हिंद महासागर में जीनोम मैपिंग | 15 Mar 2021

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (National Institute of Oceanography- NIO) ने हिंद महासागर (Indian Ocean) में अपनी तरह की पहली जीनोम मैपिंग (Genome Mapping) परियोजना शुरू करने की योजना बनाई है।

  • हिंद महासागर विश्व का तीसरा सबसे बड़ा जल निकाय है और पृथ्वी की सतह पर उपस्थित जल का लगभग 20% भाग इसमें समाहित है।

प्रमुख बिंदु

उद्देश्य:

  • हिंद महासागर में सूक्ष्मजीवों के जीनोम मानचित्रण के लिये नमूने एकत्र करना।
  • जलवायु परिवर्तन, पोषक तत्त्वों में कमी और बढ़ते प्रदूषण के लिये जैव रसायन तथा महासागर की प्रतिक्रिया को समझना।

परियोजना की लागत और अवधि:

  • इस परियोजना की कुल लागत 25 करोड़ रुपए है और इसे पूरा होने में तीन साल लगेंगे।

परियोजना के विषय में:

  • NIO के वैज्ञानिकों और शोधकर्त्ताओं का एक दल सिंधु साधना (Sindhu Sadhana) नामक पोत के माध्यम से इस अनुसंधान परियोजना पर हिंद महासागर में 10,000 समुद्री मील  से अधिक की दूरी तय करके 90 दिन बिताएगा ताकि समुद्र के आंतरिक भाग की कार्यपद्धति को जाना जा सके।
    • वे हिंद महासागर का भ्रमण भारत के पूर्वी तट से शुरू करके ऑस्ट्रेलिया, पोर्ट लुइस (मॉरीशस) और भारत के पश्चिमी तट से दूर पाकिस्तान की सीमा तक करेंगे।

जीनोम संग्रह:

  • शोधकर्त्ता समुद्र के विभिन्न हिस्सों से लगभग 5 किमी. की औसत गहराई पर नमूने एकत्र करेंगे।
  • जीन मैपिंग जैसे इंसानों से एकत्र किये गए रक्त के नमूनों पर की जाती है, वैसे ही वैज्ञानिक समुद्र में पाए जाने वाले बैक्टीरिया, रोगाणुओं का मानचित्रण करेंगे।
  • उनमें मौजूद पोषक तत्त्वों और समुद्र के विभिन्न हिस्सों में उनकी कमी का पता डीऑक्सीराइबोस न्यूक्लिक एसिड (DNA) और राइबोन्यूक्लिक एसिड (RNA) की मैपिंग से चलेगा।

ट्रेस धातुओं का अध्ययन:

  • महासागरों को कैडमियम या तांबे जैसी ट्रेस धातुओं (Trace Metal) की आपूर्ति कॉन्टिनेंटल रन-ऑफ, वायुमंडलीय निक्षेप, हाइड्रोथर्मल गतिविधियों आदि के माध्यम से होती है।
    • ये धातु महासागरीय उत्पादकता के लिये आवश्यक हैं।
  • समुद्री बायोटा (Marine Biota) के साथ-साथ ट्रेस धातुओं की अंतःक्रियाओं को "पोषक तत्त्वों के पुनर्चक्रण और महासागरों की उत्पादकता के विषय में समग्र समझ हेतु" जानना महत्त्वपूर्ण है।
  • समुद्री जीवन पर उनकी प्रतिक्रियाओं के अलावा ट्रेस धातुओं के समस्थानिक रूपों का उपयोग समुद्री संचलन के लिये ज़िम्मेदार जल द्रव्यमान की गति का पता लगाने और जैविक, भू-रासायनिक, पारिस्थितिक तंत्र की प्रक्रियाओं तथा खाद्य जाल का विश्लेषण करने के लिये एक उपकरण के रूप में किया जाता है।
  • NIO की इस परियोजना से ट्रेस धातुओं के विषय में हिंद महासागर के गैर-अनुमानित क्षेत्रों से नई जानकारी मिल सकती है।

लाभ:

