वैश्विक कृषि उत्पादकता रिपोर्ट (GAP रिपोर्ट) | 23 Oct 2021

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक कृषि उत्पादकता रिपोर्ट, विश्व खाद्य पुरस्कार, कुल कारक उत्पादकता

मेन्स के लिये:

उत्पादकता वृद्धि का महत्त्व और इसे प्रभावित करने वाले कारक तथा उनसे निपटने हेतु उठाए गए कदम

चर्चा में क्यों?

एक नई रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के बीच वैश्विक कृषि उत्पादकता में उतनी तेज़ी से वृद्धि नहीं हो रही है जितनी तेज़ी से भोजन की मांग बढ़ रही है।

प्रमुख बिंदु

  • रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:
    • कुल कारक उत्पादकता (Total Factor Productivity- TFP) वृद्धि:
      • TFP 1.36% (2020-2019) की वार्षिक दर से बढ़ रही है।
        • यह वैश्विक कृषि उत्पादकता सूचकांक से नीचे है जिसने वर्ष 2050 में खाद्य और जैव ऊर्जा के लिये उपभोक्ताओं की ज़रूरतों को स्थायी रूप से पूरा करने हेतु 1.73% की वृद्धि का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित किया है।

TFP और यील्ड (Yield) में अंतर:

  • यील्ड:
    • यील्ड या उपज एकल इनपुट के प्रति यूनिट उत्पादन को मापता है, उदाहरण के लिये एक हेक्टेयर भूमि पर काटी गई फसलों की मात्रा। यील्ड में उत्पादकता वृद्धि के माध्यम से वृद्धि हो सकती है, इसके अलावा अधिक इनपुट लागू करके भी यील्ड में वृद्धि हो सकती है जिसे इनपुट गहनता कहा जाता है। अतः यील्ड में वृद्धि स्थिरता में सुधार का प्रतिनिधित्व कर सकती है या नहीं भी कर सकती है।
  • TFP:
    • TFP कई कृषि इनपुट और आउटपुट के बीच परस्पर क्रिया को प्रभावित करती है।
    • TFP भूमि, श्रम, उर्वरक, चारा, मशीनरी और पशुधन जैसे कृषि आदानों के फसलों, पशुधन और जलीय कृषि उत्पादों में परिवर्तन को ट्रैक करती है कि कितनी कुशलता से इनमें परिवर्तन हो रहा है। TFP कृषि प्रणालियों की स्थिरता के मूल्यांकन और निगरानी के लिये एक शक्तिशाली मीट्रिक है।
  • कम TFP वृद्धि के लिये उत्तरदायी कारक:
    • TFP वृद्धि जलवायु परिवर्तन, मौसमी घटनाओं, राजकोषीय नीति में बदलाव, बाज़ार की स्थितियों, आधारभूत ढाँचे में निवेश और कृषि अनुसंधान तथा विकास से प्रभावित होती है।
  • विभिन्न क्षेत्रों में स्थिति:
    • शुष्क क्षेत्र (अफ्रीका और लैटिन अमेरिका): जलवायु परिवर्तन ने उत्पादकता वृद्धि को 34% तक कम कर दिया है।
    • उच्च आय वाले देश (उत्तरी अमेरिका और यूरोप): इनमें मामूली TFP वृद्धि हुई है।
    • मध्यम आय वाले देश (भारत, चीन, ब्राज़ील और तत्कालीन सोवियत गणराज्य): इन देशों में मज़बूत TFP विकास दर है।
    • निम्न-आय वाले देश (उप-सहारा अफ्रीका): TFP प्रतिवर्ष औसतन 0.31% घट रही है।
  • उत्पादकता वृद्धि का प्रभाव:
    • वन क्षेत्रों का विनाश: विश्व की 36% भूमि का उपयोग कृषि हेतु किया जाता है। वृक्षारोपण या चरागाह के लिये वन और जैव विविधता वाले क्षेत्रों को नष्ट कर दिया जाएगा।
    • आहार से संबंधित रोग: प्रत्येक वर्ष आहार से संबंधित बीमारियों के चलते लगभग 4 मिलियन लोगों की मृत्यु होती है तथा अर्थव्यवस्था को 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुक्सान होता है।
    • मृदा निम्नीकरण: वर्ष 2050 तक पृथ्वी की 90 प्रतिशत मिट्टी अपरदन के कारण खराब हो सकती है।
    • मीथेन उत्सर्जन: मानव प्रेरित गतिविधियों के कारण होने वाले कुल मीथेन उत्सर्जन में से 37% मीथेन उत्सर्जन मवेशियों और अन्य जुगाली करने वालों पशुओं से होता है।
    • सिंचाई के जल की हानि: अकुशल सिंचाई विधियों के कारण 40% सिंचाई जल नष्ट हो जाता है।
      • जलस्रोत समाप्त हो जाएंगे, जिससे प्रमुख कृषि भूमि अनुपयोगी हो जाएगी।
  • सुझाव:
    • कृषि अनुसंधान और विकास में निवेश करना।
    • विज्ञान और सूचना आधारित प्रौद्योगिकियों को अपनाना।
    • परिवहन, सूचना और वित्त के लिये बुनियादी ढाँचे में सुधार किया जाए।
    • सतत् कृषि, आर्थिक विकास और बेहतर पोषण के लिये साझेदारी विकसित करना।
    • स्थानीय, क्षेत्रीय एवं वैश्विक व्यापार का विस्तार और सुधार।
    • फसल की कटाई के बाद होने वाले नुकसान और खाद्यान्नों की बर्बादी को कम करना।

