CSR खर्च में वृद्धि | 15 May 2025

प्रिलिम्स के लिये:

कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व, कंपनी अधिनियम, 2013 , संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य, NGO, CSR पर इंजेती श्रीनिवास समिति की रिपोर्ट

मेन्स के लिये:

भारत में CSR गतिविधियों का महत्त्व, CSR व्यय का सामाजिक प्रभाव, भारत में CSR से संबंधित प्रमुख मुद्दे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 

चर्चा में क्यों?

प्राइम डेटाबेस (भारतीय बाज़ार डेटा फर्म) की रिपोर्ट से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2023-24 में  सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) व्यय में 16% की वृद्धि होगी।

  • इसका श्रेय विभिन्न क्षेत्रों में लाभप्रदता में सुधार को दिया जा सकता है तथा यह कॉर्पोरेट परोपकार और अनुपालन संस्कृति में बदलती प्राथमिकताओं को भी दर्शाता है।

नोट: सूचीबद्ध कंपनियाँ वे हैं जिनके शेयर भारत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) या नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) जैसे मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध और कारोबार किये जाते हैं एवं नियामक आवश्यकताओं का अनुपालन करते हैं।

 CSRव्यय में नवीनतम रुझान क्या हैं?

  • CSR खर्च में रुझान (वित्त वर्ष 2023-24): सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा CSR खर्च वित्त वर्ष 2022-23 में 15,524 करोड़ रुपये से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 17,967 करोड़ रुपये हो गया, जो मुनाफे में समग्र वृद्धि को दर्शाता है। 
    • HDFC बैंक, रिलायंस इंडस्ट्रीज, TCS और ONGC शीर्ष योगदानकर्ता रहे।
    • लगभग 98% कम्पनियों ने अपने CSR दायित्वों को पूरा किया तथा लगभग आधी कम्पनियों ने अपेक्षित व्यय से अधिक व्यय किया। 
    • सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSU) ने भी वित्त वर्ष 2022-23 की तुलना में अपने CSR योगदान में 19% की वृद्धि की।
  • क्षेत्र अनुसार आवंटन और बदलाव: शिक्षा को सबसे अधिक आवंटन (1,104 करोड़ रुपये) प्राप्त हुआ, उसके बाद स्वास्थ्य सेवा (720 करोड़ रुपये) का स्थान रहा।
    • पर्यावरणीय स्थिरता पर व्यय में सबसे अधिक 54% की वृद्धि हुई, जो ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) लक्ष्यों की ओर बदलाव को दर्शाता है, इसके बाद राष्ट्रीय विरासत में 5% की वृद्धि हुई। 
      • हालाँकि, मलिन बस्ती विकास, ग्रामीण विकास और सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त सैनिकों के कल्याण जैसे क्षेत्रों के लिये समर्थन में तेज़ी से गिरावट आई (क्रमशः 72%, 59% और 52%)।
  • राज्यवार रुझान: महाराष्ट्र, राजस्थान और तमिलनाडु CSR निधि के शीर्ष तीन प्राप्तकर्ता थे, जिनमें शीर्ष 10 राज्यों का कुल CSR व्यय का 60% हिस्सा था।
    • वर्ष 2022-23 की तुलना में CSR फंड में सबसे अधिक वृद्धि देखने वाले राज्य तमिलनाडु, महाराष्ट्र और गुजरात हैं, जबकि राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में CSR फंडिंग में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज़ की गई।
  • प्रत्यक्ष व्यय बनाम कार्यान्वयन एजेंसियाँ: वित्त वर्ष 2023-24 में, 31% कंपनियों ने सीधे  CSR पर खर्च किया, 29% ने कार्यान्वयन एजेंसियों का उपयोग किया, 38% ने दोनों का उपयोग किया और 2% ने विधि निर्दिष्ट नहीं की।
    • हालाँकि, अधिकांश धनराशि (50% से अधिक) कार्यान्वयन एजेंसियों के माध्यम से खर्च की गई

कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व क्या है?

  • कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) से तात्पर्य समाज और पर्यावरण के प्रति कंपनी की ज़िम्मेदारी से है। 
    • यह एक स्व-विनियमन मॉडल है जो यह सुनिश्चित करता है कि व्यवसाय आर्थिक, सामाजिक और पर्यावरणीय कल्याण पर अपने प्रभाव के लिये जवाबदेह बने रहें। 
    •  CSR को अपनाने से कंपनियाँ सतत् विकास में अपनी व्यापक भूमिका के प्रति अधिक जागरूक हो जाती हैं।

Corporate_Social_Responsibility

  • कानूनी ढाँचा: भारत कंपनी अधिनियम, 2013 की धारा 135 के तहत CSR व्यय को अनिवार्य बनाने वाला पहला देश है, जो पात्र गतिविधियों के लिये एक संरचित ढाँचा प्रदान करता है।
  • प्रयोज्यता: CSR नियम उन कंपनियों पर लागू होते हैं जिनकी पिछले वित्तीय वर्ष में निवल संपत्ति 500 ​​करोड़ रुपए से अधिक या कारोबार 1,000 करोड़ रुपए से अधिक या निवल लाभ 5 करोड़ रुपए से अधिक हो।
    • ऐसी कंपनियों को अपने पिछले तीन वित्तीय वर्षों (या यदि हाल ही में स्थापित की गई हैं तो उपलब्ध वर्षों) के औसत निवल लाभ का कम से कम 2% कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) गतिविधियों पर व्यय करना आवश्यक है।
  • CSR पहलों के प्रकार:
    • कॉर्पोरेट परोपकार (Corporate Philanthropy): दान और चैरिटी योगदान।
    • सामुदायिक स्वयंसेवा (Community Volunteering): कर्मचारियों द्वारा संगठित सेवा कार्य।
    • नैतिक व्यवहार (Ethical Practices): सामाजिक रूप से उत्तरदायी उत्पादों का निर्माण
    • कारण प्रचार और सक्रियता (Cause Promotion): सामाजिक मुद्दों को समर्थन देना।
    • कारण-आधारित विपणन (Cause Marketing): बिक्री को दान से जोड़ना।
    • सामाजिक विपणन (Social Marketing): जनहित के लिये अभियानों को वित्तपोषित करना।
  • पात्र क्षेत्र: CSR गतिविधियों में कई तरह की पहल शामिल हैं, जिनमें गरीबी उन्मूलन, शिक्षा और लैंगिक समानता को बढ़ावा देना, HIV/AIDS जैसी बीमारियों से लड़ना, पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करना एवं  सामाजिक-आर्थिक विकास व वंचित समूहों के कल्याण के लिये  सरकारी राहत कोष (जैसे पीएम केयर्स और पीएम राहत कोष) में योगदान देना शामिल है।

भारत में CSR व्यय से संबंधित चुनौतियाँ क्या हैं?  

