या तो दोबारा आवेदन करने से पहले 12 महीने के लिये अमेरिका छोड़ना होगा या स्थायी निवास (ग्रीन कार्ड) लेना होगा।
- भारतीयों की हिस्सेदारी: H-1B अनुमोदन में भारतीयों का दबदबा है, जो वर्ष 2015 से प्रतिवर्ष 70% से अधिक है। चीन वर्ष 2018 से 12-13% अनुमोदन के साथ लगातार दूसरे स्थान पर है।
- कोटा और छूट: प्रत्येक वित्तीय वर्ष में, 65,000 नए वीज़ा की सीमा है। अमेरिकी मास्टर डिग्री या उससे उच्चतर डिग्री वालों के लिये अतिरिक्त 20,000 वीज़ा उपलब्ध हैं।
- सीमा छूट उन आवेदकों के लिये लागू होती है जो विश्वविद्यालयों, संबद्ध गैर-लाभकारी संस्थाओं और सरकारी अनुसंधान निकायों के साथ रोज़गार जारी रखते हैं या काम करते हैं।
- भारतीयों के लिये H-1B वीज़ा के लाभ:
- प्रौद्योगिकी और STEM क्षेत्रों में प्रभुत्व: H-1B प्राप्तकर्त्ताओं में 70% से अधिक भारतीय हैं, जो IT और STEM भूमिकाओं में प्रभुत्व रखते हैं, तथा 80% से अधिक कंप्यूटर-संबंधी नौकरियाँ उन्हें मिलती हैं, जिससे वे अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिये महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं।
- चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा में योगदान: अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा स्नातकों में लगभग 22% भारतीय हैं, जो कुल अमेरिकी चिकित्सकों का 5-6% है। H-1B वीज़ा धारक अस्पतालों और शल्य चिकित्सा इकाइयों में स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों की कमी को दूर करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- शैक्षणिक और कॅरियर के मार्ग: कई भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के बाद अमेरिका में काम करने के लिये H-1B वीज़ा का उपयोग करते हैं, जिससे उनके कॅरियर की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। यह वीज़ा वैश्विक अनुभव भी प्रदान करता है, जिससे कौशल तथा रोज़गार क्षमता में वृद्धि होती है।
- रणनीतिक और उद्योग लाभ: यह कार्यक्रम उच्च राजस्व वाली अमेरिकी परियोजनाओं में तैनाती को सक्षम बनाकर भारतीय IT क्षेत्र के विकास को समर्थन देता है तथा इसके आधे से अधिक राजस्व को बनाए रखता है।
H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि का भारत पर क्या प्रभाव हो सकता है?
- भारतीय पेशेवरों पर प्रभाव: H-1बी वीज़ा में कटौती से भारतीय तकनीकी पेशेवरों के लिये अवसर सीमित हो जाएंगे, जिससे मुख्य रूप से वरिष्ठ विशेषज्ञ भूमिकाओं तक उनकी पहुँच सीमित हो जाएगी तथा प्रारंभिक से लेकर मध्य स्तर की प्रतिभाओं के लिये कॅरियर विकास अवरुद्ध हो जाएगा।
- मौजूदा वीजा धारकों को भी रोज़गार की असुरक्षा का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि महंगे नवीनीकरण और स्थानांतरण नियोक्ताओं को हतोत्साहित करते हैं।
- भारतीय IT कंपनियों पर प्रभाव: प्रति कर्मचारी 100,000 अमेरिकी डॉलर का शुल्क इंफोसिस, TCS और विप्रो जैसी भारतीय IT कंपनियों के लागत लाभ को कमज़ोर कर देगा, जिससे राजस्व हानि होगी और अमेरिकी अनुबंधों में कमी आएगी।
- अनुकूलन के लिये, उन्हें स्थानीय स्तर पर नियुक्ति, अधिकाधिक ऑफशोरिंग, तथा स्वचालन/AI के अधिकाधिक उपयोग की ओर विचार करना होगा।
- भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव: भारत से H-1बी वीज़ा धारकों की संख्या में कमी आने से प्रतिवर्ष 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक की धन प्रेषण में कमी आ सकती है, जिससे रुपए पर दबाव बढ़ सकता है, जो पहले से ही एशिया की सबसे कमज़ोर प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में से एक है।
- भारत-अमेरिका संबंधों पर प्रभाव: H-1बी प्रतिबंध भारत-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी की आधारशिला को कमज़ोर कर सकते हैं, जिससे प्रमुख आर्थिक और तकनीकी हित प्रभावित हो सकते हैं।
- भारतीय पेशेवर वैश्विक स्तर पर कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में अवसर तलाश सकते हैं।
- अमेरिकी कंपनियों पर प्रभाव: इससे अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी अमेरिकी कंपनियों को क्षति हो सकती है, क्योंकि इससे STEM प्रतिभाओं की कमी बढ़ जाएगी, वेतन और परिचालन लागत बढ़ जाएगी, तथा सीमित घरेलू कार्यबल के लिये प्रतिस्पर्द्धा बढ़ जाएगी।
अन्य अमेरिकी गैर-आप्रवासी वीज़ा श्रेणियाँ
- O- विज्ञान, कला, शिक्षा, व्यवसाय या एथलेटिक्स में असाधारण क्षमता वाला विदेशी नागरिक।
- H-2A- अस्थायी कृषि श्रमिक।
- H-2B- अस्थायी या मौसमी प्रकृति की अन्य सेवाएँ या श्रम करने वाला अस्थायी कर्मचारी।
- B-2- पर्यटन, अवकाश, मनोरंजन हेतु आगंतुक।
- V- वैध स्थायी निवासी के जीवनसाथी और बच्चों के लिये गैर-आप्रवासी वीज़ा।
H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि से निपटने के लिये भारत क्या रणनीति अपना सकता है?