भारतीय परिदृश्य

  • परिचय:
    • मज़बूत TFP वृद्धि:
      • भारत ने इस सदी में मजबूत TFP और उत्पादन वृद्धि देखी है।
      • सबसे नवीनतम डेटा 2.81% की औसत वार्षिक TFP वृद्धि दर और 3.17% की उत्पादन वृद्धि (2010-2019) को दर्शाते हैं।
    • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
      • सदी के अंत तक भारत में ग्रीष्म ऋतु का औसत तापमान पाँच डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है
      • तापमान में तेज़ी से हो रही यह वृद्धि वर्षा के पैटर्न में बदलाव के साथ वर्ष 2035 तक भारत की प्रमुख खाद्य फसलों की पैदावार में 10% की कटौती कर सकती है।
    • अन्य चुनौतियाँ:
      • पर्यावरणीय स्थिरता के लिये चुनौतियों के अलावा भारत में छोटे पैमाने के किसानों को आर्थिक एवं सामाजिक स्थिरता के लिये विविध बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
      • भारत में 147 मिलियन जोत में से 100 मिलियन जोत आकार में दो हेक्टेयर से भी कम हैं। दो हेक्टेयर से कम जोत वाले लगभग 90% किसान सरकारी खाद्य राशन कार्यक्रम का हिस्सा हैं।
  • उठाए गए कदम:
    • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना: मृदा की गुणवत्ता एवं सामर्थ्य के आधार पर फसल में आवश्यक पोषक तत्त्वों की उचित मात्रा के बारे में किसानों में जागरूकता पैदा करना।
    • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन (NMSA): इसकी परिकल्पना जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC) के तहत उल्लिखित आठ मिशनों में से एक के रूप में की गई है, जिसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उपायों के माध्यम से सतत्/संवहनीय कृषि को बढ़ावा देना है।
    • प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY):  सिंचाई आपूर्ति शृंखला जैसे- जल स्रोत, वितरण नेटवर्क और कृषि स्तर पर अनुप्रयोग में शुरू से अंत तक समाधान प्रदान करने के लिये 'हर खेत को पानी' आदर्श वाक्य के साथ इस योजना की शुरुआत वर्ष 2015-16 के दौरान की गई थी।

स्रोत: डाउन टू अर्थ