  • व्यय में भौगोलिक असमानता: व्यय महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक एवं तमिलनाडु जैसे औद्योगिक राज्यों में केंद्रित है, जबकि पूर्वोत्तर राज्यों (मिज़ोरम, सिक्किम) तथा लक्षद्वीप, लेह और लद्दाख को तुलनात्मक रूप से कम धनराशि प्राप्त होती है, जो क्षेत्रीय असंतुलन को दर्शाता है।
  • CSR आवंटन प्रवृत्तियाँ: CSR निधियों का 75% से अधिक हिस्सा शिक्षा और व्यावसायिक कौशल, भुखमरी, गरीबी एवं स्वास्थ्य देखभाल, पर्यावरणीय स्थिरता, ग्रामीण विकास तथा खेल जैसे प्रमुख क्षेत्रों में केंद्रित था।
    • झुग्गी-झोपड़ी विकास, आपदा प्रबंधन और सशस्त्र बलों के दिग्गजों से संबंधित क्षेत्रों पर बहुत कम व्यय किया जाता है।
  • कार्यान्वयन में देरी और खराब योजना: देर से अनुमोदन और निधियों के आवंटन के कारण क्रियान्वयन में देरी होती है, जिससे कंपनियाँ दीर्घकालिक सामुदायिक विकास की बजाय त्वरित बुनियादी अवसरंचना को प्राथमिकता देती हैं।
    • रणनीतिक दूरदर्शिता का अभाव CSR को दान तक सीमित कर देता है, जबकि दीर्घकालिक नीतियों का अभाव और दोहराए गए प्रयासों के कारण अस्पष्ट व्यय तथा सहयोग के स्थान पर प्रतिस्पर्द्धा पैदा होती है।
  • निगरानी और मूल्यांकन (M&E) अंतराल: वर्तमान M&E प्रणालियाँ वास्तविक सामाजिक प्रभाव के बजाय मात्रात्मक परिणामों पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
    • मानकीकृत विधियों का अभाव और तृतीय-पक्ष मूल्यांकनकर्त्ताओं द्वारा असंगत रिपोर्टिंग पारदर्शिता में बाधा डालती है तथा परियोजनाओं के बीच तुलना को कठिन बनाती है।
  • NGO साझेदारी की चुनौतियाँ: कंपनियों और NGO के बीच कमज़ोर समन्वय परियोजना नियोजन एवं कार्यान्वयन को सीमित करता है।
    • अल्पकालिक CSR चक्र और NGO रिज़र्व के लिये धन के उपयोग पर प्रतिबंध क्षमता निर्माण को प्रभावित करते हैं। बिचौलियों पर बढ़ती निर्भरता दक्षता और जवाबदेही को और कम करती है।
  • अप्रयुक्त CSR राशि: अनिवार्यता के बावजूद 27 कंपनियों ने CSR पर व्यय नहीं किया।
    • अधिकांश कंपनियाँ नवोन्मेषी या उच्च प्रभाव वाले परियोजनाओं से बचती हैं और सुरक्षित, दोहराए जाने वाले उपक्रमों को प्राथमिकता देती हैं, जिससे सतत् विकास के लिये CSR की संभावनाएँ सीमित हो जाती हैं।

भारत में CSR पहल के प्रभाव को सुदृढ़ करने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  • CSR विनियमों को सरल और व्यापक बनाना: नियामक अस्पष्टता को दूर करने के लिये CSR दिशानिर्देशों को सरल और अधिक अनुकूल बनाया जाना चाहिये, जिससे कंपनियों को अनुमेय गतिविधियों को बेहतर ढंग से समझने में सहायता मिलेगी।
    • नवीनता लाने और वास्तविक सामाजिक आवश्यकताओं के साथ बेहतर संरेखण के लिये पात्र CSR गतिविधियों की सूची का विस्तार किया जाना चाहिये।
  • एक केंद्रीकृत मंच बनाना: एक राष्ट्रीय CSR पोर्टल विकसित किया जाना चाहिये जहाँ कंपनियाँ अपनी परियोजनाओं, निधि उपयोग और परिणामों की रिपोर्ट कर सकें।
    • यह कॉर्पोरेट्स को NGO और सरकारी योजनाओं से भी जोड़ सकता है जिन्हें समर्थन की आवश्यकता हो, जिससे फंड मिलान और पारदर्शिता में सुधार होगा।
  • ऑडिट और प्रभाव मूल्यांकन: बड़ी परियोजनाओं के लिये अनिवार्य तीसरे पक्ष के ऑडिट से फंड के दुरुपयोग को रोका जा सकता है। कंपनियों को प्रभाव मूल्यांकन भी प्रकाशित करना चाहिये जो वास्तविक परिणाम दिखाए, जिससे केवल धन खर्च करने से हटकर सार्थक सामाजिक परिवर्तन उत्पन्न करने पर ध्यान केंद्रित हो।
  • साझेदारी और सहयोग को बढ़ावा देना: कंपनियों को बेहतर कार्यान्वयन के लिये NGO, स्थानीय अधिकारियों और अन्य कंपनियों के साथ मिलकर कार्य करना चाहिये।
    • विभिन्न उद्योगों या विभिन्न क्षेत्रों में CSR निधियों को एकत्रित करने से बड़ी और अधिक प्रभावशाली परियोजनाएँ संभव हो सकती हैं, विशेष रूप से ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा, जलवायु अनुकूलन और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में।
  • दीर्घकालिक परियोजनाओं का समर्थन करना: CSR पुरस्कार जैसी प्रोत्साहन योजनाएँ रचनात्मक और प्रभावी पहलों को बढ़ावा दे सकती हैं।
    • नीतियों को ऐसे दीर्घकालिक परियोजनाओं को प्रोत्साहित करना चाहिये जो शिक्षा सुधार, स्वास्थ्य प्रणालियों और पर्यावरणीय स्थिरता जैसे मूलभूत समस्याओं का समाधान करें, न कि केवल अल्पकालिक कार्यक्रमों या दान तक सीमित रहें।
  • क्षमता निर्माण एवं संतुलित आवंटन: छोटे उद्यमों में क्षमता निर्माण से CSR का प्रभाव बढ़ सकता है। CSR निधियाँ पिछड़े क्षेत्रों एवं जलवायु परिवर्तन, महिला सशक्तीकरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन, विरासत संरक्षण और झुग्गी पुनर्वास जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर केंद्रित होनी चाहिये, ताकि संतुलित और समावेशी विकास सुनिश्चित किया जा सके।
  • पुरस्कार एवं सम्मान: अनिल बैजल समिति (2015) की सिफारिश के अनुसार, दो श्रेणियों की कंपनियों - बड़ी और छोटी - के लिये वार्षिक CSR पुरस्कार स्थापित किये जा सकते हैं।

CSR पर इंजेती श्रीनिवास समिति की सिफारिशें

  • CSR व्यय को कर छूट योग्य बनाया जाए।
  • कंपनियों को अप्रयुक्त CSR फंड्स को 3 से 5 वर्ष तक आगे बढ़ाने की अनुमति दी जाए।
  • कंपनी अधिनियम, 2013 के अनुसूची VII (जो CSR पहलों के लिए योग्य गतिविधियों को निर्दिष्ट करता है) को सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के साथ संरेखित किया जाए, जिसमें स्थानीय और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के बीच संतुलन हो।
  • CSR व्यय जो ₹5 करोड़ से अधिक हो, उसके लिये प्रभाव मूल्यांकन अनिवार्य किया जाए।
  • CSR कार्यान्वयन एजेंसियों को MCA पोर्टल पर पंजीकृत करना अनिवार्य किया जाए।
  • योगदानकर्त्ताओं, लाभार्थियों और एजेंसियों को जोड़ने के लिये CSR एक्सचेंज पोर्टल बनाया जाए।
  • CSR निवेश को सोशल इम्पैक्ट बॉण्ड में निवेश की अनुमति दी जाए।
    • सोशल इम्पैक्ट बॉण्ड एक वित्तीय उपकरण है, जिसमें सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिये सरकार, निजी और दानदाता क्षेत्र सम्मिलित होते हैं।
  • सामाजिक और पर्यावरणीय लक्ष्यों को लाभ के साथ प्राथमिकता देने वाली सोशल इम्पैक्ट कंपनियों को प्रोत्साहित किया जाए।

निष्कर्ष

भारत में CSR एक स्वैच्छिक कार्य से समावेशी विकास के लिये एक विनियमित उपकरण के रूप में विकसित हुआ है। जैसे-जैसे कॉर्पोरेट लाभ और जनता की अपेक्षाएँ बढ़ रही हैं, CSR को और अधिक रणनीतिक, पारदर्शी तथा राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप बनाना आवश्यक हो गया है। सीमा मानकों की पुनर्समीक्षा और मूल्यांकन तंत्रों को सुदृढ़ करने से CSR केवल अनुपालन से हटकर सतत् सामाजिक-आर्थिक विकास का एक प्रभावशाली चालक बन सकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रभावी कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) कार्यान्वयन में चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और सामाजिक-आर्थिक विकास पर इसके प्रभाव को बेहतर बनाने के उपाय सुझाइए।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न 

प्रश्न. कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व कंपनियों को अधिक लाभदायक तथा चिरस्थायी बनाता है। विश्लेषण कीजिये। (2017)