IITs में SC और ST छात्रों की संख्या में कमी | 16 Feb 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सूचना के अधिकार (Right to Information- RTI) के माध्यम से एकत्रित देश  के पाँच पुराने भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों  (IITs) से संबंधित आँकड़ों से यह संकेत मिलता है कि इन संस्थानों में अनुसूचित जाति (Scheduled Caste- SC), अनुसूचित जनजाति (Scheduled Tribe- ST) और अन्य पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes- OBC) समुदाय के छात्रों की अनुमोदन दर (Acceptance Rate) काफी कम है।

  • IITs में पीएचडी प्रोग्राम हेतु अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आवेदकों के चयन होने की संभावना सामान्य श्रेणी (General Category-SC) के उम्मीदवारों से आधी है।

प्रमुख बिंदु:

RTI आवेदनों से प्राप्त डेटा :

  •  अनुमोदन दर:
    •  अनुमोदन दर आवेदन करने वाले प्रत्येक 100 छात्रों में से चयनित छात्रों की संख्या को संदर्भित करता है।
      • सामान्य श्रेणी के छात्रों हेतु यह दर 4% थी।
      • वही OBC छात्रों हेतु 2.7%,  SC के लिये 2.16% और  ST हेतु  यह दर केवल 2.2% है।
    • RTI के माध्यम से प्राप्त यह डेटा ऐसे समय में आया है, जब संसद में  शिक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में प्रस्तुत आँकड़े पीएचडी की सीटें भरने में IITs की विफलता को दर्शाते हैं।
      • सरकार की आरक्षण नीति के तहत SC श्रेणी से छात्रों हेतु 15% सीटें, ST श्रेणी के छात्रों के लिये 7.5% और अन्य पिछड़ा वर्ग हेतु  27% सीटों का आवंटन अनिवार्य है।

महत्त्व:

  • IITs द्वारा अक्सर समाज के वंचित वर्ग और समुदायों के आवेदकों की कमी का हवाला दिया जाता रहा है। हालांँकि RTI से प्राप्त आँकड़े इसके काफी विपरीत हैं।
  •  प्रवेश लेने वाले सामान्य श्रेणी के छात्रों का प्रतिशत आवेदन करने वाले छात्रों से हमेशा अधिक रहा है। हालाँकि SC, ST और  OBC वर्ग के छात्रों की स्थिति इसके विपरीत देखी गई है। 

शिक्षा मंत्रालय से प्राप्त डेटा:

  • वर्ष 2015 से 2019 तक सभी IITs द्वारा दिये गए कुल प्रवेश में  अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग का प्रतिशत क्रमशः 9.1% तथा 2.1% था।
  • केवल 23.2% सीटें OBC के आवेदकों हेतु तथा शेष 65.6% या सभी सीटों का लगभग दो-तिहाई हिस्सा जनरल श्रेणी के आवेदकों के लिये आरक्षित था।

Matter-of-inclusion

 स्वीकृति दर में कमी का कारण: 

  • IITs के अनुसार:
    • पात्रता से संबंधित मुद्दे:
      • कुछ संस्थान सामान्य श्रेणी की भी सभी सीटें नहीं भर पाते हैं, क्योंकि उन्हें पर्याप्त योग्य उम्मीदवार नहीं मिल पाते हैं।
    • आर्थिक कारण:
      • योग्य छात्र पीएचडी में शामिल होने के बजाय अच्छी नौकरियों में चले जाते हैं, क्योंकि पीएचडी और पोस्ट पीएचडी में अनिश्चितताओं के साथ आय का निम्न स्तर बना रहता है।
      • यह संभव है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि और आर्थिक स्तर का पीएचडी हेतु आवेदन करने वाले उम्मीदवारों पर प्रभाव पड़ सकता है।

'मेरिट' का तर्क

  • आरक्षण को लेकर आईआईटी प्रशासकों ( IIT Administrators) और संकायों (Faculty) के मध्य लंबे समय से विरोध देखा जा रहा है, जिसे वे संस्थानों में अन्यायपूर्ण सरकारी हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं।
  • शिक्षा मंत्रालय द्वारा गठित समिति की हालिया रिपोर्ट में संकाय की भर्ती में आरक्षण को समाप्त करने की सिफारिश की गई है।
    • समिति ने अपनी सिफारिशों में मुख्य रूप से उन तर्कों को शामिल किया जो शैक्षणिक उत्कृष्टता को बनाए रखने हेतु IITs की आवश्यकता के साथ-साथ आरक्षित श्रेणियों के योग्य उम्मीदवारों की कमी को पूरा करने हेतु मानदंडों पर बल देते हैं।

प्रणालीगत समस्या: 

  • समस्या का कारण अभ्यास और गुणवत्तापूर्ण स्कूली शिक्षा तक पहुंँच भी है, जो गरीबों के लिये एक आधार निर्मित करने हेतु आवश्यक है।

आरक्षण नीति का पालन करने के लाभ:

  • अन्य संस्थानों हेतु एक उदाहरण: 
    • IIT को राष्ट्रीय महत्त्व का संस्थान बने रहने देना चाहिये हालांँकि उनके कुछ सामाजिक उतरदायित्व भी हैं।
    • इन्हें अनुसंधान और नवाचार में उत्कृष्टता का स्तर प्राप्त करने हेतु अल्प विकसित समुदायों को अवसर प्रदान कर अन्य संस्थानों के समक्ष एक उदाहरण स्थापित करना चाहिये।
  • विषमताओं को कम करना:
    • सकारात्मक कार्रवाई और जाति-आधारित आरक्षण समाज में असमानता को घटाने में मदद कर सकता है, वंचित वर्ग को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच प्रदान कर सकता है, विविधता को बढ़ावा दे सकता है और इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह है कि समानता को बढ़ावा देने के लिये बाधाओं को दूर कर पिछली गलतियों में सुधार करने की आवश्यकता है।

आगे की राह: 

  • शिक्षा के अवसरों में बराबरी का स्तर कायम करने के उद्देश्य से स्कूली शिक्षा के शुरुआती वर्षों में ही नीतिगत हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।
  • इसके अलावा SC/ST समूहों से संबंधित छात्रों की क्षमता के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण, धारणा और रूढ़ियाँ आदि बड़ी बाधाओं के रूप में हैं। नीतियों के निर्माण में इस बात की पहचान करना ज़रूरी होगा कि इस प्रकार की धारणाएंँ व्यक्तियों और समूहों को किस प्रकार से जकड़ लेती हैं  ताकि इनको बदलने के तरीकों के बारे में गंभीरता से विचार किया जा सके।
  • जागरुक अभियानों के माध्यम से विविध मुद्दों को संबोधित किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू