इको-सेंसिटिव ज़ोन | 19 Jan 2023

प्रिलिम्स के लिये:

इको-सेंसिटिव ज़ोन, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (2002-2016), शहरीकरण, एक सींग वाला गैंडा, काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, वन अधिकार अधिनियम, ग्राम सभा, इको-टूरिज़्म, बागवानी, कार्बन फुटप्रिंट्स।

मेन्स के लिये:

इको-सेंसिटिव ज़ोन के आसपास गतिविधियाँ, इको-सेंसिटिव ज़ोन का महत्त्व, इको-सेंसिटिव ज़ोन से संबंधित चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में प्रदर्शनकारियों द्वारा इको-सेंसिटिव ज़ोन का यह कहते हुए विरोध किया गया कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के अनुपालन में प्रवर्तन अधिकारियों ने वन समुदायों के अधिकारों को उपेक्षित किया है जिससे वन समुदायों के जीवन एवं आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

इको-सेंसिटिव ज़ोन:  

  • परिचय:  
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की राष्ट्रीय वन्यजीव कार्ययोजना (2002-2016) में निर्धारित किया गया है कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत राज्य सरकारों को राष्ट्रीय उद्यानों और वन्यजीव अभयारण्यों की सीमाओं के 10 किमी. के भीतर आने वाली भूमि को इको सेंसिटिव ज़ोन या पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र (ESZ) घोषित करना चाहिये।    
    • हालाँकि 10 किलोमीटर के नियम को एक सामान्य सिद्धांत के रूप में लागू किया गया है, इसके क्रियान्वयन की सीमा अलग-अलग हो सकती है। पारिस्थितिक रूप से महत्त्वपूर्ण एवं विस्तृत क्षेत्रों, जो 10 किमी. से परे हों, को केंद्र सरकार द्वारा ESZ के रूप में अधिसूचित किया जा सकता है।
  • ESZs के आसपास गतिविधियाँ: 
    • निषिद्ध गतिविधियाँ: वाणिज्यिक खनन, आरा मिलें, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग, प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं की स्थापना, लकड़ी का व्यावसायिक उपयोग। 
      • पर्यटन गतिविधियाँ जैसे- राष्ट्रीय उद्यान के ऊपर गर्म हवा के गुब्बारे, अपशिष्टों का निर्वहन या कोई ठोस अपशिष्ट या खतरनाक पदार्थों का उत्पादन। 
    • विनियमित गतिविधियाँ: पेड़ों की कटाई, होटलों और रिसॉर्ट्स की स्थापना, प्राकृतिक जल का व्यावसायिक उपयोग, बिजली के तारों का निर्माण, कृषि प्रणाली में भारी परिवर्तन, जैसे- भारी प्रौद्योगिकी, कीटनाशकों आदि को अपनाना, सड़कों को चौड़ा करना। 
    • अनुमति प्राप्त गतिविधियाँ: संचालित कृषि या बागवानी प्रथाएँ, वर्षा जल संचयन, जैविक खेती, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग, सभी गतिविधियों के लिये हरित प्रौद्योगिकी को अपनाना। 
  • ESZs का महत्त्व:
    • विकास गतिविधियों के प्रभाव को कम करना: 
      • शहरीकरण और अन्य विकासात्मक गतिविधियों के प्रभाव को कम करने के लिये संरक्षित क्षेत्रों से सटे क्षेत्रों को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया गया है। 
    • इन-सीटू संरक्षण:  
      • ESZ इन-सीटू संरक्षण में मदद करते हैं, जो लुप्तप्राय प्रजातियों के अपने प्राकृतिक आवास में संरक्षण से संबंधित है, उदाहरण के लिये काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, असम में एक सींग वाले गैंडे का संरक्षण। 
    • वन क्षरण और मानव-पशु संघर्ष को कम करना: 
      • इको-सेंसिटिव ज़ोन वनों की कमी और मानव-पशु संघर्ष को कम करते हैं। 
      • संरक्षित क्षेत्र प्रबंधन के मूल और बफर मॉडल पर आधारित होते हैं, जिनके माध्यम से स्थानीय क्षेत्र के समुदायों को भी संरक्षित एवं लाभान्वित किया जाता है। 
    • नाज़ुक पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव को कम करना:
      • संरक्षित क्षेत्रों के आसपास इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित करने का उद्देश्य संरक्षित क्षेत्र के लिये एक प्रकार का 'शॉक एब्जॉर्बर' बनाना है।
      • वे उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्रों से कम सुरक्षा वाले क्षेत्रों में एक संक्रमण क्षेत्र के रूप में भी कार्य करते हैं। 
  • ESZs के साथ जुड़ी चुनौतियाँ:
    • जलवायु परिवर्तन: 
      • जलवायु परिवर्तन ने ESZs पर भूमि, जल और पारिस्थितिक तनाव उत्पन्न किया है।  
        • उदाहरण के लिये बार-बार जंगल की आग या असम की बाढ़ जिसने काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और इसके वन्यजीवों को बुरी तरह प्रभावित किया। 
    • वन अधिकारों का अतिक्रमण:  
      • कभी-कभी पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के निष्पादन हेतु अधिकारियों को वन समुदायों के अधिकारों की उपेक्षा करनी पड़ती है जिस कारण उनके जीवन एवं आजीविका पर प्रभाव पड़ता है। 
      • इसमें विकासात्मक मंज़ूरी के लिये ग्राम सभा को प्रदान किये गए अधिकारों को कम करना भी शामिल है।
        • वन अधिकारों की मान्यता और ग्राम सभा की सहमति वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत वन भूमि को गैर-वानिकी उद्देश्यों के लिये डायवर्ट करने के प्रस्तावों पर विचार करने की पूर्व शर्त थी- जब तक कि MoEFCC ने 2022 में उन्हें समाप्त नहीं कर दिया।

आगे की राह 

  • सामुदायिक जुड़ाव: ESZs के प्रबंधन के लिये निर्णय लेने की प्रक्रिया में स्थानीय समुदायों को शामिल करना महत्त्वपूर्ण है।  
    • यह कार्य समुदाय-आधारित संगठनों के माध्यम से किया जा सकता है, जैसे कि उपयोगकर्त्ता समूह या संरक्षण समितियाँ, जो इन क्षेत्रों में पाए जाने वाले संसाधनों के प्रबंधन और सुरक्षा के लिये ज़िम्मेदार हैं।
    • ग्राम सभा को विकासात्मक परियोजनाओं के मामले में निर्णय लेने वाले प्राधिकरण के साथ सशक्त होना चाहिये।
  • वैकल्पिक आजीविका सहयोग: उन स्थानीय समुदायों के लिये वैकल्पिक आजीविका विकल्प प्रदान करना महत्त्वपूर्ण है जो अपनी आजीविका के लिये ESZs में उपलब्ध संसाधनों पर निर्भर हैं।
    • इसमें ईको-टूरिज़्म, बागवानी और सतत् कृषि जैसी वैकल्पिक आजीविका के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं वित्तीय सहायता शामिल हो सकती है।
  • पर्यावरण पुनर्नवीकरण को बढ़ावा देना: वनीकरण और नष्ट हुए वनों का पुनर्वनीकरण, पर्यावास का पुनर्विकास, कार्बन फुटप्रिंट को बढ़ावा देकर तथा शिक्षा के माध्यम से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने की आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. भारत में संरक्षित क्षेत्रों की निम्नलिखित में से किस एक श्रेणी में स्थानीय लोगों को बायोमास एकत्र करने और उपयोग करने की अनुमति नहीं है? (2012) 

(a) बायोस्फीयर रिज़र्व 
(b) राष्ट्रीय उद्यान 
(c) रामसर कन्वेंशन के तहत घोषित आर्द्रभूमि 
(d) वन्यजीव अभयारण्य 

उत्तर: (b)

स्रोत: द हिंदू