- कूटनीतिक एवं सरकार द्वारा संचालित उपाय: भारत-अमेरिका व्यापार नीति फोरम और 2+2 मंत्रिस्तरीय वार्ता जैसे मंचों का उपयोग करके यह दर्शाया जाए कि H-1B शुल्क वृद्धि किस प्रकार अमेरिकी नवाचार और भारत-अमेरिका सामरिक संबंधों को नुकसान पहुँचाती है।
- विश्व व्यापार संगठन में विवाद दायर करने पर विचार करें , जिसमें तर्क दिया जाएगा कि यह वृद्धि एक संरक्षणवादी उपाय है जो अनुचित रूप से भारतीय आईटी कंपनियों को निशाना बना रहा है तथा संभवतः सेवाओं में व्यापार पर सामान्य समझौते (GATS) का उल्लंघन कर रहा है।
- भारतीय आईटी कंपनियों के लिये रणनीतिक बदलाव: वे अधिक अमेरिकी प्रतिभाओं को नियुक्त करने के लिये 'स्थानीयकरण' मॉडल में तेजी ला सकते हैं और AI, क्लाउड और टेलीप्रेजेंस प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके ऑफशोर डिलीवरी को बढ़ावा दे सकते हैं।
- इसके अतिरिक्त, भारतीय आईटी कंपनियों को अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिये यूरोप, जापान, ऑस्ट्रेलिया और मध्य पूर्व में विस्तार करके वैश्विक बाज़ारों में विविधता लानी चाहिये।
- कौशल विकास: भारत को AI, साइबर सुरक्षा और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे उच्च-मूल्य वाले क्षेत्रों में पेशेवरों को प्रशिक्षित करना चाहिये, जहाँ अमेरिकी ग्राहकों के लिये उच्च वीजा लागत उचित है।
- इसके साथ ही, रिवर्स माइग्रेशन और ब्रेन गेन को बढ़ावा देने से प्रतिभाओं को भारत में वापस आकर्षित किया जा सकता है, जिससे घरेलू तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र मज़बूत होगा।
- भारतीय प्रतिभा को मजबूत करना: भारतीय प्रवासियों का लाभ उठाकर तर्कसंगत आव्रजन सुधारों का समर्थन करना और अमेरिकी अर्थव्यवस्था में भारतीय प्रतिभा के योगदान पर ज़ोर देना।
निष्कर्ष:
प्रस्तावित H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि एक महत्त्वपूर्ण संरक्षणवादी परिवर्तन को दर्शाती है, जो भारत-अमेरिका आर्थिक संबंधों की नींव को चुनौती देती है। यह अमेरिका में नवाचार और भारतीय आईटी कंपनियों की आय पर दबाव डाल सकती है, लेकिन अंततः यह भारत को कौशल विकास, बाज़ार विविधीकरण और अपने घरेलू तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने की दिशा में रणनीतिक रूप से अग्रसर होने का अवसर प्रदान कर सकती है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: H-1B कार्यक्रम का हवाला देते हुए, वैश्विक नवाचार और प्रतिभा वितरण में कुशल प्रवास की भूमिका का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs) – H-1B वीज़ा
1. H-1B वीज़ा क्या है?
उत्तर: H-1B वीज़ा अमेरिका का अस्थायी कार्य वीज़ा है, जो STEM/IT क्षेत्रों के कुशल पेशेवरों के लिये जारी किया जाता है।
2. प्रस्तावित H-1B शुल्क वृद्धि का भारतीय आईटी कंपनियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर: प्रति वीज़ा USD 1,00,000 शुल्क जैसी वृद्धि कंपनियों जैसे Infosys, TCS और Wipro की लागत लाभ को प्रभावित कर सकती है, जिससे अमेरिका में अनुबंध कम हो सकते हैं तथा स्थानीय भर्ती को बढ़ावा मिल सकता है।
3. H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि से उत्पन्न चुनौतियों को कम करने के लिये भारत क्या कदम उठा सकता है?
उत्तर:
- कूटनीतिक प्रयास: व्यापार नीति मंचों और WTO के माध्यम से अमेरिका के साथ संवाद।
- घरेलू कौशल विकास: AI, साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में स्थानीय कौशल को बढ़ावा देना।
- रिवर्स माइग्रेशन और ब्रेन गेन: कुशल भारतीय पेशेवरों को भारत वापस लाना और ज्ञान को देश में संचारित करना।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQ)
मेन्स के लिये:
प्रश्न. भारतीय प्रवासियों ने पश्चिम में नई ऊँचाइयों को छुआ है। भारत के लिये इसके आर्थिक और राजनीतिक लाभों का वर्णन कीजिये। (उत्तर 150 शब्दों में दीजिये, यूपीएससी मेन्स 2023)
प्रश्न. दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था एवं समाज में भारतीय प्रवासियों को एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी है। इस संदर्भ में, दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय प्रवासियों की भूमिका का मूल्यनिरूपण कीजिये। (2017)