  • पारिस्थितिकी तंत्र को समझने में:
    • यह परियोजना वैज्ञानिकों को हिंद महासागर के पारिस्थितिकी तंत्र के आंतरिक क्रियाकलाप को समझने में मदद करेगी।
  • परिवर्तन के कारकों को समझने में:
    • इस शोध से वैज्ञानिकों को महासागरों में RNA और DNA में परिवर्तन को नियंत्रित तथा उन्हें प्रभावित करने वाले विभिन्न कारकों की पहचान करने में मदद मिलेगी।
  • खनिज संकेंद्रण की पहचान करने में:
    • महासागर में नाइट्रेट्स, सल्फेट्स, सिलिकेट्स जैसे सूक्ष्म पोषक तत्त्व और लौह अयस्क, जस्ता जैसी धातुओं तथा कैडमियम या तांबे जैसी ट्रेस धातुओं की उपस्थिति का जाँच करना।
    • जीनोम मैपिंग वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड के साथ सूक्ष्म जीवों की प्रतिक्रिया के अलावा उस उपस्थिति को दर्शाएगा जिसके चलते इनका रूपांतरण हुआ है।
    • इससे यह पता लगाने में मदद मिलेगी कि समुद्र के किस हिस्से में किस खनिज या तत्त्व की अधिक सांद्रता है।
    • वैज्ञानिक इसके बाद एक निश्चित खनिज या तत्त्व की अधिकता या कमी के लिये प्रेरक कारकों से निपटने और उनके शमन हेतु संभावित समाधान सुझाएंगे।
  • मानव लाभ:
    • भविष्य में हिंद महासागर का उपयोग मानव लाभ के लिये करने हेतु DNA और RNA पूल का इस्तेमाल किया जाएगा।
  • जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग में वृद्धि:
    • जीनोम मैपिंग से एंटी कैंसर उपचार, सौंदर्य प्रसाधन आदि वाणिज्यिक जैव प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग में वृद्धि हो सकती है।
  • संरक्षण प्रयासों का अनुकूलन:
    • इस महासागर की आनुवांशिक स्तर पर अन्वेषण करने से वर्गिकी/वर्गीकरण विज्ञान (Taxonomy) और अनुकूलन क्षमता में नई अंतर्दृष्टि पैदा होगी, जो इसके संरक्षण प्रयासों में मदद कर सकती है।

जीनोम

  • किसी भी जीव के डीएनए (या RNA वायरस में RNA) में विद्यमान समस्त जीनों का अनुक्रम जीनोम (Genome) कहलाता है।
  • प्रत्येक जीनोम में संबंधित जीव को बनाने और बनाए रखने के लिये आवश्यक सभी जानकारी होती है।
  • मनुष्य के पूरे जीनोम की एक प्रति में 3 बिलियन से अधिक DNA बेस जुड़े होते हैं।

जीनोम मैपिंग

  • एक जीन के स्थान और जीन के बीच की दूरी की पहचान करने के लिये उपयोग किये जाने वाले विभिन्न प्रकार की तकनीकों को जीनोम मैपिंग (Genome Mapping) कहा जाता है।
  • जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने जनवरी 2020 में मानव जीनोम परियोजना (Human Genome Project) से प्रेरणा लेते हुए महत्त्वाकांक्षी "जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट" (Genome India Project) की शुरुआत की। इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य पूरे भारत से 10,000 नागरिकों के आनुवंशिक नमूने एकत्र करना है, ताकि एक संदर्भ जीनोम का निर्माण किया जा सके।

राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान

  • राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के विषय में:
  • मुख्यालय और अन्य केंद्र:
    • इस केंद्र का मुख्यालय ‘डोना पाउला’ (गोवा) में स्थित है और तीन क्षेत्रीय कार्यालय कोच्चि (केरल), मुंबई (महाराष्ट्र) और विशाखापत्तनम (आंध्र प्रदेश) में स्थित हैं।
  • स्थापना:
    • इसकी स्थापना वर्ष 1960 के अंतर्राष्ट्रीय हिंद महासागर अभियान (International Indian Ocean Expedition) के अंतर्गत 1 जनवरी, 1966 को हुई थी।
  • अनुसंधान क्षेत्र:
    • इस संस्थान का मुख्य कार्य हिंद महासागर की महासागरीय विशेषताओं का परीक्षण करना तथा उन्हें समझना है।
    • इस संस्थान द्वारा समुद्र विज्ञान की जैविक, रासायनिक, भू-गर्भीय और भौतिक विशेषताओं से संबंधित शाखाओं में शोध किया जाता है, साथ ही समुद्र इंजीनियरिंग, समुद्री उपकरण तथा समुद्री पुरातत्त्व विषयों में भी शोध किया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस