भारतीय दूरसंचार विधेयक प्रस्ताव 2022 | 24 Sep 2022

प्रिलिम्स के लिये:

दूरसंचार विभाग (DoT), भारतीय दूरसंचार विधेयक प्रस्ताव 2022, ओवर-द-टॉप (OTT) प्लेटफॉर्म, भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI), दूरसंचार विकास कोष (TDF), उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना (PLI), भारत नेट प्रोजेक्ट, प्राइम मिनिस्टर वाई-फाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (PM-WANI)।

मेन्स के लिये:

भारत के दूरसंचार क्षेत्र का महत्त्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दूरसंचार विभाग (DoT) ने इंटरनेट आधारित ओवर-द-टॉप (OTT) दूरसंचार सेवाओं को विनियमित करने के लिये भारतीय दूरसंचार विधेयक प्रस्ताव 2022 जारी किया।

भारतीय दूरसंचार विधेयक प्रस्ताव 2022:

  • परिचय:
    • मसौदा विधेयक तीन अलग-अलग अधिनियमों को समेकित करता है जो वर्तमान में दूरसंचार क्षेत्र को नियंत्रित करते हैं जिसमें भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885, भारतीय वायरलेस टेलीग्राफी अधिनियम, 1933 और द टेलीग्राफ वायर्स (गैरकानूनी संरक्षण) अधिनियम, 1950 शामिल हैं।
  • ट्राई की शक्ति में कमी:
  • OTT विनियमन:
    • सरकार ने इंटरनेट आधारित और OTT संचार सेवाओं जैसे- व्हाट्सएप कॉल, फेसटाइम, गूगल मीट आदि को दूरसंचार सेवाओं के तहत शामिल किया है।
      • यह मांग एक समान अवसर प्रदान करने के लिये दूरसंचार ऑपरेटरों द्वारा लंबे समय से की जा रही थी। फिलहाल जहाँ टेलीकॉम कंपनियों को सेवाएँ देने के लिये लाइसेंस की ज़रूरत होती है, जबकि OTT प्लेटफॉर्म को नहीं।
      • इसके अलावा OTT को दूरसंचार सेवाओं के दायरे में लाने का मतलब है कि OTT और इंटरनेट आधारित संचार सेवाएँ प्रदान करने के लिये लाइसेंस की आवश्यकता होगी।
  • वापसी का प्रावधान:
    • दूरसंचार मंत्रालय ने किसी दूरसंचार या इंटरनेट प्रदाता द्वारा अपना लाइसेंस सरेंडर करने की स्थिति में शुल्क वापसी का प्रावधान प्रस्तावित किया है।
  • लाइसेंसधारियों द्वारा भुगतान में चूक:
    • भुगतान में चूक की स्थिति और असाधारण परिस्थितियों में वित्तीय, उपभोक्ता ब्याज़, क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा बनाए रखने या विश्वसनीयता एवं दूरसंचार सेवाओं की निरंतर पूर्ति सहित सरकार ऐसी राशियों के भुगतान को स्थगित कर सकती है अथवा एक हिस्से या सभी देय राशियों को शेयरों में परिवर्तित कर सकती है, देय राशियों को बट्टे खाते में डाल सकती है या भुगतान से राहत प्रदान कर सकती है।
  • दिवाला मामले में:
    • दिवालिया होने की स्थिति में इकाई को सौंपा गया स्पेक्ट्रम सरकारी नियंत्रण में वापस आ जाता है तथा केंद्र सरकार इस तरह के लाइसेंसधारी को स्पेक्ट्रम का उपयोग जारी रखने की अनुमति देने सहित कोई और निर्धारित कार्रवाई कर सकती है।
  • दूरसंचार विकास कोष:
    • यह यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड (USOF) का नाम बदलकर दूरसंचार विकास कोष (TDF) करने का प्रस्ताव करता है।
      • USOF की प्राप्ति दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के वार्षिक राजस्व से होती है। TDF के लिये प्राप्त राशि को सबसे पहले भारत की संचित निधि में जमा किया जाएगा।
    • इस कोष का उपयोग ग्रामीण, दूरस्थ और शहरी क्षेत्रों में कनेक्टिविटी सेवाओं को बढ़ावा देने के लिये किया जाएगा। यह नई दूरसंचार सेवाओं के अनुसंधान और विकास, कौशल विकास एवं नई दूरसंचार सेवाओं की शुरुआत का समर्थन करने में भी सहायता करेगा।

भारत में दूरसंचार उद्योग की वर्तमान स्थिति:

  • वर्तमान स्थिति:
  • भारत में दूरसंचार उद्योग वर्ष 2022 तक 1.17 बिलियन ग्राहकों के साथ दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा उद्योग है। भारत की कुल टेलीडेंसिटी (एक क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक सौ व्यक्तियों के लिये टेलीफोन कनेक्शन की संख्या है) 85.11 प्रतिशत है।
  • पिछले कुछ वर्षों में उद्योग की घातीय वृद्धि मुख्य रूप से किफायती टैरिफ, व्यापक उपलब्धता, मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (MNP) के रोल-आउट, 3G और 4G कवरेज का विस्तार एवं ग्राहकों के उपभोग प्रतिरूप को विकसित करने की वजह से प्रेरित है।
  • FDI प्रवाह के मामले में दूरसंचार क्षेत्र तीसरा सबसे बड़ा क्षेत्र है, जो कुल FDI प्रवाह का 6.44% योगदान देता है और प्रत्यक्ष रूप से 2.2 मिलियन रोज़गार एवं अप्रत्यक्ष रूप से 1.8 मिलियन रोज़गार में योगदान देता है।
  • वर्ष 2014 से 2021 के बीच दूरसंचार क्षेत्र में FDI प्रवाह 150% बढ़कर 20.72 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया जो वर्ष 2002-2014 के दौरान 8.32 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।
  • टेलीकॉम सेक्टर में अब ऑटोमैटिक रूट के तहत 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दे दी गई है।
  • भारत वर्ष 2025 तक लगभग 1 बिलियन स्थापित उपकरणों के साथ विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा स्मार्टफोन बाज़ार बनने की राह पर है और वर्ष 2025 तक 920 मिलियन मोबाइल ग्राहक होने की उम्मीद है जिसमें 88 मिलियन 5G कनेक्शन शामिल होंगे।
  • पहल:
    • आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत PLI योजनाएँ:
      • दूरसंचार और नेटवर्किंग उत्पादों के निर्माण के लिये 12,195 करोड़ रुपए की उत्पादन संबद्ध प्रोत्साहन योजना (PLI) मौजूदा PLI योजना की डिज़ाइन आधारित निर्माण योजना के लिये 4,000 करोड़ रुपए से अधिक के प्रोत्साहन निर्धारित किये गए हैं।
    • दूरसंचार क्षेत्र में सुधार:
      • वर्ष 2021 में तरलता बढ़ाने और दूरसंचार क्षेत्र के भीतर वित्तीय तनाव को कम करने के लिये बड़े पैमाने पर संरचनात्मक एवं प्रक्रियात्मक सुधार किये गए हैं।
    • भारत नेट परियोजना:
      • भारत नेट परियोजना के तहत 178,247 ग्राम पंचायतों में ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाई गई, जिनमें से 161,870 ग्राम पंचायतों में यह सेवा के लिये तैयार हैं। इसके अतिरिक्त, 4,218-ग्राम पंचायतों को सैटेलाइट मीडिया से जोड़ा गया है, जिससे सेवा के लिये तैयार ग्राम पंचायतों की कुल संख्या 166,088 हो गई है।
      • प्रधानमंत्री वाई-फाई एक्सेस नेटवर्क इंटरफेस (PM-WANI):
      • ब्रॉडबैंड इंटरनेट सेवाओं के विस्तार में तेज़ी लाने के लिये देश भर में फैले सार्वजनिक डेटा कार्यालयों (PDO) के माध्यम से सार्वजनिक वाई-फाई सेवा का प्रावधान करना।
  • चुनौतियाँ:
    • प्रति उपयोगकर्त्ता औसत राजस्व में गिरावट (ARPU): ARPU में लगातार तीव्र गिरावट देखी जा रही है, जो घटते मुनाफे और कुछ मामलों में गंभीर नुकसान के साथ भारतीय दूरसंचार उद्योग को राजस्व बढ़ाने के एकमात्र तरीके के रूप में समेकन के लिये प्रेरित कर रही है।
      • वर्ष 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने टेलीकॉम क्षेत्र से लगभग 92,000 करोड़ रुपए के समायोजित सकल राजस्व की वसूली के लिये सरकार की याचिका को अनुमति दे दी, जो उनकी परेशानियाँ और बढ़ा देती है।
    • सीमित विस्तार-क्षेत्र की उपलब्धता: उपलब्ध विस्तार-क्षेत्र यूरोपीय देशों की तुलना में 40% और चीन की तुलना में 50% से कम है।
    • कम ब्रॉडबैंड पहुँच : देश में कम ब्रॉडबैंड पहुँच चिंता का विषय है। पिछले अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU) में ब्रॉडबैंड पर प्रस्तुत श्वेतपत्र के अनुसार, भारत में ब्रॉडबैंड की पहुँच केवल 7% है।
    • व्हाट्सएप, ओला आदि जैसे ओवर-द-टॉप (OTT) एप्लीकेशन को किसी दूरसंचार कंपनी से अनुमति या समझौते की आवश्यकता नहीं होती है। इससे दूरसंचार सेवा प्रदाताओं के राजस्व संग्रहण में बाधा उत्पन्न होती है।
    • दूरसंचार उपकरणों पर शुल्कों में भारी उतार-चढ़ाव जो कि केंद्रीय सर्वर से उपभोक्ता को पूरी प्रणाली से जोड़ने में योगदान देता है।

ओवर-द-टॉप (OTT):

  • OTT या ओवर-द-टॉप प्लेटफॉर्म ऑडियो और वीडियो होस्टिंग तथा स्ट्रीमिंग सेवाएँ जैसे- नेटफ्लिक्स, अमेज़न प्राइम वीडियो, हॉटस्टार आदि हैं, जो कंटेंट होस्टिंग प्लेटफॉर्म के रूप में शुरू हुए लेकिन जल्द ही स्वयं भी लघु फिल्मों, फीचर फिल्मों के साथ वृत्तचित्र एवं वेब सीरीज़ बनाने व रिलीज़ करने में शामिल हो गए।
    • ये प्लेटफ़ॉर्म कई प्रकार की सामग्री प्रदान करते हैं और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग करके उपयोगकर्त्ताओं को उस सामग्री का सुझाव देते हैं जिसे वे इस प्लेटफोर्म पर अपने रुचि के आधार पर देख सकते हैं।
    • अधिकांश OTT प्लेटफॉर्म आमतौर पर कुछ सामग्री  मुफ्त्त में पेश करते तथा और प्रीमियम सामग्री के लिये मासिक सदस्यता शुल्क लेते हैं जो आमतौर पर कहीं और उपलब्ध नहीं होता है।

आगे की राह

  • भारत में दूरसंचार क्षेत्र को विभिन्न चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे- पर्याप्त विस्तार-क्षेत्र बनाए रखना और नई तकनीकों को तेज़ी से अपनाना ताकि ग्राहकों को बेहतर एवं सुविधा संपन्न सेवा के साथ नई सुविधाओं और तकनीकों का उपयोग करने में सक्षम बनाया जा सके।
  • मसौदा दूरसंचार विधेयक 2022 ने इन चुनौतियों की ओर ध्यान दिया और यह किसी भी प्रकार के सुझाव के लिये आमंत्रित करता है ताकि आगे चलकर भारत में दूरसंचार के भविष्य के बारे में एक व्यापक नीति का नेतृत्त्व कर सके।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में से कौन दूरसंचार, बीमा, बिजली आदि क्षेत्रों में स्वतंत्र नियामकों की समीक्षा करता है? (2019)

  1. संसद द्वारा गठित तदर्थ समितियाँ
  2. संसदीय विभाग से संबंधित स्थायी समितियाँ
  3. वित्त आयोग
  4. वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग
  5. नीति आयोग

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 3 और 4
(c) केवल 3, 4 और 5
(d) केवल 2 और 5

उत्तर: a

  • संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं- स्थायी समितियाँ और तदर्थ समितियाँ।स्थायी समितियाँ हर साल या समय-समय पर चुनी या नियुक्त की जाती है तथा उनका काम कमोबेश निरंतर आधार पर चलता रहता है। तदर्थ समितियोँ का गठन आवश्यकता पड़ने पर तदर्थ आधार पर किया जाता है एवं जैसे ही वे उन्हें सौंपे गए कार्य को पूरा करते हैं, उनका अस्तित्त्व समाप्त हो जाता है।
  • भारत में विभाग संबंधित 24 स्थायी समितियाँ हैं जिनमें संसद के दोनों सदनों के सदस्य शामिल हैं। ये समितियाँ मंत्रालय विशिष्ट हैं और अपने संबंधित विभागों के भीतर नियामकों के कामकाज की समीक्षा कर सकती हैं। उदाहरण के लिये अगस्त 2012 में, ऊर्जा संबंधी स्थायी समिति ने 'केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग' के कामकाज पर एक रिपोर्ट प्रस्तुत की। अतः 1 सही है।
  • संसद द्वारा गठित तदर्थ समितियाँ नियामकों के कामकाज की जाँच कर सकती हैं। उदाहरण के लिये 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन पर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की संदर्भ शर्तों में स्पेक्ट्रम मूल्य निर्धारण और दूरसंचार लाइसेंस प्रदान करने पर नीति की समीक्षा शामिल है। वित्त आयोग और नीति आयोग की भूमिका सलाहकार प्रकृति की है तथा वे स्वतंत्र नियामकों की समीक्षा नहीं करते हैं। अत: 3 और 5 सही नहीं हैं।
  • वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (FSLRC) का गठन मार्च 2011 में वित्त मंत्रालय द्वारा भारत की वित्तीय प्रणाली को नियंत्रित करने वाले कानूनों की व्यापक समीक्षा एवं पुनर्रचना के लिये किया गया था। स्वतंत्र नियामकों की समीक्षा करने में इसकी कोई भूमिका नहीं है। अत: 4 सही नहीं हैइसलिये विकल्प (a) सही उत्तर है।

मेन्स:

प्रश्न. सूचना प्रौद्योगिकी समझौतों (ITAs) का उद्देश्य हस्ताक्षरकर्त्ताओं द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों पर सभी करों और प्रशुल्कों को कम करके शून्य पर लाना है। ऐसे समझौतों का भारत के हितों पर क्या प्रभाव होगा?(2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस